उम्र के साथ आपके बालों का सफेद होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन हमारे पूर्वजों ने मेहंदी और आंवला से लेकर हल्दी, लाल गेरू और लीक (प्याज के प्रकार की एक वनस्पति) तक सब कुछ अपने बालों को रंगने के लिए और सफेद बालों को छिपाने के लिए इस्तेमाल किया। यही चलन अब आधुनिक समय में भी जारी है। सिंथेटिक या कृत्रिम हेयर कलर और हेयर डाई का निर्माण 1860 के दशक में हुआ था। पहला कृत्रिम हेयर डाई बनाने का श्रेय यूजीन शूएलर को जाता है। (बालों की देखभाल से जुड़े उत्पादों के विश्व-प्रसिद्ध ब्रांड के संस्थापक)

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अब, बड़ी संख्या में लोग अपने सफेद बालों को छिपाने के लिए या फिर फैशनेबल दिखने के लिए पौधों से प्राप्त और कृत्रिम दोनों तरह के हेयर डाई का उपयोग करते हैं। हेयर डाई या हेयर कलर लगाना और इनका इस्तेमाल अब इतना आसान हो गया है कि अधिकांश लोग अपने घरों में ही आराम से बिना किसी झंझट के इसका उपयोग कर सकते हैं और कर रहे भी हैं। फ्रंटियर्स इन बायोसाइंस में साल 2012 में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि वैश्विक वयस्क आबादी का करीब 50 प्रतिशत से अधिक अपने जीवनकाल में कभी न कभी हेयर डाई या हेयर कलर का इस्तेमाल जरूर करता है।

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हेयर डाई में मौजूद केमिकल्स
ज्यादातर कैंसर का खतरा ऐसे हेयर डाई से जुड़ा होता है जो आपके बालों को स्थायी रूप से रंगते हैं- वे नहीं जो एक या दो शैम्पू के बाद धुल जाते हैं। मार्केट में कई अलग-अलग प्रकार के हेयर डाई मिलते हैं और उनमें हजारों तरह के विभिन्न रसायन पाए जाते हैं। अमोनिया, सुगंधित एमाइन्स और हाइड्रोजन पेरोक्साइड कुछ ऐसे ही रसायन हैं जो डाई को आपके बाल के रंग को बदलने में मदद करते हैं। जब आप अपने बालों को डाई करते हैं, तो आप अपनी खोपड़ी (स्कैल्प) की त्वचा के माध्यम से इन रसायनों की थोड़ी मात्रा को अवशोषित कर लेते हैं या आप सांस के जरिए इन्हें शरीर के अंदर लेते हैं। 

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हेयर डाई का इस्तेमाल और ब्रेस्ट कैंसर का जोखिम
क्या हेयर हाई या कलर लगाते वक्त आपको भी किसी तरह के साइड इफेक्ट खासकर कैंसर होने का डर सताता है? कुछ अध्ययनों में हेयर डाई में मौजूद केमिकल्स और कैंसर के बीच लिंक पाया गया है। साल 2012 का अध्ययन और पिछले दो दशकों में इस बारे में हुए कई अन्य अध्ययनों में यह भी संकेत दिया गया है कि कृत्रिम डाई, विशेष रूप से वैसी डाई जो पर्मानेंट होती है, उसमें कई प्रकार के रसायन होते हैं जो कैंसरकारी या संभव उत्परिवर्ती (म्यूटाजेन्स) के रूप में कार्य करते हैं। जुलाई 2020 में इंटरनैशनल जर्नल ऑफ कैंसर में प्रकाशित एक अध्ययन में यह बताया गया है कि अधिकांश हेयर डाई और बालों से जुड़े उत्पादों में एंडोक्राइन या अंतःस्त्रावी में गड़बड़ी पैदा करने वाले यौगिक और कैंसरकारी तत्व पाए जाते हैं जो ब्रेस्ट कैंसर के जोखिमों को बढ़ाते हैं। 

