4डी स्कैन क्या है?

फोर डाइमेंशन (4D) स्कैन अल्ट्रासाउंड की इमेजिंग तकनीक है। इस टेस्ट का प्रयोग विश्व भर में प्रसूति विज्ञान और स्त्री रोग विज्ञान के क्षेत्र में किया जाता है, जिसकी मदद से गर्भ में पल रहे शिशु की देखभाल की जाती है। यह स्कैन गर्भ में बच्चे की गतिविधियों का वास्तविक दृश्य दिखाता है। यह 2 डी व 3 डी स्कैन से भिन्न होता है, क्योंकि यह बच्चे की गतिविधियों की काफी स्पष्ट (हाई डेफिनेशन) तस्वीरें दिखा कर पूरी तरह से जांच करने में मदद करता है। इस तकनीक में हाई फ्रीक्वेंसी वाली ध्वनि तरंगों का प्रयोग किया जाता है जिससे आंतरिक अंग की साफ तस्वीरें आती हैं।

फोर डी स्कैन भ्रूण की गतिविधियां भी दिखाता है, साथ ही यह भ्रूण के शुरुआती या जन्म से पहले के न्यूरोडेवलॅपमेंट की समस्याएं की भी जांच करता है।  

फोर जी स्कैन कभी कभी सीटी स्कैन (कम्प्यूटराइज़्ड टोमोग्राफी) के साथ भी किया जाता है, ताकि कुछ प्रकार के कैंसर व विशेष रूप से फेफड़ों में ट्यूमर की जांच की जा सके। फेफड़ों में ट्यूमर की गति का परीक्षण मुख्य रूप से मरीज की श्वसन संबंधी समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है।

(और पढ़ें - प्रेगनेंसी में 3डी अल्ट्रासाउंड स्कै‍न क्या है)

  1. 4 डी स्कैन क्यों किया जाता है - Purpose of 4D Scan in Hindi
  2. 4 डी स्कैन से पहले - Before 4D Scan in Hindi
  3. 4 डी स्कैन के दौरान - During 4D Scan in Hindi
  4. 4 डी स्कैन के परिणाम का मतलब - Results of 4D Scan in Hindi

4डी स्कैन किसलिए किया जाता है?

गर्भ में पल रहे शिशु संबंधी समस्याओं का पता लगाने के लिए, गायनेकोलॉजिस्ट (प्रसूति विज्ञान विशेषज्ञ) मुख्य रूप से 4 डी स्कैन को ही चुनते हैं। 4 डी स्कैन से प्राप्त होने वाली तस्वीरें इतनी स्पष्ट व उनकी गुणवत्ता इतनी अच्छी होती है, कि इसकी मदद से गायनेकोलॉजिस्ट भ्रूण की जांच, पहली तिमाही के दौरान बच्चे का सामान्य रूप से हिलना-डुलना, उसकी मांसपेशियों का तालमेल और छठे महीने में उसके चेहरे के भावों की जांच आदि काफी अच्छे से कर पाते हैं। टेस्ट से जो तस्वीरें प्राप्त होती हैं, उससे भ्रूण के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की जांच की जाती है और अगर किसी प्रकार की असमान्यता मिलती है, तो स्थिति का पता लगाने के लिए इसी टेस्ट से आगे की जांच भी की जाती है। 

4 डी अल्ट्रासाउंड तकनीक की मदद से प्राप्त हुई तस्वीरों की जांच करने के बाद इन्हें ज्यादातर गायनेकोलॉजिस्ट केएएनईटी (Kurjak’s antenatal neurodevelopmental test) के अंतर्गत कर देते हैं। केएएनईटी एक स्कोरिंग सिस्टम है, जो तीसरी तिमाही के दौरान भ्रूण में किसी प्रकार की असमान्यता की जांच करता है। यह टेस्ट जांच करता है कि भ्रूण में न्यूरोबिहेवियरल विकास कितना हुआ है और कितने अच्छे से हुआ है। एक 4डी स्कैन गर्भ के तीनों तिमाही के दौरान करवाने की सलाह दी जाती है, खासतौर पर दूसरे और तीसरे के दौरान ताकि निम्न स्थितियों का पता लगाया जा सके:

  • पहले तिमाही में साधारण हलचल, जैसे शरीर के ऊपरी भाग की गतिविधि या सिर हिलना |
  • दूसरी व तीसरी तिमाही में मुँह के हाव-भाव की जांच करना, जैसे आंख झपकना, उबासी लेना, चूसने व निगलने  जैसी गतिविधियां करना 
  • जटिल गतिविधियों का पता लगाना जैसे, हाथ से आंख, मुंह या सिर को छूना आदि।

भ्रूण का न्यूरोबेहवोरिअल को जानने की तकनीक, जैसे केएएनईटी और फीटल ऑब्सर्वल मूवमेंट सिस्टम (FOMS) आदि की मदद से भ्रूण के न्यूरोलॉजिकल बिहेवियर की अंदरुनी जांच भी की जा सकती है।

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4डी स्कैन से पहले क्या करना चाहिए?

