कोविड-19 एक वायरल संक्रमण है। इसके प्रकोप ने 7 अप्रैल तक दुनिया भर के 13 लाख से अधिक लोगों को संक्रमण का शिकार बना लिया है जबकि 74 हजार से ज्यादा लोगों की अब तक मौत हो चुकी है। पिछले साल के अंत में चीन के वुहान में कोविड-19 के पहले मामले के सामने आने के बाद से इसका असर ऐसा रहा है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। पिछले तीन महीने में इस महामारी ने दुनिया के लगभग सभी देशों को अपने चपेट में ले लिया है। इसमें इटली, स्पेन,फ्रांस, अमेरिका, ईरान जैसे देशों में लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

वायरस के प्रसार को रोकने हेतु एक प्रभावी रणनीति बनाने के लिए चिकित्सा और विज्ञान क्षेत्र के विशेषज्ञ दिन रात प्रयास में लगे हुए हैं। इतना ही नहीं सरकारों ने अपने देश में लॉकडाउन कर दिया है साथ ही लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग बनाने की अपील की गई है। संक्रमित और संदिग्ध मरीजों को आइसोलेशन में रखा जा रहा है। साथ ही साथ सभी सार्वजनिक स्थानों जैसे मॉल और मूवी हॉल को बंद कर दिया गया है।

जिन देशों की आबादी सघन है उन्हें कई तरह की दिक्कतें हो रही है। उदाहरण के लिए, न्यूयॉर्क में मार्च के अंतिम दो हफ्तों में कोविड-19 से प्रभावित लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई। (न्यूयॉर्क शहर में कोविड-19 से 2 अप्रैल तक मरने वालों की संख्या 1,374 थी।)

इस बीमारी से निजात पाने के लिए प्रभावी उपचार या वैक्सीन बनाने का प्रयास जारी है। इस बीच इस बात पर बहस हो रही है कि क्या हर्ड इम्यूनिटी इस नए कोरोना वायरस से मुकाबले में व्यापक स्तर का समाधान हो सकता है? इसी दिशा में कुछ स्वास्थ्य समुदायों का मानना है कि हर्ड इम्यूनिटी एक प्रभावी उपकरण हो सकता है, जो कोरोना वायरस के प्रभाव को कम कर सके। इस लेख में हम आपको हर्ड इम्यूनिटी और वह कोविड-19 से लड़ाई में कितना प्रभावी हो सकता है, इस बारे में बताएंगे।

  1. हर्ड इम्यूनिटी क्या है?
  2. क्या कोविड-19 के मामले में हर्ड इम्यूनिटी सफल हो सकती है?
  3. इन बातों का भी रखें ध्यान
हर्ड इम्यूनिटी क्या है? कोविड-19 को रोकने में यह कैसे सहायक है? के डॉक्टर

हर्ड इम्यूनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता, महामारी विज्ञान की एक अवधारणा है। जब किसी जगह पर लोगों को किसी भयानक बीमारी से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में वैक्सीन दी जाती है तो इससे बाकी लोगों में उस महामारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है। जिन्हें उस महामारी की वैक्सीन नहीं लगी है या फिर वैक्सीन नहीं दी जा सकती, उन्हें भी यह बीमारी अपनी चपेट में कम ले पाती है। इसे ही हर्ड इम्युनिटी या सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।

यह चेचक जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ाई में एक सफल तरीका साबित हो चुका है। इससे पहले मीजल्स यानी खसरा जैसी संक्रामक बीमारियां जिनका बढ़ने की दर कोरोनो वायरस संक्रमण से भी कहीं अधिक थी उन्हें इसी पद्धति से नियंत्रित किया जा चुका है।

किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए स्वत: ही हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एंटीबॉडी विकसित करती है। विभिन्न प्रकार से रोगों का सामना करने के लिए शरीर उसी के अनुसार एंटीबॉडी तैयार कर लेता है। हर्ड इम्यूनिटी के मामलें में देखा जाए तो ऐसा व्यक्ति जो वायरस से प्रतिरक्षा नहीं कर सकता है यानी उसका शरीर उस वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी नहीं बना पा रहा है। लेकिन वह ऐसे लोगों के समुदाय का हिस्सा है जो पहले से ही टीकाकरण करा चुके हैं या उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस से लड़ सकती है, ऐसे में वह व्यक्ति भी वायरस से सुरक्षित रह सकता है। इसका कारण यह है कि चूंकि जहां वह रहता है वहां के लोगों में उस वायरस का असर नहीं है, ऐसे में संक्रमण के फैलने का खतरा कम रहता है।

कोविड-19 के मामले में

हर्ड इम्यूनिटी का मामला आमतौर पर तब सफल होता है जब कोई वैक्सीन उपलब्ध हो। कोविड-19 के मामले में अब तक वैक्सीन नहीं बन सकी है, इसे लेकर परीक्षण जारी हैं। चूंकि अब तक इसका कोई इलाज उपलब्ध नहीं है ऐसे में पूरी दुनिया के लिए यह चिंता का सबब बना हुआ है। इस वायरस के बारे में अब तक हमें इसकी प्रजनन क्षमता का ही पता है हालांकि उसके भी परिणाम लगातार बदलते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दर में ही कमी लाकर वायरस के संक्रमण से निपटा जा सकता है। प्रजनन दर की क्षमता का स्तर एक से कम होने का मतलब है कि संक्रमित व्यक्ति सिर्फ एक और व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है।

क्या चुनौतियां हैं?

