हिस्टेरेक्टोमी एक ऐसी सर्जरी है जिसमें गर्भाशय और गर्भाशय ग्रीवा के अंदर देखने के लिए कम चीर-फाड़ वाली प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया को हिस्टेरोस्कोप से किया जाता है। इस उपकरण को योनि से अंदर डालकर उसे गर्भाशय तक पहुंचाया जाता है। गर्भाशय और/या गर्भाशय ग्रीवा तक पहुंचने या इससे जुड़े लक्षणों के इलाज के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।
इस सर्जरी से पहले ब्लड टेस्ट और रेडियोलॉजिकल टेस्ट किए जाते हैं। अक्सर इसमें सुबह अस्पताल में भर्ती कर के शाम को छुट्टी मिल जाती है। सर्जरी के बाद देखभाल जरूरी है और रात तक ही व्यक्ति नॉर्मल कार्य करना शुरू कर सकता है।
- हिस्टेरोस्कोपी क्या है
- हिस्टेरोस्कोपी कब करवानी चाहिए
- हिस्टेरोक्टोमी कब नहीं करनी चाहिए
- सर्जरी से पहले की तैयारी
- सर्जरी कैसे की जाती है
- सर्जरी के रिजल्ट और जोखिम
- सर्जरी के बाद डिस्चार्ज और फॉलो-अप कब होता है
- सारांश
हिस्टेरोस्कोपी क्या है
महिला प्रजनन तंत्र के अंदरूनी यौन अंगों में गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय आता है। गर्भाशय के निचले हिस्से में गर्भाशय ग्रीवा होती है और इसे गर्भाशय का प्रवेश द्वार माना जाता है। गर्भाशय तीन परतों से बना होता है : बाहरी, मध्य (मायोमेट्रियम) और अंदरूनी (एंडोमेट्रियम)। इन संरचनाओं में असामान्यताएं आ या हो सकती हैं।
गर्भाशय और ग्रीवा की अंदरूनी संरचनाओं में इन असामान्यताओं को देखने के लिए हिस्टेरोस्कोपी की जाती है।
इसमें एक पतली, लचली और टेलिस्कोप की ट्यूब जैसी जिस पर लाइट और कैमरा हो, उसे योनि के जरिए अंदर डाला जाता है। हिस्टेरोस्कोप को अंदर डालने के लिए शरीर पर कोई कट नहीं लगाना पड़ता है। कैमरा से जो तस्वीरें अंदर की होती हैं, उन्हें बाहर मॉनिटर पर देखा जाता है। इस प्रक्रिया में साफ देखने के लिए गर्भाशय को चौड़ा करने के लिए विशेष गैस या फ्लूइड का इस्तेमाल किया जाता है।
हिस्टेरोस्कोपी दो प्रकार ही होती है, जैसे कि :
- इंवेस्टिगेट और/या डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी : मरीज के लक्षणों के आधा पर गर्भाशय की असामान्यताओं का पता लगाने के लिए इसकी मदद ली जाती है।
- इंवेंशनल/ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कोपी : मरीज के लक्षणों का कारण बनने वाली बीमारी का इलाज करने के लिए यह प्रक्रिया की जाती है।
हिस्टेरोस्कोपी कब करवानी चाहिए
मरीज को असामान्य लक्षण महसूस होने, पैथोलॉजिकल टेस्टों की रिपोर्ट असामान्य आने या इंटरवेंशनल कारणों में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसे निम्न रूप से वर्गीकृत किया जा सकता है :
- इंवेस्टिगेटिव संकेत :
- पीरियड्स में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होना
- योनि से असामान्य ब्लीडिंग होना
- पैप स्मीयर टेस्ट असामान्य आना
- मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग होना
- पेल्विक हिस्से में दर्द होना
- कंसीव न कर पाना या बार-बार मिसकैरेज होना
- डायग्नोस्टिक संकेत :
- इंटरवेंशनल संकेत :
- फाइब्रॉइड या पॉलhप्स निकालना
- अपनी जगह से खिसके हुए इंट्रा-यूट्राइन कॉन्ट्रासेप्टिव डिवाइस को निकालने के लिए
- फैलोपियन ट्यूबों में गर्भ निरोधक के लिए छोटा डिवाइस लगा होना
- अधिक एंडोमेट्रियल टिश्यू को हटाना
