अंडाशय से गर्भाशय तक अंडे को पहुंचाने का काम फैलोपियन ट्यूब्स करती हैं। किसी असामानता, सर्जरी या एक्टोपिक प्रेगनेंसी की वजह से किसी एक फैलोपियन ट्यूब को नुकसान पहुंच सकता है लेकिन इस स्थिति में भी दूसरी ट्यूब से गर्भधारण संभव है। महिलाओं के शरीर में दो फैलोपियन ट्यूब होती हैं।
फैलोपियन ट्यूब में कोई रुकावट आने या इनमें कैंसर की आशंका होने या अंडाशय कैंसर या एक्टोपिक प्रेगनेंसी की स्थिति में एक या दोनों फैलोपियन ट्यूब को निकालने के लिए जो सर्जरी की जाती है, उसे सैलपिंजेक्टोकमी सर्जरी कहते हैं।
- फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी क्या है? - Salpingectomy kya hai?
- फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी क्यों की जाती है? - Salpingectomy kab ki jati hai?
- फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी कैसे होती है? - Salpingectomy kaise hoti hai?
- फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी से पहले की तैयारी - Salpingectomy se pehle ki taiyari
- फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी के बाद देखभाल और सावधानियां - Salpingectomy hone ke baad dekhbhal aur savdhaniya
- फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी की जटिलताएं - Salpingectomy me jatiltaye
फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी क्या है? - Salpingectomy kya hai?
सैलपिंजेक्टोमी एक ऐसी सर्जरी है जिसमें एक या दोनों फैलोपियन ट्यूब को निकाल दिया जाता है। फैलोपियन ट्यूब के जरिए ही अंडा अंडाशय से गर्भाशय तक जाता है। जब एक फैलोपियन ट्यूब निकालनी हो तो पार्शियल सैलपिंजेक्टोमी की जाती है। इसके अलावा जब फैलोपियन ट्यूब से कुछ निकालना हो या उसकी सफाई करनी हो तो सैलपिंजेक्टोमी के जरिए सर्जन फैलोपियन ट्यूब में ओपनिंग (कट) बनाते हैं।
सैलपिंजेक्टोमी अकेले या किसी अन्य प्रक्रिया के साथ कर सकते हैं जैसे कि ओफोरेक्टोमी, हिस्टेरेक्टोमी और सी-सेक्शन डिलीवरी।
फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी क्यों की जाती है? - Salpingectomy kab ki jati hai?
कई स्थितियों में सैलपिंजेक्टोकमी सर्जरी करनी पड़ती है, जैसे कि :
- फैलोपियन ट्यूब कैंसर :
ओवेरियन कैंसर, फैलोपियन ट्यूब कैंसर और प्रजनन अंगों में किसी अन्य कैंसर की स्थिति में सैलपिंजेक्टोकमी सर्जरी की जाती है। इन तीनों कैंसर में प्रजनन अंगों जैसे कि फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय, अंडाशय और गर्भाशय ग्रीवा के साथ-साथ आसपास के लिम्फ नोड्स को भी निकाला जाता है।
- एक्टोपिक प्रेगनेंसी :
इसमें निषेचित अंडा गर्भाशय के अलावा कहीं और (अधिकतर किसी एक फैलोपियन ट्यूब में) जुड़ जाता है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी को हटाने के लिए सैलपिंजेक्टोकमी की जा सकती है।
- एंडोमेट्रिओसिस :
इसमें गर्भाशय के ऊतकों की लाइनिंग (ऊपरी परत) गर्भाशय से बाहर बढ़ने लगती है। कुछ दुर्लभ मामलों में और अगर ट्रीटमेंट से फायदा न हो तो गर्भाशय, अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब को निकालना पड़ सकता है।
- फैलोपियन ट्यूब में रुकावट आना :
फैलोपियन ट्यूब में जब कोई फ्लूइड (तरल पदार्थ) जमने लगता है तो इसकी वजह से फर्टिलिटी (प्रजनन) से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के एक हिस्से के रूप में सैलपिंजेक्टोकमी की जा सकती है।
अगर कोई महिला कभी मां नहीं बनना चाहती (गर्भनिरोधक का उपाय) तो उनकी भी सैलपिंजेक्टोकमी सर्जरी की जाती है। इसके अलावा अगर किसी महिला की कोई अन्य सर्जरी (जो कि कैंसर से जुड़ी नहीं थी) हो चुकी है और उसमें ओवेरियन कैंसर का खतरा है तो उसकी भी सैलपिंजेक्टोकमी सर्जरी की जा सकती है।
फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी कैसे होती है? - Salpingectomy kaise hoti hai?
