इबोला एक बेहद खतरनाक और जानलेवा वायरस है, जिसके संक्रमण से पीड़ित को सबसे पहले बुखार आता है और फिर रक्तस्राव होता है। इबोला, शरीर के सभी अंगों को पूरी तरह से प्रभावित कर इम्यूनिटी सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को खराब करता है। अगर वक्त रहते वायरस को रोकने के लिए वैक्सीन या दवाई ना दी जाए तो पीड़ित व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। इसके बचाव के लिए कई दवाईयां उपलब्ध हैं। हाल ही में जॉन्सन एंड जॉन्सन ने भी इबोला वायरस को खत्म करने के लिए अपना एक वैक्सीन कांगो में जारी किया है।

इबोला ने हजारों लोगों की ली जान
स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े एमएसएफ समूह ने बताया कि पूर्वी कांगो में स्वास्थ्य अधिकारियों ने जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा निर्मित एक नई इबोला वैक्सीन पेश की है, जो दुनिया के दूसरे सबसे खतरनाक वायरस को फैलने से रोकने में मदद करेगी। वैक्सीन (टीके) के साथ नए साधनों से भी इस बीमारी को रोकने में मदद मिली है। बता दें कि इबोला दूसरा ऐसा वायरस है, जिसने साल 2013 से 2016 के बीच पश्चिमी अफ्रीका के अंदर 11,300 से ज्यादा लोगों की जान ली थी।

कैसे शरीर को प्रभावित करता है इबोला?
इबोला वायरस एक किस्म के फल और परागकण खाने वाले चमगादड़ों (फ्रूट बैट) के शरीर में रहता है। इंसानों में इबोला, वर्षा वनों में पाए जाने वाले चिम्पांजी, गोरिल्ला और बन्दर जैसे संक्रमित बीमार या मृत जानवरों के खून, मल-मूत्र, अंगों या अन्य स्रावों के संपर्क में आने से फैलता है। इबोला या मारबर्ग वायरस के संक्रमण के लक्षण पांच से 10 दिन के अंदर दिखने शुरू होते हैं और शुरुआती लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं-

कैसे काम करती है वैक्सीन?
जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा बनाई गई यह नई वैक्सीन कई बार क्लीनिकल ट्रायल पास कर चुकी है, लेकिन वैश्विक स्तर पर इंसानों में इसका परीक्षण नहीं हुआ है। एमएसएफ (मेडिसिन्स सेन्स फ्रंटियर्स) का कहना है कि रवांडा के बॉर्डर पर बसे 20 लाख की आबादी वाले शहर गोमा में करीब 50 लाख लोगों पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा।

  • इस वैक्सीन को 8 हफ्ते के अंतराल में दो बार देने की जरूरत होती है। एक अन्य वैक्सीन निर्माता मर्क की वैक्सीन पहले से ही यहां उपलब्ध है और मर्क की वैक्सीन सिर्फ एक बार ही देने की जरूरत पड़ती है।
  • अगस्त 2018 से अब तक 250,000 से अधिक लोगों को मर्क कंपनी की वैक्सीन दी जा चुकी है।

वायरस को फैलने से रोकेगी वैक्सीन
सेंटर फॉर इंफेक्शन डिजीज रिसर्च एंड पॉलिसी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जॉनसन एंड जॉनसन की इस वैक्सीन का इस्तेमाल मर्क की VSV-ZEBOV के उलट मुख्य रूप से इबोला वायरस को संक्रमित क्षेत्र से बाहर फैलने से रोकना होगा। कांगो की इबोला टेक्निकल कमेटी (सीएमआरई) ने बताया कि वैक्सीन बेल्जियम से गोमा पहुंच गई है और इसके इस्तेमाल को लेकर ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इसी साल युगांडा में शोधकर्ताओं ने हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर इस वैक्सीन का दो साल का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है।

  • कांगो के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर बायोमेडिकल रिसर्च के जनरल डायरेक्टर, जीन-जैक्स मुइम्ब ने बताया कि जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन का इस्तेमाल नवंबर माह से कांगो और रवांडा दोनों में होने लगेगा।
  • हालांकि, कांगो और आसपास के देशों में 2,46,627 लोगों को मर्क का टीका लगाया गया है।

क्या है डॉक्टर की राय ?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर शहनाज़ ज़फ़र का कहना है कि इबोला वायरस फैलने के कई कारण हो सकते हैं। क्योंकि ये संक्रामक बीमारी है, इसलिए पीड़ित व्यक्ति के संपर्क में आने से दूसरे व्यक्ति को भी इबोला वायरस प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, जूठा खाना, चुंबन लेना, असुरक्षित यौन संबंध बनाने से भी इबोला फैलता है।

बचाव के लिए क्या करें?
डॉक्टर शहनाज़ के मुताबिक इबोला ग्रस्त व्यक्ति से प्रत्यक्ष रूप से संपर्क में आने से बचें। इसके लिए चेहरे पर मास्क और हाथों में दस्तानों का इस्तेमाल करें। साथ ही यौन संबंध के दौरान कंडोम का उपयोग जरूर करें।

जानलेवा है इबोला का वायरस

  • सीआईडीआरएपी की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में कांगो ने इबोला के किसी भी नए मामले की पुष्टि नहीं की है। यानि इबोला संक्रमण वायरस का संक्रमण अब तक 3274 लोगों में ही हुआ है। कुल 513 संदिग्ध मामले जांच के दायरे में हैं।
  • सीएमआरई ने बताया कि इबोला वायरस से प्रभावित दो ताजा मामले मबालाको और मंडिमा में थे। वहीं 3,274 संक्रमितों में से 2,185 की मौत हो चुकी है।

आंकड़ों को देखने के बाद इबोला वायरस के जानलेवा प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। वायरस को खत्म करने और इसे रोकने के लिए पहले भी कई तरह की दवाइयां और वैक्सीन बनाई गई हैं। इस बीच इबोला से लड़ने के लिए जॉनसन एंड जॉनसन ने अपनी अलग तरह की वैक्सीन उतारी है। देखना होगा कि खतरनाक वायरस से लड़ने के लिए ये वैक्सीन कितनी कारगर साबित होती है।

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