यह तो हम सभी जानते हैं कि वायरस से लेकर इंसानों तक हर जीवित चीज में जेनेटिक मटीरियल होता है फिर चाहे वह डीएनए हो या फिर आरएनए। वास्तव में, सभी में एक तरह का आरएनए होता है जिसे mRNA कहते हैं वह राइबोसोम (कोशिकाओं में भी मौजूद) में सूचनाओं को ले जाने का महत्वपूर्ण काम करता है, कि आखिर कब और कौन सा प्रोटीन बनाना है। 

एमआरएनए का अर्थ है मेसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड।  mRNA डीएनए से विशिष्ट प्रोटीन बनाने के लिए कोड की कॉपी बनाता है और शरीर में उनके उत्पादन को सक्षम बनाता है- शरीर में मौजूद एंजाइम्स, हार्मोन्स, हड्डियां, मांसपेशियों, ऊत्तक, त्वचा, बाल और कई और चीजें भी हैं जो प्रोटीन से बनी होती हैं लिहाजा mRNA के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। 

ऐसे कई रोगाणु भी हैं जिनकी बाहरी सतह पर एंटीजन नाम का प्रोटीन होता है। mRNA वैक्सीन इन प्रोटीन्स का इस्तेमाल हमारे फायदे के लिए करती हैं और इसके लिए वे एंटीजन प्रोटीन बनाने के लिए mRNA को डिजाइन और क्रिएट करती हैं ताकि रोगाणु द्वारा किए गए नकली हमले का डर दिखाकर शरीर को टी-सेल्स की नियुक्ति और एंटीबॉडीज का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और इंफेक्शन से कैसे लड़ना है ये भी सिखाया जा सके। 

(और पढ़ें - टीकाकरण क्या है, क्यों करवाना चाहिए और फायदे)

इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर mRNA वैक्सीन क्या होती है, कैसे काम करती है और कोविड-19 महामारी के संदर्भ में इस वैक्सीन का क्या महत्व है?

  1. कैसे बनती है mRNA वैक्सीन?
  2. कोविड-19 के लिए mRNA वैक्सीन
  3. mRNA वैक्सीन के फायदे और इस्तेमाल
  4. mRNA वैक्सीन के दुष्प्रभाव
  5. एमआरएनए वैक्सीन क्या होती है? के डॉक्टर

mRNA वैक्सीन एक तरह की न्यूक्लिक एसिड वैक्सीन है। वैसे तो mRNA की खोज 1961 में की गई थी लेकिन mRNA पर आधारित वैक्सीन 21वीं शताब्दी की ही देन है। mRNA वैक्सीन कैसे बनती है, इसके के लिए हम आपको बता रहे हैं इसका स्टेप-बाई-स्टेप तरीका:

  • वैज्ञानिक सबसे पहले उस रोगाणु का अध्ययन करते हैं जिसे वे टार्गेट करना चाहते हैं। इस स्टडी में रोगाणु की संरचना, जीनोम और वह कैसे काम करता है इसे समझा जाता है। उदाहरण के लिए- कोविड-19 के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी-2 वायरस के मामले में वैज्ञानिकों ने शुरुआत में इस बात की खोज कि की कोरोना वायरस की बाहरी सतह पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन, इंसान की स्वस्थ कोशिकाओं में प्रवेश करने में अहम भूमिका निभाता है। इसके बाद वैज्ञानिकों ने उन तरीकों की खोज की जिससे वे इस एस प्रोटीन को ब्लॉक कर सकते हैं। (और पढ़ें- कोविड-19 में होने वाले दर्द से राहत देता है कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन)
  • एक बार जब वैज्ञानिकों को पता चल जाता है कि उन्हें कौन सा प्रोटीन इस्तेमाल करना है, उसके बाद वे समरूप mRNA सीक्वेंस को डिजाइन करके बनाते हैं। यह सीक्वेंस मुख्य रूप से निर्देशों का एक सेट है जो शरीर की कोशिकाओं को बताएगा कि उन्हें इच्छित एंटीजन प्रोटीन कैसे बनाना है।
  • mRNA सीक्वेंस को फिर उपयुक्त प्रारूप में कोशिकाओं में दाखिल कराया जाता है और वह भी सही तौर-तरीकों के जरिए ताकि नतीजे बेहतर हो सकें। mRNA चिकित्सा विज्ञान के कुछ स्वरूपों में शामिल है: "डिलिवरी कैरियर का प्रावरण, जैसे- लिपिड नैनोकणों, पॉलिमर, पेप्टाइड्स, सलूशन में फ्री mRNA और डेंड्रिटिक कोशिकाओं के जरिए जीवित शरीर के बाहर रहना"। इस वैक्सीन को त्वचा के अंदर, त्वचा के नीचे, मांसपेशियों में, नसों में या फिर लसीका पर्व (लिम्फ नोड) में दिया जाता है। वैसे तो यह जरिया सामान्य नहीं है लेकिन कभी-कभार टीके को इंट्रानेजल यानी नाक के जरिए दिए जाने वाला इंजेक्शन, इंट्रावजाइनल यानी योनि के जरिए दिया जाने वाला इंजेक्शन या इंट्रोट्यूमोरल यानी ट्यूमर में दिए जाने वाले इंजेक्शन के जरिए भी दिया जाता है।
  • एक बार कोशिकाओं में पहुंचने के बाद, mRNA राइबोसोम्स को निर्देश देता है कि वे उस अभीष्ट प्रोटीन को बनाएं और यह शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया को भी मजबूत बनाता है ताकि वह रोगाणुओं से लड़ सके। (औ पढ़ें- इम्यून सिस्टम से जुड़े प्रोटीन को ब्लॉक कर कोरोना वायरस को रोका जा सकता है)
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इंसानों पर किए गए ट्रायल में कोविड-19 वैक्सीन उम्मीदवार के रूप में 2 mRNA वैक्सीन उम्मीदवार उभरे हैं। पहला है- Pfizer और बायोएनटेक का BNT162b2 वैक्सीन और दूसरा है- यूएस बेस्ड मॉडर्ना इंक का mRNA-1273 वैक्सीन उम्मीदवार जिसने कोविड-19 के खिलाफ इंसानों पर किए गए ट्रायल के दूसरे चरण में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।

