जन्म के समय नवजात शिशु की लंबाई और वजन, उसकी सेहत की सही स्थिति को बताते हैं। बाल रोग विशेषज्ञों ने आपकी सहायता के लिए बच्चों की औसत लंबाई, वजन और सिर के आकार के अनुसार एक चार्ट तैयार किया है। यह चार्ट बच्चे के विकास की सही स्थिति को बताता है। इस चार्ट के अनुसार बढ़ते बच्चे को स्वस्थ माना जाता है। यदि आपके बच्चे का वजन इस चार्ट के मुताबिक नहीं होता है, तो यह उसकी स्वास्थ्य समस्याओं की ओर इशारा करता है।

जन्म के पहले साल में एक स्वस्थ बच्चे का वजन, उसके जन्म के वजन की तुलना में तीन गुना और लंबाई 50 प्रतिशत तक अधिक बढ़नी चाहिए। प्रेग्नेंसी का समय बच्चे के वजन को प्रभावित करता है। समय से पहले डिलीवरी से पैदा हुए बच्चों का वजन सामान्य रूप से पैदा होने वाले बच्चों के मुकाबले कम हो सकता है। इसके अलावा भी कई अन्य कारणों का प्रभाव आपके बच्चे के वजन पर पड़ सकता है।

जन्म के समय बच्चे का वजन सही होना बेहद ही महत्वपूर्ण है, इससे उसका विकास तेजी से होता है। कुछ समय पहले या आने वाले समय में मां-बाप बनने वालों को इस बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए, इसलिए आपको इस लेख में जन्म के समय बच्चों का वजन कितना होना चाहिए, जन्म के समय बच्चों के वजन को प्रभावित करने वाले कारक, जन्म के समय बच्चे की सामान्य लंबाई कितनी होनी चाहिए, जन्म के समय जुड़वा बच्चों का वजन और नवजात शिशु का आदर्श वजन ना होने पर क्या करें, आदि बातों के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।

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  1. जन्म के समय बच्चे का औसत वजन - Janam ke samay bache ka ausat vajan
  2. जन्म के समय बच्चे के वजन को प्रभावित करने वाले कारक - Janam ke samay bache ko prabhavit karne vale karak
  3. जन्म के समय बच्चे की सामान्य लंबाई कितनी होनी चाहिए - Janam ke samay bache ki samanya lambai kitni honi chahiye
  4. जन्म के समय जुड़वा बच्चों का वजन - Janam ke samay judwa bachon ka vajan
  5. नवजात शिशु का आदर्श वजन ना होने पर क्या करें - Navjat shishu ka adrash vajan na hone pr kya kare
नवजात शिशु की लम्बाई और वजन कितना होना चाहिए के डॉक्टर

प्रेग्नेंसी के दौरान मां की स्वास्थ्य स्थितियों और अन्य कारणों की वजह से जन्म के समय नवजात शिशु का सामान्य वजन अलग-अलग हो सकता है। सामान्य गर्भवती महिला व गर्भावस्था का 40 वां सप्ताह पूरा होने के बाद पैदा हुए बच्चे का औसत वजन 3500 ग्राम (3.5 किलो) होता है, जबकि जन्म के समय 1500 ग्राम (1.5 किलो) वजन वाले बच्चों को कम वजन का माना जाता है और ऐसे बच्चों को एनआईसीयू (NICU: बच्चों की विशेष चिकित्सीय देखभाल) में रखा जाना जरूरी होता है।  

(और पढ़ें - गर्भावस्था को सप्ताह के अनुसार जानें)

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आपके नवजात शिशु का सामान्य वजन कई कारकों से निर्धारित होता है। इसमें शामिल है:

  • आनुवांशिकता –
    माता-पिता की अनुवांशिकता के आधार पर जन्म के समय बच्चे के वजन निर्धारित होता है।
     
  • गर्भावस्था का समय –
    गर्भावस्था के निर्धारित समय से पहले पैदा होने वाले शिशुओं का अक्सर कम वजन होता है। इसके अलावा प्रेग्नेंसी के निर्धारित समय के बाद पैदा होने वाले बच्चों का वजन औसत बच्चों के मुकाबले ज्यादा हो सकता है।
     
  • गर्भावस्था के दौरान पोषण –
    गर्भवास्था में पौष्टिक आहार लेने से बच्चे को मां के गर्भ में व पैदा होने के बाद भी बढ़ने में सहायता मिलती है। (और पढ़ें - प्रेगनेंसी में क्या खाना चाहिए)
     
  • गर्भावस्था के दौरान के दौरान मां की जीवन शैली – गर्भावस्था के दौरान महिला के द्वारा धूम्रपान, शराब या नशीली दवाएं लेना, जन्म के समय नवजात शिशु के औसत वजन को प्रभावित कर सकता है।
    (और पढ़ें - शराब छुड़ाने के घरेलू उपाय)
     
  • लड़का या लड़की होना – जन्म के समय लड़कों और लड़कियों के वजन में अंतर देखा जा सकता है। यह अंतर बेशक बेहद कम हो, लेकिन सामान्यतः लड़कों का वजन लड़कियों के मुकाबले थोड़ा अधिक होता है। (और पढ़ें - गर्भ में लड़का होने के लक्षण से जुड़े मिथक)
     
