कार्योटाइपिंग टेस्ट क्या है?

कार्योटाइपिंग टेस्ट क्रोमोजोम (गुणसूत्र) के आकार और संरचना का पता लगाने में मदद करता है। एक स्टैंडर्ड कार्योटाइपिंग टेस्ट जेनेटिक काउन्सलिंग में मदद करता है। जेनेटिक काउन्सलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति को जेनेटिक विकारों की जानकारी दी जाती है। क्रोमोजोम शरीर की कोशिकाओं में मौजूद होते हैं और इनमें डीएनए होता है। ये डीएनए माता-पिता से बच्चे में कुछ विशेष गुण या लक्षण लेकर जाता है, जैसे बालों का रंग, आंखों का रंग और लंबाई।

क्रोमोजोम की संख्या 46 होती है, जो हर कोशिका में 23 जोड़े बनकर बंटे होते हैं। एक जोड़े में महिला और एक में पुरुष के गुण शामिल होते हैं। यदि इन जोड़ों की संख्या कम या ज्यादा है तो ये किसी आनुवंशिक विकार होने का संकेत देता है। कार्योटाइपिंग टेस्ट गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में आनुवंशिक विकारों का पता लगाने में मदद करता है। कार्योटाइपिंग टेस्ट को जेनेटिक टेस्टिंग, क्रोमोसोमल एनालिसिस या साइटोजेनेटिक एनालिसिस भी कहते हैं।

  1. कार्योटाइपिंग टेस्ट क्यों किया जाता है - Karyotyping Test Kyu Kiya Jata Hai
  2. कार्योटाइपिंग टेस्ट से पहले - Karyotyping Test Se Pahle
  3. कार्योटाइपिंग टेस्ट के दौरान - Karyotyping Test Ke Dauran
  4. कार्योटाइपिंग टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है - Karyotyping Test Ke Parinam Ka Kya Matlab Hai

कार्योटाइपिंग टेस्ट किसलिए किया जाता है?

यह टेस्ट निम्न मेडिकल स्थितियों का पता लगाने में सहायक है :

  • कुछ विशेष क्रोमोसोमल विकार, जैसे डाउन सिंड्रोम, विशेषकर उन महिलाओं में जो 35 की उम्र के बाद मां बन रही हैं (प्रसव से पूर्व)
  • मृत बच्चा पैदा होना या मिसकैरेज होना
  • बांझपन
  • हाइपोगोनाडिज्म या असामान्य जननांग
  • मानसिक मंदता
  • ठीक से शरीर विकसित न हो पाना
  • प्यूबर्टी में देरी या पीरियड्स न होना
  • कई सारी संरचनात्मक और क्रियात्मक असामान्यताएं
  • ऐसे माता-पिता जिनमें क्रोमोसोनल असामान्यताएं होती हैं और जो खराब जीन संचारित कर सकते हैं
  • कुछ विशेष प्रकार के कैंसर और ल्यूकेमिया की स्थिति में कैंसर के चरण का पता लगाने के लिए और उसके निदान का पता लगाने के लिए
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कार्योटाइपिंग टेस्ट की तैयारी कैसे करें?

टेस्ट करने से पहले मरीज को इसके बारे में सारी जानकारी दे दी जाती है, जैसे कि यह टेस्ट क्यों किया जा रहा है, इससे मरीज को क्या परेशानी या तकलीफ हो सकती है आदि। इस टेस्ट से पहले कोई विशेष तैयारी नहीं करनी पड़ती और न ही मरीज को भूखा रहना पड़ता है।

आमतौर पर कार्योटाइपिंग के लिए सफेद रक्त कोशिकाओं की जांच की जाती हैं, क्योंकि उनके सैंपल लेना आसान होता है। हालांकि, कार्योटाइप टेस्ट ट्यूमर सेल और टिशू पर भी किया जा सकता है, जैसे एमनियोटिक द्रव, कोरियोनिक विल्ली, प्लेसेंटा टिशू और त्वचा। मरीज से एक सहमति फॉर्म भरवाया जाता है, क्योंकि ये अधिकतर जेनेटिक टेस्ट के लिए जरूरी होता है।

कार्योटाइपिंग टेस्ट कैसे किया जाता है?

