ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 22 मई 2020 को COVID-19 वैक्सीन के लिए मानव परीक्षण के चरण II और III की शुरुआत करने की घोषणा की। बता दें, कि चरण I को सफल माना गया था, इसीलिए अब आगे के चरण के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। वर्तमान में कई देश कोरोना वायरस को लेकर वैक्सीन पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन दुनियाभर की नजर इस समय ChAdox1 nCOV-19 नामक वैक्सीन पर टिकी हुई है, जिस पर 10 जनवरी से शोध चल रहा है।

सबसे पहले मैकाक बंदरों पर इस वैक्सीन का परीक्षण किया गया था, जिसके बाद मानव परीक्षण चरण I किया गया, जिसमें 1000 से ज्यादा प्रतिभागियों को यह वैक्सीन दी गई थी।

फिलहाल, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी इस टीके के लिए ह्यूमन ट्रायल II और III की तैयारी में है। इसके लिए 10,260 वयस्कों को शामिल किया जाएगा और यह एक ब्लाइंडेड स्टडी (जिसमें रोगियों को नहीं पता कि उन्हें कौन-सा उपचार दिया जा रहा है) होगी। इनमें से आधे लोगों को वैक्सीन दी जाएगी, जबकि अन्य को MenACWY नामक एक एक्टिव प्लेसबो दिया जाएगा। प्लेसबो का मतलब किसी दवा या प्रक्रिया से है, जो शारीरिक प्रभाव के बजाय रोगी को मनोवैज्ञानिक लाभ देता है।

इन परीक्षणों का लक्ष्य यह अध्ययन करना है कि जिन प्रतिभागियों को टीका दिया गया है क्या उनमें 'नवल कोरोना वायरस संक्रमण' के प्रति एंटीबॉडी विकसित हुई है या नहीं। इसके अलावा यह भी परीक्षण किया जाएगा कि यह कितना सुरक्षित है और स्वस्थ लोगों पर इसका कितना असर है।

ChAdox1 वैक्सीन कैसे काम करती है?

यह वैक्सीन ChAdox1 वायरस से बनाई गई है, जो कि एडिनोवायरस (वायरस जिसकी वजह से सर्दी जुकाम हो सकता है) का एक प्रकार है, इससे चिंपाजियों में संक्रमण का खतरा रहता है। लेकिन शोधकर्ताओं ने इसमें आनुवंशिक रूप से कुछ बदलाव किए हैं, ताकि इसकी वजह से मनुष्यों में किसी भी तरह का संक्रमण न हो पाए।

यह एक वेक्टर वैक्सीन (एक वैक्सीन जिसमें हानिरहित या कमजोर सूक्ष्म जीव होते हैं) है, जिसका इस्तेमाल शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है। लेकिन इस मामले में, वेक्टर वैक्सीन में स्पाइक प्रोटीन को शामिल किया गया है। स्पाइक एक ऐसा प्रोटीन है, जो शरीर की कोशिकाओं से जुड़ने (अटैच) और इन कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

यह उम्मीद जताई गई है कि शरीर इन प्रोटीनों को रोगजनकों के रूप में स्वीकार करेगा और बदले में एंटीबॉडी बनाएगा। चूंकि टीका मनुष्यों को संक्रमित नहीं कर सकता है, इसलिए बिना किसी बीमारी के डर से यह प्रतिरक्षा को मजबूत बनाने का एक बेहतरीन तरीका हो सकता है।

COVID-19 बीमारी SARS-CoV-2 वायरस के कारण होती है। एसीई2 रिसेप्टर कोशिकाएं हैं, जो हमारे रक्त वाहिकाओं, फेफड़ों, गुर्दे व हृदय, शरीर के अन्य भागों में मौजूद होती हैं।

अध्ययन की संरचना और उद्देश्य

5-12 वर्ष के बच्चे, 56 से 69 वर्ष के वयस्क और 70 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को इस अध्ययन में शामिल किया जाएगा। पहले चरण में केवल स्वस्थ और युवाओं को चुना गया था। इस अध्ययन का उद्देश्य विभिन्न आयु वर्गों में उनकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की सुरक्षा और प्रभावशीलता का परीक्षण करना है, क्योंकि जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर या अविकसित है, यदि वे कोरोना वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति या स्थान के संपर्क में आएंगे, तो उनमें COVID-19 होने का खतरा ज्यादा है।

ऐसे स्वस्थ लोग, जो पहले कभी किसी स्टडी का हिस्सा नहीं रहे हैं और जिनमें COVID-19 पॉजिटिव नहीं पाया गया है, उन्हें इस परीक्षण के लिए योग्य माना जाएगा। 10000 से ज्यादा प्रतिभागियों का चुनाव इसलिए किया जा रहा है, ताकि यदि इनमें से किसी को यह वायरस होता है तो उसमें वैक्सीन के प्रभाव का पता लगाया जा सके।

वैक्सीन के प्रशासित होने के बाद, प्रतिभागियों की निगरानी की जाएगी और एंटीबॉडी प्रतिक्रिया की जांच के लिए नियमित रूप से ब्लड टेस्ट किया जाएगा। यदि वैक्सीन से किसी प्रकार का दुष्प्रभाव या प्रतिकूल असर पड़ता है तो ऐसी स्थिति में भी प्रतिभागियों को मॉनिटर किया जाएगा।

यह परीक्षण कितने समय तक के लिए होगा यह पूरी तरह से संक्रमण की संप्रेषणता पर निर्भर करता है। यदि संक्रमण की दर कम है, तो छह महीने का समय लग सकता है।

फिलहाल बता दें, ChAdOx1 वैक्सीन ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में जेनर इंस्टीट्यूट में विकसित किया जा रहा है। खबर लिखे जाने तक दुनियाभर में कोरोना वायरस से 53 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि 3 लाख 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 वैक्सीन: ऑक्सफोर्ड ने की मानव परीक्षणों के अगले चरण की घोषणा है

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