कोरोना वायरस से फैली कोविड-19 महामारी के चलते हर रोज हो रही हजारों मौतों के बीच दुनियाभर के वैज्ञानिक इस बीमारी की दवा और वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। इस सिलसिले में हाल में कुछ नए प्रयोग सामने आए हैं, जो पहले से मौजूद अन्य बीमारियों की दवाओं से जुड़े हैं। दरअसल, कोविड-19 की कोई दवा या वैक्सीन नहीं होने की सूरत में कई देशों में अलग-अलग मरज की दवाओं को कोरोना वायरस के मरीजों पर आजमाया गया है। जैसे भारत में एंटी-एचआईवी दवाएं लोपिनावीर और रिटोनावीर को मरीजों पर आजमाया गया तो अमेरिका और अन्य देशों में मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को बतौर प्रयोग इस्तेमाल किया गया। रिपोर्टें बताती हैं कि इन प्रयोगों के परिणाम मिले-जुले रहे हैं, यानी कहीं किसी और रोग की दवा कोविड-19 के मरीज के इलाज में कारगर रही तो कहीं नहीं रही। 

खबर है कि इस सिलसिले में वैज्ञानिक अब ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी (क्षयरोग या तपेदिक) के इलाज में उपयोग की जाने वाली वैक्सीन का सुझाव दे रहे हैं। मीडिया रिपोटों के मुताबिक, यह प्रयोग ऑस्ट्रेलिया में किया जा रहा है। यहां मेलबर्न शहर के डॉक्टरों को टीबी की रोकथाम के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वैक्सीन कोविड-19 के मरीजों को देने की मंजूरी दी गई है। स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस प्रयोग का उद्देश्य यह पता करना है कि कोविड-19 के रोगियों पर यह दवा कारगर साबित होगी या नहीं।

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कौन सी है यह वैक्सीन?
इस प्रयोग में जिस दवा का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसका नाम ‘बैसिलस कैलमेट-ग्यूरिन’ (बीसीजी) है। मेडिकल जानकार बताते हैं कि पिछले करीब सौ सालों से टीबी की रोकथाम के लिए बीसीजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। उनके मुताबिक, इस दवा का उपयोग ना सिर्फ ब्लैडर कैंसर (मूत्राशय कैंसर) की शुरुआती स्टेज में शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए किया जाता है, बल्कि ये किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर की रोग प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाने का काम करती है। संभवतः इसी कारण ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक और डॉक्टर कोविड-19 के मरीजों के लिए भी इस दवा को आजमा रहे हैं।

डब्ल्यूएचओ ने क्या कहा?
नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण को खत्म करने वाली वैक्सीन तैयार करने में एक साल या उससे ज्यादा समय भी लग सकता है। ऐसे में डब्ल्यूएचओ भी नए प्रयोगों को आजमाने की बात कर रहे हैं। रिपोर्टें बताती हैं कि यह खुद डब्ल्यूएचओ का भी कहना है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने या कम करने के संबंध में बीसीजी वैक्सीन की क्षमता का पता लगाना जरूरी है।

मेलबर्न स्थित मरडॉक चिल्ड्रन्स रिसर्च इंस्टीट्यूट में संक्रामक रोग अनुसंधान के प्रमुख नाइजेल कर्टिस बीसीजी वैक्सीन पर हो शोध का नेतृत्व कर रहे हैं। इस दवा के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं, ‘बीसीजी इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने का काम करती है। यही वजह है कि व्यक्ति कई तरह के संक्रमण से अपना बचाव कर पाने में सक्षम रहता है।’ नाइजेल की यह बात कई शोधों से भी साबित होती है, जो बताते हैं कि कैसे अफ्रीका में टीबी के इलाज के लिए छेड़ी गई मुहिम के दौरान बीसीजी ने लोगों की इम्युनिटी बढ़ाने का काम किया था।

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हेल्थकेयर स्टाफ पर किया जाएगा परीक्षण
मीडिया रिपोर्टों से मिली जानकारी के मुताबिक, टीबी की वैक्सीन पर यह ट्रायल ऑस्ट्रेलिया के एक अस्पताल में लगभग छह महीनों तक चलेगा। इस क्लीनिकल ट्रायल में अस्पताल के स्टाफ समेत 4,000 स्वास्थ्यकर्मियों ने बतौर वॉलंटियर भाग लेने की हिम्मत दिखाई है। सोमवार से शुरू हुए इस ट्रायल में कुछ वॉलंटियर्स को टीबी तो कुछ को इंफ्लुएंजा की वैक्सीन लगाई जाएंगी। यहां बताते चलें कि कुछ इसी तरह का प्रयोग नीदरलैंड में भी किए जाने की खबर है। नाइजेल कर्टिस ने एक इंटरव्यू में यह जानकारी दी।

कर्टिस को उम्मीद है कि यह वैक्सीन, जो कि सस्ती है और हर साल 13 करोड़ नवजात बच्चों की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए लगाई जाती है, अब कई और लोगों की सुरक्षा में काम आ सकेगी। फिलहाल इस वैक्सीन को प्राथमिकता के तौर पर स्वास्थ्यकर्मियों को लगाया जा रहा है, जिन्हें बीमार रोगियों की देखभाल करते समय सार्स-सीओवी-2 के संक्रमण से ज्यादा खतरा होता है। इस प्रयास को लेकर नाइजेल कहते हैं, 'हम यह नहीं करते अगर हमें इसकी उम्मीद नहीं होती कि यह काम कर सकता है। (हालांकि) हम इसकी गारंटी तो नहीं लेते, लेकिन यह भी ट्रायल से पता चलेगा।' 

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नोट
ऑस्ट्रेलिया में टीबी की इस दवा का इस्तेमाल एक प्रयोग के तहत किया जा रहा है। हमने केवल इस प्रयोग की जानकारी पाठकों तक पहुंचाई है। एक जिम्मेदार प्लेटफॉर्म होने के नाते हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम बीसीजी या कोरोना वायरस को रोकने में इस्तेमाल हो रही किसी भी अन्य दवा के सेवन की सलाह नहीं देते हैं। पाठकगण कृपया अपने विवेक का इस्तेमाल करें।


उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोरोना वायरस को रोकने के लिए अब टीबी की दवा का इस्तेमाल, जानें ऑस्ट्रेलिया में इसके परीक्षण की वजह है

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