कोविड-19 महामारी के इस दौर में सतर्कता के साथ-साथ शारीरिक साफ-सफाई बहुत जरूरी है। सार्स-सीओवी-2 वायरस कितना घातक है उसकी गंभीरता को देखते हुए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को वक्त-वक्त पर साबुन से हाथ धोने (कम से कम 20 सेकंड तक) की सलाह दी है। लेकिन एक ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि करोड़ों लोगों के पास हाथ धोने के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इससे उनके वायरस से संक्रमित होने का खतरा बढ़ गया है। 

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मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक "ग्लोबल हैंडवॉशिंग डे" (15 अक्टूबर) के मौके पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ ने इससे जुड़े कुछ आंकड़े जारी किए हैं जो कि हैरान करने वाले हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 9 करोड़ से अधिक लोग हाथ धोने की मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। केवल भारत ही नहीं बल्कि एशिया के कई देशों में यही स्थिति है। यूनिसेफ ने बीते गुरुवार को यह जानकारी दी। साथ ही कहा कि कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में साबुन से हाथ धोना बेहद महत्वपूर्ण है।

हाथ नहीं धोने से संक्रमित होने का अधिक खतरा
ग्लोबल हैंडवॉशिंग डे के अवसर पर जारी एक बयान में यूनिसेफ ने कहा कि साबुन के साथ हाथ धोने (हैंडवॉशिंग) की कमी से कोविड-19 समेत अन्य संक्रामक रोगों के लिए खतरा बढ़ जाता है। यूनिसेफ के मुताबिक "मध्य और दक्षिण एशिया में (शहरी क्षेत्रों में) रहने वाले 22 प्रतिशत लोग यानी 15 करोड़ से अधिक लोगों के बीच हाथ धोने की बुनियादी सुविधाओं की खासी कमी है। अलग-अलग देशों से जुड़े आंकड़ों के आधार पर देखें तो बांग्लादेश की लगभग 50 प्रतिशत शहरी आबादी यानी करीब 3 करोड़ (29 मिलियन) लोगों के बीच इस कमी का पता चला है। इसके अलावा भारत में 20 प्रतिशत शहरी आबादी या 9 करोड़,10 लाख (91 मिलियन) लोग इस सुविधा से महरूम हैं।" 

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भारत में यूनिसेफ का प्रतिनिधित्व करने वाली डॉ. यास्मीन अली हक का कहना है "महामारी फैलती रहती है। लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि हाथ धोना (हैंडवॉशिंग) अब केवल एक व्यक्तिगत पसंद नहीं है, बल्कि सामाजिक तौर पर यह अनिवार्य है। साबुन से हाथ धोना सबसे सस्ता और अत्यधिक प्रभावी उपायों में से एक है जिसकी मदद से आप कोरोना वायरस और अन्य कई संक्रमणों के खिलाफ खुद का बचाव कर सकते हैं। साथ ही दूसरों को बचाने में भी मदद कर सकते हो।"

पांच में से केवल तीन लोगों के पास हाथ धोने की मूलभूत सुविधा
यास्मीन कहती हैं, "जैसा कि स्कूल नए मापदंडों के साथ फिर से खोलने पर विचार कर रहे हैं, हमें भी यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वो साबुन के साथ हाथ धोने और स्वच्छ पेयजल के साथ-साथ हर बच्चे के लिए सुरक्षित माहौल में स्वच्छता को प्राथमिकता दें।" वैश्विक बाल अधिकार संस्था द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में पांच में से केवल तीन लोगों के पास हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं हैं।

वैश्विक बाल अधिकार संस्था ने आगे कहा कि संयुक्त निगरानी कार्यक्रम 2019 के अनुसार, भारत में लगभग 60 प्रतिशत परिवारों में साबुन के साथ हैंडवॉशिंग की व्यवस्था है, जबकि ग्रामीण इलाकों में इसकी खासी कमी देखी गई है।

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भारत में स्थिति बेहद खराब 
वहीं, यूनिसेफ का कहना है कि दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी या तीन अरब लोगों के पास घर में पानी और साबुन के साथ हाथ धोने (हैंडवाशिंग) की सुविधा नहीं है। मौजूदा तस्वीर कुछ ऐसी है कि सबसे पिछड़े देशों में लगभग तीन-चौथाई लोगों के पास घर में हैंडवॉशिंग से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। इसके अलावा 43 प्रतिशत स्कूलों में साबुन और पानी से हाथ धोने की मूलभूत व्यवस्था नहीं है, जिससे करीब 82 करोड़ स्कूली बच्चे प्रभावित होते हैं। आंकड़े बताते हैं कि अल्प विकसित देशों में ही 10 में से सात स्कूलों में बच्चों को पानी व साबुन से हाथ धोने की सुविधा नहीं है।

दूसरी ओर नेशनल सैंपल सर्वे 2019 के मुताबिक भारत में केवल 36 प्रतिशत परिवार में खाना खाने से पहले हाथ धोते हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि सिर्फ 74 प्रतिशत लोगों ने ही शौच के बाद अपने हाथों को साबुन से धोते हैं, यानि 26 फीसद लोग शौच के बाद भी हाथ नहीं धोते।

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