भारत और अमेरिका के मेडिकल विशेषज्ञ नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 का इलाज ढूंढने के लिए नए प्रयास कर रहे हैं। खबरें हैं कि कोरोना वायरस को रोकने के लिए मेडिकल विशेषज्ञ अब कॉन्वलेसंट प्लाज्मा (सीपी) थेरेपी का प्रयोग करने जा रहे हैं। इस प्रयोग के तहत कोरोना वायरस के उन मरीजों के ब्लड सैंपल लिए जाएंगे जो इस वायरस के संक्रमण से उबर चुके हैं। शोधकर्ता देखना चाहते हैं कि क्या इन लोगों के खून से कोरोना वायरस से लड़ने का नुस्खा मिल सकता है।

कॉन्वलेसंट प्लाज्मा थेरेपी के तहत प्रयोग
शोधकर्ता और विशेषज्ञ प्लाज्मा थेरेपी की मदद से कोविड-19 का तोड़ निकालने की कोशिश में लगे हैं। इस थेरेपी में बीमारी से ठीक हुए लोगों के शरीर से प्लाज्मा निकाल कर उन मरीजों में डाले जाते हैं, जो उसी बीमारी से जूझ रहे होते हैं। दरअसल, कोविड-19 या अन्य संक्रामक रोग होने के प्रतिक्रिया स्वरूप हमारा शरीर रोग-प्रतिकारकों यानी एंटीबॉडीज का निर्माण कर लेता है। ये रोग-प्रतिकारक कोविड-19 और अन्य बीमारियों से लड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं।

यहां मेडिकल विशेषज्ञों की यह बात उल्लेखनीय है कि जिन लोगों की रोग-प्रतिकारक क्षमता या इम्युन सिस्टम पहले से मजबूत होती है या इलाज के दौरान दुरुस्त हो जाती है, वे आसानी से कोरोना वायरस के संक्रमण को मात दे देते हैं। यही वजह है कि शोधकर्ता कोविड-19 की काट ढूंढने के लिए प्रयोग के तहत ऐसे लोगों के ब्लड सैंपल में से प्लाज्मा अलग करके उन लोगों को दे रहे हैं, जिनमें एंटीबॉडीज या तो बने नहीं है या वायरस को रोक पाने में सक्षम नहीं हैं।

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केरल सरकार की पहल
इस प्रयोग में केरल सरकार भी शामिल है। उसने डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की एक टीम इसके लिए गठित कर दी है। साथ ही, थेरेपी से संबंधित प्रोटोकोल को पहले ही तैयार कर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को भेज दिया है। एक अंग्रेजी अखबार ने इस प्रयोग में शामिल एक वैज्ञानिक संस्थान की निदेशक के हवाले से बताया कि इसके लिए राज्य सरकार की अनुमति ले ली गई है और आईसीएमआर की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है।

वहीं, टास्क फोर्स में शामिल एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि इस प्रयोगात्मक शोध के लिए सभी तैयारिया कर ली गई हैं। उन्होंने बताया कि बीमारी से उबर चुके लोगों की भी काउंसलिंग की जा रही है ताकि शोधकर्ता जान सकें कि वे इसके लिए ब्लड डोनेट करना चाहेंगे या नहीं। उधर, अमेरिका के 'फूड एंड ड्रग एडिमिस्ट्रेशन' ने पहले ही इस तरह के ट्रायलों को करने की अनुमति दे दी है। इसके बाद अमेरिकी शोधकर्ताओं ने 'नेशनल कोविड-19 कॉन्वलेसंट प्लाज्मा प्रोजेक्ट' के तहत क्लिनिकल ट्रायल की तैयारी शुरू कर दी है।

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शुरुआती परिणाम सकारात्मक
भारत और अमेरिका के शोधकर्ताओं का यह प्रयास निराधार नहीं है। शोध आधारित अन्य रिपोर्टें बताती हैं कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 को रोकने में कारगर साबित हो सकती है। विज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी अमेरिकी पत्रिका 'प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडेमीज ऑफ साइंस ऑफ दि युनाइडेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका' ने कोविड-19 के दस वयस्क मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी बतौर प्रयोग आजमाई, जिसके सकारात्मक परिणाम मिलने का दावा किया गया है। पत्रिका ने बताया कि बीमारी से उबरे व्यक्ति का 200 मिलीलीटर कॉन्वलेसंट प्लाज्मा प्रभावी रूप से कमजोर हो रहे एंटीबॉडीज की संख्या बढ़ाता या उन्हें खून में बनाए रखता है। इस आधार पर पत्रिका ने कहा कि सीपी कोविड-19 से बचाव में एक बेहतर विकल्प हो सकता है। साथ ही यह चेतावनी भी दी कि इससे जुड़े प्रयोग बिना सोचे-समझे नहीं करने हैं।

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पहले भी हो चुके हैं ऐसे प्रयोग
यह पहली बार नहीं है जब किसी संक्रामक बीमारी को रोकने के लिए कॉन्वलेसंट प्लाज्मा थेरेमी को आजमाया जा रहा है। रिपोर्टें बताती हैं कि इससे पहले 2002 में चीन से फैले कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-1, 2009 में फैली महामारी एच1एन1 और 2012 में मध्य पूर्व में सामने आए कोरोना वायरस मर्स-सीओवी के चलते पैदा हुए स्वास्थ्य संकट को रोकने के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा, जब खसरा और घेंघा जैसे रोगों का इलाज उपलब्ध नहीं था, तो उनसे निपटने के लिए भी इस थेरेपी को प्रयोग में लाया जाता था।

कॉन्वलेसंट प्लाज्मा क्या है?
शरीर में जब किसी वायरस (जैसे कोरोना वायरस) के प्रभाव में आता है तो उससे लड़ने के लिए शरीर रोग-प्रतिकारकों को रिलीज (छोड़ना) करता है। ये रोग-प्रतिकारक या एंटीबॉडीज हमारे इम्युन सिस्टम से जुड़ी सेल्स में छिपे रहते हैं और मुसीबत के समय सामने आते हैं। इन सेल्स को 'बी लिम्फोसाइट्स' कहते हैं, जो खून में शामिल प्लाज्मा में पाई जाती हैं। वायरस से उबरने के बाद शरीर ये एंटीबॉडीज विकसित कर लेता है। ये खून में बने रहते हैं और उसी वायरस के दोबारा आने पर उस पर हमला करने के लिए तैयार रहते हैं।

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