बुखार, खांसी, सांस की तकलीफ जैसे कोविड-19 के कई लक्षण हैं जो आम तौर पर फ्लू के दौरान भी देखे जाते हैं। कोविड-19 वायरस भी उसी वक्त चर्चा में आया है जब आमतौर पर फ्लू का प्रभाव रहता है। यही कारण है शुरुआत में इसे समझ पाने में लोगों को काफी दिक्कत हुई। दुनिया के कई शहरों में संक्रमण की बढ़ती दर ने स्थानीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को व्याकुल कर दिया है। जैसे कि इटली और स्पेन और हाल ही में न्यूयॉर्क में भी मामले तेजी से बढ़े हैं।

संक्रमण के इसी डर को देखते हुए दुनिया भर की सरकारों ने लोगों से सामाजिक दूरी (फिजिकल डिस्टेंसिंग) बनाने का निर्देश दिया है। लेकिन देखा जाए तो अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों और विकासशील देशों में फिजिकल डिस्टेंसिंग बनाए रखना इतना आसान नहीं है।

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शुरुआत में इस विषय पर काफी चर्चा हुई लेकिन वैज्ञानिकों ने कोविड-19 के मामले में हर्ड इम्यूनिटी प्रभावी हो सकती है, इस विषय को नकार दिया है। उसके कारण निम्न हैं।

  • आमतौर पर वैक्सीन द्वारा ही हर्ड इम्यूनिटी की पद्धति पर विचार किया जा सकता है। चूंकि कोविड-19 के लिए अब तक कोई वैक्सीन नहीं है ऐसे में यह सफल नहीं हो सकता।
  • महामारी के बारे में जानने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि अगर देश की आधी से अधिक आबादी संक्रमण का शिकार होती है, तो इसका मतलब होता है कि वे सिर्फ बीमार हैं। ऐसी दिशा में हर्ड इम्यूनिटी जैसी पद्धति से प्रतिरक्षा को विकसित कर पाना संभव नहीं होता। हां कुछ लोगों में यह प्रतिरक्षा प्रणाली जरूर विकसित की जा सकती है।
  • ग्लोबल वैक्सीन अलायंस (गावी) के अनुसार वायरस के रूप लगातार परिवर्तन हो रहा है। इसका मतलब यह है कि कोई वयक्ति अगर वायरस के एक रूप से प्रतिरक्षित हो जाए तो उसके किसी दूसरे रूप से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। अभी तक ऐसे कोई सबूत नहीं है मिले हैं कि सार्स-सीओवी-2 वायरस जिससे कोविड-19 होता है, अभी तक उस हद तक उत्परिवर्तित हो गया है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि कोरोना वासरस अपेक्षाकृत धीमी गति से उत्परिवर्तित होते हैं, जो हमें टीका विकसित करने का समय दे सकते हैं।
  • आंकड़ों की मानें तो किसी देश की कम से कम 70 प्रतिशत जनसंख्या अगर कोविड-19 से संक्रमित हो जाती है तब बाकी बची 30 प्रतिशत जनसंख्या को हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त हो पाएगी।कोविड-19 संक्रमण से संक्रमित लोगों में मरने वाले का आंकड़ा 0.66% (इस पर अभी भी शोध चल रहा है) के करीब है। माना जा रहा है कि प्रतिरक्षा प्राप्त करने के प्रयास में 300 रोगियों में से 2 की मौत हो सकती है। वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा बहुत अधिक हो सकता है।
  • जो लोग पहले से ही किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, साथ ही बच्चे और बुजुर्ग जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली अपेक्षाकृत कमजोर होती है, यानी जिन्हें टीका नहीं लगाया जा सकता है, संभवत: उन्हें हर्ड इम्यूनिटी से लाभ हो सकता है। लेकिन एक समुदाय में संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या इन लोगों को भी खतरे में डाल सकती है।

कोविड-19 संक्रमण में हर्ड इम्यूनिटी प्रभावी नहीं हो सकती है। कई विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यह एक देश या बड़ी आबादी के मामले में भी बहुत अधिक प्रभावी पद्धति नहीं हो सकती है। जब एक बड़ी आबादी ने किसी बीमारी के लिए प्रतिरक्षा विकसित कर ली हो, तब हर्ड इम्यूनिटी उस छोटे भाग के लिए फायदेमंद हो सकती है जो उस बीमारी से प्रतिरक्षा के मामले में अब तक सुरक्षित नहीं है।

इस सिद्धांत पर सवालिया निशान इसलिए है क्योंकि जब किसी देश की बड़ी आबादी गंभीर बीमारी और संभावित मौत का शिकार होती है तो इससे देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी बोझ पड़ता है। ऐसे में यह बहुत प्रभावी नही है। यह उसी स्थिति में बेहतर परिणाम दे सकती है जब पहले से ही बीमारी के लिए टीका उपलब्ध हो।

ऐसे में किसी ऐसे संक्रमण जिसका उपचार उपलब्ध न हो उसे रोकने के लिए एहतियाती कदम उठाना ही एकमात्र विकल्प रहता है। यानी संक्रमण का पता चलते ही अंतरराष्ट्रीय यातायात पर प्रतिबंध, राष्ट्रीय सीमाओं को बंद कर, लोगों को सुरक्षित करने के लिए लॉकडाउन जैसे उपायों को प्रयोग में लाकर ही इससे बचा जा सकता है।

 

Dr Rahul Gam

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संदर्भ

  1. Jones D and Helmreich S. A history of herd immunity. The Art of Medicine. 2020 Sep; 396(10254): 810-811.
  2. American Heart Association [Internet]. Dallas, TX, USA. COVID-19 science: Understanding the basics of 'herd immunity'.
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