1. मॉर्डना कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट : mRNA-1273
अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ऐलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज स्थित वैक्सीन रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिकों और मॉर्डना इंक द्वारा विकसित की गई mRNA-1273 शरीर में स्पाइक (एस) प्रोटीन के "पहले से निर्मित स्थिर रूप" के लिए कोड को दाखिल करता है।

स्पाइक प्रोटीन, कोविड-19 के लिए जिम्मेदार सार्स-सीओवी-2 जैसे कोरोना वायरस की सतह पर मौजूद छोटी-छोटी मुकुट जैसी आकृति है। वास्तव में यह सार्स-सीओवी-2 के संरचनात्मक प्रोटीन के 4 प्रकारों में से एक है। इस वायरस में मौजूद बाकी के 3 संरचनात्कम प्रोटीन हैं- एन्वेलोप (ई) प्रोटीन, मेम्ब्रेन (एम) प्रोटीन और न्यूक्लियोकैपसिड (एन) प्रोटीन। 

mRNA-1273 वैक्सीन कैंडिडेट की बात करें तो 14 जुलाई 2020 को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में पहले फेज के अंतरिम विश्लेषण को प्रकाशित किया गया जिसमें वैक्सीन को इम्यून प्रतिक्रिया विकसित करने के लिए असरदार पाया गया। इसके बाद mRNA-1273 के दूसरे अंतरिम विश्लेषण (जो 57 से 70 साल और 71 साल से अधिक उम्र के लोगों के बीच हुआ) को 29 सितंबर 2020 को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित किया गया।   

(और पढ़ें - कोविड-19 वैक्सीन वितरण से जुड़ी अहम बातें)

2. Pfizer और बायोएनटेक की कोविड-19 वैक्सीन उम्मीदवार : BNT162b2
इस वैक्सीन कैंडिडेट के तीसरे चरण के ट्रायल में 43 हजार 538 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था जिसमें से 8 नवंबर 2020 तक 38 हजार 955 को BNT162b2 वैक्सीन का दूसरा और फाइनल डोज दिया जा चुका है। 9 नवंबर 2020 को Pfizer ने न्यूज रिलीज जारी कर बताया कि स्वतंत्र आंतरिक डेटा कमिटी के अंतरिम विश्लेषण के आंकड़े बताते हैं कि वैक्सीन 90 प्रतिशत असरदार है।

इस घोषणा ने इस बात की उम्मीद भी जगायी कि बाकी mRNA वैक्सीन भी सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ सकारात्मक नतीजे देगी। हालांकि इन आंकड़ों को अब भी पियर-रिव्यू किया जाना बाकी है और ट्रायल अब भी जारी है।

मूलतः mRNA वैक्सीन टेक्नोलॉजी, mRNA को डिजाइन करने और उसका निर्माण के बारे में है, जिसे जब शरीर में दाखिल किया जाता है- तो वह कोशिकाओं में निश्चित एंटीजन प्रोटीन के उत्पादन को प्रेरित करता है। चूंकि ये प्रोटीन रोगाणुओं (रोग पैदा करने वाले माइक्रोब) के एक हिस्से की नकल करते हैं, इसलिए हमारा इम्यून सिस्टम इसके प्रति रिऐक्शन देता है। 

