रेक्टोसील क्या है?

रेक्टोसील पेल्विस की मांसपेशियों से संबंधित रोग है, जिसमें पेल्विस का अंदरूनी हिस्सा योनि द्वार या मलाशय से बाहर की तरफ निकलने लग जाता है। यह रोग केवल महिलाओं को ही होता है। जब पेल्विस में मौजूद लिगामेंट्स और मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं, तो रेक्टोसील रोग के लक्षण विकसित होने लगते हैं। रेक्टोसील को वजाइनल वॉल प्रोलैप्स या प्रोक्टोसील के नाम से भी जाना जाता है।

यदि योनि से निकलने वाला हिस्सा बड़ा है, तो महिला को लक्षण महसूस हो सकते हैं। योनि से बाहर कुछ निकलता हुआ महसूस होना, इसका मुख्य लक्षण है। रेक्टोसील से महिला को कई प्रकार की तकलीफें हो सकती हैं। हालांकि, बहुत ही कम मामलों में इससे दर्द होता है।

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रेक्टोसील के लक्षण - Rectocele Symptoms in Hindi

रेक्टोसील से होने वाले लक्षण आमतौर पर स्थिति की गंभीरता के अनुसार होते हैं। यदि रेक्टोसील का आकार बड़ा नहीं है, तो हो सकता है कि मरीज को कोई लक्षण महसूस न हो। रेक्टोसील की गंभीरता को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है, जिन्हें माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर कहा जाता है -

  • रेक्टोसील के माइल्ड चरणों में महिला को उसकी योनि में हल्का सा दबाव महसूस होता है। इसके अलावा उन्हें ऐसा महसूस भी होता है कि वे मलत्याग करने के दौरान अपनी आंतों की ठीक से खाली नहीं कर पा रही हैं।
  • मॉडरेट मामलों में जब महिला मलत्याग करने के दौरान जोर लगाती है, तो मल, मलद्वार से निकलने की बजाय रेक्टोसील में जा सकता है। इस स्थिति में कब्ज की समस्याएं अधिक रहती हैं और यौन संबंध बनाने के दौरान दर्द भी हो सकता है।
  • सीवियर (गंभीर) मामलों में मरीज का स्वास्थ्य प्रभावित हो जाता है। ऐसे में महिलाएं मल को रोक नहीं पाती हैं। इतना ही नहीं सीवियर मामलों में रेक्टोसील महिला की योनिद्वार या मलद्वार से बाहर की तरफ निकल जाती है।

डॉक्टर को कब दिखाना चाहिए?

रेक्टोसील उन महिलाओं को भी हो सकता है, जिन्होंने अभी तक किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया है। जबकि कुछ महिलाओं को तो यह पता ही नहीं चल पाता है कि उन्हें रेक्टोसील की समस्या है। हालांकि, कभी-कभी मोडरेट व सीवियर मामलों में रेक्टोसील काफी परेशान कर देने वाली स्थिति हो जाती है, जिसका इलाज करवाना जरूरी हो जाता है। इसलिए निम्न स्थितियों में गाइनेकोलॉजिस्ट से बात करें -

  • योनि या पेल्विस हिस्से में दबाव महसूस होना
  • मल त्याग करते समय पेल्विस में कुछ असामान्य दबाव महसूस होना
  • डिलीवरी के बाद कब्ज होना
  • पेशाब रुक-रुक कर आना
  • बार-बार मल आना

रेक्टोसील के कारण - Rectocele Causes in Hindi

पोस्टीरियर वजानल प्रोलैप्स मुख्य रूप से पेल्विस फ्लोर में दबाव बनने और मांसपेशियां कमजोर होने के कारण होता है। पेल्विस में निम्न स्थितियों के कारण दबाव बढ़ता है -

इसके अलावा कुछ अन्य स्थितियां भी हैं, जो रेक्टोसील का कारण बन सकती हैं। इनमें मुख्यत: निम्न को शामिल किया जाता है -

  • गर्भावस्था व प्रसव- यदि पेट में शिशु का आकार बड़ा है या प्रसव करने में अधिक समय लग गया है, तो इन स्थितियों के कारण रेक्टोसील की समस्या हो सकती है। इसके अलावा यदि महिला जुड़वां बच्चों को जन्म देती है, तो भी रेक्टोसील की समस्या हो जाती है। महिला के जितने अधिक प्रसव होते हैं, उसके पेल्विस की मांसपेशियां उतनी ही कमजोर हो जाती हैं और रेक्टोसील होने का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, सिजेरियन डिलीवरी में रेक्टोसील होने का खतरा कम रहता है, लेकिन फिर भी यह स्थिति हो सकती है।
  • बढ़ती उम्र - 50 साल की उम्र होते-होते लगभग आधी महिलाओं को पेल्विक ऑर्गन प्रोलैप्स के लक्षण होने लगते हैं। क्योंकि उम्र बढ़ने के कारण महिलाओं के पेल्विस की मांसपेशियां व लिगामेंट कमजोर हो पड़ जाते हैं, जिसके कारण रेक्टोसील की समस्या होने लगती है।
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रेक्टोसील से बचाव - Prevention of Rectocele in Hindi

