सही जीवनशैली न होना या फिर खराब खानपान, यह दोनों स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के सबसे प्रमुख कारण हैं। इसके अलावा कई बार अचानक से भी कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जिसकी वजह से अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ सकती है। ऐसे में इमर्जेंसी सेवाएं महंगी पड़ती हैं और यदि आपने हेल्थ इन्शुरन्स नहीं लिया है तो सालों की बचत चंद दिनों में खत्म हो सकती है। जबकि इसके विपरीत, हेल्थ इन्शुरन्स लेने वाले व्यक्ति की कमाई का एक बड़ा हिस्सा बच सकता है। लेकिन यह सब तब मुमकिन है जब आप हॉस्पिटलाइजेशन से जुड़े नियम व शर्तों के बारे में जानते होंगे। इसीलिए नीचे आर्टिकल में बताया गया है कि हॉस्पिटलाइजेशन क्या है, कितने प्रकार का होता है और एक बीमित व्यक्ति के लिए संबंधित नियम क्या हो सकते हैं -
- हेल्थ इन्शुरन्स में हॉस्पिटलाइजेशन क्या है? - Hospitalisation in Health Insurance in Hindi
- हॉस्पिटलाइजेशन के प्रकार - Types of Hospitalisation in Hindi
- हॉस्पिटलाइजेशन के दौरान क्लेम करने का तरीका - How to claim during hospitalisation in Hindi
- क्लेम का स्टेटस कैसे चेक करें - How to check claim status in Hindi
हेल्थ इन्शुरन्स में हॉस्पिटलाइजेशन क्या है? - Hospitalisation in Health Insurance in Hindi
हॉस्पिटलाइजेशन का सीधा सा मतलब हॉस्पिटल में भर्ती होने से है। कई बार बीमारियों के इलाज के लिए, तो कई बार अचानक से हुई किसी घटना जैसे एक्सीडेंट की वजह से एडमिट होने की आवश्यकता पड़ सकती है। भर्ती होने के दौरान इलाज के साथ-साथ मरीज का चेकअप भी किया जाता है। इसके अलावा ट्रीटमेंट के बाद भी कई बार मरीज को मॉनीटर करने की जरूरत होती है, जिसके लिए उसे हॉस्पिटल में कुछ दिन काटने पड़ सकते हैं। फिलहाल, चाहे प्लानिंग के तहत अस्पताल में भर्ती होना पड़े या अचानक से किसी इमर्जेंसी की वजह से, दोनों ही स्थिति में भर्ती को हॉस्पिटलाइजेशन कहते हैं।
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हॉस्पिटलाइजेशन के प्रकार - Types of Hospitalisation in Hindi
हॉस्पिटलाइजेशन दो प्रकार के होते हैं- प्लानिंग और इमर्जेंसी
प्लानिंग के साथ हॉस्पिटलाइजेशन - Planned Hospitalisation in Hindi
कई बार ऐसी मेडिकल कंडीशन आपके सामने होती है, जिसमें आपको पता होता है कि आने वाले दिनों में आपको अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ेगी, ऐसे में आप अच्छे से सोच विचार कर लेते हैं कि किस दिन एडमिट होना ठीक रहेगा। इस सोच विचार के साथ एडमिट होने को प्लान्ड हॉस्पिटलाइजेशन कहा जाता है।
भर्ती होने के मामले में यह बात बड़ा महत्व रखती है कि आप इलाज के लिए सार्वजनिक अस्पताल जा रहे हैं या निजी? आपका उपचार कितना आवश्यक है? इसके अलावा आपको किस प्रकार के उपचार की जरूरत है।
