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लिवर शरीर का एक अत्यंत सहायक अंग है। यह न सिर्फ पाचन में मदद करता है बल्कि साथ ही यह बाहरी संक्रमण से भी लड़ता है जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए हानिकारक हो सकते हैं। लिवर कैंसर और लिवर फेलियर लिवर को होने वाली बीमारियों में सबसे गंभीर हैं। इसलिए अन्य जटिलताओं, जैसे कैंसर के फैलने, से बचने के लिए लिवर कैंसर की सर्जरी सबसे बेहतर विकल्प है।
(और पढ़ें – कैंसर के प्रकार)
कुछ स्थितियों में लिवर को पूरी तरह हटा दिया जाता है, लेकिन कुछ में सर्जरी सिर्फ इसलिए की जाती है ताकि मरीज़ अपेक्षित से ज़्यादा समय के लिए जीवित रह सके। यह सर्जरी एक जीवनरक्षी प्रक्रिया है।
साथ ही, सर्जरी इसलिए भी की जाती है ताकि कैंसर को शरीर के अन्य अंगों तक फैलने से रोका जा सके। मरीज़ की स्थिति के हिसाब से डॉक्टर सर्जरी की प्रक्रिया का चुनाव करते हैं।
सर्जरी की तैयारी के लिए आपको निम्न कुछ बातों का ध्यान रखना होगा और जैसा आपका डॉक्टर कहे उन सभी सलाहों का पालन करना होगा:
इन सभी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर जाएँ - सर्जरी से पहले की तैयारी
लिवर के क्षतिग्रस्त हिस्सों को हटाने की सर्जरी को लिवर रिसेक्शन कहा जाता है। इसे पूर्ण या आंशिक हेपेक्टेक्टॉमी (Hepactectomy) भी कहा जाता है। लिवर का सर्जिकल रिसेक्शन (उच्छेदन) संभव है क्योंकि यह ऐसा अंग है जिसमें पुनर्जनन क्षमता होती है। अगर लिवर की कार्यवाही बहुत बिगड़ चुकी है तो ऐसे में लिवर प्रत्यारोपण करना आवश्यक हो जाता है। ऐसे में सिर्फ लिवर के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाने से लिवर फेलियर हो सकता है और इसलिए डोनर द्वारा लिवर प्रत्यारोपण किया जाना बहुत सहायक होता है। ऐसे में पुराने लिवर को हटाकर नया लिवर लगा दिया जाता है।
लिवर के ट्यूमर को लैप्रोस्कोपी (Laparoscopy) द्वारा कम चीरकर की जाने वाली प्रक्रिया से भी किया जा सकता है। ट्यूमर के आकार और स्थान के अनुसार लैप्रोस्कोपिक प्रक्रिया को चुना जा सकता है। इस प्रक्रिया में, एक या एक से ज़्यादा चीरे काटे जाते हैं जिनसे लैप्रोस्कोप अंदर डाला जा सके। रिसेक्शन सर्जरी करने के लिए इन चीरों के माधयम से डॉक्टर वीडियो कैमरा (अंदरूनी अंग देखने के लिए) और सर्जिकल उपकरण डाले जाते हैं। इस प्रक्रिया में ओपन सर्जरी की तुलना में कम रक्तस्त्राव होता है और रिकवरी भी जल्दी हो जाती है। साथ ही सर्जरी के बाद दर्द भी कम होता है।
इस प्रक्रिया में एक धातु के प्रोब (Probe) के द्वारा कोल्ड गैसेस (Cold Gases) की मदद से ट्यूमर को फ्रीज़ करके कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रोब को पेट की त्वचा से डाला जाता है।
इस प्रक्रिया को परक्यूटेनियस तकनीक (Percutaneous Technique) भी कहा जाता है। धातु से बने प्रोब को पेट की गुहा में भी डाला जा सकता है। इस तकनीक को इंट्रा-एब्डोमिनल सर्जरी (Intra-Abdominal Surgery) कहा जाता है।