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हेयरड्रेसर में ब्लैडर कैंसर का खतरा
साल 2007 में क्रिटिकल रिव्यूज इन टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित एक और अध्ययन बताता है कि पर्मानेंट हेयर डाई में मौजूद कैंसरकारी तत्वों के संपर्क में- जिसे ऑक्सिडेटिव हेयर डाई के रूप में जाना जाता है- आने पर हेयरड्रेसर (बाल बनाने वालों) में ब्लैडर या मूत्राशय का कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है। मेडिकल प्रिसिंपल्स एंड प्रैक्टिस में 2019 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि स्थायी हेयर डाई का उपयोग, नॉन-हॉजकिन्स लिम्फोमा (एनएचएल) के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। नॉन-हॉजकिन्स लिम्फोमा (एनएचएल) एक प्रकार का घातक ट्यूमर है जो लिम्फ नोड्स में उत्पन्न होता है। इन अध्ययनों से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि स्थायी हेयर डाई में मौजूद केमिकल संभावित कैंसरकारी है और वे न केवल डाई का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं बल्कि हेयरड्रेसर में भी कई प्रकार के कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।

स्थायी हेयर डाई इस्तेमाल करने वालों पर नया अध्ययन
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में हाल ही में प्रकाशित अवलोकन संबंधी अध्ययन में स्थायी हेयर डाई के उपयोग और कैंसर की घटनाओं पर अधिक प्रकाश डाला गया है। अध्ययन में अमेरिका में चल रहे नर्सों के स्वास्थ्य अध्ययन में शामिल 1 लाख 17 हजार 200 महिलाओं को शामिल किया गया था। अध्ययन की शुरुआत में स्टडी में शामिल सभी प्रतिभागी कैंसर-मुक्त थीं। इसके बाद 36 वर्षों तक इन प्रतिभागियों द्वारा स्थायी हेयर डाई के व्यक्तिगत उपयोग की निगरानी की गई। विश्लेषण के दौरान इन डाई के उपयोग की अवधि और आवृत्ति को भी ध्यान में रखा गया।

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इस अध्ययन में पाया गया कि गैर-उपयोगकर्ताओं की तुलना में स्थायी हेयर डाई के लगातार उपयोगकर्ताओं में समग्र ठोस या हेमाटोपोइएटिक कैंसर के जोखिम में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई। साथ ही इन महिलाओं में विशिष्ट तरह के कैंसर जैसे- त्वचा संबंधी स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा, ब्लैडर कैंसर, मेलानोमा, ब्रेन कैंसर, कोलोरेक्टल कैंसर, किडनी कैंसर, फेफड़े का कैंसर या कैंसर से संबंधित मौतों का अधिक खतरा नहीं था। हालांकि, इससे पहले कि आप इन निष्कर्षों पर विचार करके खुश हो जाएं, इसका एक दूसरा पहलू भी है।

ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर का जोखिम भी बढ़ा हुआ था
स्थायी हेयर डाई का लगातार उपयोग करने वालों में बेसल सेल कार्सिनोमा का जोखिम थोड़ा बढ़ गया था। इसके अलावा कई सालों तक इन डाई की संचयी खुराक लेने वालों में एस्ट्रोजेन रिसेप्टर-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर, प्रोजेस्टेरॉन रिसेप्टर-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर, हार्मोन रिसेप्टर-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर का जोखिम बढ़ा हुआ था। प्राकृतिक रूप से काले बालों वाली महिलाओं में हॉजकिन्स लिम्फोमा के विकास का उच्च जोखिम भी देखा गया। इस अध्ययन की सबसे बड़ी सीमा यह थी कि इसमें नस्लीय विविधता का अभाव था और इसलिए इसके निष्कर्षों को वैश्विक प्रतिध्वनि के लिए स्वचालित रूप से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

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हेयर कलर या डाई का सीमित मात्रा में ही करें इस्तेमाल
इस हालिया अध्ययन और पिछले अध्ययनों के निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुए, यह कहा जा सकता है कि बेहतर वैश्विक अध्ययन के अभाव में स्थायी हेयर डाई के उपयोग के कारण कैंसर की घटनाओं में वृद्धि होती है या नहीं इस बारे में कुछ भी कहना अब भी धूमिल ही है। फिर भी, यह बात तो पूरी तरह से स्पष्ट है कि लंबे समय तक या स्थायी हेयर डाई के अत्यधिक उपयोग से कैंसरकारी तत्वों के संपर्क में आने का जोखिम बढ़ जाता है जिससे कैंसर का खतरा होता है। यहां ध्यान देने योग्य बात ये है कि आपको हेयर डाई या हेयर कलर का सीमित मात्रा में उपयोग करना चाहिए (खासकर तब अगर आपके परिवार में पहले से कैंसर का इतिहास है या फिर आप कैंसरकारी तत्वों के अधिक संपर्क में रहते हैं) या कम हानिकारक रसायनों से बनने वाले ऑर्गैनिक हेयर डाई का ही इस्तेमाल करना चाहिए।

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