अस्पताल में जाने से पहले, आमतौर पर डॉक्टर यह चेक करते हैं कि आपको किस प्रकार के उपचार की आवश्यकता है और क्या वास्तव में आपको उपचार या सर्जरी के लिए अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता है। यह तय करने से पहले वे आपकी स्थिति का आकलन कर सकते हैं, जिसके लिए वे पहले कुछ टेस्ट लिख सकते हैं। यदि बीमित व्यक्ति को भर्ती होना पड़ेगा तो वे आपको स्पष्ट रूप से बता देंगे कि आपको अस्पताल में कितने दिन रुकने की जरूरत हो सकती है।
सार्वजनिक अस्पतालों में, वैकल्पिक (इलेक्टिव) सर्जरी के लिए आपका वेटिंग पीरियड इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी स्थिति कितनी गंभीर है। ऐसे अस्पतालों में, आप यह तय नहीं कर सकते कि आपको किस डॉक्टर से ट्रीटमेंट लेना है।
निजी यानी प्राइवेट अस्पतालों में, आपको आमतौर पर इलाज के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता है और आप यह तय कर सकते हैं कि किस डॉक्टर को दिखाना या इलाज करवाना चाहते हैं। हालांकि इस प्रकार के उपचार में सार्वजनिक अस्पतालों की अपेक्षा ज्यादा लागत आ सकती है।
प्लान्ड हॉस्पिटलाइजेशन के मामले में क्लेम कब करें
अब मान लीजिए आपने हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी से बीमा कराया है और आप भर्ती होने की स्थिति में क्लेम करना चाहते हैं, तो ऐसे में आपको हॉस्पिटल में भर्ती होने की तारीख से कम से कम 48 घंटे पहले अपनी हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी को इन्फॉर्म करना होता है। ऐसा न करने पर आप क्लेम नहीं कर पाएंगे और हेल्थ इन्शुरन्स लेने के बावजूद उसका फायदा नहीं उठा पाएंगे।
इमर्जेंसी हॉस्पिटलाइजेशन - Unplanned (urgent) admission in Hindi
यदि बीमित व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है, तो ऐसे में कोई व्यक्ति अपने वाहन से या एम्बुलेंस सेवा के जरिये आपको अस्पताल पहुंचा सकता है। इस तरह की स्थिति को मेडिकल इमर्जेंसी कहा जाता है।
यदि आपको तुरंत ट्रीटमेंट की जरूरत है, तो अस्पताल पहुंचते ही आपको इमर्जेंसी डिपार्टमेंट में ले जाया जाएगा। जहां, स्पेशलिस्ट इमर्जेंसी नर्स आपकी स्थिति का आकलन करेंगी, प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट ऐड देंगी और यह पता लगाएगी कि आपको किस तरह के उपचार की जरूरत है।
हालांकि, ऐसे में कई बार मरीज को वेटिंग रूम में कुछ देर रुकने के लिए कहा जा सकता है, क्योंकि यह इस बात पर निर्भर करता है कि जिस समय आप इमर्जेंसी डिपार्टमेंट में आए हैं, उस समय वह विभाग कितना व्यस्त है। इसके अलावा इमर्जेंसी डिपार्टमेंट में हमेशा चोट या मेडिकल कंडीशन की गंभीरता के आधार पर मरीज को प्राथमिकता दी जाती है।
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इमर्जेंसी हॉस्पिटलाइजेशन के मामले में क्लेम कब करें
