भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने रविवार को नए कोरोना वायरस और इससे होने वाली बीमारी कोविड-19 के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। उसने बताया ऐसे कोई सबूत नहीं हैं जो बताते हों कि कोविड-19 हवा के जरिये भी फैलती (एयरबोर्न ट्रांसमिशन) है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, आईसीएमआर के एक अधिकारी ने कहा, 'इस बात के साक्ष्य नहीं हैं कि कोविड-19 एयरबोर्न ट्रांसमिशन से होने वाली बीमारी है। हमें समझने की जरूरत है कि विज्ञान में लोगों की राय अलग-अलग होती है। कुछ किसी बात के पक्ष में होते हैं तो कुछ विपक्ष में। हमें संतुलित रहते हुए अपना दृष्टिकोण साक्ष्य आधारित रखना चाहिए।'

अधिकारी ने आगे यह भी कहा, 'मान लीजिए यह एयरबोर्न इन्फेक्शन होता, तब तो एक ही संक्रमित व्यक्ति से पूरा परिवार बीमार पड़ जाता है, क्योंकि वे सब एक ही जगह रहते हुए एक सी हवा में सांस लेते हैं। कोई मरीज अगर अस्पताल में भर्ती होता तो वहां भी दूसरे मरीज संक्रमित हो जाते। लेकिन ऐसा नहीं है।'

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दरअसल, हाल में इस सवाल ने कई लोगों और स्वास्थ्य जानकारों को परेशान किया है कि कहीं कोविड-19 हवा के जरिये फैलने वाली बीमारी तो नहीं है। स्वास्थ्य पत्रिका नेचर में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस हवा के जरिये भी फैल सकता है। ऐसे में हमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा दी गई जानकारी पर गौर करना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र से जुड़े इसे संस्थान ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर बताया है कि नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 कितने प्रकार से लोगों को संक्रमित कर सकता है।

क्या कहते हैं अन्य विशेषज्ञ और डब्ल्यूएचओ?
डब्ल्यूएचओ और दुनियाभर के अन्य कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक, कोविड-19 के दो प्रकार से फैलने की बात बिल्कुल स्पष्ट है। पहली, यह संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से उसके मुंह से निकलने वाली ड्रॉपेल्ट्स यानी पानी की सूक्ष्म बूंदों के संपर्क में आने से फैलती है। अगर कोई व्यक्ति मरीज से तीन फीट से कम दूरी पर खड़ा है तो उसे भी कोरोना वायरस हो सकता है। दूसरा, यह वायरस हवा में तीन फीट तक जाता है और अगर वहां तक कोई व्यक्ति नहीं मिलता तो यह जमीन पर आ जाता है या अन्य प्रकार की सतहों पर बैठ जाता है। जानकारों के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति इन सतहों को छू ले और फिर अपने मुंह पर हाथ लगा ले तो इससे भी संक्रमण फैल सकता है। यहां बता दें कि नए कोरोना वायरस के अलग-अलग सतहों पर जीवित रहने की अवधि अलग-अलग है।

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अलग राय की वजह क्या है?
अब सवाल पैदा होता है कि जब कोविड-19 के फैलने के कारण स्पष्ट हैं, तो इसके एयरबोर्न डिसीज होने की बात कहां से आई। इसकी दो मुख्य वजहें हो सकती हैं। पहली यह कि डब्ल्यूएचओ ने खुद बताया है कि विशेष परिस्थितियों में कोरोना वायरस का एयरबोर्न ट्रांसमिशन हो सकता है। ये परिस्थितियां चिकित्सा प्रक्रिया से जुड़ी हैं। मसलन, नली के जरिये मरीज को ऑक्सीजन देने की प्रक्रिया 'एंडोट्रेकियल इन्ट्युबेशन' में कोरोना हवा के जरिये फैल सकता है। ब्रॉनकॉस्कॉपी में भी ऐसा संभव है। इस प्रक्रिया में डॉक्टर मरीज के फेफड़ों और वायुमार्गों की जांच करते हैं। इसके अलावा ओपन सक्शनिंग, नेब्युलाइज्ड ट्रीटमेंट, इन्ट्युबेशन से पहले हाथों की मदद से मरीज को ऑक्सीजन देते समय, मरीज को उल्टा लिटाते समय, मरीज को वेंटिलेटर से अलग करते समय, ट्रेकिऑटमी (श्वासनली का ऑपरेशन) आदि ऐसी मेडिकल स्थितियां हैं, जिनमें सार्स-सीओवी-2 हवा के जरिये फैल सकता है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी स्थितियों में डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मियों के संक्रमित होने की संभावना ज्यादा है।

दूसरी वजह, मार्च के महीने में आया एक शोध है, जिसमें बताया गया था कि नया कोरोना वायरस हवा में तीन घंटों तक रह सकता है। यानी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने के बाद ये तुरंत जमीन या अन्य सतहों पर नहीं बैठता। संभवतः इस नई जानकारी के चलते कोविड-19 के एयरबोर्न डिसीज होने की बात कही जा रही है। लेकिन शोध में यह भी बताया गया है कि हवा में तीन घंटे रहने के दौरान सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण की क्षमता भी कम होती जाती है। यही वजह है कि आईसीएमआर ने कहा कि फिलहाल कोविड-19 के एयरबोर्न ट्रांसमिशन के जरिये फैलने के सबूत नहीं हैं।

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एयरबोर्न और ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन में क्या फर्क है?
वैसे तो इस सवाल का जवाब ऊपर दी गई जानकारियों से समझा जा सकता है। फिर भी, स्पष्ट अंतर बताना जरूरी है। ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन तब होता है, जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है और उसके ऐसा करने से हवा में फैली पानी की छोटी-छोटी बूंदें नजदीक (तीन फीट तक) खड़े लोगों तक पहुंचती हैं। इन बूंदों में कोरोना वायरस होता है, जो इनके दूसरे लोगों के संपर्क में आने पर उनके शरीर में प्रवेश कर सकता है।

एयरबोर्न ट्रांसमिशन, संक्रमण फैलने की दूसरी स्थिति है। इसमें विषाणु, पानी की सूक्ष्म बूंदों के भाप बनने के बाद भी उसमें मौजूद रहते हैं। इस तरह वायरस लंबे वक्त तक हवा में रह सकता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि संक्रमण फैलने की यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक है, क्योंकि इसमें वायरस के फैलने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। यहां एक बार फिर बता दें कि फिलहाल कोरोना वायरस के हवा के जरिये फैलने के सबूत नहीं मिले हैं।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोरोना वायरस: एयरबोर्न और ड्रॉपलेट इन्फेक्शन में क्या अंतर है और क्या कोविड-19 एयरबोर्न डिसीज है? है

संदर्भ

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