नए कोरोना वायरस के संक्रमण से फैली कोविड-19 महामारी का तेजी से बढ़ना जारी है। इस बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने इस वायरस के इन्फ्लुएंजा से कई गुना घातक होने की आशंका जताई है। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधानोम गेब्रेयेसुस की मानें तो कोरोना वायरस की मृत्यु दर फ्लू से 10 गुना अधिक हो सकती है। खबरों के मुताबिक, इसी हफ्ते जेनेवा में कोविड-19 पर बोलते हुए गेब्रेयेसुस ने कहा कि इस महामारी के चलते अब अफ्रीका (महाद्वीप) जैसे गरीब देशों के लोगों को बड़ी तबाही का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि फिलहाल यहां मरीजों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन इसमें तेजी आई है।

गेब्रेयेसुस ने कहा कि महामारी के चलते छोटे और बड़े सभी प्रकार के देशों में आवाजाही बिल्कुल बंद है, बावजूद इसके अफ्रीकी देशों में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि हमें मिलकर इस बीमारी को लेकर लोगों को ज्यादा-से-ज्यादा जागरूक करने की जरूरत है ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जाए। डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के मुताबिक, 'यह महामारी एक स्वास्थ्य संकट से कहीं ज्यादा है, जिससे निपटने के लिए सरकारों और समाजों को साथ आना होगा।'

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भारत ने बाकी देशों के मुकाबले संक्रमण पर किया नियंत्रण
एक ताजा रिसर्च में यह पता चला है कि कई बड़े देशों की तुलना में भारत अभी तक कोरोना वायरस के संक्रमण को कुछ हद तक नियंत्रण करने में कामयाब हो पाया है। 'ऑक्सफोर्ड कोविड-19 गवर्नमेंट रिस्पांस ट्रैकर' (ऑक्ससीजीआरटी) द्वारा किए गए शोध में यह बात सामने आई है। इसके मुताबिक, अमेरिका, जर्मनी, इटली, स्पेन, दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन जैसे अन्य देशों के मुकाबले भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण अभी भी कंट्रोल में है।

रिसर्च से जुड़े डेटा के तहत यह देखा गया कि कैसे भारत सरकार ने संक्रमण फैलने के खतरे को देखते हुए स्कूल, दफ्तर, सार्वजनिक परिवहन (जैसे बस-ट्रेन) और लोगों के निजी कार्यक्रमों को बंद कर दिया। इसके अलावा लोगों में जागरूकता फैलाते हुए अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर कंट्रोल किया गया। साथ ही स्वास्थ्य देखभाल को लेकर आपातकालीन विकल्प तलाशे गए। रिपोर्ट में बताया गया है कि 21 दिन के लॉकडाउन के अंदर भारत सरकार ने 13 महत्वपूर्ण बिंदुओं पर काम किया, जिसके चलते यहां वायरस उस स्तर पर नहीं फैला, जितना अमेरिका और यूरोप में देखने को मिला।

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न्यूयॉर्क में इतनी मौतों का क्या कारण?
अमेरिका में कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले न्यूयॉर्क में हैं। आंकड़े बताते हैं कि किसी देश में इतने मामले नहीं हैं, जितने अकेले इस शहर में हैं। शुक्रवार के आंकड़े बताते हैं कि न्यूयॉर्क ने लगभग 1,60,000 मामलों की पुष्टि की है, जो यूरोप के सबसे अधिक प्रभावित देशों (स्पेन और इटली) से भी अधिक है। सवाल उठता है कि क्यों न्यूयॉर्क कोरोना वायरस महामारी का एपिसेंटर बना।

इस बारे में न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू क्यूमो का कहना है कि न्यूयॉर्क शहर में बड़ी संख्या में विदेशों लोग आते हैं। उनके मुताबिक, शहर के लगभग 93,000 मामले दूसरे देशों के लोगों से जुड़ें हैं। लेकिन कुछ अन्य तथ्य अलग कारणों की ओर ध्यान दिलाते हैं। इनके मुताबिक, संक्रमण फैलने के बाद भी न्यूयॉर्क सिटी में सार्वजनिक सेवाओं को सुचारू रखा गया था। मीडिया रिपोर्टों की के हवाले से कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और आपदा विशेषज्ञ इरविन रेडलेनर ने बताया कि दो मार्च को न्यूयॉर्क शहर से थोड़ी दूरी पर स्थित उत्तर में न्यू रोशेल इलाके में दूसरे मामले की पुष्टि हुई थी। लेकिन न्यूयॉर्क सिटी के मेयर बिल डे ब्लासियो ने पब्लिक स्कूलों, बार और रेस्तरां को बंद करने की घोषणा करीब दो हफ्ते बाद यानी 16 मार्च को की। वहीं, गवर्नर ने भी सभी गैर-आवश्यक व्यवसायों को बंद करने और लोगों को घर में रहने की हिदायत इसके एक हफ्ते बाद 22 मार्च को दी।

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विशेषज्ञ बताते हैं कि शहर के प्रशासन ने फैसले लेने के लिए बहुत लंबा इंतजार किया। जॉनन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के एक विशेषज्ञ के मुताबिक, वास्तव में महामारी के नियंत्रण और प्रसार में अंतर नहीं किया गया। इसके चलते न्यूयॉर्क शहर के हित में फैसने लेने में देरी हुई, जो बाद में एक बड़े संकट का कारण बनी।


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