एक दिन पहले ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के एक अध्ययन के हवाले बताया गया था कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 से मरने के खतरे को कम करने में फायदेमंद नहीं है। लेकिन अब एक नई अंतरराष्ट्रीय शोध रिपोर्ट इसके ठीक उलट दावा करती है। इस अध्ययन के मुताबिक, प्लाज्मा थेरेपी से कोविड-19 के मरीजों की मृत्यु दर में कमी देखने को मिली है। शोधकर्ताओं ने एक दर्जन ट्रायलों से जुड़ी जानकारी के विश्लेषण के बाद यह बात कही है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हुए इन ट्रायलों में कोविड-19 के मरीजों को कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी दी गई थी। इनमें कोरोना वायरस से संक्रमित 800 लोगों को शामिल किया गया था। वैज्ञानिकों ने जब इन सबके डेटा इकट्ठा कर विश्लेषण किया तो पता चला कि जिन मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई थी, उनमें में कोविड-19 से मरने का खतरा आधा हो गया था। वहीं, सामान्य उपचार वाले मरीजों में यह दर जस की तस बनी रही। अध्ययन की मानें तो प्लाज्मा थेरेपी वाले कोविड-19 मरीजों में मृत्यु दर 13 प्रतिशत पाई गई, जबकि सामान्य उपचार वाले मरीजों में यह 25 फीसदी रही। हालांकि अध्ययन से अलग कई शोधकर्ताओं ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं। यहां यह भी बता दें कि यह स्टडी अभी तक किसी मेडिकल पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ है। इसकी समीक्षा की जरूरत है। फिलहाल इस बायोआरकाइव पर पढ़ा जा सकता है।

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क्या उठे हैं सवाल?
अमेरिका के मिनसोटा स्थित मायो क्लिनिक के शोधकर्ता, फिजिशन और एनीस्थीसियोलॉजिस्ट डॉ. माइकल जॉयनर का कहना है, 'जिन ट्रायलों के आधार पर यह स्टडी की गई है, वे सभी सीमित दायरे वाले हैं।' वहीं, एनवाईयू लैंगोन हेल्थ की मेडिसिन और माइक्रोबायोलॉजी इन्स्ट्रक्टर डॉ. मीला ऑर्टिगोजा कहती हैं, 'असल में हम बहुत उच्च स्तर की समीक्षा प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं। यह विश्लेषण रिपोर्ट केवल इस उम्मीद का संकेत देती है कि प्लाज्मा थेरेपी लाभदायक हो सकती है। हालांकि, इससे यह विश्वास नहीं जगता कि इस थेरेपी को कोविड-19 के इलाज के तौर पर जिम्मेदारी के साथ रेकमेंड किया जा सकता है।'

मीला ने बताया कि इस विश्लेषण में प्लाज्मा थेरेपी को लेकर हुए किसी भी रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल को शामिल नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि उचित संख्या वाले प्रतिभागियों से जुड़े ट्रायलों के परिणामों से यह निष्कर्ष निकल पाता कि प्लाज्मा थेरेपी की क्षमता क्या है। वे कहती हैं कि यह अध्ययन असल में यही बात हाईलाइट करता है कि कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा के लिए हो रहे रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायलों को सपोर्ट करते रहने की जरूरत है ताकि उनके जरिये इतनी संख्या में मरीजों का डेटा उपलब्ध हो, जिससे इस बात के पक्के सबूत मिल सकें कि यह थेरेपी वाकई में काम करती है।

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एम्स के दावे के उलट
इससे पहले, एम्स ने अपने एक विश्लेषण के आधार पर बताया था कि कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल से कोविड-19 के मरीजों की मौत होने के खतरे को कम करने में कोई मदद नहीं मिलती है। प्लाज्मा थेरेपी पर किए अध्ययन के परिणाम सामने रखने के बाद एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया था कि संस्थान को ऐसा कोई स्पष्ट सबूत नहीं मिला है, जिसके आधार पर यह दावा किया जाए कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी से कोविड-19 की मृत्यु दर कम होती है या की जा सकती है। उन्होंने बताया कि ट्रायल के दौरान कुछ मरीजों को सामान्य ट्रीटमेंट के साथ कॉन्वलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी भी दी गई थी। वहीं, दूसरे समूह के मरीजों को केवल सामान्य उपचार ही दिया गया था। परिणाम में यह सामने आया कि दोनों ही ग्रुप में कोविड-19 से हुई मौतों में कोई भिन्नता नहीं थी। यानी दोनों ही समूह में समान संख्या में मरीज कोरोना संक्रमण से मारे गए थे। वहीं, पहले समूह के मरीजों की हालत में प्लाज्मा थेरेपी से किसी तरह के क्लिनिकल इम्प्रूवमेंट के ज्यादा सबूत नहीं मिले।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19: एम्स के दावे के उलट इस नई विश्लेषण रिपोर्ट में प्लाज्मा थेरेपी को मृत्यु दर कम करने वाला बताया गया, लेकिन जानकारों ने उठाए सवाल है

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