आपने भी कभी सुना होगा कि तंबाकू स्‍मोकिंग करने से होंठ काले हो जाते हैं, दांतों पर दाग पड़ जाते हैं मसूड़े अपनी जगह से खिसकने लगते हैं। सिगरेट पीने का असर दांतों, मसूड़ों और मुंह पर कई तरह से पड़ता है।

रोज सिगरेट पीने से दांतों पर दाग पड़ जाते हैं, मुंह से बदबू आती है और मसूड़ों से जुड़ी बीमारियां होने लगती हैं। इन छोटी-मोटी समस्‍याओं के अलावा ओरल कैंसर जैसी जानलेवा स्थितियां भी पैदा हो सकती हैं। रोज सिगरेट पीने से मुंह में घाव, मुंह में सूखापन, कैविटी, मसूड़ों से खून आना और कुछ दुर्लभ मामलों में मसूड़ों में पस भी बन सकती है।

भारत में सिगरेट के पैकेटों पर लिखा होता है कि स्‍मोकिंग जानलेवा है। इसके बावजूद साल 2018 में विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के 'ग्‍लोबल एडल्‍ट टोबैकाे सर्वे के अनुसार 9 करोड़ 95 लाख भारतीय सिगरेट पीते हैं। भारत में 19 फीसदी पुरुष और 2 फीसदी महिलाएं सिगरेट पीती हैं।

स्‍मोकिंग यानि सिगरेट पीने का असर सेहत के हर पहलू पर पड़ता है। यूके की ब्रिस्‍टोल में यूनिवर्सिटी में की गई स्‍टडी में पाया गया कि रोज एक सिगरेट पीने से ही जिंदगी के 11 मिनट कम हो सकते हैं। वहीं जिन लोगों को सिगरेट पीने की लत होती है, वो रोज पूरा पैकेट खत्‍म कर जाते हैं, जरा सोचिए कि उनकी सेहत कितनी खराब होती होगी।

चेन स्‍मोकर्स (रोज कई सिगरेट पीने वालों) अपनी आधी कमाई बीड़ी और सिगरेट पर ही खर्च कर देते हैं जिसका असर उनके जीवन की गुणवत्ता और सेहत पर पड़ता है।

टोबैको स्‍मोकिंग कई रूपों में आती है जैसे कि बीड़ी, सिगरेट, सिगार, पाइप, चिलम, हुक्‍का, ई-सिगरेट और वेप्‍स।

  1. दांतों पर धूम्रपान का असर - Effects of smoking on teeth in hindi
  2. मसूड़ों और मुंह की ऊपरी सतह पर धूम्रपान का असर - Smoking effects on gums and roof of the mouth in hindi
  3. जीभ पर धूम्रपान के दुष्‍प्रभाव - Side-effects of smoking on the tongue
  4. गालों पर सिगरेट पीने के प्रभाव - Smoking effects on cheeks in hindi
  5. सांसों पर स्‍मोकिंग का असर - How does smoking affect breath in hindi
  6. ओरल कैंसर - Oral cancer in hindi
  7. मुंह पर धूम्रपान के दुष्‍प्रभाव को लेकर क्‍या करें - Takeaway for side-effects of smoking for the mouth in hindi
धूम्रपान के नुकसान दांतों, मसूड़ों और मुंह के स्वास्थ्य के लिए के डॉक्टर

स्‍मोकिंग का दांतों पर कई तरह से असर पड़ता है, जैसे कि :

  • दांतों पर दाग : जो लोग रोज सिगरेट पीते हैं, उनके दांतों पर दाग लगना आम बात है। सिगरेट का तार दांतों की ऊपरी परत पर पीले-भूरे रंग की परत बना देती है। चेन स्‍मोकर्स में ज्‍यादा स्‍मोकिंग की वजह से सिगरेट का तार दांतों के एनेमल के माइक्रोपोर्स में घुस जाता है। ऐसा हाने पर दांतों का रंग हमेशा के लिए बेरंग हो जाता है।
  • कैविटी : मुंह में सलाईवा दांतों की ऊपरी सतह पर नमी को बनाए रखने का काम करता है। यह दांतों में फंसे खाने को भी निकालने का काम करता है। इसलिए बैक्‍टीरिया, स्‍ट्रेप्‍टोकोकस म्‍यूटंस से होने वाली कैंविटी से सलाईवा बचाने में मदद करता है।
  • ढीले दांत : सिगरेट पीने से दांतों के ऊपर कैलकुलस बनने लग जाता है जिससे मसूड़े कमजोर होते हैं और उनसे जुड़ी हड्डियां खराब होने लगती हैं। कैलकुलस एक मोटी परत होती है जो उन लोगों के दांतों पर बनती है जो सिगरेट पीते हैं और ठीक तरह से दांतों को ब्रश नहीं करते हैं। निकोटीन फाइब्रोब्‍लास्‍ट की कोशिका की संरचना को भी बदल देता है जिससे उनसे जुड़े मसूड़े कमजोर होले लगते हैं। इस तरह दांत ढीले पड़ जाते हैं और आसानी से गिरने लगते हैं।
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मसूड़ों और मुंह के पैलेट पर स्‍मोकिंग का निम्‍न प्रभाव पड़ता है :

