वर्ल्ड निमोनिया डे हर साल 12 नवंबर को मनाया जाता है और इसकी शुरुआत साल 2009 में हुई थी। निमोनिया श्वसन संबंधी बीमारी है जो हर साल लाखों लोगों की मौत का कारण बनती है, ऐसे में इस बीमारी के बारे में लोगों के बीच जागरुकता फैलाने और बीमारी से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर उचित कदम उठाने के मकसद से हर साल निमोनिया डे सेलिब्रेट किया जाता है। इस साल वर्ल्ड निमोनिया डे की थीम है- एवरी ब्रेथ काउंट्स यानी हर एक सांस कीमती है और इस साल दुनियाभर में फैले कोविड-19 महामारी को देखते हुए इस बीमारी पर फोकस और बढ़ जाता है।

निमोनिया से होने वाली मौतों पर कोविड-19 का असर
स्टॉप निमोनिया संगठन की ओर से जारी किए गए आंकड़ों की मानें तो निमोनिया ने साल 2019 में 25 लाख लोगों की जान ली जिसमें से 6 लाख 72 हजार बच्चे थे। अमेरिकन जर्नल ऑफ फिजियोलॉजी नाम की पत्रिका में नवंबर 2020 के शुरुआत में ही प्रकाशित एक संपादकीय लेख में यह बताया गया है कि कोविड-19 संक्रमण और महामारी की वजह से 31 दिसंबर 2020 तक करीब 19 लाख लोगों की मौत होने की आशंका है और अगर इन सभी मौतों को निमोनिया जिसे निचले श्वसन पथ में होने वाले संक्रमण के तौर पर जाना जाता है, में वर्गीकृत किया जाए तो निमोनिया के कारण होने वाली मृत्यु दर में साल 2020 में 70 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है।

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इस संपादकीय लेख में सुझाव दिया गया है कि निमोनिया के कारण होने वाली सालाना मौत का आंकड़ा इस साल 45 लाख को छू सकता है। इस तरह का कोई और संक्रमण नहीं है जिसमें मौत का बोझ इतना ज्यादा हो और वह भी वैश्विक स्तर पर। निमोनिया बीमारी को कैसे डायग्नोज किया जाता है, उससे बचने के उपाय और इलाज पर कोविड-19 महामारी का बहुत बड़ा असर देखने को मिला है।

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कोविड-19 निमोनिया से कैसे जुड़ा है?
महामारी के शुरुआत के दिनों से ही अधिकतर अध्ययनों में यह बताया गया है कि निमोनिया, गंभीर कोविड-19 की एक जटिलता है। निमोनिया की वजह से न सिर्फ एक या दोनों फेफड़ों में इन्फ्लेमेशन (आंतरिक सूजन और जलन) होने लगता है बल्कि म्यूकस और तरल पदार्थ भी भरने लगते हैं। इस वजह से सांस लेना और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है और इस कारण बीमारी और भी ज्यादा बदतर हो जाती है। निमोनिया के गंभीर होने की वजह से एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) होने का खतरा भी बढ़ जाता है जो एक जानलेवा स्थिति है क्योंकि इसमें पल्मोनरी फाइब्रोसिस या फेफड़ों के ऊत्तकों में नुकसान होने लगता है।

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कोविड-19 से संबंधित निमोनिया के बारे में आगे और भी जो स्टडी हुई है उसमें बताया गया है कि कोविड-19 के गंभीर रूप से बीमार मरीज जिन्हें वेंटिलेशन के जरिए ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत होती है उनमें निमोनिया विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित एक स्टडी में सुझाव दिया गया है कि जब गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 के मरीज को मेकैनिकल वेंटिलेशन के जरिए हाई-फ्लो ऑक्सीजन दिया जाता है तो वह स्टैफिलोकोकस ऑरस नाम के बैक्टीरिया के ग्रोथ को बढ़ावा देता है। फेफड़ों में इस तरह के रोगाणुओं के विकास की वजह से न सिर्फ निमोनिया होने का खतरा रहता है बल्कि इससे लंग्स में फोड़े होने, पस आने और चोट लगने की आशंका भी बढ़ जाती है। इन समस्याओं का असर लंबे समय तक बना रहता है जिससे मरीज की रिकवरी और भी ज्यादा मुश्किल हो जाती है।

