कोविड-19 की वजह से अब तक (17 अगस्त 2020 के आंकड़े) 7 लाख 70 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि अनुसंधानकर्ता ऐसे कारकों की खोज करने में जुटे हैं जो इस नए कोरोना वायरस संक्रमण से होने वाली मृत्यु की आशंका को बढ़ा सकते हैं। ऐसा ही एक कारक है वायु प्रदूषण का उच्च स्तर। जिन लोगों में कोविड-19 डायग्नोज हुआ है उन लोगों पर वायु प्रदूषण का क्या प्रभाव होता है इसका अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया कि इस वायरल संक्रमण के कारण होने वाली मौतों के पीछे वायु प्रदूषण एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है।

इससे पहले साल 2003 में सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) के प्रकोप के दौरान भी अधिक संख्या में जो मौतें हुईं वे वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक जोखिम से जुड़ी थीं। साल 2003 में एन्वायरनमेंटल हेल्थ नाम की पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण से मरने वालों की आशंका 84 प्रतिशत अधिक हो जाती है अगर वे अधिक प्रदूषण स्तर वाले क्षेत्रों में रहते हैं। 

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कोविड-19 और वायु प्रदूषण में कमी
जब कोविड-19 पहली बार चीन में उभरकर सामने आया तब इसे एक रहस्य निमोनिया के रूप में बताया गया था। फिर जैसे-जैसे यह संक्रमण दुनिया के अन्य हिस्सों में तेजी से फैलता गया, इन देशों की सरकारों ने अलग-अलग स्तर पर लॉकडाउन लगाकर कोविड-19 को कंट्रोल करने की पूरी कोशिश की। भारत सरकार ने भी 4 अलग-अलग फेज में 24 मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लगाया था। लॉकडाउन के पहले और दूसरे फेज में सभी तरह के उद्योग, सड़क, रेल, हवाई परिवहन पूरी तरह से बंद थे। इस दौरान दिल्ली और हैदराबाद जैसे मेट्रो शहरों में वायु प्रदूषण में भारी गिरावट देखने को मिली- हालांकि यह इरादतन या जानबूझकर नहीं किया गया था लेकिन वायु प्रदूषण में यह गिरावट स्पष्ट रूप से स्वागत योग्य थी।

साइंस ऑफ द टोटल एन्वायरनमेंट नाम की पत्रिका में प्रकाशित स्टडी में दिखाया गया कि लॉकडाउन से पहले वाले समय की जब लॉकडाउन के दौरान के समय से तुलना की गई तो पीएम10 और पीएम2.5 के कारण होने वाले प्रदूषण (पार्टिकल पलूशन) में दिल्ली जैसे बड़े भारतीय शहरों में 60% तक कमी देखने को मिली। इतना ही नहीं लॉकडाउन के परिणामस्वरूप नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की सघनता या जमाव में भी काफी गिरावट आई।

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अब जब लॉकडाउन को श्रेणीबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है, इसलिए वायु प्रदूषण का खतरा और इसके कारण होने वाले कई स्वास्थ्य जोखिम फिर से बढ़ रहे हैं।

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कोविड-19 से होने वाली मौतें वायु प्रदूषण के कारण बढ़ सकती हैं, स्टडी में हुआ खुलासा के डॉक्टर

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों की मानें तो हर साल करीब 42 लाख लोगों की मौत बाहरी वायु प्रदूषण के कारण होती है क्योंकि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का एक बड़ा हिस्सा WHO के दिशा निर्देशों से कहीं अधिक प्रदूषण के स्तर के संपर्क में रहते हैं। इम्पिरियल कॉलेज ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में हुई एक स्टडी को प्रीप्रिंट सर्वर medRxiv में प्रकाशित किया गया जिसमें यूके में कोविड-19 से होने वाली मौतों को देखा गया और इसे उन लोगों के साथ सहसंबंधित किया गया जो 2014 से 2018 के बीच नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में आए थे। यूके, कोविड-19 महामारी से बुरी तरह से प्रभावित उन देशों में शामिल है जहां 17 अगस्त 2020 तक 3 लाख 18 हजार से अधिक संक्रमण और 41 हजार 366 मौतें हो चुकी हैं।

