ग्लेनमार्क फार्मासूटिकल्स भारत की पहली कंपनी बन गई है जिसने कोविड-19 के हल्के और मध्यम श्रेणी के मरीजों के इलाज के लिए फैबीफ्लू नाम की एंटीवायरल दवा लॉन्च की है। कोविड-19, सांस से संबंधित बीमारी है जिसने महज 6 महीने के अंदर दुनियाभर के 95 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर दिया है।

फैबीफ्लू में मौजूद औषधीय सॉल्ट टैबलेट के रूप में मौजूद है जिसे लेकर अलग-अलग क्लिनिकल ट्रायल किए जा रहे हैं। इसमें से 2 अध्ययन ऐसे हैं जिसमें नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 से होने वाली बीमारी कोविड-19 के इलाज में सकारात्मक नतीजे देखने को मिल रहे हैं। भारतीय दवा कंपनी ग्लेनमार्क को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) से फैबीफ्लू दवा बनाने की स्वीकृति 19 जून 2020 को मिली थी।  

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फैबीफ्लू की उत्पत्ति फैविपिराविर से हुई है जो की एक एंटीवायरल दवा है जो पहले से मार्केट में मौजूद है और जापान जैसे देशों में इन्फ्लूएंजा के इलाज में इस दवा का इस्तेमाल भी हो रहा है। अमेरिका की नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, फैविपिराविर एक पाइराजिनकार्बोक्सामाइड यौगिक है जो आरएनए वायरस के खिलाफ एक्टिविटी करता है। नया कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 भी आरएनए वायरस है- इसका मतलब है कि वायरस का जेनेटिक मटीरियल आरएनए है (डीएनए नहीं)।

फैविपिराविर साल 2014 से इस्तेमाल की जा रही है जब पहली बार इसे नए या फिर से वापस आने वाले इनफ्लूएंजा बीमारी के प्रकोप के इलाज के लिए स्वीकृति मिली थी। यह दवा आरएनए पॉलिमर्स की एक्टिविटी में अवरोध उत्पन्न करने का काम करती है। आरएनए पॉलिमर्स एक एन्जाइम है, जो शरीर में वायरस की वृद्धि के लिए बेहद जरूरी होता है। 

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ग्लेनमार्क फार्मासूटिकल्स मौजूदा समय में दवा की टेस्टिंग के लिए द्वीशाखीय रणनीति अपना रहा है। इसमें फैविपिराविर की क्षमता को मोनोथेरेपी के तौर पर टेस्ट किया जा रहा है और साथ ही में फैविपिराविर दवा को यूमिफेनोविर दवा के साथ मिलाया जा रहा है। यूमिफेनोविर रोगनिरोधी दवा है जिसका इस्तेमाल इन्फ्लूएंजा टाइप ए और टाइप बी के इलाज में चीन और रूस जैसे देशों में होता रहा है। रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एविफैविर जो फैविपिराविर के सक्रिय तत्व पर आधारित दवा है उसे देशभर में कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल करने के लिए स्वीकृति दे दी है। 

  1. चीन में फैविपिराविर से जुड़ी स्टडी
  2. ग्लेनमार्क फार्मा द्वारा फैबीफ्लू का विकास
कोविड-19 के इलाज के लिए फैबीफ्लू को डीसीजीआई ने दी स्वीकृति, एक टैबलेट की कीमत 103 रुपये के डॉक्टर

नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 के नेचर से जुड़ी शुरुआती स्टडी में 35 मरीजों को भर्ती किया गया था जिनका इलाज फैविपिराविर आधारित दवा से किया गया। वहीं, मरीजों के एक दूसरे बैच को भी स्टडी में शामिल किया गया जिनका इलाज किसी दूसरी दवा से हुआ था। फैविपिराविर वाले ग्रुप में से 2 मरीज 18 और 21 दिन के बाद टेस्ट में नेगेटिव पाए गए जबकि कंट्रोल्ड ग्रुप में मौजूद बाकी के मरीज, इलाज मिलने के 27 दिन के बाद टेस्ट में नेगेटिव पाए गए। 

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चीनी वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस स्टडी को इंजीनियरिंग नाम के जर्नल में मार्च 2020 में प्रकाशित किया गया था। स्टडी में यह बात भी सामने आयी कि नए कोरोना वायरस सार्स-सीओवी-2 में एक जेनेटिक सीक्वेंस होता है जो सार्स-सीओवी वायरस से 75 से 80 प्रतिशत तक मिलता जुलता है। सार्स-सीओवी वायरस वही वायरस है जिसकी वजह से साल 2002-03 में जानलेवा सिवियर अक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) महामारी हुई थी।