जब अचानक से हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ता है, तो ऐसे में बीमा कंपनी को पहले से बताने का समय नहीं मिलता है या अगर बीमित व्यक्ति को गंभीर चोट आई है तो वह खुद से बीमा कंपनी को इन्फॉर्म नहीं कर सकता है। ऐसे में हेल्थ इन्शुरन्स कंपनियां भर्ती होने के बाद भी क्लेम करने का विकल्प देती हैं, जो स्वयं बीमित व्यक्ति या उसका परिजन कर सकता है। हालांकि, ऐसे में बीमा कंपनी की तरफ से समय निर्धारित होता है। जैसे आमतौर पर हेल्थ इन्शुरन्स कंपनियां अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे के अंदर क्लेम करने का विकल्प देती हैं। वैसे यह समय बीमा कंपनी या पॉलिसी के प्रकार के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।
हॉस्पिटलाइजेशन के दौरान क्लेम करने का तरीका - How to claim during hospitalisation in Hindi
हॉस्पिटलाइजेशन के दौरान क्लेम करने के दो तरीके हैं - कैशलेस और रिइम्बर्समेंट
हॉस्पिटलाइजेशन के दौरान कैशलेस क्लेम - Cashless claim during hospitalisation in Hindi
मान लीजिए आप प्लानिंग करके नेटवर्क हॉस्पिटल में भर्ती हो रहे हैं तो ऐसे में हॉस्पिटल के बीमा डेस्क पर जाएं और वहां से पूर्व-प्राधिकरण फॉर्म (preauthorization form) लेकर उसे सही जानकारी के साथ भरें। आप चाहें तो इस फॉर्म को अपनी बीमा कंपनी की वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। इसके बाद बीमा डेस्क पर मौजूद कर्मचारी यह चेक करेंगे कि फॉर्म अधूरा तो नहीं है व साथ ही जरूरी पेपर अटैच किए गए हैं या नहीं। यहां से क्लेम संबंधी जरूरी कागजात आपकी बीमा कंपनी को (संभवता फैक्स के माध्यम से) भेजे जाते हैं, जहां बीमित व्यक्ति द्वारा दी गई जानकारी की प्रामाणिकता का मूल्यांकन किया जाता है, यानी यह देखा जाता है कि सारी जानकारी सही है या नहीं। अगर सब कुछ सही होता है तो बीमा कंपनी उसी हॉस्पिटल को कॉन्टैक्ट करके कैशलेस क्लेम को मंजूरी दे देती है।
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कैशलेस भी दो वर्गों में बटा हुआ है - प्लान और इमर्जेंसी
प्लानिंग के साथ भर्ती होने पर कैशलेस क्लेम के लिए प्रक्रिया :
- बीमा दस्तावेज में दिए गए नेटवर्क हॉस्पिटल की लिस्ट में से किसी अस्पताल में जाएं।
- यदि टीपीए है तो उसे भर्ती होने से 3 दिन पहले सूचित करें, नहीं तो सीधे बीमा कंपनी को इस बारे में जानकारी दें।
- कैशलेस रिक्वेस्ट फॉर्म भरें।
- टीपीए को कैशलेस रिक्वेस्ट फॉर्म और मेडिकल रिकॉर्ड जमा करें।
- टीपीए सभी दस्तावेजों का निरीक्षण करेंगे।
- एक बार अप्रूवल मिल जाने के बाद, बीमा कंपनी अस्पताल के बिलों का निपटान करेगी, जिसमें फोन चार्जेस, अटेंडेंट चार्जेस, भोजन आदि शामिल नहीं होता है।
- अप्रूवल न मिलने की स्थिति में, आप रिइम्बर्समेंट के लिए फाइल कर सकते हैं।
इमर्जेंसी में भर्ती होने पर कैशलेस प्रक्रिया :
- इमर्जेंसी में भर्ती के मामले में, टीपीए को सूचित करें। यदि टीपीए नहीं है तो सीधे बीमा कंपनी को इन्फॉर्म करें।
- अस्पताल से कैशलेस रिक्वेस्ट फॉर्म मांगें और उसे भरें, यह डॉक्टर द्वारा प्रमाणित होना चाहिए।
- फॉर्म को मेडिकल रिकॉर्ड के साथ टीपीए को भेजें।
- कैशलेस क्लेम अप्रूव होने पर अस्पताल के बिलों का सीधे भुगतान कर दिया जाएगा जबकि अप्रूवल न मिलने की स्थिति में रिइम्बर्समेंट के लिए फाइल कर सकते हैं।