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इस अध्ययन में कोविड-19 से होने वाली मौतों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क के साथ पीएम 2.5 कणों के दीर्घकालिक जोखिम के प्रभावों को भी देखा गया और 30 जून 2020 तक के डेटा को संग्रहित किया गया। इस स्टडी में कोविड-19 से होने वाली 38 हजार 573 मौतों का अध्ययन किया गया और वायु प्रदूषण के प्रभाव को निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न मॉडलों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में मृत्यु दर में 0.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई और पीएम 2.5 के मामले में 1.4 प्रतिशत की वृद्धि। लेकिन दोनों प्रदूषकों (पीएम 2.5 के लिए अधिक) के मामले में सीमित साक्ष्य के कारण, इस परिकल्पना की पूर्ववर्ती संभावना नाइट्रोजन डाइऑक्साइड या NO2 के लिए 0.93 और पीएम 2.5 के लिए 0.78 समायोजित की गई थी।

कोविड-19 से होने वाली मृत्यु दर के लिए वायु प्रदूषण का निश्चित योगदान होने की संभावना है कम से कम नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के दीर्घकालिक संपर्क में रहने के लिए जबकि कोविड-19 के मृत्यु दर पर पीएम 2.5 का प्रभाव थोड़ा अस्पष्ट है। शोधकर्ताओं के अनुसार, पहले से मौजूद बीमारियां जैसे- हृदय रोग, श्वसन संबंधी विकार, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और अन्य बीमारियों के साथ, वायु प्रदूषण के माध्यम से लंबे समय तक हानिकारक गैसों के संपर्क में रहना गंभीर कोविड-19 के लिए भी जोखिम कारक है।

कोविड-19 को कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों पर जिन्हें पहले से कोई बीमारी है उन पर अधिक गंभीर प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है और वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक संपर्क में रहने को भी सामान्य रूप से कमजोर इम्यून सिस्टम के साथ जोड़ा गया है। यह भी कोविड-19 से होने वाली अधिक मृत्यु दर को समझने के लिए काफी है। भारत के 2 सबसे बड़े शहरों दिल्ली और मुंबई को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता है और इन शहरों में लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना, हाल के महीनों में भारत में बढ़ने वाले कोविड-19 के मामलों और मौतों की उच्च संख्या में योगदान के लिए जिम्मेदार हो सकता है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा की गई एक और स्टडी में पहले ही यह सुझाव दिया गया था कि कण प्रदूषण (पार्टिकल पलूशन)- विशेष रूप से पीएम 2.5 के कारण होने वाला- का अमेरिका में कई मरीजों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। अप्रैल 2020 से प्रीप्रिंट सर्वरों पर उपलब्ध इस स्टडी में पाया गया कि पीएम 2.5 कणों की महज एक माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि भी देश में कोविड-19 के कारण होने वाली मौतों में कुल 8 प्रतिशत की वृद्धि कर सकती है। एक तरफ जहां ब्रिटेन की स्टडी में 4 साल की अवधि में वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक जोखिम को देखा गया वहीं, अमेरिका की स्टडी में देशभर के 3 हजार से अधिक काउंटियों के आंकड़ों और उन लोगों पर ध्यान दिया गया जो इन क्षेत्रों में 15 से 20 साल की अवधि के लिए रहते थे।

शोधकर्ताओं के अनुसार, अगर मैनहैटन (न्यूयॉर्क शहर के पांच बोरो या नगरों में से एक) "पिछले 20 वर्षों में अपने औसत कण प्रदूषण के स्तर में एक ईकाई भी कमी कर पाता तो अप्रैल 2020 तक वहां कोविड-19 के कारण कम से कम 248 मौतें कम होतीं।" इस अध्ययन ने कोविड-19 महामारी के खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों और मौतों से बचाव के लिए वायु प्रदूषण पर निरंतर प्रतिबंधों की सिफारिश की।