  • ब्लड टेस्टिंग :
    सही सावधानियों के साथ ट्यूब में ब्लड सैंपल लिए जाते हैं। कोशिकाओं को आगे के टेस्ट के लिए तैयार होने में तीन दिन का समय लगता है।
     
  • बोन मेरो :
    बोन मेरो तक पहुंचने के लिए हड्डी में सुई लगाई जाती है। पांच मिलीलीटर (mL) बोन मेरो एक सिरिंज में लिया जाता है और इसकी जांच की जाती है।
     
  • कोरियोनिक विल्ली सैंपल :
    कोरियोनिक सैंपलिंग गर्भावस्था के नवें हफ्ते में की जाती है। कुछ जांच गर्भ धारण करने के बाद भी की जा सकती हैं। कोरियोनिक विल्ली प्लेसेंटा में एक लंबी उंगली के आकार की आकृतियां होती हैं। सैंपल लेने के लिए योनि और गर्भाशय ग्रीवा के अंदर से कैथीटर को प्लेसेंटा में डाला जाता है या पेट के अंदर से प्लेसेंटा में सुई लगाई जाती है।
     
  • एमनियोटिक द्रव :
    यह एक द्रव है जो कि गर्भाशय में बच्चे के चारों तरफ होता है और उसे गर्भ में सुरक्षित रखता है। एमनियोटिक द्रव टैपिंग या एमनियोसेंटेसिस गर्भावस्था के पंद्रह हफ़्तों के बाद किया जाता है। एक सुई को पेट से होते हुऐ गर्भावश्य में डाला जाता है और लगभग 30 मिली तक द्रव ले लिया जाता है।

नवजात शिशुओं में सैंपल एड़ी से लिया जाता है।

सेक्स क्रोमोजोम की जांच के लिए स्वैब नामक उपकरण की मदद से गाल से कुछ कोशिकाओं का सैंपल ले लिया जाता है।

लिम्फ नोड्स या ट्यूमर से लिए गए सैंपल को एक कीटाणुरहित कंटेनर में रखा जाता है।

अधिकतर लैबों में टेस्ट के परिणाम को समझा दिया जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में ये जरूरी होता है कि आप टेस्ट के परिणामों को समझने के लिए डॉक्टर से मिलें।

टेस्ट के दौरान और परिणाम का इंतजार करते समय मरीज को भावनात्मक रूप से सहारा देना जरूरी हो सकता है। कुछ टेस्टों में अधिक समय भी लग सकता है, जो विशेष रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि किस ऊतक का परीक्षण किया जा रहा है।

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कार्योटाइपिंग  टेस्ट के परिणाम क्या बताते हैं?

सामान्य परिणाम :

महिला - 44 ऑटोसोम्स प्लस  2 XX क्रोमोजोम (कार्पोटाइप : 46 XX)

पुरुष - 44 ऑटोसोम्स प्लस 1X और 1Y क्रोमोजोम (कार्पोटाइप : 46 XY)

कार्योटाइप के परिणामों को दो भागों में बांटा जा सकता है :

  • संख्या का असमान होना 

    • ट्राईसोमी 21 (डाउन सिंड्रोम)
    • ट्राईसोमी 18 (एडवर्ड सिंड्रोम)
    • ट्राईसोमी 13 (पटाऊ सिंड्रोम)
    • टर्नर सिंड्रोम 45, सिंगल X: इसमें धड़ में धंसी हुई गर्दन (webbed neck), छोटी लम्बाई और इसके साथ गुर्दों संबंधी असामान्यताएं होती हैं।
    • क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम (47 XXXY) : कम विकसित जननांग और अन्य यौन लक्षण, बांझपन और नई चीजें न सीख पाना।
    • ट्रिपल XXX सिंड्रोम : इसमें व्यवहार से संबंधित समस्याएं होती है और इसके साथ बांझपन का अधिक खतरा होता है।
  • संरचनात्मक असामान्यता

    • कैट्स क्राई सिंड्रोम
    • प्रेडर विल्ली सिंड्रोम
    • क्रोमोसोनल सामग्री का डुप्लीकेट या एक और बन जाना
    • क्रोमोजोम का टूट जाना और किसी अन्य क्रोमोजोम से जुड़ जाना
    • रिंग क्रोमोजोम जिसमें क्रोमोजोम 13 की दोनों छोटी और लंबी बांह एक साथ अंगूठी की तरह जुड़ जाती हैं

संदर्भ

  1. Lippincott Williams & Wilkins. Manual Of Laboratory And Diagnostic Tests. 9th Edition; ISBN: 978-1-4511-9089-2.
  2. Denise. D. Wilson. McGraw-Hill Manual of Laboratory and Diagnostic Tests. 1st Edition; ISBN10: 0071481524
  3. Michigan Medicine [internet]. University of Michigan. Karyotype Test.
  4. American College of Obstetricians and Gynecologists. Having a Baby After Age 35. Washington, DC; USA
  5. American Cancer Society [internet]. Atlanta (GA), USA; Tests for Chronic Myeloid Leukemia
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