हॉस्पिटलाइजेशन के दौरान रिइम्बर्समेंट - Reimbursement during hospitalisation in Hindi
यदि आप अस्पताल का बिल स्वयं भरकर बाद में उसके लिए इन्शुरन्स कंपनी में क्लेम करते हैं तो इसे रिइम्बर्समेंट क्लेम कहा जाता है। इसके तहत कुछ निश्चित प्रोसीजर के बाद बीमित व्यक्ति को उसका पैसा लौटा दिया जाता है। मान लीजिए आप हॉस्पिटलाइज्ड हैं और डिस्चार्ज वाले दिन आपको अस्पताल से फाइनल बिल पकड़ा दिया जाता है, तो ऐसे में आपको परिवार के किसी सदस्य को उसी वक्त सारा पेमेंट करने की जरूरत होती है। इसके बाद अपनी बीमा कंपनी से रिइम्बर्समेंट के लिए फॉर्म लेकर उसके साथ मांगे गए सभी ओरिजनल बिल्स व रसीदें लगाकर जमा करना होता है। इसमें भी कैशलेस क्लेम की तरह बीमा कंपनी पेपर्स की जांच करती है और सब कुछ सही पाए जाने पर जितने का बिल लगाया गया है उतना पैसा अकाउंट में ट्रांसफर कर देती है। बशर्ते कि बिल आपके सम-इनश्योर्ड से कम हो। हो सकता है कि पूरे बिल का कुछ प्रतिशत बीमित व्यक्ति को दिया जाए या फिर बिल का पूरा पैसा बीमा कंपनी आपको लौटा सकती है।
ध्यान रहे, यह सब कुछ हाथों हाथ नहीं होता है, बल्कि कुछ दिनों या हफ्तों का समय लग सकता है, आमतौर पर इस तरह के कार्य में बीमा कंपनी की तरफ से 30 दिन तक का समय लग सकता है।
क्लेम का स्टेटस कैसे चेक करें - How to check claim status in Hindi
क्लेम हो जाने के बाद क्लेम का स्टेटस पता करना जरूरी होता है। पॉलिसीधारक के रूप में, आप नीचे बताई गई जानकारी के अनुसार, क्लेम की स्थिति की जांच करने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड की मदद ले सकते हैं -
ऑनलाइन मोड
अपनी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी की स्थिति ऑनलाइन जांचने के लिए :
- हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं
- इस वेबसाइट पर ट्रैकर वाले बटन पर क्लिक करें, जाहिर है सभी वेबसाइट पर ट्रैकर वाले बटन अलग-अलग नाम से हो सकते हैं।
- यहां पॉलिसी आईडी, ग्राहक आईडी, क्लेम नंबर और जन्म तिथि जैसी जानकारी देने की जरूरत हो सकती है।
- आखिर में सबमिट बटन पर क्लिक कर दें, आपको स्टेटस की जानकारी मिल जाएगी।
ऑफलाइन मोड
स्वास्थ्य बीमा पॉलिसीधारक निम्नलिखित तरीके से अपने हेल्थ इन्शुरन्स क्लेम की स्थिति को चेक कर सकते हैं :
- आप अपनी पॉलिसी से संबंधित सभी आवश्यक विवरणों के साथ अपनी स्वास्थ्य बीमा कंपनी की निकटतम शाखा कार्यालय में जाएं, जहां आपको ओरली (मौखिक रूप) यह जानकारी मिल सकती है।
- आप चाहें तो बीमाकर्ता द्वारा बताए गए टोल-फ्री नंबर पर भी कॉल कर सकते हैं और अपने स्वास्थ्य बीमा क्लेम की स्थिति के बारे में जानने के लिए ग्राहक कार्यकारी से बात कर सकते हैं।
- आप क्लेम की स्थिति के बारे में जानने के लिए अपनी स्वास्थ्य बीमा कंपनी को ईमेल भी कर सकते हैं, जिसमें आपको पॉलिसी संख्या व क्लेम से संबंधित अन्य जानकारी देनी होगी।
(और पढ़ें - हेल्थ इन्शुरन्स में ग्रेस पीरियड क्या होता है)