  • पेरियोडोंटाइटिस : स्‍मोकिंग से दांतों पर प्‍लाक और कैलकुलस जमने लगता है। ज्‍यादा प्‍लाक और टार्टर बनने से यह मसूड़ों की लाइन के अंदर इकट्ठा हो जाता है जिससे जिंजिवाइटिस पैदा होता है। दांतों की साफ-सफाई से जिंजिवाइटिस को ठीक किया जा सकता है।
    अगर इसे कंट्रोल न किया जाए तो मसूड़ों में सूजन बढ़ सकती है और कोई ऐसा नुकसान हो सकता है जिसे ठीक न किया जा सके जैसे कि हड्डी को नुकसान और पेरिओडोंटल लिगामेंट। इस स्‍टेज को पेरियोडोंटाइटिस कहते हैं जिसमें मसूड़ों से खून आना, मुंह से बदबू और दांत ढीले होना शामिल है।
  • नेक्रोटाइजिंग अल्‍सरेटिव जिंजिवाइटिस : सिगरेट पीने से मुंह में पोरफिरोमोनस जिंजिवालिस, प्रीवोटेला इंटीमीडिया जैसे माइक्रोब बनने लगते हैं। इससमें नेक्रोटाइजिंग अल्‍सरेटिव जिंजिवाइटिस, एग्रेसिव पेरियोडोंटाइटिस जैसी मुंह से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। यह एक विशेष तरह की पेरिडोंटल बीमारी है जिसमें लक्षण तेजी से दिखाई देते हैं जैसे कि दो दांतों के बीच के मसूड़े में कीड़ा सड़ना, दांत में दर्द और मसूड़ों में खून आना और मुंह से बदबू आना।
  • स्‍मोकर्स मेलानोसिस : लंबे समय से सिगरेट पीने वाले लोगों में यह प्रॉब्‍लम देखी जाती है। इसमें होंठों पर, मुंह के पैलेट पर और मसूड़ों पर काले और भूरे रंग की पिगमेंटेशन हो जाती है। सिगरेट का निकोटीन और तार मसूड़ों, होंठों और पैलेट पर मेलानिन पिगमेंटेशन को बढ़ा देता है जिससे वो डार्क पड़ने लगते हैं।
  • मुंह में सूखापन : लंबे समय तक सिगरेट वीने से मुंह में सलाईवा कम होने लगता है और मुंह में सूखापन आ जाता है। स्‍मोकिंग से सलाईवा मोटा भी हो जाता है जिससे यह दांतों की सतह के ऊपर स्रावित नहीं हो पाता है। इससे सिगरेट पीने वाले में कैविटी का खतरा बढ़ जाता है।

स्‍मोकिंग के बुरे प्रभावों को जीभ के अलग-अलग हिस्‍सों में देखा जा सकता है, जैसे कि :

  • स्‍वाद कम आना : जीभ पर टेस्‍ट बड्स होते हैं जो अलग-अलग फ्लेवर को पहचानने में हमारी मदद करते हैं। लंबे समय तक सिगरेट पीने से फंगीफॉर्म पैपिलई की संरचना में बदलाव आने लगता है जिससे टेस्‍ट बड्स पर असर पड़ता है। कभी-कभी इन लोगों को स्‍वाद आना भी बंद हो जाता है।
  • मीडियन रोमबोइड ग्‍लॉसिटिस : इसमें जीभ की ऊपरी सतह के पीछे लाल रंग के सूजन भरे घाव होने लगते हैं। जीभ की ऊपरी सतह पर मौजूद होने वाली लिंगुअल पैपिलई के खराब होने के पीछे की बड़ी वजह सिगरेट पीना ही है। इससे मीडियन रोमबोइड ग्‍लॉसिटिस होता है।
  • ओरल कैंडिडासिस : सिगरेट पीने से सलाईवा मोटा हो जाता है जिससे बैक्‍टीरिया और फंगस बनने की संभावना बनती है। ओरल कैंडिडासिस एक तरह का फंगल इंफेक्‍शन है जो कैंडिडा एल्बिकन की वजह से होता है। यह जीभ के दोनों किनारों पर पर सफेद पैचेज के रूप में होते हैं।
    सिगरेट पीने से कैंडिडा एल्बिकन की ग्रोथ को बढ़ावा मिलता है। इससे सांस से दुर्गंध आ सकती है।
  • हेयरी टंग : इसमें जीभ के ऊपर काले रंग के बालों की तरह कुछ बनने लगता है। आमतौर पर जीभ का पैपिलई खत्‍म होकर कुछ समय में दोबारा आने लगता है। हेयरी टंग के मामले में या तो जीभ पर पैपिलई बनने लगती है या इसके हटने की दम कम हो जाती है।
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सिगरेट पीने की वजह से गालों की स्किन पर सफेद रंग के पैचेज बनने लगते हैं। कभी-कभी ये पैचेज कैंसर से पहले होने वाले घावों का संकेत हो सकते हैं। गालों पर सिगरेट के अन्‍य प्रभाव हैं :

