लंग कैंसर क्या होता है?
फेफड़ों की कोशिकाओं का अनियंत्रित प्रकार से बढ़ना फेफड़ों के कैंसर का कारण होता है। जैसे-जैसे कोशिकाओं की संख्या बढ़ती है, वे एक ट्यूमर बना देती हैं।
फेफड़ों का कैंसर (लंग कैंसर) सामान्य रूप से होने वाले कैंसर और दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण है। कैंसर के सभी नए मामलों में से 13 प्रतिशत और दुनिया भर में कैंसर से संबंधित 19 प्रतिशत मृत्यु के लिए फेफड़े का कैंसर ज़िम्मेदार है। अधिकतर मामलों में फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण सिगरेट पीना पाया गया है। कार्सिनोजेन्स (carcinogens) सिगरेट के धुएं में पाए जाने वाले रसायन होते हैं, जो लंग कैंसर के लिए उत्तरदायी होते हैं। हालांकि, आजकल लंग कैंसर ज़्यादातर उन लोगों में भी देखा जा रहा है, जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है।
लंग कैंसर को मुख्य रूप से दो भागो में बाँटा गया है – स्मॉल सेल लंग कैंसर (एससीएलसी; SCLC) और नॉन-स्माल सेल लंग कैंसर (एनएससीएलसी; NSCLC)। एससीएलसी, नॉन-स्माल सेल लंग कैंसर की तुलना में ज़्यादा आक्रामक होता है। एनएससीएलसी फेफड़ों के कैंसर का अधिक सामान्य रूप है - 80-85% लंग कैंसर के मामलों एनएससीएलसी के होते हैं।
लंग कैंसर का सबसे सामान्य लक्षण खाँसी है, जो धीरे धीरे गंभीर हो जाती है और ठीक नहीं होती है। इसके अन्य लक्षणों में निमोनिया या ब्रांगकाइटिस (bronchitis) जो बार-बार होता रहता है, वज़न कम होना, भूख में कमी होना, थकान, सांस लेने में तकलीफ, आवाज़ का बदलना शामिल हैं। (और पढ़ें – थकान दूर करने के लिए क्या खाएं?)
भारत में लंग कैंसर
ग्लोबोकान (GLOBOCAN) 2012 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सभी आयु और दोनों लिंगों में फेफड़ों के कैंसर की अनुमानित घटनायें 70,275 थीं। घटना दर के संदर्भ में ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और मुंह के कैंसर के बाद फेफड़ों का कैंसर, विभिन्न प्रकार के कैंसर (नॉन-मोलेनोमा स्किन कैंसर को छोड़कर) के बीच चौथे स्थान पर था। कैंसर की घटना के मामले में पुरुषों में लंग कैंसर दूसरे स्थान पर था, जबकि महिलाओं में छठे स्थान पर था।
एक दशक पहले तक, सभी फेफड़ों के कैंसर के रोगियों में से 10% से कम धूम्रपान नहीं करते थे। यह प्रतिशत अब बढ़कर लगभग 20% तक चला गया है, जो काफी अधिक है। प्रदूषण का बढ़ता हुआ स्तर इसका एक कारण हो सकता है।
भारत में फेफड़े के कैंसर होने पर जीवित रहने का दर (survival rate) क्या है?
यह कैंसर धीरे धीरे व्यक्ति की जान ले लेता है, इसलिए इसे 'साइलेंट किलर' कहा जाता है। इसका मुख्य कारण धूम्रपान है। प्रारंभिक स्तर पर ही इस रोग का निदान करने से व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना बढ़ सकती है। केवल 15% फेफड़े के कैंसर का शुरुआती स्तर पर निदान किया जाता है, जहां 5 साल की जीवित रहने की दर लगभग 54% है। फेफड़े के कैंसर के लगभग 70% रोगी शुरुआती चरण में किये गए निदान के बाद कम से कम एक वर्ष तक जीवित रह सकते हैं। ट्यूमर के अन्य अंगों में फैल जाने पर अर्थात उच्च चरण / चरण 4 में पाँच साल जीवित रहने का दर घटकर केवल 4 प्रतिशत रह जाता है। (और पढ़ें – धूम्रपान छोड़ने के सरल तरीके)