इसे करने के लिए पहले वैज्ञानिकों को रोगाणु की संरचना और जीनोम का पता करना होता है। यह वैज्ञानिकों को स्पष्ट रूप से पहचानने में मदद करता है कि वे रोगाणु के किस हिस्से का उपयोग सुरक्षित और प्रभावी ढंग से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए कर सकते हैं। (कोविड-19 के मामले में सार्स-सीओवी-2 वायरस के जीनोम अनुक्रम का जनवरी 2020 में पता लगाया गया था- दुनियाभर में इस नए वायरल संक्रमण के बारे में पता चलने के महज कुछ हफ्तों के अंदर ही)  

अब हम ये जानते हैं कि वैक्सीन का काम शरीर को सिखाना है ताकि वह रोगाणु की पहचान कर सके और उसके खिलाफ एक उचित प्रतिक्रिया दे सके, इस तरह से जो हकीकत में बीमारी के संपर्क में आने की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हो और उसके बाद उसके खिलाफ इम्यूनिटी विकसित करना (कई बार जीवनभर की इम्यूनिटी भी)। इन्फ्लूएंजा, रेबीज और जीका वायरस इंफेक्शन के खिलाफ एक असरदार mRNA वैक्सीन का विकास करने के लिए रिसर्च फिलहाल जारी है। इसके अतिरिक्त, अनुसंधानकर्ताओं ने यह भी समझाया है कि जीन-आधारित mRNA वैक्सीन के प्रोटीन-बेस्ड वैक्सीन और वेक्टर वैक्सीन की तुलना में कुछ फायदे होते हैं।

जीन बेस्ड वैक्सीन वे होते हैं जिसमें शरीर के लिए निर्देश होता है ताकि वह प्रोटीन को प्रेरित करने के लिए इम्यून प्रतिक्रिया बना सके।
प्रोटीन बेस्ड वैक्सीन में एंटीजन का एक हिस्सा होता है या फिर कमजोर या क्षीण एंटीजन प्रोटीन होता है (उदाहरण के लिए पोलियो वैक्सीन)।
वेक्टर बेस्ड वैक्सीन में सीमित या हानिरहित रोगाणु को कैरियर या वेक्टर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है वैक्सीन को डिलिवर करने के लिए-वैक्सीन अपने आप में जीन बेस्ड हो सकती है। इसका एक उदाहरण- ChAdOx-1 nCov-19, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट और ऐस्ट्राजेनेका की AZD1222 है जो एडिनोवायरस का इस्तेमाल करता है जो वेक्टर के तौर पर चिम्पैंजी को संक्रमित करता है।

mRNA वैक्सीन के प्रमुख फायदे निम्नलिखित हैं :

  • जीन-बेस्ड वैक्सीन एंटीबॉडीज के साथ ही सीडी8+साइटोटॉक्सिक टी सेल्स (किलर टी सेल्स) की नियुक्ति करता है और सीडी 4+ हेल्पर टी सेल्स भी क्योंकि वे सही तरीके से वैक्सीन के मार्ग को सक्रिय कर सकते हैं।
  • वेक्टर बेस्ड वैक्सीन की प्रभावकारिता कम हो सकती है अगर शरीर पहले से ही कैरियर माइक्रोब के प्रति इम्यून या प्रतिरक्षित हो। हालांकि जीन-बेस्ड वैक्सीन में यह जोखिम नहीं होता है। 
  • भविष्य में, वैज्ञानिक ऐसे mRNA वैक्सीन बनाने में भी सक्षम हो सकते हैं जो थर्मोस्टेबल हों यानी इन टीकों को परिवहन और भंडारण के दौरान फ्रीज करने की जरूरत नहीं होगी।

ऑपरेशन वॉर्प स्पीड के तहत अमेरिका की सरकार ने पहले ही ChAdOx1 nCoV-19, mRNA-1273, BNT162b2 के लाखों डोज को खरीद लिया है और जॉनसन एंड जॉनसन की स्वामित्व वाली जैनसेन फार्मास्युटिकल कंपनी के शुरुआती परीक्षणों में वायरल वेक्टर वैक्सीन कैंडिडेट और कई दूसरे कैंडिडेट्स को भी।

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वैसे तो mRNA वैक्सीन 1990 के दशक से अस्तित्व में है लेकिन साल 2000 के बाद ही वैज्ञानिक इसके दुष्प्रभावों को कम करके इसे ह्यूमन ट्रायल के लिए फिट बनाने में सक्षम हो पाए। सफल mRNA वैक्सीन के भी कुछ संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जिसमें निम्नलिखित चीजें शामिल हैं:

(और पढ़ें - दर्दरहित टीकाकरण क्या है, जानें)

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