अमेरिका में नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के सामान्य और कम जानलेवा होने की बात कही जा रही है। खबरों के मुताबिक, कोरोना वायरस के संक्रमण की पहचान के लिए किए जाने वाले एंटीबॉडी टेस्ट के अध्ययन से इस बात के सबूत मिले हैं। कहा जा रहा है कि अमेरिका में ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है, जो कोरोना वायरस से संक्रमित थे लेकिन कभी भी गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़े। जब इन मामूली संक्रमण वाले मरीजों को कोरोना वायरस से जुड़े आंकड़ों में शामिल किया जाता है, तो परिणाम में सार्स-सीओवी-2 कम जानलेवा मालूम होता है।

जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के तहत आने वाले गैर-सरकारी संगठन जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर फॉर हेल्थ सिक्यॉरिटी की महामारी विशेषज्ञ कैटलिन राइवर्स का कहना है कि इस समय कोरोना वायरस संक्रमण से मरने की संभावना 0.5 प्रतिशत से एक प्रतिशत के बीच है। कैटलिन जैसे विशेषज्ञों द्वारा लगाया गया यह अनुमान पांच प्रतिशत की मृत्यु दर से काफी कम है, जो उन्हीं लोगों पर आधारित है जिन्हें कोविड-19 के टेस्ट के बाद इतना बीमार पाया गया कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा।

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नया अनुमान अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फॉसी के उस बयान की याद दिलाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कोविड-19 की मृत्यु दर ज्यादा से ज्यादा एक प्रतिशत तक रह सकती है। हालांकि कैटलिन राइवर्स जैसे विशेषज्ञ कोरोना वायरस के एक प्रतिशत जानलेवा होने को भी खतरनाक मानते हैं। उनका कहना है, 'यह इन्फ्लूएंजा से कहीं ज्यादा जानलेवा है।'

कहां से आया नया तथ्य?
दरअसल, हाल ही में अमेरिका के इंडियाना राज्य में बड़े पैमाने पर कोविड-19 की टेस्टिंग की प्रक्रिया खत्म हुई थी। वहां कोरोना वायरस के मामले सामने आने के बाद प्रशासन ने जल्दी ही बड़ी संख्या में लोगों के टेस्ट करने संबंधी प्रोग्राम की शुरुआत कर दी थी। 

स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक, इंडियाना के गवर्नर कुछ बुनियादी जानकारी जानना चाहते थे। जैसे कितने लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और कितने मारे गए हैं। शुरू में वायरस से जुड़ी जानकारी लेना आसान नहीं था। क्योंकि अधिकारी केवल उन लोगों के बारे में जानते थे, जो वायरस के चलते इतने बीमार पड़े थे कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इंडियाना में स्वास्थ्य संबंधी मामलों के अधिकारी नीर मेनाकमी बताते हैं कि इतने लोगों से संक्रमितों की सही संख्या नहीं जानी जा सकती थी।

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लिहाजा, अप्रैल में इंडियाना के स्टेट हेल्थ डिपार्टमेंट के साथ मिल कर कोई 4,600 लोगों का अध्ययन किया गया। ज्यादातर प्रतिभागियों को रैंडमली (कहीं से भी) चुना गया था।
अध्ययन के दौरान प्रतिभागियों के दो टेस्ट किए गए। पहला सामान्य टेस्ट था, जिसमें वायरस का पता लगाया जाता है। इससे मालूम चलता है कि किसी व्यक्ति में संक्रमण सक्रिय है या नहीं। दूसरे टेस्ट के तहत यह देखा जाता है कि व्यक्ति के रक्त में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज हैं या नहीं। ये एंटीबॉडी उन्हीं लोगों में मिलेंगे, जो वायरस से संक्रमित होने के बाद उससे उबर चुके हैं।

शुरुआती परिणामों के आधार पर अनुमान लगाया कि कोरोना वायरस ने इंडियाना की तीन प्रतिशत आबादी यानी एक लाख 88 हजार लोगों को संक्रमित किया होगा। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि इनमें से 45 प्रतिशत लोगों में कोविड-19 के लक्षण नहीं थे। मेनाकमी और उनकी टीम ने इस आधार पर निष्कर्ष निकाला कि उन्हें वायरस के प्रभाव से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी मिल गई है।

अध्ययन से जुड़ी डेटा टीम ने संक्रमण से होने वाली मौतों (इन्फेक्शन फटैलिटी रेट) की दर का आंकलन किया। इससे पहले वैज्ञानिक मरीजों की संख्या के आधार पर निकाली मृत्यु दर पर विश्वास करते रहे हैं। आंकलन के बाद इंडियाना में कोरोना वायरस का इन्फेक्शन फटैलिटी रेट 0.58 प्रतिशत निकला। यह परिणाम एंटीबॉडीज को लेकर अमेरिका के अन्य इलाकों में किए गए पिछले अध्ययनों के परिणामों से मिलते हैं। मिसाल के लिए, न्यूयॉर्क में हुए एक एंटीबॉडी स्टडी में कोरोना वायरस का इन्फेक्शन फटैलिटी रेट 0.5 प्रतिशत के आसपास ही था। फ्लोरिडा और कैलिफोर्निया में तो यह दर और भी कम थी।

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हालांकि, कई मेडिकल विशेषज्ञ इन परिणामों पर सवाल भी उठाते हैं। उनका कहना है कि फ्लोरिडा और कैलिफोर्निया जैसे राज्यों की ज्यादातर आबादी युवा है, जिनके कोविड-19 से मरने की दर एक प्रतिशत से भी कम है। अमेरिका में 1,000 युवाओं में किसी एक के कोरोना वायरस से मरने की संभावना रहती है, जबकि बुजुर्गों में यह अनुपात 1:10 का हो जाता है। इसके अलावा यह फैक्टर भी महत्वपूर्ण है कि जिन इलाकों में इन्फेक्शन रेट पहले ही कम है, वहां एंटीबॉडी टेस्ट से जुड़े अध्ययनों के परिणामों के सटीक होने की संभावना कम रहती है। ऐसे में कुछ जानकार कहते हैं कि अलग-अलग राज्यों में इन्फेक्शन फटैलिटी रेट अलग-अलग हो सकता है।

बहरहाल, इस मामले में और ज्यादा सटीक परिणाम हासिल करने के लिए अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने राष्ट्रीय स्तर पर एक एंटीबॉडी स्टडी की शुरुआत की है, जिसके तहत दस हजार लोगों का अध्ययन किया जाएगा।


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