संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने कहा है कि 1990 से 2019 के बीच भारत और दुनिया के अन्य देशों ल मृत्यु दर में काफी कमी आई है। उसने इस विषय पर आई अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही है। साथ ही इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि कोविड-19 महामारी दशकों में हुई उस प्रगति के लिए खतरा हो सकती है, जिसके चलते वैश्विक रूप से बाल मृत्यु दर में कमी आई है। 'लेवल्स एं ट्रेंड्स इन चाइल्ड मॉर्टेलिटी' नामक इस रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने बताया है कि 2019 में पूरे विश्व में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की सबसे कम मौतें दर्ज की गईं। रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 में यह आंकड़ा एक करोड़ 25 लाख था, जो 2019 में 52 लाख रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें बीते 30 सालों में बाल मृत्यु के कारणों (जैसे जन्म से पहले मृत्यु, कम वजन, जन्म के समय होने वाली जटिलताएं, नियोनेटल सेप्सिस, निमोनिया, डायरिया, मलेरिया आदि) को रोकने के लिए शुरू की गई स्वास्थ्य सेवाएं और टीकाकरण अभियानों की विशेष भूमिका रही है।

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लेकिन कोरोना वायरस से फैली महामारी की वजह से इन स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी बाधा पैदा हुई है, जिससे दशकों में बाल मृत्यु दर के खिलाफ प्राप्त हुए सकारात्मक परिणामों और प्रगति के खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। रिपोर्ट में यूएन से जुड़ी संस्थाओं (यूनिसेफ, डब्ल्यूएचओ आदि) और वर्ल्ड बैंक ग्रुप ने बाल मृत्यु दर को लेकर जो नए आंकलन लगाए हैं, उनके मुताबिक 1990 में भारत में प्रति 1,000 नवजात बच्चों में से 126 की मौत हो जाती थी। साल 2019 आते-आते यह संख्या 34 हो गई। इन तीस सालों के दौरान भारत में बाल मृत्यु दर प्रतिवर्ष 4.5 प्रतिशत की दर से कमी होती गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 में जहां भारत में पांच साल से कम उम्र के 34 लाख बच्चों की मौत हो गई थी, वहीं 2019 में यह संख्या कम होकर आठ लाख 24 हजार हो गई।

वहीं, जन्म के समय बच्चों के मरने की संख्या 89 (प्रति एक हजार पर) से 28 हो गई। 2019 में जन्म के समय करीब छह लाख 79 हजार नवजात मारे गए थे, जबकि 1990 में यह संख्या 24 लाख थी। इसके अलावा, पांच साल से 14 साल की उम्र के बीच के बच्चों के मरने की संभावना 21 प्रतिशत (1990) से पांच प्रतिशत रह गई। साथ ही, लैंगिक आधार पर पांच साल से कम उम्र के बाल मुत्यु दर के मामले भी कम हुए हैं। रिपोर्ट की मानें तो 1990 में पांच साल से कम उम्र के प्रति 1,000 बच्चों में से 122 लड़कों की मौत हो जाती थी। लड़कियों में यह संख्या 131 थी। लेकिन 2019 में प्रति एक हजार बच्चों (पांच साल से कम) में 34 लड़कों और 35 लड़कियों की मौत हुई।

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हालांकि कोविड-19 महामारी की वजह से ये तमाम सुधारात्मक परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। दुनियाभर के देशों में बाल मृत्यु दर को कम करने से जुड़े मेडिकल प्रयासों में बाधाएं आई हैं। इसके चलते बच्चों के रेग्युलर चेकअप, वैक्सीनेशन, जन्म से पहले और बाद की देखभाल आदि में मुश्किलें हो रही हैं। कोविड-19 के डर से आम लोगों और स्वास्थ्यकर्मियों में एक प्रकार का डर और बेचैनी पैदा हो गई है, जिसके चलते इस प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं। हालात ऐसे हैं कि यूनिसेफ की एग्जिक्यूटव डायरेक्टर हेनरिटा फोर को कहना पड़ा है, 'वैश्विक समुदाय के बाल मृत्यु दर को खत्म करने के प्रयास इतने आगे आ गए हैं कि कोविड-19 को हमारी रफ्तार रोकने नहीं दी जा सकती। व्यवस्था के बहुत ज्यादा बाधित होने के चलते जब बच्चों को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रखा जाए और संक्रमण के डर से महिलाएं अस्पताल में बच्चों को जन्म देने से डरें तो उनके भी कोविड-19 के मृतकों में शामिल होने की नौबत आ सकती है। ऐसे में बाधित हेल्थ सिस्टम और सेवाओं की फिर से बहाली तत्काल निवेश के बिना संभव नहीं है। (इसके बिना) पांच साल से कम उम्र के लाखों बच्चों, विशेषकर नवजातों की लाखों की संख्या में मौत हो सकती है।'

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें भारत की बाल मृत्यु दर में आई बड़ी कमी, लेकिन कोविड-19 से बाधित हुई सेवाओं के चलते बिगड़ सकते हैं परिणाम: यूएन रिपोर्ट है

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