रेक्टोसील विकसित होने के बाद उसकी रोकथाम नहीं की जा सकती है। हालांकि, कुछ उपायों की मदद से कुछ हद तक रेक्टोसील होने से बचाव किया जा सकता है, जिनमें निम्न शामिल हैं -

  • कीगल एक्सरसाइज करें - पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए कीगल एक्सरसाइज आवश्यक होता है। खासतौर पर बच्चे को जन्म देने के बाद कीगल एक्सरसाइज काफी प्रभावी रूप से काम करता है।
  • कब्ज की रोकथाम करें - फाइबर से उच्च खाद्य पदार्थ खाएं जैसे फल, हरी सब्जियां, बीन्स और साबुत अनाज से बने भोजन जैसे दलिया व खिचड़ी आदि। रोजाना पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, जिससे शरीर में पानी की कमी न हो।
  • भारी वजन न उठाएं - भारी वस्तुएं उठाने की कोशिश न करें। यदि किसी कारण से आपको वजन उठाना पड़ गया है, तो सारा वजन कमर की बजाय टांगों पर उठाने की कोशिश करें। 
  • खांसी का इलाज करवाएं - यदि आपको ब्रोंकाइटिस या अन्य किसी कारण से लंबे समय से खांसी हो  रही है, तो जल्द से जल्द उसका इलाज करवाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि खांसते समय पेट व पेल्विक हिस्से में दबाव बढ़ता है, जिस कारण से एंटेरोसील की समस्या हो सकती है। धूम्रपान भी छोड़ दें, क्योंकि धूम्रपान खांसी का कारण बन सकता है।
  • रोजाना एक्सरसाइज करें - नियमित रूप एक्सरसाइज करें, जिससे शारीरिक वजन बढ़ नहीं पाता है और परिणामस्वरूप पेल्विक मांसपेशियों पर दबाव नहीं पड़ता है। 
  • अधिक जोर न लगाएं - मल त्यागते समय अधिक जोर न लगाएं, ऐसा करने से भी पेल्विक की मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है।

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रेक्टोसील का परीक्षण - Diagnosis of Rectocele in Hindi

रेक्टोसील का परीक्षण आमतौर पर स्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर (गाइनेकोलॉजिस्ट) द्वारा किया जाता है। डॉक्टर परीक्षण के दौरान महिला की योनि और मलाशय की जांच करते हैं। यदि डॉक्टर को परीक्षण के दौरान कुछ असाधारण लगता है, तो वे कुछ इमेजिंग टेस्ट कर सकते हैं जैसे एमआरआई या एक्स रे टेस्ट आदि।

डिफेकोग्राम एक विशेष प्रकार का एक्स रे टेस्ट होता है, जिसकी मदद से डॉक्टर पता लगाते हैं कि रेक्टोसील का आकार कितना बड़ा है और पीड़ित महिला कितनी कुशलतापूर्वक मल को त्याग कर पा रही है।

रेक्टोसील का इलाज - Rectocele Treatment in Hindi

पोस्टीरियल वजाइनल प्रोलैप्स का इलाज स्थिति की गंभीरता के अनुसार किया जाता है। रेक्टोसील का इलाज मुख्य रूप से दवाओं और गंभीर मामलों में सर्जरी की मदद से किया जाता है। दवाओं में निम्न शामिल हैं -

  • कब्ज को कम करने के लिए मल को साफ करने वाली दवाएं, जिन्हें स्टूल सॉफ्टनर कहा जाता है।
  • हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी मेनोपॉज के बाद इस्तेमाल करने के लिए
  • बाहर निकलने वाले ऊतकों को रोकने के लिए वजाइनल पेसरी

यदि रेक्टोसील का आकार बड़ा है और अधिक मात्रा में शरीर से बाहर निकल रहा है। इसके अलावा कुछ लोगों को रेक्टोसील से दर्द व अन्य तकलीफ होने लग जाती है और दवाओं से स्थिति ठीक नहीं हो पाती है तो ऐसे में सर्जरी की जा सकती है। सर्जिकल प्रक्रियाओं में निम्न को शामिल किया जाता है -

  • सैक्रल कोल्पोपेक्सी
  • सैक्रोसपिनॉस कोल्पोपेक्सी
  • यूटेरोसैक्रल कोल्पोपेक्सी
  • ट्रांसवेजाइनल मेश

सर्जरी के दौरान मरीज के क्षतिग्रस्त हुए ऊतकों को हटा दिया जाता है। कभी-कभी डॉक्टर एक विशेष प्रकार की मेश (जाली) का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें बाहर निकलने वाले ऊतकों को योनि व मलद्वार के बीच स्थिर रखा जाता है।

रेक्टोसील के लिए की जाने वाली सर्जरी मुख्य रूप से दो प्रकार से की जाती है, जिन्हें मिनीमली इनवेसिव सर्जरी और ओपन सर्जरी के नाम से जाना जाता है। कुछ मामलों में क्षतिग्रस्त हुए ऊतकों को आमतौर पर टांकों की मदद से ठीक किया जाता है।

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