एक 4डी स्कैन अल्ट्रासाउंड का दर्दरहित टेस्ट होता है और इसमें किसी प्रकार का चीरा लगाने या खून आदि निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसीलिए इस टेस्ट में किसी विशेष तैयारी की जरुरत नहीं पड़ती है| टेस्ट से पहले मरीज को 4 से 6 गिलास पानी पीने के लिए कहा जाता है, जिसकी मदद से टेस्ट के दौरान भ्रूण का स्पष्ट दृश्य मिल जाता है। टेस्ट पूरा होने के बाद ही मरीज को पेशाब करने (मूत्राशय खाली करने) की सलाह दी जाती है। 

4डी स्कैन कैसे किया जाता है?

मरीज को एक टेबल पर लिटाया जाता है और पेट पर एक विशेष प्रकार का जैल लगाया जाता है ताकि ट्रांसड्यूसर को आसानी से पेट की त्वचा पर फेरा जा सके। जब ट्रांसड्यूसर त्वचा को छूता है तो यह तीव्र ध्वनि तरंगे भेजता है जिससे आंतरिक भागों की स्पष्ट छवि कंप्यूटर पर दिखाई देती है। टेस्ट के बाद जैल को हटा दिया जाता है। एक कौशल-पूर्ण रेडियोलाजिस्ट तस्वीरों से मिले रिजल्ट के अनुसार एक नोट तैयार करता है | इसके बाद तस्वीर को प्रिंट करके तैयार कर के गायनेकोलॉजिस्ट को दे दिया जाता है | 4 डी स्कैन में कुल 30 मिनट का समय लगता है और इसके रिजल्ट का पता भी उसी दिन मिल जाता है | टेस्ट के दौरान मरीज को ज्यादा समस्या नहीं होती है, बस मूत्राशय भर जाने के कारण थोड़ी तकलीफ हो सकती है।

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4 डी स्कैन के रिजल्ट का क्या मतलब है?

  • साधारण रिजल्ट:
    भ्रूण की बिहेवियरल व शारीरिक गतिविधियां कितनी अच्छी हैं आदि पर ही टेस्ट के रिजल्ट निर्भर करते हैं। हालांकि कुछ गायनोकोलॉजिस्ट केएएनईटी स्कोरिंग सिस्टम का भी प्रयोग करते हैं ,जो बताता है कि भ्रूण कितने अच्छे से व कितनी गतिविधियां कर पा रहा है। यदि भ्रूण सिर, गर्दन व धड़ को  सामान्य रूप से हिला पा रहा है, तो टेस्ट का रिजल्ट सामान्य होता है। ये गति 20 सेकेंड की होती है। यदि केएएनईटी का स्कोर 14-20 के बीच है, तो उसे सामान्य समझा जाता है।
     
  • असामान्य रिजल्ट:
    यदि भ्रूण की शारीरिक गतिशीलता बार-बार और धीमी गति से हो रही है या फिर गति संबंधी अन्य कोई गड़बड़ हो रही है और साथ में भ्रूण की मांसपेशियां भी संकुचित हो रही है तो रिजल्ट को असामान्य माना जाता है। भ्रूण के गतिविधि के आधार पर यदि केएएनईटी का स्कोर 0 -5 है तो रिजल्ट को असामान्य माना जाता है, जबकि 5-13 इसकी अधिकतम सीमा होती है। यदि भ्रूण के परीक्षण का रिजल्ट असामान्य या फिर अधिकतम सीमा में है, तो यह जन्म के बाद भी टेस्ट की सलाह दी जाती है और फिर दोनों स्कोर की तुलना की जाती है।
    उसके बाद शिशु को लगभग 2 साल का हो जाने के बाद उसकी जांच की जाती है, ताकि यह पता लगाया जाए कि कहीं शिशु किसी न्यूरोलॉजिक विकार से ग्रस्त तो नहीं है। इतना ही नहीं असामान्य रिजल्ट के कारण कभी-कभी गायनेकोलोजिस्ट गर्भ को गिराने की सलाह भी दे सकते हैं। असाधारण रिजल्ट में निम्न संरचनात्मक विकृति और न्यूरोलॉजिकल असामान्यताएं हो सकती है:
    • सेरेब्रल पाल्सी जो गतिविधि संबंधी समस्याओं का एक समूह होता है।
    • डेंडी-वॉकर मालफॉर्मेशन, इस स्थिति में कार्नियल (खोपड़ी से संबंधित), वैस्कुलर (वाहिकाएं) और मध्यम कान के कुछ हिस्से ठीक से विकसित नहीं हो पाते हैं।
    • स्केलेटल डिस्प्लेसिया, जिसमें रीढ़ की हड्डी व शरीर की अन्य हड्डियों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है।
    • स्पाइना बिफिडा, एक ऐसी स्थिति जिसमें रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कोर्ड) ठीक से विकसित नहीं हो पाती है।
    • एन्सेफैलोसील, जिसमे न्यूरल ट्यूब बंद नहीं हो पाती और परिणामस्वरूप संरचनात्मक विकार विकसित हो जाते हैं।

संक्षेप में, 4 डी स्कैन तकनीक का प्रयोग भ्रूण के शारीरिक व न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों और विकास की जांच करने के लिए किया जाता है| यह जन्म के बाद होने वाली विकृतियों और संरचनात्मक असमानताओं को भी बताता है| भ्रूण की जन्म से पूर्व स्तिथियों को जानने के लिए बार-बार 4 डी स्कैन करवाना आवश्यक होता है।

संदर्भ

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