एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया क्या है?

एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया (एआईपी) चयापचय से संबंधित एक दुर्लभ विकार है। एआईपी से ग्रस्त ज्यादातर व्यक्तियों में कोई भी लक्षण विकसित नहीं होते हैं, लेकिन आमतौर पर प्रभावित व्यक्ति में मतली के साथ पेट में दर्द जैसी परेशानी देखी जा सकती है और इन्हीं लक्षणों के आधार पर एआईपी का इलाज निर्भर करता है। एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया को एआईपी और स्वीडिश पोरफाइरिया के नाम से भी जाना जाता है।

एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया के संकेत और लक्षण क्या हैं?

एआईपी के लक्षण प्यूबर्टी यानी यौवन अवस्था में, खासकर महिलाओं में (हार्मोनल प्रभाव के कारण) सामने आते हैं। इसके लक्षणों में शामिल हैं :

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एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया का कारण क्या है?

एआईपी कई वजह से हो सकता है। इस विकार के लक्षण कई अलग-अलग कारणों (आनुवंशिक और पर्यावरणीय) के मिलने से विकसित हो सकते हैं। एआईपी डिआमिनेज (पीबीजीडी) नामक एक एंजाइम की कमी के कारण होता है, जिसे हाइड्रॉक्सीमेथिलबिलन सिंथेज (एचएमबीएस) के रूप में भी जाना जाता है। पीबीजीडी की कमी एचएमबीएस नामक जीन में गड़बड़ी के कारण होती है।

एचएमबीएस जीन एकमात्र ऐसा जीन है, जिसका संबंध एआईपी से है। हालांकि, अकेले पीबीजीडी की कमी एआईपी का कारण नहीं है, इसके कुछ अन्य कारक भी हैं जैसे हार्मोन, दवाएं, आहार में बदलाव इत्यादि।

एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया का निदान कैसे होता है?

एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया का निदान मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इस बीमारी के ज्यादातर लक्षणों की पहचान नहीं की जा सकी है और कुछ लक्षण केवल समय-समय पर ही प्रभावित करते हैं। आमतौर पर निदान के लिए मेडिकल हिस्ट्री (मरीज से उसकी पिछली बीमारियों व इलाज से संबंधित जानकारी हासिल करना), क्लिनिकल टेस्ट और कुछ विशेष परीक्षण की मदद ली जा सकती है।

एक्यूट इंटरमिटेंट पोरफाइरिया का इलाज कैसे होता है?

एआईपी के इलाज में इस स्थिति को ट्रिगर करने वाले कारकों के बारे में लोगों को जागरुक करना शामिल है। गंभीर स्थिति में व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ सकता है। इसके उपचार में ऐसी दवाओं के सेवन को बंद करना शामिल है, जो एआईपी को ट्रिगर कर सकते हैं या स्थिति को गंभीर बना सकती हैं।

एआईपी के ऐसे मामले जो गंभीर नहीं हैं, उनमें इलेक्ट्रोलाइट लिया जा सकता है, लेकिन जब यह बीमारी बार-बार गंभीर रूप से प्रभावित करती है, तो पोरफाइरिया विशेषज्ञ द्वारा इलाज करवाना  बेहतर रहता है। अक्सर इसके इलाज में अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ती है।

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