बच्चों को खसरे (मीजल्स), गलसुआ (मंप्स) और रूबेला - यानी एमएमआर - से बचाने के लिए लगने वाला टीका कोविड-19 के खिलाफ सुरक्षा दे सकता है। अमेरिका में हुए एक अध्ययन के हवाले से वैज्ञानिकों ने यह जानकारी दी है। मेडिकल पत्रिका एमबायो में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, एमएमआर वैक्सीन से जुड़े इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि इससे यह भी पता चल सकता है कि क्यों बच्चों में कोविड-19 के संक्रमण और मृत्यु की दर इतनी कम हैं।
स्टडी में पाया गया है कि कोविड-19 के जिन रिकवर मरीजों में एमएमआर II वैक्सीन के कारण आईजीजी एंटीबॉडी का लेवल ज्यादा था, उनमें इस बीमारी और मंप्स एंटीबॉडी के बीच विपरीत पारस्परिक संबंध था। इसे ऐसे समझें कि जिन कोविड मरीजों में पहले से एमएमआर एंटीबॉडी मौजूद थे, उनमें कोरोना संक्रमण का प्रभाव तुलनात्मक रूप से काफी कम था। एमएमआर II वैक्सीन में मीजल्स का एक विशेष स्ट्रेन एडमॉन्स्टन, मंप्स का विशेष स्ट्रेन जेराइल लिन और रूबेला का विस्टार आरए 27/3 स्ट्रेन मिला होता है। इसके चलते एमएमआर वैक्सीन वाले लोगों में इन बीमारियों से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो जाती है, जो कोरोना वायरस से बचाने में भी मददगार पाई गई है।
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इस बारे में अध्ययन से जुड़े लेखक और अमेरिका के जॉर्जिया में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष जेफरी गोल्ड का कहना है, 'हमें मंप्स के एंटीबॉडी लेवल और गंभीर कोविड-19 वाले लोगों में विशेष सांख्यिकीय विपरीत पारस्परिक संबंध का पता चला है। यह उन लोगों में पाया गया है कि जिनकी उम्र 42 वर्ष से कम है और जिन्हें एमएमआर II वैक्सीन लगाई गई थी। इससे उन दावों को बल मिलता है, जिनमें कहा गया है कि एमएमआर वैक्सीन कोविड-19 से सुरक्षा दे सकती है। साथ ही इस सवाल का जवाब भी मिल सकता है कि क्यों बच्चों में कोरोना संक्रमण के मामले वयस्कों की अपेक्षा कम होते हैं और उनका डेथ रेट भी कम होता है।' प्रोफेसर गोल्ड ने बताया कि अधिकतर बच्चों को 12 महीने से 15 महीने की उम्र के बीच एमएमआर वैक्सीन लगा दी जाती है। बाद में चार से छह वर्ष के बीच इसका दूसरा डोज दिया जाता है।
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अध्ययन और उसके परिणाम
इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने 80 प्रतिभागियों (सब्जेक्ट) को शामिल किया और उन्हें दो समूह में बांटा। एमएमआर II वाले ग्रुप में 50 सब्जेक्ट को रखा गया, जिनके शरीर में एमएमआर II वैक्सीन के चलते पहले से एमएमआर एंटीबॉडी मौजूद थे। वहीं, दूसरे समूह में शामिल सब्जेक्ट यानी प्रतिभागियों में पहले कभी (बचपन में) एमएमआर II वैक्सीन लगने से जुड़ा कोई रिकॉर्ड नहीं था और उनमें एमएमआर एंटीबॉडी किसी और सोर्स से विकसित हुए थे, जैसे पूर्व में कभी मीजल्स, मंप्स और/या रूबेला बीमारी से पीड़ित होने के कारण। इन प्रतिभागियों की आपसी तुलना से शोधकर्ताओं ने जाना कि एमएमआर II वाले ग्रुप में गंभीर कोविड-19 और मंप्स एंटीबॉडी में विपरीत पारस्परिक संबंध है, जबकि तुलना के लिए रखे गए दूसरे समूह के प्रतिभागियों में इसके साथ-साथ ऐसे किसी भी और संबंध (जैसे मीजल्स-सिवियर कोविड या रूबेला-सिवियर कोविड) के कोई प्रमाण नहीं मिले।
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इन तथ्यों पर यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया के मॉलिक्यूलर माइक्रोबायोलॉजिस्ट और अध्ययन के सह-लेखक डेविड जे हर्ली ने कहा है, 'यह ऐसा पहला इम्यूनोलॉजिकल अध्ययन है, जिसमें एमएमआर II वैक्सीन और कोविड-19 के संबंध का आंकलन किया गया है। मंप्स एंटीबॉडी और कोविड-19 के सांख्यिकीय विपरीत पारस्परिक सहसंबंध से यह संकेत मिलता है कि (कोरोना संक्रमण से सुरक्षा देने के मामले में) इसकी भूमिका है, जिसकी और जांच करने की जरूरत है।'
उत्पाद या दवाइयाँ जिनमें कोविड-19 से सुरक्षा दे सकती है एमएमआर वैक्सीन: वैज्ञानिक है
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