कोविड-19 महामारी का कारण बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 का सबसे पहला सोर्स क्या है, यह अभी तक साफ नहीं है। अमेरिका और चीन राजनीतिक तौर पर इस मुद्दे पर एक-दूसरे से भिड़े हुए हैं। दोनों देशों के नेताओं का कहना है कि यह नया वायरस लैब में बनाया गया है। लेकिन वैज्ञानिक इस पॉलिटिकल गेम से अलग यह पता लगाने में लगे हुए हैं कि आखिर यह वायरस सबसे पहले किस जीव में पैदा हुआ। 

इस सवाल से जुड़ी सबसे चर्चित थ्योरी यह है कि सार्स-सीओवी-2 सबसे पहले चमगादड़ में पैदा हुआ था और वहां से यह किसी तरह इन्सानों के बीच पहुंचा। इस थ्योरी को इस तथ्य से और बल मिलता है कि अतीत में आए कोरोना वायरसों और कई अन्य विषाणुओं का मूल स्रोत चमगादड़ ही थे। लेकिन कई लोग यह भी जानना चाहते हैं कि जिस वायरस ने पूरी दुनिया में लाखों लोगों की जान ले ली है, उसका चमगादड़ पर कोई नकारात्मक प्रभाव क्यों नहीं पड़ता।

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क्या कहते हैं जानकार?
जानकारों के मुताबिक, लोगों को यह नहीं समझना चाहिए कि कोरोना वायरस चमगादड़ों द्वारा इन्सानों को काटने या खून चूसने से फैला है। इन स्तनधारियों के बारे में यह राय कल्पना आधारित फिल्मों और कहानियों के जरिये फैली है। हकीकत यह है कि चमगादड़ से इन्सानों में कोरोना वायरस फैलने की प्रक्रिया बहुत जटिल है, जिसमें एक इंटरमीडिएटरी होस्ट यानी किसी अन्य जानवर की भूमिका हो सकती है।

शोधकर्ताओं की मानें तो असल में वायरसों के खिलाफ चमगादड़ों की सहनशक्ति काफी ज्यादा होती है। उनकी यह खासियत रोग-प्रतिकारक क्षमता के मामले में उन्हें अन्य स्तनधारियों से बेहतर बनाती है। उन पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि चमगादड़ उड़ते समय शरीर में बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा करते हैं। इससे उनके शरीर का तापमान 38 से 41 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस प्रक्रिया के लगातार चलते रहने के कारण चमगादड़ों के शरीर में मौजूद रोगाणु (जैसे कोरोना वायरस) इतने तापमान में भी जीवित रहने लायक बन जाते हैं। लेकिन यही ऊर्जा चमगादड़ों को वायरसों से अप्रभावित बने रहने में मदद करती है। ठीक उसी तरह जैसे बुखार में अन्य स्तनधारी वायरसों के खिलाफ इम्यून सिस्टम जनरेट कर लेते हैं।

यानी यह स्पष्ट है कि ज्यादातर वायरसों से चमगादड़ों के बीमार नहीं पड़ने की एक बड़ी वजह उनकी जबर्दस्त रोग-प्रतिकारक क्षमता ही है, जिसे कई जानकार इन स्तनधारियों की उड़ान से भी जोड़ते हैं। अब इस संबंध में किए गए एक शोध में सामने तथ्यों की बात करते हैं।

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यह तो आप जानते ही हैं कि 2012 में आई मेर्स बीमारी कोरोना वायरस से ही फैली थी। इस वायरस का नाम 'एमईआरएस-सीओवी' है। शोधकर्ताओं ने कीड़े खाने वाले भूरे चमगादड़ की कोशिकाओं के डेमोन्स्ट्रेशन की मदद से बताया कि कैसे एमईआरएस-सीओवी कोरोना वायरस इन कोशिकाओं के साथ लंबे वक्त तक एक प्रकार का संबंध स्थापित कर लेता है। इसकी जानकारी देते हुए माइक्रोबायॉलजिस्ट विकास मिश्रा कहते हैं, 'वायरस से छुटकारा नहीं मिलने के बाद भी चमगादड़ बीमार नहीं पड़ते। हमने जानना चाहा कि मेर्स का वायरस चमगादड़ों के इम्यून सिस्टम को क्यों खत्म नहीं करता, जैसा कि इन्सानों के इम्यून सिस्टम के साथ करता है। इसकी वजह है चमगादड़ों की अत्यंत विलक्षण रोग-प्रतिकारक क्षमता।'

लेकिन जब अलग-अलग प्रकार से चमगादड़ों के शरीर पर दबाव पड़ता है तो उनका इम्यून सिस्टम बाधित होता है। यह दबाव मांस बाजारों, अन्य प्रकारों की बीमारियों और आवास के संकट के कारण पैदा होता है। विकास बताते हैं, 'जब किसी चमगादड़ के इम्यून सिस्टम पर दबाव पड़ता है तो वह इसके और वायरस के संतुलन को बिगाड़ देता है। इससे वायरस को मल्टिप्लाई होने यानी ज्यादा फैलने की की छूट मिल जाती है।' यहीं वायरस के चमगादड़ से इन्सानों के बीच फैलने की वजह मिलती है। चमगादड़ ऐसे स्तनधारी हैं, जो प्राकृतिक क्षेत्रों और शहरी इलाकों दोनों जगहों पर जीवित रह सकते हैं। वे अक्सर भीड़-भाड़ वाले इलाकों में भी उड़ते देखे जा सकते हैं। सार्स-सीओवी-2 के अस्तित्व के बारे में भी अधिकतर मेडिकल विशेषज्ञ इस बात से सहमत दिखते हैं कि इसकी शुरुआत भी सबसे पहले किसी चमगादड़ से ही हुई है। हालांकि, इस अनुमान को अभी तक औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है।

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उधर, आगे के अध्ययनों में वैज्ञानिक यह पता लगाएंगे कि चमगादड़ से पैदा हुआ एमईआरएस-सीओवी संक्रमण के साथ कैसे सामंजस्य बिठाता है और मानव कोशिकाओं में अपनी कॉपियां बनाता है। इससे चमगादड़ों में पैदा होने वाले अगले वायरस के बारे में जानने मदद मिलेगी।


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