मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति का मतलब है एक महिला का मासिक धर्म या पीरियड्स का बंद हो जाना और अब वह गर्भवती नहीं हो सकती। अगर एक साल तक किसी महिला के पीरियड्स न आएं तो इसे रजोनिवृत्ति माना जाता है और यह प्रक्रिया आमतौर पर 50 की उम्र के आसपास देखने को मिलती है। पीरियड्स की ही तरह रजोनिवृत्ति भी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

ऑस्ट्रेलिया स्थित द यूनिवर्सिटी ऑफ क्वीन्सलैंड में हुई एक नई रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि ऐसी महिलाएं जिन्हें मेनोपॉज के बाद हॉट फ्लैशेज यानी बहुत ज्यादा गर्माहट और नाइट स्वेट यानी रात के समय बहुत ज्यादा पसीना आता है, ऐसी महिलाओं में से 70 प्रतिशत को हृदय संबंधी रोग जैसे- हार्ट अटैक, स्ट्रोक और एनजाइना होने का खतरा अधिक होता है। 

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कार्डियोवस्कुलर बीमारियां होने का खतरा 40 प्रतिशत अधिक
स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के पीचीडी स्टूडेंट डॉ डॉन्गशैन जू ने पाया कि महिला की उम्र चाहे जो हो अगर उन्हें हॉट फ्लैशेज और रात में पसीना जैसे लक्षण अनुभव होते हैं जिन्हें वैसोमोटर सिम्पटम्स या वीएमएस कहते हैं, उन महिलाओं में कम घातक कार्डियोवस्कुलर घटाएं अनुभव करने का खतरा अधिक होता है। डॉ जू कहते हैं, 'अब तक हमें ये पता नहीं था कि वीएमएस का कार्डियोवस्कुलर बीमारियों से कोई संबंध है या नहीं लेकिन अब हमें पता है कि यह सच है। इतना ही नहीं अगर मेनोपॉज से पहले वीएमएस हो जाए तो महिला में कार्डियोवस्कुलर बीमारियां होने का खतरा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।'

इस रिसर्च की मदद से उन महिलाओं की पहचान करने में मदद मिलेगी जिन्हें कार्डियोवस्कुलर या हृदय रोग होने का खतरा सबसे अधिक है और जिन्हें नैदानिक ​​अभ्यास में करीबी निगरानी की जरूरत हो सकती है। रिसर्च करने वाले डॉ जू ने 25 अध्ययनों के प्रमुख सहयोग से तैयार इंटरलेस से डेटा लिया था जिसमें दुनियाभर की 5 लाख से ज्यादा महिलाएं शामिल थीं।

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मेनोपॉज वाली 70 प्रतिशत महिलाओं में डिप्रेशन का खतरा
हृदय रोग के अलावा मेनोपॉज से गुजर रही महिलाओं में एक और चीज का खतरा अधिक है और वह है डिप्रेशन। द नॉर्थ अमेरिकन मेनोपॉज सोसायटी (nams) में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो मेनोपॉज से गुजर रही करीब 70 प्रतिशत महिलाओं को डिप्रेशन की समस्या प्रभावित करती है। एनएएमएस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन, न केवल डिप्रेशन के उच्च प्रसार की पुष्टि करता है, बल्कि यह भी बताता है कि पोस्टमेनोपॉज यानी मेनोपॉज के बाद महिलाओं में डिप्रेशन की वजह से चिंता और मृत्यु के डर से भी इसका संबंध है।

इस स्टडी में 485 पोस्टमेनोपॉज वाली महिलाओं को शामिल किया गया जिनकी उम्र 35 साल से 78 साल के बीच थी और उनमें किसी भी तरह के डिप्रेशन के लक्षणों के साथ ही एंग्जाइटी यानी बेचैनी और मौत के खतरे की भी जांच की। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि स्टडी में शामिल करीब 41 प्रतिशत महिलाओं में किसी न किसी तरह का डिप्रेशन जरूर अनुभव हुआ जिस कारण यह मेनोपॉज के बाद वाली महिलाओं में सेहत से जुड़ी सामान्य समस्या बन जाती है। 

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महिलाओं में डिप्रेशन होने के कई जोखिम कारक भी हैं
इस स्टडी के नतीजे पिछले शोध के समान ही हैं जिसमें बताया गया है कि मेनोपॉज से गुजर रही करीब 70 प्रतिशत महिलाओं को डिप्रेशन प्रभावित कर सकता है। अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने यह भी पाया कि मेनोपॉज के बाद महिलाओं में डिप्रेशन के सबसे बड़े जोखिम कारक में महिला का विधवा होना या पति से अलग होना, शराब का सेवन, कोई बीमारी जिसमें लगातार दवा का सेवन करने की जरूरत हो, शारीरिक विकलांगता, मानसिक बीमारी आदि शामिल है। 

हार्मोन के उत्पादन में कमी के कारण मनोवैज्ञानिक समस्याएं
अनुसंधानकर्ताओं की टीम बताती है कि रजोनिवृत्ति के दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोन के उत्पादन में आने वाली कमी की वजह से महिलाएं डिप्रेशन या अवसाद, चिंता, चिड़चिड़ापन, घबराहट, उदासी, बेचैनी, याददाश्त से जुड़ी समस्याओं, आत्मविश्वास और एकाग्रता की कमी और कामेच्छा की हानि सहित विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। 

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इन दोनों अध्ययनों पर नजर डालें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि हॉट फ्लैशेज और नाइट स्वेट्स जैसी चीजों पर तो हमारा नियंत्रण नहीं लेकिन इसके लिए हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी उपलब्ध है जिससे कुछ हद तक आराम जरूर मिल सकता है। लेकिन चूंकि मेनोपॉज एक प्राकृतिक प्रक्रिया है लिहाजा किसी तरह का इलाज करवाने और इसके बारे में चिंता करने की बजाए इसके लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना ही बेहतर होगा।

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