चीन के वुहान शहर में जहां से सार्स-सीओवी-2 वायरस के उत्पन्न होने की बात कही जा रही है, वहां पर एक और क्लिनिकल ट्रायल हुआ जिसे अलग-अलग मेडिकल सेंटर्स में भर्ती मरीजों पर बेतरतीब (रैन्डमाइज्ड) तरीके से किया गया था। इस दौरान स्टडी में 3 अलग-अलग हस्तक्षेपों पर अध्ययन हुआ: औपचारिक या पारंपरिक थेरेपी, फैविपिराविर या आर्बिडल ट्रीटमेंट। आर्बिडल जिसे यूमिफेनोविर भी कहते हैं, का कोविड-19 इंफेक्शन के क्लिनिकल ट्रायल में इस्तेमाल हो चुका है- ग्लेनमार्क भी इसकी टेस्टिंग कर रहा है जिसमें फैविपिराविर के साथ कॉम्बिनेशन कर एक दूसरा क्लिनिकल ट्रायल किया जा रहा है।

चीन की इस स्टडी में यह बात सामने आयी कि कोविड-19 के इलाज में आर्बिडल दवा असरदार साबित हो रही है क्योंकि यह सार्स-सीओवी-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन को निशाना बनाती है और इंसान की कोशिकाओं में वायरस को प्रवेश करने से रोक देती है। हालांकि, इसके पहले हुई स्टडी में यह सुझाव दिया गया था कि आर्बिडल की सुरक्षा और वह कितनी असरदार है इसके लिए और ज्यादा जांच करने की जरूरत है।

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20 जून 2020 को ग्लेनमार्क फार्मासूटिकल्स की तरफ से जारी किए गए प्रेस रिलीज के मुताबिक, 'फैविपिराविर को मजबूत क्लिनिकल सबूतों से प्रोत्साहन मिला है जिससे कोविड-19 के हल्के और मध्यम श्रेणी के मरीजों में उम्मीद जगाने वाले नतीजे मिल रहे हैं।' कंपनी ने आगे बताया कि वैसे लोग जिन्हें पहले से कोई बीमारी है जैसे- डायबिटीज या हृदय रोग उनमें भी अगर श्वास संबंधी संक्रमण कोविड-19 के हल्के या मध्यम श्रेणी के लक्षण दिखते हैं तो वे भी इस दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं जो टैबलेट फॉर्म में मौजूद है।

भारत में फैबीफ्लू दवा की कीमत 103 रुपये प्रति टैबलेट है। मरीजों को यह सलाह दी गई है कि वे उचित चिकित्सीय सलाह मशविरा लेने के बाद ही इस दवा का इस्तेमाल करें। कोविड-19 के इलाज के लिए फिलहाल दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इस दवा का ट्रायल किया जा रहा है। ग्लेनमार्क कंपनी का दावा है कि फैबीफ्लू दवा मरीज में वायरल लोड को 4 दिन के अंदर कम कर देती है जिससे मरीज के लक्षणों और रेडियोलॉजिकल नतीजों में भी बेहतरी देखने को मिलती है। कंपनी की मानें तो फैविपिराविर ने कोविड-19 इंफेक्शन से पीड़ित हल्के और मध्यम श्रेणी के मरीजों में 88 प्रतिशत तक क्लीनिकल इम्प्रूवमेंट दिखाया है।

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नए कोरोना वायरस इंफेक्शन के अलग-अलग स्टेज के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की लिस्ट में फैविपिराविर को भी शामिल किया जा रहा है। इससे पहले रेमडेसिवियर जिसे इबोला के इलाज के लिए मूल रूप से अमेरिका के गिलियाड साइंसेज ने विकसित किया था और हाइड्रोक्सिक्लोरोक्वीन दवा जिसका इस्तेमाल मलेरिया के इलाज में भारत में होता है, इन दोनों दवाओं का भी कोविड-19 के मरीजों के इलाज में इस्तेमाल हो रहा है। टोसिलिजुमाब, रुमेटॉयड आर्थराइटिस के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा पर इटली में टेस्ट चल रहा है और आइवरमेक्टिन, एंटीपैरासाइट दवा जिसका इस्तेमाल कई दूसरे वायरल इंफेक्शन जैसे- डेंगू, इन्फ्लूएंजा और एचआईवी एड्स में होता है, उस पर भी क्लिनिकल ट्रायल जारी है।

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