इस लेख को पढ़ने से पहले यह जानना बहुत ज़रूरी है कि समलैंगिकता या होमोसेक्सुअलिटी आखिर है क्या? शाब्दिक रूप से तो "होमो" (homo) का अर्थ समान और "सेक्सुअल" (sexual) का अर्थ सेक्स अर्थात लिंग होता है, इस प्रकार होमोसेक्सुअल या समलैंगिक वे लोग होते हैं जो समान सेक्स या लिंग के प्रति आकर्षित होते हैं। वास्तव में “सेक्सुअलिटी” या “लैंगिकता” शब्द हमारे यौन व्यवहार, नियम-कायदों और सामाजिक मान्यताओं जैसी कई चीजों का मिलाजुला रूप है।

इसका मतलब यह बिलकुल नहीं होता कि जो भी समलैंगिकता की बात करता है वह "होमोफोबिक" (Homophobic; समलैंगिकता से डर) है। पर आप माने या न माने लेकिन उस समय मन में अपने “स्ट्रेट” (straight) या विषमलैंगिक (Hetrosexual) होने का गर्व ज़रूर होता है। विषमलैंगिक लोगों को मिलने वाली सामाजिक मान्यता भी उन्हें समलैंगिक लोगों को समझने और उन पर विचार करने से रोकती है।

समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन रूप से आकर्षित होना है। वे पुरुष, जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें "पुरुष समलिंगी" या गे (Gay) और जो महिलाएं, अन्य महिलाओं के प्रति आकर्षित होती हैं उन्हें भी गे कहा जा सकता है लेकिन आमतौर पर उन्हें "महिला समलिंगी" या लैस्बियन (Lesbians) कहा जाता है। जो लोग महिलाओं और पुरुषों दोनों के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें उभयलिंगी (Bisexual) कहा जाता है।

कुल मिलाकर लैस्बियन, गे, उभयलैंगिक और ट्रांसजेंडर (Transgender- किन्नर) लोगों को मिलाकर एलजीबीटी (LGBT) समुदाय बनता है। असल में यह समुदाय 1990 से चला आ रहा है और इस समुदाय में वो लोग आते हैं जो विषमलैंगिक नहीं हैं।

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चाहे आप समलैंगिक हों या विषमलैंगिक, यह जानने का सिर्फ एक ही सौ फीसदी सही तरीका है कि कोई व्यक्ति समलैंगिक है या नहीं - अगर वह आपको खुद बता दे कि वो समलैंगिक है।

बेशक, समलैंगिक होने के कुछ संकेत हो सकते हैं, लेकिन कोई सर्वव्यापी लक्षण नहीं होते हैं जो हर किसी पर हर समय लागू होते हों।

जैसा कि ऊपर यह बताया जा चुका है कि समलैंगिकता के कोई बताये जाने योग्य लक्षण नहीं होते हैं लेकिन फिर भी कुछ रूढ़िवादी धारणाएं हैं जिनके आधार पर लोग समलैंगिकता पहचानने की कोशिश करते हैं, जैसे: छोटे लड़कों के चलने में असामान्य रूप से हल्का सा नाजुकपन, गुड़िया से खेलना, श्रृंगार करने में रूचि होना, लड़कियों के कपड़ों में रुचि होना। छोटी लड़कियों में, लड़कों जैसा दिखने की चाह, लड़कों के खेलों में अधिक रूचि, लड़कों के साथ हाथापाई के लिए तत्परता और स्त्रीत्व की सभी आदतों और सौंदर्य से घृणा होना समलैंगिक लक्षण माने जाते थे जो बिलकुल गलत हैं क्योंकि ये ज़रूरी नहीं कि ऐसी रुचियों वाले बच्चे समलैंगिक ही हों।

लेकिन अगर आपको ये पता करना है कि आप समलैंगिक हैं तो भी आपको सिर्फ खुद को कुछ ऐसे सवालों का ईमानदारी से जवाब देना होगा जो ये निर्धारित करते हैं की आप गे या लेस्बियन हैं या नहीं। इसके लिए किसी भी टेस्ट या थेरेपी की बिलकुल भी ज़रूरत नहीं है। आप खुद से ये पूछिए कि:

  1. क्या आपको कभी भी समान लिंग से यौन संबंध बनाने की इच्छा हुयी है या बनाये हैं?
  2. क्या आपका समान लिंग के प्रति भावनात्मक बंधन अधिक मज़बूत है?
  3. क्या आप शारीरिक रूप से भी समान लिंग की ही तरफ आकर्षित होते हैं?
  4. क्या मुझे अतीत में यौन एकजुट अनुभव है?