- मासिक चक्र, कंसीव करने या प्रेग्नेंसी को बनाए रखने में दिक्कत पैदा कर रहे स्कार टिश्यू को हटाने के लिए
हिस्टेरोक्टोमी कब नहीं करनी चाहिए
हिस्टेरोस्कोपी यानि हिस्टेरोक्टोमी को लेकर जो मतभेद है, वो प्रेग्नेंसी है इसलिए पहले आपको यह पता कर लेना चाहिए कि कहीं आप प्रेगनेंट तो नहीं हैं। इससे संबंधित मतभेद हो सकते हैं :
- पहले से कोई स्वास्थ्य समस्या होना, जिससे एनेस्थीसिया से होने वाली दिक्कतों का खतरा बढ़ सकता है।
- गर्भाशय और ग्रीवा का इंफेक्शन
- गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर या गर्भाशय में कैंसर
सर्जरी से पहले की तैयारी
गायनेकोलॉजिस्ट द्वारा यह प्रक्रिया की जाती है। इसके रिजल्ट और संबंधित जोखिमों के साथ और प्रक्रिया के बारे में डॉक्टर मरीज को बताएंगे। मरीज की डिटेल में मेडिकल हिस्ट्री ली जाएगी जिसमें उसके लक्षण, पहले कोई बीमारी हो, मासिक चक्र की जानकारी, कोई मिसकैरेज या प्रेग्नेंसी हो, फैमिली हिस्ट्री, दवा आदि के बारे में पूछा जाएगा। कुछ फिजीकल टेस्ट भी होंगे जिसमें पैप स्मीयर टेस्ट हो सकता है।
प्रक्रिया से पहले निम्न टेस्ट हो सकते हैं :
- रूटीन ब्लड टेस्ट
- रूटीन यूरिन टेस्ट
- यूरिन प्रेग्नेंसी टेस्ट
- पेट और पेल्विस का अल्ट्रासाउंड : एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का पता लगाने के लिए
- इनफर्टिलिटी का कारण जानने के लिए कुछ ब्लड टेस्ट किए जा सकते हैं
- कुछ मामलों में पेल्विस का सीटी या एमआरआई स्कैन किया जा सकता है
डॉक्टर सर्जरी से पहले चल रही किसी बीमारी की दवा को बंद या इसमें कोई बदलाव कर सकते हैं। सर्जरी के बाद मरीज एनेस्थीसिया के प्रभाव में रह सकता है इसलिए घर जाने के लिए कोई रिश्तेदार या दोस्त होना चाहिए। सर्जरी से एक रात पहले कुछ भी खाने-पीने के लिए मना किया जाता है।
सर्जरी के दिन मरीज अपनी मेडिकल रिपोर्टों के साथ अस्पताल में भर्ती होता है। मरीज को हॉस्पीटल गाउन पहनाई जाती है। अगर प्यूबिक हिस्से पर बाल हैं, तो उन्हें हटाया जाता है। डॉक्टर मरीज की अनुमति के लिए दस्तावेज पर साइन करवाते हैं। मरीज को ऑपरेशन थिएटर में ले जाने से पहल मरीज का एक अंतिम रिव्यू किया जाता है।
सर्जरी कैसे की जाती है
मरीज को लिथोटोमी पोजीशन (जिसमें पीठ के बल लेटकर दोनों टांगों को चौड़ा रखा जाता है) में लिटाया जाता है। इसमें हार्ट रेट, बीपी और ऑक्सीजन सैचुरेशन जानने के लिए मॉनिटर को शरीर से जोड़ा जाता है।
अब बांह पर आईवी कैनयूला डाला जाता है जिससे जरूरी दवाएं दी जाती हैं। सर्जरी के दौरान दूषण से बचने के लिए पेशाब की नली में कैथेटर लगाया जाता है। यौन अंग को साफ कर के उसे स्टेराइल ड्रेप से ढक दिया जाता है। जनरल एनेस्थीसिया या शरीर के निचले हिस्से को सुन्न करने वाला रीजनल एनेस्थीसिया देकर यह प्रक्रिया की जा सकती है।
अब सर्जन स्पैकुलम से योनि को खोलते हैं और फिर हिस्टेरोस्कोप को अंदर डाला जाता है। अब हिस्टेरोस्कोप से गर्भाशय के अंदरूनी अंगों को देखने के लिए गर्भाशय को गैस या फ्लूइड डाली जाती है। कितनी गैस या फ्लूइड डाली जानी है, इसकी मात्रा को ध्यान से मॉनिटर किया जाता है।
फिर डॉक्टर हिस्टेरोस्कोप पर लगे कैमरा से गर्भाशय को देखते हैं और उसके अंदर की तस्वीरें लेते हैं। यह सर्जरी किस वजह से की जा रही है, उसके आधार पर निम्न चीजें की जा सकती हैं :
