कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 को बुजुर्ग उम्र के लोगों के लिए विशेष रूप से घातक और जानलेवा माना जाता है। इस वायरस पर दुनियाभर में हुई अध्ययनों में यह तथ्य प्रमुखता के साथ सामने आया है। लेकिन प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का एक शोधपत्र इस तथ्य को चुनौती देता है। इस अध्ययन की मानें तो नया कोरोना वायरस बुजुर्गों समेत सभी उम्र के लोगों के लिए घातक और जानलेवा हो सकता है। हार्वर्ड ने अस्पतालों में भर्ती कोरोना वायरस के 3,000 से ज्यादा युवा वयस्कों का अध्ययन करने के बाद यह दावा किया है।

अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने अमेरिका के अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 के कोई 3,222 युवा वयस्क मरीजों का विश्लेषण किया है। इसमें उन्होंने पाया है कि इन मरीजों में 88 की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई थी। यह अध्ययन में शामिल कुल युवा वयस्क मरीजों का 2.7 प्रतिशत है। वैज्ञानिकों ने जाना है कि हर पांच युवा वयस्कों में से एक को आईसीयू में जाने की जरूरत पड़ रही थी और हर दस मरीजों में से एक को सांस लेने के लिए वेंटिलेटर पर लेटना पड़ा था। एक और अहम तथ्य यह सामने आया कि करीब 100 मरीजों यानी तीन प्रतिशत संक्रमितों को जिंदा बचने के बाद भी अस्पताल से घर नहीं भेजा जा सका। उनकी हालत ऐसी थी कि उन्हें अस्पताल से सीधे कोविड केयर केंद्रों या रिहैबिलिटेशन सेंटरों में भेजना पड़ा था।

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यह महत्वपूर्ण जानकारी जानी-मानी अमेरिकी मेडिकल पत्रिका जामा इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित हुई है। इसकी एक उप-संपादक डॉ. मिशेल कैट्स ने कहा है, 'अध्ययन बताता है कि कोविड-19 सभी आयु के लोगों के लिए जानलेवा बीमारी है। लिहाजा सोशल डिस्टेंसिंग, चेहरे को ढंकना और वायरस के ट्रांसमिशन को रोकने के अन्य उपाय बुजुर्गों की तरह युवा वयस्कों पर भी लागू हैं।'

पत्रिका ने बताया है कि अध्ययन में शामिल ज्यादातर (60 प्रतिशत) मरीज पुरुष थे। उन्हें महिलाओं की अपेक्षा वेंटिलेटर की ज्यादा जरूरत पड़ रही थी। मृतकों में भी ज्यादा संख्या पुरुष संक्रमितों की थी, जोकि कोविड-19 के संबध में अब एक वैश्विक रूप से स्वीकार्य तथ्य बन गया है। अत्यधिक मोटापा और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां मरीजों के मकैनिकल वेंटिलेशन पर जाने या मरने से प्रमुख रूप से जुड़ी थीं। जामा ने बताया है कि अध्ययन के तहत शोधकर्ताओं ने एक अप्रैल से 30 जून के बीच अमेरिका के 400 अस्पतालों से डिस्चार्ज हुए युवा वयस्कों पर भी गौर किया। इनमें कुल मिलाकर केवल एक-तिहाई मरीज मोटापे का शिकार थे और सिर्फ एक-चौथाई अत्यधिक मोटापे से पीड़ित थे। बमुश्किल पांच युवा वयस्क संक्रमितों को डायबिटीज था और केवल सात हाइपरटेंशन से ग्रस्त थे।

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इन तथ्यों पर बात करते हुए अध्ययन के प्रमुख और वरिष्ठ लेखक और हार्वर्ड में मेडेसिन के प्रोफेसर डॉ. स्कॉट सोलोमोन का कहना है कि युवा लोगों में कोरोना वायरस के मामले बढ़ने के बावजूद, उनमें ज्यादा बीमार होकर अस्पताल में भर्ती होने वाले पीड़ितों की संख्या कम है। उनमें से कुछ गंभीर रूप से बीमार पड़ते हैं। सोलोमोन के मुताबिक, ऐसे लोगों में अश्वेत और लैटिन अमेरिकी लोगों की संख्या काफी ज्यादा है, जोकि यूरोप और अमेरिका में सामुदायिक आधार पर हुए कोविड-19 अध्ययनों में एक प्रमुख तथ्य बन कर उभरा है।

डॉ. सोलोमोन का कहना है, 'हम इस विषय पर काफी बात करते हैं कि कैसे युवा लोग बीमारी को अन्य कमजोर लोगों में ट्रांसमिट कर सकते हैं। लेकिन यहां हम यह बात रखना चाहते हैं कि कुछ युवा लोग भी, हालांकि यह संख्या ज्यादा नहीं है, लेकिन एक सीमाबद्ध संख्या में युवा लोगों में भी बीमारी के गंभीर परिणाम दिखेंगे।' सोलोमोन के मुताबिक, पहले से बीमार युवाओं पर ज्यादा खतरा है, लेकिन जिनमें पहले से कोई बीमारी नहीं है, वे भी इस महामारी से पीड़ित हुए हैं। हार्वर्ड के प्रोफेसर ने कहा, 'ऐसे कई फैक्टर्स हैं, जिन्हें हम नहीं समझते, लेकिन वे लोगों को इस बीमारी के खतरे में डालते हैं। ये फैक्टर जेनेटिक हो सकते हैं, पर्यावरण आधारित हो सकते हैं और उन वायरसों से संबद्ध भी हो सकते हैं, जिनकी चपेट में हम अपने जीवन में आ चुके हैं।'

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