पिछले कुछ दिनों से भारत में नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के बढ़ते मामलों के लिए तबलीगी जमात के धार्मिक जलसे को जिम्मेदार बताया जा रहा है, जिसे पिछले महीने दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके के धार्मिक स्थल में आयोजित किया गया था। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि इस आयोजन में भाग लेने वाले लोग जब अपने-अपने शहरों को निकले तो कोरोना वायरस का संक्रमण साथ लेकर लौटे। जब देश के कई राज्यों में जमातियों के संक्रमित होने की पुष्टि हुई तो आम लोगों से लेकर मीडिया के एक बड़े तबके ने उन्हें निशाने पर ले लिया। लेकिन वैज्ञानिक समाज ने इसे लेकर अलग राय रखी है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, कई भारतीयों वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा आंकड़े उन अटकलों का समर्थन नहीं करते हैं, जिनमें कोविड-19 के बढ़ते मामलों के लिए तबलीगी जमात को दोषी माना जा रहा है।

दरअसल, वैज्ञानिकों के एक समूह ‘इंडियन रेस्पॉन्स टू कोविड-19’ (आईएसआरसी) ने इस मुद्दे पर कड़ी प्रक्रिया दी है। उनके मुताबिक, देश में मीडिया संस्थाओं और राजनेताओं द्वारा जिस तरह तबलीगी जमात को बढ़ते मामलों का प्राथमिक दोषी ठहराया गया है, वह गलत है। समूह का कहना है कि बीमारी के बढ़ते मामलों को ‘सांप्रदायिक’ मोड़ दिया गया। ‘आईएसआरसी’ ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के उस बयान का हवाला दिया, जिसके मुताबिक नस्लीय, धार्मिक या जातीय आधार पर संक्रमित मामलों को पुष्टि नहीं की जा सकती। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि कोरोना वायरस के फैलने को लेकर किसी सामुदायिक विशेष को दोषी ना माना जाए। यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने महामारी की अटकलों से परे सटीक आंकड़ों की मांग की है।

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गौरतलब है कि निजामुद्दीन स्थित मरकज में 2,300 से अधिक जमातियों का पता चला था। इसके बाद संक्रमित मामलों की संख्या में तेज वृद्धि हुई थी। खुद दिल्ली सरकार ने भी माना था कि इस धार्मिक जलसे के बाद देश में कोरोना मरीजों के आंकड़े बढ़े हैं। वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान था कि भारत में हर तीसरे मामले का संबंध तबलीगी जमात से है। हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने ही बार-बार देश में कोरोना वायरस के कम्युनिटी ट्रांसफर से साफ इनकार किया है। ऐसे में आईएसआरसी के वैज्ञानिकों की मांग है कि सरकार कोविड-19 के मरीजों से जुड़ी सभी जानकारी सार्वजनिक करे।

लॉकडाउन को लेकर सरकार के दो बड़े मंत्रालयों के बयानों में अंतर
उधर, कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन को लेकर सरकार के बड़े दो मंत्रालयों के अलग-अलग बयान सामने आए हैं। खबरों के मुताबिक, विदेश मंत्रालय के एक सचिव ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक कथित अध्ययन के हवाले से कहा कि भारत में अगर लॉकडाउन घोषित नहीं किया जाता तो 15 अप्रैल तक देश में कोविड-19 के आठ लाख से अधिक (8.2 लाख) मामले सामने आते। हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे सिरे से खारिज किया। उसके मुताबिक, आईसीएमआर की ओर से ऐसा कोई अध्ययन आया ही नहीं है।

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मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, गुरुवार को विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) ने कहा था, ‘लॉकडाउन के चलते वायरस फैलने की दर में कमी आई है। वैज्ञानिक अनुमान के तहत बताते हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के बिना, वायरस फैलने की रीप्रॉडक्टिव दर प्रतिदिन 2.5 होती। लेकिन लॉकडाउन के साथ हम 75 प्रतिशत से अधिक खतरे को कम करने में सफल हुए हैं और प्रतिदिन लगभग 0.625 की दर से लोग कोविड-19 से संक्रमित हो रहे हैं।'

झारखंड सरकार ने केंद्र से मांगी मदद
झारखंड में कोविड-19 का प्रभाव अब वहां की सरकार को चिंतित करने लगा है। यही वजह है कि उसने इस संकट को लेकर केंद्र से सहायता की मांग की है। बता दें कि झारखंड में अब तक 14 रोगियों की पहचान हुई है और एक मरीज की मौत हो चुकी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अनुसार, प्रदेश में चिकित्सा आपूर्ति को तेज करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र मदद नहीं करता है तो हालात नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। खबरों के मुताबिक, झारखंड अभी बीमारी फैलने के पहले चरण में है, इसलिए प्रदेश सरकार ने यहां जल्द से जल्द संक्रमण को नियंत्रित करने को लेकर चिंता जाहिर की है ताकि उसे दूसरे चरण में जाने से रोका जा सके।

इन देशों को सबसे पहले मुहैया कराई जाएगी एचसीक्यू दवा
भारत ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) की वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए पहला कदम बढ़ा दिया है। इस दवा के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने के बाद अब उन देशों की लिस्ट तैयार कर ली गई है, जिनको सबसे पहले यह दवा सप्लाई की जाएगी। इस सूची में 13 देश शामिल हैं। इसमें अमेरिका और ब्राजील का नाम सबसे पहले है। कहा जा रहा है कि एचसीक्यू की खेप सबसे पहले इन देशों को भेजी जाएगी।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोरोना वायरस: तबलीगी जमात को दोषी मानने पर वैज्ञानिकों ने रखी यह राय, लॉकडाउन को लेकर सरकार के दो बड़े मंत्रालयों के बयानों में अंतर है

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