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निमोनिया को खत्म करने के लिए क्या-क्या बदलाव की जरूरत है?
ऊपर हमने जिस संपादकीय की बात की थी उसमें जैसा कि बताया गया है कि, कोविड-19 महामारी ने इस बात की पोल खोल दी है कि हमारा वैश्विक स्वास्थ्य सिस्टम इस तरह की बीमारियों के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है- विशेष रूप से भारत जैसे कम और मध्यम आय वाले देशों में- जहां महामारी के दौरान वायरल निमोनिया का प्रकोप तेजी से देखने को मिला है। पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर्स की कमी से लेकर पल्स ऑक्सीमीटर की कमी- निमोनिया से निपटने में ये सारी संरचनात्मक कमिया हैं जिस पर फोकस करने की जरूरत है ताकि निमोनिया को बेहतर तरीके से खत्म किया जा सके।

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निमोनिया से बचने के लिए टीकाकरण भी जरूरी है
श्वसन स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं में बेहतर निवेश की जरूरत है, फिर चाहे वह उपकरणों के लिए हो या जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने के लिए- यह निश्चित रूप से इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है। इस वक्त दुनियाभर में अलग-अलग प्रकार के न्यूमोकॉकल कॉन्जूगेट वैक्सीन (पीसीवी) मौजूद हैं जो वायरल निमोनिया को न सही लेकिन कम से कम बैक्टीरियल निमोनिया को जरूर रोक सकते हैं। टीकाकरण अभियान यह सुनिश्चित करता है कि सभी बच्चों को हर साल वैक्सीन मिले ताकि निमोनिया के मामलों में कमी की जा सके। यहां आपको यह भी जानना जरूरी है कि निमोनिया के लिए अब तक कोई रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट नहीं बना है, इसलिए इस तरह के टेस्ट को बनाने के लिए रिसर्च करने की जरूरत है जो काफी मददगार साबित हो सकती है।

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जोखिम कारकों को भी खत्म करने पर दें जोर
निमोनिया से जुड़े जोखिम कारकों को खत्म करना भी निमोनिया के उन्मूलन का एक और बेहद असरदार तरीका है, हालांकि निमोनिया से संबंधित बीमारी और मृत्यु दर को कम करने के लिए अन्य तरीकों की तुलना में जोखिम कारकों को खत्म करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के मुताबिक, कुपोषण और वायु प्रदूषण दो प्रमुख जोखिम कारक हैं जिनकी वजह से निमोनिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में इन जोखिम कारकों को कम करना या खत्म करने के लिए कई चीजों की पहचान करने की जरूरत है जैसे- आबादी जिसे सबसे ज्यादा खतरा है, लोगों को शिक्षित और जागरूक करना, स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाना जिसमें पल्स ऑक्सीमीटर और ऑक्सीजन सपोर्ट जैसी चीजें शामिल हों, और मेडिकल स्टाफ को ट्रेनिंग देना ताकि वे निमोनिया के मरीजों की बेहतर देखभाल कर सकें।

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ये सारी चीजें बताती हैं कि हमें वैश्विक स्तर पर निमोनिया के मामलों और मृत्यु दर में कमी करने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। लिहाजा, कोविड-19 महामारी ने भले ही निमोनिया बीमारी को सुर्खियों में ला दिया हो, लेकिन सामुदायिक स्तर के नेताओं, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के नीति निर्माताओं और वैश्विक स्तर पर हेल्थकेयर प्रफेशनल्स और अनुसंधानकर्ताओं को साथ आकर हाथ मिलाने की जरूरत है ताकि इस बीमारी को दूर करने के लिए कुछ बेहतर किया जा सके।

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