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एक दूसरी स्टडी में नीदरलैंड में 355 नगरपालिकाओं के आंकड़ों के आधार पर यह बताया गया कि पीएम या पार्टिकुलेट मैटर में 1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की वृद्धि भी कोविड-19 के 15 मामले और 3 मौतों के बढ़ने के साथ जुड़ी हुई है। शहरी इलाकों में प्रदूषण का स्तर WHO या दुनिया भर के कई दूसरे पर्यावरण से जुड़े निकायों द्वारा निर्धारित ऊपरी सीमा से कहीं अधिक है। WHO का सुझाव है कि पीएम 2.5 का स्तर प्रति वर्ष 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम रखा जाए, जबकि अमेरिका के पर्यावरण से जुड़े निकाय ने पीएम 2.5 कण प्रदूषण के लिए सालाना 12 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की सीमा रखी है।

कोविड-19 की वजह से बुरी तरह से प्रभावित देशों की सूची में अमेरिका पहले नंबर पर है जहां अब तक (17 अगस्त 2020 के आंकड़े) 55 लाख से ज्यादा लोग कोविड-19 से संक्रमित हो चुके हैं और 1 लाख 73 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से अकेले न्यूयॉर्क में मौत का आंकड़ा 32 हजार है। भारत, जो कोविड-19 से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सूची में तीसरे नंबर पर है वहां नई दिल्ली जैसे शहरों की वायु गुणवत्ता नवंबर 2019 तक WHO द्वारा अनुशंसित दिशा निर्देशों के मुकाबले 23 गुना अधिक थी, ऐसा भारतीय प्रदूषण बोर्ड का कहना है।

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इटली में हुई एक दूसरी स्टडी में जहां 17 अगस्त 2020 तक 35 हजार 400 मौतें हो चुकी थीं वहां पर भी वायु प्रदूषण और कोविड-19 से होने वाली मौतों के बीच मजबूत लिंक पाया गया। इसके चलते उत्तरी इटली के लोम्बार्डी प्रांत में हवा की गुणवत्ता पर कई सवाल उठने लगे थे- लोम्बार्डी में कोविड-19 से होने वाली मौतों का आंकड़ा काफी अधिक था। अप्रैल 2020 में इटली में जहां कुल 26 हजार से अधिक मौतें हुई थीं उसमें से करीब 13 हजार यानी 50 प्रतिशत मौतें लोम्बार्डी में हुईं।

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हर दिन नए सबूत सामने आ रहे हैं जो वायु प्रदूषण और कोविड-19 से होने वाली मौतों के बीच लिंक का समर्थन करते हैं। कोविड-19 के रोगियों के लिए उच्च वायु प्रदूषण के स्तर पर लंबे समय तक जोखिम भयावह हो सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो पहले से ही डायबिटीज जैसी अन्य बीमारियों से पीड़ित हैं।

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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों द्वारा पर्यावरण को बचाने को लेकर प्रतिबद्धता दिखाने के बावजूद, वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जिस कारण लोगों को भविष्य में पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है विशेष रूप से विकासशील देशों में जहां उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है।

चूंकि अब दुनिया भर में लॉकडाउन को धीरे-धीरे कम किया जा रहा है, ऐसे में वायु प्रदूषण का स्तर फिर से धीरे-धीरे उच्च स्तर पर वापस लौट रहा है और अभी के समय जब कोविड-19 महामारी अब भी जारी है, इस श्वसन संक्रमण के कारण होने वाला मृत्यु दर बढ़ सकता है।

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उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 से होने वाली मौतें वायु प्रदूषण के कारण बढ़ सकती हैं, स्टडी में हुआ खुलासा है

संदर्भ

  1. Cui Y et al. Air pollution and case fatality of SARS in the People's Republic of China: an ecologic study. Environmental Health. 2003 Nov; 2: 15.
  2. Konstantinoudis G et al. Long-term exposure to air-pollution and COVID-19 mortality in England: a hierarchical spatial analysis. 2020 Aug. medRxiv - The preprint server for health sciences.
  3. Wu X et al. Exposure to air pollution and COVID-19 mortality in the United States: A nationwide cross-sectional study. 2020 Jul. medRxiv: The preprint server for health sciences.
  4. Mahato S et al. Effect of lockdown amid COVID-19 pandemic on air quality of the megacity Delhi, India. Science of the Total Environment. 2020 Aug; 730: 139086.
  5. Conticini E et al. Can atmospheric pollution be considered a co-factor in extremely high level of SARS-CoV-2 lethality in Northern Italy? Environmental Pollution. 2020 Jun; 261: 114465.
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