फैलोपियन ट्यूब को निकालने के लिए निम्न तरीके से सर्जरी की जाती है -
- एब्डोमिनल सर्जरी -
ओपन एब्डोमिनल सर्जरी (पेट में चीरा लगाकर की जाने वाली) से पहले मरीज को जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। पेट के निचले हिस्से में सर्जन कुछ इंच का चीरा लगाते हैं। इस चीरे से फैलोपियन ट्यूब को देखा और निकाला जा सकता है। फैलोपियन ट्यूब निकालने के बाद चीरे को टांके से बंद कर दिया जाता है।
- लैप्रोस्कोपिक सर्जरी -
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में छोटा चीरा (कम चीर-फाड़ वाला) लगता है। ये सर्जरी जनरल या लोकल एनेस्थीसिया देकर की जा सकती है। पेट के निचले हिस्से में छोटा-सा चीरा लगाया जाता है। लैप्रोस्कोप एक लंबा और हल्का उपकरण होता है जिसके अंतिम छोर पर कैमरा लगा होता है। इसे चीरे के जरिए फैलोपियन ट्यूब के अंदर डाला जाता है। इस सर्जरी के दौरान पेट को कार्बन डाइऑक्साइड गैस से भर दिया जाता है जिससे सर्जन कंप्यूटर स्क्रीन पर पेल्विक अंगों (पेट और जांघों के बीच का हिस्सा) को साफ देख पाते हैं।
अब कुछ और चीरे लगाए जाते हैं। फैलोपियन ट्यूबों को निकालने के लिए इन चीरों के जरिए अन्य उपकरणों को डाला जाता है। ये चीरे आधे इंच से भी छोटे होते हैं। ट्यूबों को बाहर निकालने के बाद सभी चीरों को बंद कर दिया जाता है।
फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी से पहले की तैयारी - Salpingectomy se pehle ki taiyari
सर्जरी से पहले डॉक्टर और एनेस्थेटिस्ट मरीज से मिलते हैं और उससे ऑप्रेशन के बारे में बात करते हैं। सर्जरी से कुछ घंटे पहले मरीज को कुछ भी न खाने और पीने को कहा जा सकता है। सर्जरी से पहले मरीज को ढीले कपड़े पहनाए जाते हैं। अगर मरीज कोई दवा ले रहा है तो उसे सर्जरी से एक दिन पहले ही डॉक्टर को इसके बारे में बता देना चाहिए।
फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी के बाद देखभाल और सावधानियां - Salpingectomy hone ke baad dekhbhal aur savdhaniya
सर्जरी के बाद मरीज को मॉनिटर करने के लिए रिकवरी रूम में रखा जाता है। सर्जरी के बाद भी एनेस्थीसिया की वजह से मरीज कुछ घंटे पूरी तरह से होश में नहीं आता है। चीरे के आसपास आपको हल्का दर्द और घाव महसूस हो सकता है साथ ही जी मितली भी हो सकती है।
सर्जरी के बाद रोजमर्रा के काम करने में आपको कुछ दिन या इससे ज्यादा समय लग सकता है। कम से कम एक हफ्ते तक भारी सामान न उठाएं और न ही कोई एक्सरसाइज करें।
अगर अस्पताल से घर आने के बाद आपको निम्न लक्षण दिख रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर को बताएं -
- बुखार और ठंड लगना
- तेज दर्द और जी मितली
- चीरे के आसपास लालिमा, सूजन या डिस्चार्ज होना (कोई फ्लूइड निकलना)
- अचानक से योनि से बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होना
- मूत्राशय को खाली न कर पाना (पेशाब करने में दिक्कत)
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में लगाए गए चीरे छोटे होते हैं और एब्डोमिनल सर्जरी की तुलना में जल्दी भर जाते हैं।
हर किसी को रिकवर करने में अलग समय लगता है, लेकिन एब्डोमिनल सर्जरी के बाद तीन से छह हफ्तों और लेप्रोस्कोपी सर्जरी के बाद दो से चार हफ्तों में मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
फैलोपियन ट्यूब निकालने की सर्जरी की जटिलताएं - Salpingectomy me jatiltaye
लेप्रोस्कोपी सर्जरी की तुलना में एब्डोमिनल सर्जरी में जटिलताएं आने का जोखिम कम होता है। लेप्रोस्कोपी सर्जरी के बाद संक्रमण, ब्लीडिंग और फैलोपियन ट्यूब के आसपास के अंगों को नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है।
किसी भी तरह की सर्जरी में कुछ जोखिम होते ही हैं, जिसमें एनेस्थीसिया का बुरा प्रभाव भी शामिल है। एब्डोमिनल सर्जरी के मुकाबले लेप्रोस्कोपी सर्जरी में ज्यादा समय लगता है इसलिए मरीज को लंबे समय तक बेहोश रहने के लिए एनेस्थीसिया दिया जाता है।
सैलपिंजेक्टोकमी के अन्य जोखिम निम्नलिखित हैं -
- संक्रमण (एब्डोमिनल के मुकाबले लेप्रोस्कोपी में कम खतरा होता है)
- योनि से या चीरे वाली जगह से ब्लीडिंग होना
- हर्निया
एक अध्ययन में सिजेरियन के साथ सैलपिंजेक्टोकमी करवाने वाली 136 महिलाओं में जटिलताएं काफी कम एवं दुर्लभ ही देखी गई।
सर्जरी की लागत
संदर्भ
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