- एंडोमेट्रियम का सैंपल लिया जा सकता है।
- अधिक एंडोमेट्रियल लाइनिंग को खरोंचा जा सकता है।
- अपनी जगह से हटे इंट्रायूट्राइन डिवाइस को हटाया जा सकता है।
- फैलोपियन ट्यूबों में नए गर्भनिरोधक डिवाइस लगाए जा सकते हैं।
- स्कार टिश्यू हटाया जा सकता है।
- विशेष उपकरणों से पॉलीप्स या फाइब्राइड्स को हटाया जा सकता है।
सर्जरी के बाद डॉक्टर हिस्टेरोस्कोप और कैथेटर निकाल लेंगे योनि की ओपनिंग पर पट्टी कर दी जाएगी ताकि ब्लीडिंग न हो। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट लगते हैं। हालांकि, कुछ और चीज भी करनी है, तो समय बढ़ सकता है।
सर्जरी के रिजल्ट और जोखिम
इस सर्जरी से बहुत कम जोखिम जुड़े हुए हैं। हालांकि, इससे कुछ जटिलताएं हो सकती हैं, जैसे कि :
- बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होना
- प्रभावित हिस्से में इंफेक्शन होना
- गर्भाशय या ग्रीवा को नुकसान पहुंचना
- आसपास के अंगों जैसे कि आंतों, मूत्राशय और ओवरी को नुकसान होना
- पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज
- एनेस्थीसिया से प्रॉब्लम होना
- अंदर डाली गई गैस या फ्लूइड से प्रॉब्लम होना
- एंडोमेट्रियम पर स्कार या घाव बनना
सर्जरी के बाद डिस्चार्ज और फॉलो-अप कब होता है
सर्जरी के बाद ऑब्जर्वेशन के लिए मरीज को कुछ घंटों के लिए अस्पताल के एक कमरे में रखा जाता है। कुछ मामलों में मरीज को रातभर मॉनिटर किया जा सकता है। पेशाब नॉर्मल होने से पता चलता है कि एनेस्थीसिया का असर खत्म हो गया है। मरीज को ऐंठन वाला दर्द हो सकता है जिसके लिए दवा दी जाएगा। डॉक्टर डिस्चार्ज पेपर तैयार करेंगे जिसमें दवाओं और घाव की देखभाल के लिए सलाह दी जाएगी। इसमें निम्न चीजें हो सकती हैं :
- पहले से कोई बीमारी है, तो उसकी दवा जारी रखनी है।
- इंफेक्शन से बचने के लिए एंटीबायोटिक।
- ब्लीडिंग कम करने के लिए खाने की दवा दी जा सकती है।
- मरीज को सर्जरी के दौरान गैस भरने की वजह से पेट में असहज महसूस हो सकता है। हालांकि, यह 24 घंटे में ठीक हो जाएगा।
- थोड़ी ब्लीडिंग हो सकती है, इसके लिए कुछ दिनों तक सैनिटरी पैड लगाएं।
- पीरियड्स में होने वाले दर्द की तरह ही दर्द हो सकता है। यह कुछ दिनों तक रह सकता है। इसके लिए दर्द निवारक दवाएं दी जाएंगी।
- सर्जरी वाली जगह की साफ-सफाई का ध्यान रखना ताकि इंफेक्शन न हो।
- एक से दो हफ्ते तक, जब तक कि ब्लीडिंग बंद नहीं होती, तब तक भारी काम या सेक्स न करें।
24 घंटे के बाद ही आप रोजमर्रा के काम कर सकती हैं। अगर निम्न लक्षण दिख रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर को बताएं :
- बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होना
- योनि से बहुत ज्यादा डिस्चार्ज होना जिससे बदबू आए या जिसमें पस हो, यह इंफेक्शन हो सकता है। दवा लेने के बावजूद लंबे समय तक दर्द रहना
- बुखार
सर्जरी का रिजल्ट कैसा है, इसके आधार पर डॉक्टर बताएंगे कि फॉलो-अप के लिए कब आना।
सारांश
हिस्टेरोस्कोपी एक आधुनिक प्रक्रिया है जिसमें चीर-फाड़ कम होती है और गर्भाशय और ग्रीवा की अंदरूनी संरचनाओं को देखा जाता है। इस प्रक्रिया में बहुत कम समय लगता है और जोखिम भी बहुत कम हैं। प्रक्रिया के बाद रिकवरी तेजी से हो जाती है और मरीज 24 घंटे के अंदर ही रोजमर्रा के काम कर सकता है।
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