  • ल्‍यूकोप्‍लेकिया : इसमें गालों की म्‍यूकोसल परत पर सफेद रंग के पैचेज दिखने लगते हैं। चेन स्‍मोकर्स में यह दूसरी मुंह में घाव पड़ने वाली आम समस्‍या है। कभी-कभी इन पैचेज पर लाल रंग के धब्‍बे भी पड़ने लगते हैं।
    इस प्रकार के ल्‍यूकोप्‍लेकिया को एरिथ्रोप्लेकिया कहते हैं। यह ओरल कैंडिडासिस के सफेद पैचेज से अलग है क्‍योंकि यह कैंसर में बदल सकता है। अगर समय पर पता चल जाए तो कैंसर से पहले के इस स्‍टेज को ठीक किया जा सकता है।
  • ल्‍यूकोएडिमा : यह कैंसर से पहले होने वाले घावों की तरह दिख सकता है लेकिन इसमें चेन स्‍मोकर्स में स्किन के अंदर अलग-अलग प्रभाव दिख सकता है।
    गालों के म्‍यूकोसा यानि अंदरूनी स्किन पर नरम ग्रे रंग की फिल्‍म दिखती है जो कि गालों को अंदर से खींचने पर गायब हो जाती ह और रिलैक्‍स होने पर दोबारा दिख जाती है। यह कैंसर में नहीं बदलता है।

जो लोग रोज सिगरेट पीते हैं, उनके मुंह से बदबू आती है जिसे मेडिकल भाषा में हैलिटोसिस कहते हैं। तंबाकू वाली चीजें न‍ सिर्फं मुंह से बदबू पैदा करती हैं बल्कि मुंह में सूखापन और मसूड़ों से जुड़ी बीमारियां जैसे कि नेक्रोटाइजिंग अल्‍सरेटिव जिंजिवाइटिस भी पैदा करती है। इससे सिगरेट पीने वालों की सांस से बदबू आती है।

भारत में 2018 में हुए ग्‍लोबल एडल्‍ट टोबैको सर्वे के अनुसार लगभग 20 लाख लोग भारत में हर साल ओरल कैंसर से मर जाते हैं। भारत में होने वाले कैंसरों में ओरल कैंसर तीसरे स्‍थान पर आता है। यह भारतीय पुरुषों में ज्‍यादा होता है।

जब ओरल कैविटी में कहीं भी कैंसर होता है, होंठों से शुरू होकर टॉसिलों और ओरोफैरिंक्‍स तक फैलता है तो इसे ओरल कैंसर के रूप में जाना जाता है।
स्‍कैमस सेल कार्सिनोमा भारत में होने वाला सबसे आम कैंसर है। यह मोटे, खुरदुरे, परतदार या गुलाबी और छिलकेदार गांठ की तरह दिखता है जिसे खुरचने पर ब्‍लीडिंग होगी।

बीड़ी, सिगरेट, सिगार या पाइप से तंबाकू लेने से मुंह या गले में कहीं भी कैंसर हो सकता है। तंबाकू सिगरेट लैरिंक्‍स, भोजन नली, फेफड़ों में कैंसर और कई अन्‍य अंगों में कैंसर के लिए भी जिम्‍मेदार होता है। पाइप स्‍मोकर में होंठ के उस हिस्‍से पर कैंसर होने का खतरा ज्‍यादा रहता है जिसे पाइप छूती है।

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हो सकता है कि सिगरेट पीकर आपको कुछ समय के लिए राहत महसूस हो लेकिन आगे चलकर आपको इससे बड़ा नुकसान हो सकता है। इनमें से कई घावों का जल्‍दी पता लगने से ओरल कैंसर से जान बचाई जा सकती है। सिगरेट छोड़ने और नियमित दांतों के चेकअप की मदद से स्‍मोकिंग से होने वाले नुकसान को कंट्रोल किया जा सकता है।

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