यह लिवर कैंसर को हटाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अन्य प्रक्रिया है। यह उन मरीज़ों में नहीं की जाने चाहिए जिनको पित्त वाहिका (Bile Duct) का कैंसर हो।
जिन मरीज़ों एक या उससे ज़्यादा छोटे ट्यूमर होते हैं, उनके लिए इस प्रक्रिया को चुना जाता है। इस प्रक्रिया में रोगग्रस्त लिवर को हटाकर नया स्वस्थ लिवर (डोनर का) लगाया जाता है।
जिन मरीज़ों के लिए डॉक्टर प्रत्यारोपण का निर्णय लेते हैं उनको लम्बे समय तक स्वस्थ लिवर और उनके शरीर के लिए उचित डोनर का इंतज़ार करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप, कैंसर बढ़ जाता है। इतने समय के लिए ट्यूमर पृथक्करण चिकित्सा (Tumor Ablation Therapy) को ऐसे मरीज़ के लिए उचित माना जाता है।
(लिवर प्रत्यारोपण की प्रक्रिया के बारे में और जानिये - लिवर प्रत्यारोपण की प्रक्रिया)
यह प्रक्रिया उन दुर्लभ स्थितियों में प्रयोग की जाती है जब कैंसर अन्य तकनीकों से ठीक न हो पाए। इसका नाम इस प्रक्रिया में ही इस्तेमाल किये जाने वाले एक स्टेप से लिया गया है जिसमें हाइली कंसन्ट्रेटेड कीमोथेरप्यूटिक दवाएं (Highly Concentrated Chemotherapeutic Drugs) लिवर में डाली जाती हैं। इसके परिणाम स्वरूप लिवर संचार प्रणाली अन्य स्त्रोतों से अलग हो जाती है जो शरीर में रक्त की आपूर्ति करते हैं।
उपर्लिखित प्रक्रियाओं के अलावा, लिवर कैंसर से पीड़ित मरीज़ों के उपचार के लिए टार्गेटेड थेरेपी (Targeted Therapy), कीमोथेरेपी (Chemotherapy), पॉलिएटिव उपचार (Palliative Treatment) और रेडियोएम्बोलाइज़शन (Radioembolisation) का प्रयोग किया जा सकता है। प्रक्रिया का चुनाव ट्यूमर के प्रकार, स्टेज और फैलाव के अनुसार किया जाता है।
सर्जरी में कितना समय लगेगा यह लिवर कैंसर की जटिलताओं और फैलाव पर निर्भर करता है। आपको सर्जरी के बाद रिकवरी रूम में ले जाय जायेगा। इंट्रावेनस (नसों में) ड्रिप द्वारा आपको द्रव और दवाएं दी जाएँगी। ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए ऑक्सीजन मास्क लगा रहेगा। मूत्राशय में एक कैथेटर लगाया जाता है ताकि मूत्र प्रणाली की कार्यवाही में अगले दो-तीन दिनों तक कोई बाधा न हो। कुछ दिनों बाद, जब स्थिति में थोड़ा सुधार हो जाये, मरीज़ को घर भेजा जा सकता है।
इस प्रक्रिया का सबसे आम दुष्प्रभाव है प्रत्यारोपित लिवर का अग्रहण। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रत्यारोपित लिवर अभी शरीर और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए नया है। इसके परिणामस्वरूप, दस्त, ऊर्जा के स्तर में कमी, त्वचा का पीला पड़ना और बुखार (उच्च तापमान के साथ) हो सकते हैं। अग्रहण रपढी दवाओं से भी दुष्प्रभाव हो सकते हैं। (और पढ़ें – बुखार के घरेलू उपचार)
(इस प्रक्रिया से जुड़े अन्य जोखिमों के बारे में जानिये - लिवर प्रत्यारोपण के जोखिम)
इस प्रक्रिया से नकसीर (Hemorrhage), संक्रमण, मुख्य रक्त वाहिकाओं और पित्त वाहिका को क्षति हो सकते हैं। कभी कभी कैंसर के पुनरावर्तन का भी जोखिम रहता है।