भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने रविवार को एक बार फिर कहा कि इस समय कोविड-19 बीमारी की कोई भी वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। कोरोना वायरस को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ नियमित रूप से होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में आईसीएमआर ने कहा कि इस समय कोविड-19 का इलाज ढूंढने के लिए 40 से ज्यादा वैक्सीन पर शोध कार्य चल रहा है, लेकिन उनमें से कोई भी अगली स्टेज पर नहीं पहुंचा है। कॉन्फ्रेंस में आईसीएमआर के प्रतिनिधि मनोज मुरहेकर ने कहा, 'भारत भी वैक्सीन बनाने के प्रयास कर रहा है। लेकिन अभी तक कोई वैक्सीन नहीं आई है।'

दुनियाभर में कोविड-19 जिस तेजी से फैली है, उसे देखते हुए एक के बाद एक इसके इलाज के लिए नई वैक्सीन कैंडिडेट बनाए जाने के दावे सामने आए हैं। कुछ के ट्रायल बाकायदा विश्व स्वास्थ्य संगठन करवा रहा है। यही वजह है कि हाल के दिनों में यह बार-बार पूछा गया है कि आखिर कब तक कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली इस बीमारी की वैक्सीन या दवा बन पाएगी। ऐसे में जानते हैं कि एक वैक्सीन बनाने में कितना समय लगता है और कोविड-19 की दवा तैयार होने में कम से कम कितना वक्त लग सकता है।

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कब आएगी कोविड-19 की वैक्सीन?
आम लोग चाहते हैं कि इस बीमारी की दवा जल्दी से जल्दी बन जाए। लेकिन इसको बनाने में लगे वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के हवाले से आई रिपोर्टें बताती हैं कि हाल-फिलहाल में यह नहीं होने वाला। उनकी मानें तो कोविड-19 की दवा बनने में कम से कम एक से डेढ़ या दो साल का वक्त लगेगा ही। पाठकों को यह अवधि बहुत लंबी लग रही होगी। लेकिन सच यह है कि अगर इसी अवधि में दवा बन गई तो यह अपनेआप में बड़ी बात होगी, क्योंकि आमतौर पर वैक्सीन बनने में पांच से दस साल का समय लगता ही है।

जानकारों का कहना है कि कोविड-19 की वैक्सीन दो साल के अंदर इसीलिए आ सकती है, क्योंकि कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) और मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स) के संबंध भी कोरोना वायरस से ही है और इन्हें लेकर पहले ही काफी खोजें की जा चुकी हैं। विशेषज्ञों की मानें तो यही वजह है कि इतने 'कम' समय में कोविड-19 के इलाज के लिए 40 से ज्यादा 'वैक्सीन कैंडिडेट' सामने आए हैं। अमेरिका की वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विलियम स्कैफनर का कहना है कि हो सकता है कि इससे कोविड-19 की दवा बनने में अपेक्षाकृत कम समय लगे, लेकिन फिर भी ऐसा होने में कुछ समय तो जरूर लगेगा। उनकी मानें तो सार्स और मर्स को लेकर हुई खोजों के चलते नई वैक्सीन बनाने में शायद पांच साल कम समय लगे। वे कहते हैं, 'हम जल्दी वैक्सीन बना सकते हैं, लेकिन शॉर्टकट नहीं ले सकते।'

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तीन चरणों के तहत बनती है वैक्सीन
दुनियाभर के मेडिकल विशेषज्ञों के मुताबिक, वैक्सीन बनने के लिए दवा को तीन ट्रायलों से गुजरना होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड सेंटर फॉर वैक्सीन डेवलपमेंट एंड ग्लोबल हेल्थ के वयस्क संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. विलुबर चेन इन तीनों चरणों को इस तरह बताते हैं:

  • पहला चरण: इसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि तैयार की जा रही दवा सुरक्षित है या नहीं। आमतौर पर यह चरण छह महीने का होता है। इस चरण को अमल में लाने के लिए ऐसे लोगों को ढूंढा जाता है जो स्वस्थ हों। पहले चरण या फेज का मकसद यह जानना नहीं होता कि वैक्सीन कितनी प्रभावी है, बल्कि यह देखा जाता है कि यह कितनी सुरक्षित है।
  • दूसरा चरण: इसमें इस बात की जांच की जाती है कि वैक्सीन शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली पैदा कर रही है या नहीं। आमतौर पर इस ट्रायल में एक साल तक का समय लग जाता है। इस फेज में प्रतिभागियों की संख्या बढ़ जाती है और वैक्सीन पर प्रतिरक्षा विज्ञान के तहत फोकस किया जाता है।
  • तीसरा चरण: इस चरण में वैक्सीन के प्रभाव की लंबी जांच यानी ट्रैकिंग की जाती है। इसमें प्रतिभागियों का दायरा और बड़ा हो जाता है। उनमें से कुछ को वैक्सीन दी जाती है और कुछ को प्लैसबो ड्रग (एक अन्य प्रकार की दवा) ताकि दोनों तरह के प्रतिभागियों में होने वाले प्रभावों की तुलना की जा सके। तीसरे चरण में यह देखा जाता है कि जिन लोगों में रोगाणु के लक्षण हैं, उनमें वैक्सीन संक्रमण को फैलने से रोक पा रही है या नहीं। यह चरण तीन साल या उससे ज्यादा वक्त तक चल सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि संक्रमित व्यक्ति (जिस पर दवा को आजमाया गया) में वायरस कब तक सक्रिय रहता है।

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यानी साफ है कि नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 की दवा जल्दी आ सकती है। लेकिन इस जल्दी का मतलब एक-दो महीने नहीं, बल्कि एक से डेढ़ या दो साल है। तब तक सावधानी बरतना ही इस बीमारी से बचने का सबसे कारगर तरीका है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोरोना वायरस: जानें, क्यों 40 से ज्यादा 'कैंडिडेट' होने के बाद भी कोविड-19 की वैक्सीन बनने में लगेगा और समय है

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