कोविड-19 महामारी की वजह बने नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 ने आम लोगों से लेकर मेडिकल जानकारों और शोधकर्ताओं को कई प्रकार से हैरान किया है। इनमें एक बड़ा कारण यह है कि दुनियाभर में करीब दस लाख मौतों की वजह बना यह वायरस बच्चों के खिलाफ बहुत कम घातक साबित हुआ है। इसके ज्यादातर पीड़ित मध्यम और बुजुर्ग आयु वर्ग और पहले से अन्य बीमारियों के शिकार लोग हैं। बच्चे इस वायरस के संक्रमण से पहलेपहल तो प्रभावित होते नहीं। अगर होते हैं तो सामान्यतः रिकवर कर जाते हैं। लेकिन ऐसा क्यों है, इसकी वजह अब तक पता नहीं चल सकी है।

हालांकि अब एक नए अध्ययन के जरिये वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की है। इस स्टडी में कोरोना वायरस की चपेट में आए वयस्क और बच्चों के इम्यून रेस्पॉन्स की तुलना की गई है। इसमें वैज्ञानिकों को पता चला है कि बच्चों के इम्यून सिस्टम का एक हिस्सा ऐसा है जो बाहरी या अज्ञात विषाणुओं को शरीर को नुकसान पहुंचाने से पहले ही लगातार तेजी से खत्म करने का काम करता रहता है। इम्यून सिस्टम की इस ब्रांच से जुड़ी जानकारी साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है। अमेरिका अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता और अमेरिका के एल्बर्ट आइंसटाइन कॉलेज ऑफ मेडिसिन की डॉ. बेट्सी हेरोल्ड का कहना है, 'मुख्य बात यह है कि इस वायरस के खिलाफ बच्चे अलग प्रकार का इम्यून रेस्पॉन्स देते हैं और ऐसा लगता है कि यही बच्चों की (वायरस से) रक्षा कर रहा है।' डॉ. हेरोल्ड ने बताया कि बच्चों की अपेक्षा वयस्कों का इम्यून रेस्पॉन्स काफी हल्का होता है।

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किसी अज्ञात विषाणु का पता चलने पर शरीर हड़बड़ी के साथ कुछ ही घंटों में उसके खिलाफ इम्यून एक्टिविटी के साथ हमला करता है। इसे इननेट इम्यून रेस्पॉन्स कहते हैं। वायरस का पता चलते ही शरीर को बचाने वाली कोशिकाएं जल्दी ही अपने काम में लग जाती हैं और मदद के लिए अन्य कोशिकाओं को सिग्नल भेजती हैं। वायरस के खिलाफ यह प्रक्रिया वयस्कों के मुकाबले बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है। उनका शरीर वायरसों के खिलाफ ज्यादा बार इम्यून रेस्पॉन्स देता है। इससे विषाणु को लेकर बच्चों का शरीर एक प्रकार की सूची तैयार कर लेता है कि उसे किस वायरस के खिलाफ क्या रेस्पॉन्स देना है। लेकिन समय के साथ जब हम वयस्कता की ओर बढ़ते हैं तो शरीर ज्यादा विवेकी इम्यून सिस्टम पर निर्भर हो जाता है।  

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पेडियाट्रिक इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. माइकल मीना बताते हैं कि वयस्कों का शरीर वायरस के खिलाफ पहली ही बार में शायद ही हमला करता है। बच्चों के मामले में ऐसा नहीं है। इस बारे में जानकारी देते हुए डॉ. माइकल ने कहा, 'नया कोरोना वायरस हर किसी के लिए नया है। वयस्क लोगों में इननेट इम्यून सिस्टम उम्र के साथ कमजोर होता जाता है, जिसके चलते वे (वायरस के प्रति) ज्यादा कमजोर हो जाते हैं। ऐसे में (रेस्पॉन्ड करने के लिए) स्पेशलाइज्ड अडेप्टिव सिस्टम को तैयार करने में वयस्कों को समय लगता है। तब तक वायरस को नुकसान पहुंचाने का समय मिल जाता है।'

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बच्चों और वयस्कों के इम्यून रेस्पॉन्स में तुलना करने के लिए वैज्ञानिकों ने 60 वयस्क और 65 बच्चों तथा युवा वयस्कों (24 साल से कम) को अध्ययन में शामिल किया। इन सभी को कोरोना वायरस संक्रमण के चलते 13 मार्च से 17 मई के बीच न्यूयॉर्क स्थित मॉन्टेफियर मेडिकल सेंटर अस्पताल में भर्ती किया गया था। इन मरीजों में ऐसे 20 बच्चे भी शामिल थे, जिन्हें कोविड-19 से जुड़ा मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस-सी) भी हुआ था। अध्ययन में पता चला कि वयस्कों की अपेक्षा ज्यादातर बच्चे वायरस से मामूली रूप से प्रभावित हुए थे। अधिकतर में डायरिया जैसी जठरांत्र संबंधी समस्याएं और स्वाद व सूंघने की क्षमता में कमी जैसे लक्षण दिखे थे। केवल पांच बच्चों के मकैनिकल वेंटिलेशन की जरूरत पड़ी थी। वयस्कों में यह संख्या 22 रही। वहीं, मृतकों में 17 वयस्क और दो बच्चे शामिल रहे।  

इन परिणामों की वजह जानने के प्रयास में वैज्ञानिकों ने पाया है कि बच्चों के इम्यून सिस्टम के दो विशेष (इम्यून) मॉलिक्यूल्स 'इंटरल्यूकिन 17ए' और 'इंटरफेरोन गामा' का ब्लड लेवल काफी ज्यादा होता है। युवा मरीजों में इन मॉलिक्यूल्स की मात्रा सबसे ज्यादा थी, जो उनसे ज्यादा उम्र के वयस्कों में लगातार कम होती पाई गई थी। इस पर डॉ. हेरोल्ड का कहना है, 'हमें लगता है कि यही बच्चों को (वायरस से) बचा रहा है, विशेषकर गंभीर श्वसन रोग में।'

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शोधकर्ताओं के मुताबिक, इननेट इम्यून सिस्टम से बचने के लिए विषाणुओं के पास कई ट्रिक्स होती हैं। कोरोना वायरस इस मामले में विशेष रूप से ध्यान खींचता है। लेकिन इसके संक्रमण की शुरुआत में ही बच्चों में इंटरल्यूकिन 17ए मॉलिक्यूल वायरस की इम्यून सिस्टम को धोखा देने की ट्रिक को नाकाम कर सकता है। डॉ. हेरोल्ड का कहना है कि यह मॉलिक्यूल बच्चों को उस ताकतवर इम्यून रेस्पॉन्स से भी बचाता है, जिसके चलते शरीर में इन्फ्लेमेशन बढ़ जाती है और बीमारी को और गंभीर बना देती है।


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