इन सवालों के आधार पर आप अपने समलैंगिक होने का आंकलन कर सकते/ सकती हैं।

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बहुत से लोग समलैंगिकता (Homosexuality) या बाईसेक्सुअलिटी (Bisexuality) को पाप मानते हैं तो कुछ इन दोनों को ही विकल्पों के रूप में देखते हैं जो किसी व्यक्ति की अपनी पसंद पर निर्भर करता है।

लेकिन बहुत से वैज्ञानिकों द्वारा यह प्रमाणित किया गया है कि समलैंगिकता कोई विकल्प नहीं है। समलैंगिकता के कारण अभी स्पष्ट नहीं हुए हैं, लेकिन आनुवंशिकी और माँ के गर्भ में हार्मोनों के प्रभाव और वातावरण इसके कारक माने जाते हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी साबित किया है कि समलैंगिकता केवल मनुष्यों में ही नहीं बल्कि बहुत से पशुओं जैसे पेंग्विन, चिंपाॅज़ी और डॉल्फिनों में भी पाई जाती है।

बहुत से वैज्ञानिक और डॉक्टर इस बात पर सहमत हैं कि समलैंगिक व्यवहार को बदला नहीं जा सकता है। लेकिन अभी भी कुछ समुदाय ज़रूर हैं, जो समलैंगिकता के उपचार के प्रयासों में लगे हुए हैं। इसे 'रूपांतरण थेरेपी' (Conversion therapy) कहा जाता है। इस प्रकार की चिकित्सा में बहुत से समलैंगिकों ने अपने आप को विषमलैंगिक बनाने का प्रयास किया है और वो ये दावा करते हैं कि उनमें बदलाव आया भी है, लेकिन इन बातों पर विश्वास नहीं किया जाता है।

मनोचिकित्सक समूहों द्वारा इन थेरेपी की निंदा की जाती है। वे इन उपचारों को मानव अधिकारों की निंदा के बराबर मानते हैं।

बहुत से लोगों का मानना है कि विषलैंगिकता के कारकों पर चर्चा किए बिना, केवल समलैंगिकता और उभयलैंगिकता के कारकों पर चर्चा करना भी गलत है अर्थात यदि किसी चीज़ की चर्चा अलग से की जा रही है तो उसे न चाहते हुए भी औरों से भिन्न बना दिया जाता है।

हालांकि विषमलैंगिकता, समलैंगिकता और उभयलैंगिकता सभी के कुछ कारण हैं और कुछ लोग यह मानते हैं कि केवल समलैंगिकता और उभयलैंगिकता पर चर्चा करना यह दर्शाता है कि इन प्रकार की लैंगिक प्रार्थमिकताओं वाले लोग आम लोगों से अलग हैं।

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समलैंगिक रूपांतरण थेरेपी के उत्तरजीवी, डेविड टर्नर के अनुसार "समलैंगिकों का इलाज करना उनका शारीरिक और भावनात्मक रूप से शोषण करना है। इसके अलावा इन समूहों को धार्मिकता से बिलकुल नहीं जोड़ना चाहिए क्योंकि इससे उनके प्रति और ज्यादा घृणा उत्पन्न हो जाती है।"

पहले के समय में डॉक्टरों द्वारा समलैंगिकों का उपचार यह मानकर किया जाता था कि यह कोई मानसिक रोग है। यद्यपि, अब बहुत से देशों में समलैंगिकता का इलाज नहीं किया जाता है क्योंकि वे मान चुके हैं कि यह कोई रोग नहीं है।

ज़्यादातर लोगों को लगता है कि समलैंगिक लोग किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं, जो उन्हें विपरीत सेक्स के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से रोकती है। उन्हें गलत नज़रिये से देखा जाता है और ऐसा केवल इसलिए क्यूंकि वो समाज में मान्यता प्राप्त विषमलैंगिक नीतियों में यकीन नहीं करते और ना ही उनको मानते हैं।

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समलैंगिक लोगों के बारे में यह आम धारणा है कि उनकी जीवनशैली अलग होती है, साथ ही उनके गुणसूत्रों (Chromosomes) की संरचना भी अलग होती है। कुछ चीज़ें इंसानों के नियंत्रण से बाहर की होती हैं जिन्हें प्राकृतिक कहते हैं, जैसे नस्ल, त्वचा का रंग आदि। ऐसे में उन चीज़ों को बदलने की मांग करना बेवकूफी या उस चीज़ के साथ नाइंसाफी होती है। ठीक इसी प्रकार समलैंगिकता भी प्राकृतिक है यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि इसे बदलने की सोच रखना बीमारी है।

समलैंगिकता का इलाज करने वालों को ज़रा ये पूछ कर देखिये कि विषमलैंगिकता का इलाज क्या है। तब शायद उनको समझ में आ जायेगा कि यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि जीवन की एक सच्चाई है। जिसका इलाज नहीं किया जा सकता, और इसके इलाज की जरूरत भी नहीं है, क्यूंकि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है।

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समलैंगिकता कुछ समय पहले भारत में प्रतिबंधित थी अर्थात समलिंगी होना भारत में अपराध के बराबर था। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समान लिंग के लोगों के साथ यौन संबंध बनाना असंवैधानिक था। 2 जुलाई 2009 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह सहमति जताई कि समलैंगिक वयस्कों के बीच सेक्स संबंध एक असंवैधानिक प्रावधान है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 11 दिसंबर 2013 को इस फैसले को खारिज कर दिया था। हालांकि, 6 सितम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर पुनर्विचार करते हुए उनकी यौन प्राथमिकताओं की सुरक्षा पर सहमति जताई है।

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