  • गर्भावस्था के दौरान मां की स्वास्थ्य स्थितियां - गर्भावस्था में डायबिटीज, हृदय रोग, हाई बीपी और मोटापा जैसी स्थितियों का सीधा असर आपके बच्चे के वजन पर पड़ता है। (और पढ़ें - प्रेग्नेंसी में वजन नियंत्रित रखने के टिप्स)
     
  • जुड़वा व दो से अधिक बच्चों का जन्म – प्रेग्नेंसी में जुड़वां या अधिक बच्चों को जन्म देना भी आपके बच्चों के वजन को प्रभावित कर सकता है। गर्भ में बच्चों के बढ़ने की जगह भी उनके वजन को निर्धारित करती है।
     
  • पहले पैदा हुए बच्चों का वजन – यदि महिला की पहली प्रेग्नेंसी के दौरान पैदा होने वाले बच्चों का वजन कम या ज्यादा हो, तो इसका असर बाद में पैदा होने वाले बच्चों के वजन पर पड़ता है। (और पढें - अपने बच्चे की तेल मालिश करते समय ज़रूर रखें इन बातों का ध्यान)  
     
  • प्रेग्नेंसी के समय बच्चे का स्वास्थ्य – गर्भावस्था में बच्चे को संक्रमण होना या जन्म से संबंधी अन्य रोग के प्रभाव के कारण भी आपके बच्चे का वजन कम हो सकता है।   

(और पढ़ें - बच्चों की सेहत के इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज)

जन्म के समय बच्चे की स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाने के लिए उसके वजन और लंबाई को आधार बनाया जाता है। जिस तरह से जन्म के समय बच्चों का एक औसत वजन होता है, ठीक वैसे ही उनकी लंबाई का भी एक औसत होता है। जन्म के समय बच्चे की सामान्य औसत लंबाई 14 से 20 इंच (35.6 सेमी से 50.8 सेमी) होनी चाहिए। वजन के अनुसार ही जन्म के समय लड़के और लड़कियों की लंबाई में भी अंतर देखा जाता है। जन्म के समय लड़कों की औसत लंबाई 50.6 सेमी और लड़कियों की लंबाई 50.1 सेमी तक होती है।

बीते वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि जन्म के समय लड़कियों और लड़कों के वजन में करीब 100 ग्राम का ही अंतर होता है।

(और पढ़ें - टिकाकरण क्यों करवाना चाहिए)

आमतौर पर जुड़वा बच्चों में प्रेग्नेंसी के 37वें सप्ताह में ही डिलीवरी हो जाती है, जबकि दो से अधिक बच्चे होने पर प्रेग्नेंसी के 34वें सप्ताह में ही बच्चों का जन्म हो जाता है। एक बार में दो या दो से अधिक बच्चों को जन्म देने के 50 प्रतिशत मामले प्रीमैच्योर बर्थ के होते हैं और इसी वजह से इन बच्चों का वजन कम होता है। गर्भावस्था के दौरान एक ही बच्चे को जन्म देने के मात्र 6.2 प्रतिशत मामलों में ही बच्चों का वजन कम पाया जाता है। जुड़वा बच्चों का औसत वजन 2.26 किलो माना जाता है। जुड़वा पैदा होने वाले वाले दोनों बच्चों का वजन अलग-अलग हो सकता है। यह जरूरी नहीं है कि जुड़वा पैदा होने वाले दोनों ही बच्चों का वजन एक समान हो।

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जन्म के समय बच्चों का कम वजन होना शिशु मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण है। लेकिन नवजात शिशु की चिकित्सीय देखभाल में आए बेहतर बदलावों के चलते आज शिशु मृत्यु दर में थोड़ी गिरावट देखी गई है। जन्म के समय कम वजन वाले कुछ बच्चों को मानसिक मंदता, किसी चीज को सीखने में परेशानी, सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral palsy : अंगों और मांसपेशियो में गतिविधिय विकार), देखने और सुनने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

बच्चे के वजन का कम होना हर बार परेशानी का कारण नहीं होता है। कई बार गर्भावस्था के 40 सप्ताह के बाद पैदा होने बच्चे का वजन कम होते हुए भी वह स्वस्थ हो सकता है। बच्चे की सही देखभाल, सही खान-पान, प्यार और लगाव उसके वजन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कम वजन वाले बच्चे को भी कुछ ही महीनों में स्वस्थ किया जा सकता है।

गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के विकास की नियमित जांच करवानी चाहिए। अगर भ्रूण की विकास दर सामान्य या संतोषजनक न हो तो ऐसे में आपको गर्भावस्था में तनाव और गर्भावस्था में हाई बीपी, आदि समस्याओं की जांच करवानी चाहिए। इनके इलाज से आप भ्रूण की विकास दर को सुधार सकते हैं।

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यदि आप अपने बच्चे के कम या ज्यादा वजन से चिंतित हैं तो आपको अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए। अगर मां के स्तनों में दूध कम आ रहा हो और बच्चे का वजन नहीं बढ़ पा रहा हो, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर बच्चे को दूध के सप्लीमेंट देने की सलाह दे सकते हैं। आमतौर पर बच्चे को अनाज देने के लिए छह माह तक इंतजार करने की सलाह दी जाती है।

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