देश में डॉक्टरों के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है। कोरोना वायरस से निपटने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों की 'कुर्बानी की अनदेखी' का आरोप लगाते हुए आईएमए ने सरकार पर तीखी टिप्पणी की है। समाचार एजेंसी पीटीआी की रिपोर्ट के मुताबिक, आईएमए ने कहा है कि सरकार ने कोविड-19 संकट में मारे गए डॉक्टरों और उनके परिवारों की अनदेखी की है। बुधवार को इन 382 डॉक्टरों की सूची जारी करते हुए आईएमए ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कोविड-19 संकट को लेकर दिए अपने हालिया बयान में इन डॉक्टरों का जिक्र नहीं किया। आईएमए का कहना है कि ये डॉक्टर कोरोना वायरस की वजह से मारे गए, लिहाजा वह मांग करती है कि इन चिकित्सकों को 'शहीद' का दर्जा दिया जाए।

(और पढ़ें - केंद्र सरकार अब कोविड-19 के कम्युनिटी ट्रांसमिशन को स्वीकार करे, आईएमए की सरकार से अपील)

गौरतलब है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने अपने एक बयान में कहा था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और अस्पताल राज्यों के तहत आते हैं, लिहाजा मारे गए डॉक्टरों को बीमा आधारित मुआवजा देने के लिए केंद्र के पास संबंधित डेटा नहीं है। उनकी बात से आहत आईएमए ने कहा कि यह बताता है कि 'सरकार ने अपना कर्तव्य त्याग दिया है और लोगों के लिए खड़े होने वाले राष्ट्रीय नायकों (मृतक डॉक्टर) को छोड़ दिया है।' इस बारे में डॉक्टरों के संगठन ने कहा है, 'आईएमए को यह बात अजीब लगी है कि (डॉक्टरों के) पीड़ित परिवारों को अपमानित करने वाली प्रतिकूल पक्षपाती बीमा योजना बनाई गई है। सरकार उन्हें अपना नहीं मान रही है और वे पूरी तरह सरकार की ओर ही देख रहे हैं।'

खबर के मुताबिक, आईएमए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि 16 सितंबर तक देशभर में 2,238 डॉक्टर कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से 382 की मौत हो चुकी है। स्वास्थ्य मंत्री के बयान का जिक्र करते हुए आईएमए ने कहा है कि इसके 19वें पैराग्राफ में कोविड-19 संकट में स्वास्थ्यकर्मियों के योगदान को स्वीकार किया गया है, लेकिन डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्कर्मियों के बीमार पड़ने और मारे जाने की बात 'छिपाई गई' है। इसे सरकार की 'उदासीनता' बताते हुए आईएमए ने कहा कि दुनिया के किसी भी अन्य देश में कोविड-19 से इतने डॉक्टरों की मौत नहीं हुई है, जितनी भारत में देखने मिली हैं।

(और पढ़ें - आरडीए के बाद अब आईएमए ने आईएएस की तर्ज पर इंडियन मेडिकल सर्विस की शुरुआत करने की मांग रखी)

इस पर अपनी राय रखते हुए आईएमए ने कहा है, 'यह कहना घृणास्पाद है कि यह जानकारी देश का ध्यान नहीं खींचती। अगर सरकार कोविड-19 से संक्रमित हुए डॉक्टरों और हेल्थकेयर वर्कर्स के आंकड़ों की देखरेख नहीं करती और न ही यह आंकड़ा रखती है कि कितनों ने इस महामारी में अपना जीवन कुर्बान कर दिया तो वह महामारी अधिनियम 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम को प्रभाव में लाने के नैतिक अधिकार को खो देती है। इससे इस पाखंड का भी पता चलता है कि एक तरफ उन्हें (स्वास्थ्यकर्मी) कोरोना वॉरियर कहा जाता है और दूसरी तरफ उन्हें और उनके परिवारों को शहादत का दर्जा और उसके लाभ नहीं दिए जाते।'

इसके बाद 382 पीड़ित डॉक्टरों की सूची जारी करते हुए आईएमए ने कहा है कि वह इन चिकित्सकों को शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग करती है। इसके अलावा आईएमए ने सरकार से यह सिफारिश भी की कि वह उसे नर्सों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों का भी डेटा मुहैया कराए। संगठन ने कहा कि उसने अपनी सिफारिशें और सुझाव स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ साझा किए हैं। इसमें मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल को नियंत्रित करने के संबंध में सरकार के प्रयासों से जुड़ा फीडबैक भी शामिल है।

(और पढ़ें - केरल में कोविड-19 संबंधी ड्यूटी पर कार्यरत 870 डॉक्टरों ने वेतन कटने के खिलाफ इस्तीफा दिया)


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 से अब तक 382 डॉक्टरों की मौत, आहत आईएमए ने केंद्र सरकार की तीखी आलोचना करते हुए कई आरोप लगाए है

ऐप पर पढ़ें