भारत के युवाओं में हृदय रोग की वर्तमान स्थिति

भारत में स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में काफी बदलाव हो रहे हैं। टीबी, मलेरिया, डेंगू और एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेंस जैसी संक्रामक बीमारियां अब भी स्‍वास्‍थ्‍य एवं आर्थिक सुरक्षा की दृष्टि से खतरा बना हुई हैं। अब भारत में जीर्ण गैर-संचारित बीमारियों की समस्या भी उभरकर सामने आ रही हैं। भारत के लोग अब हृदय रोगों, डायबिटीज और कैंसर जैसी जीर्ण गैर-संचारित बीमारियों का भी शिकार हो रहे हैं। अब ये बीमारियां भारत में मृत्‍यु के प्रमुख कारण के रूप में उभरकर सामने आ रही हैं। 

‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी’ में प्रकाशित हुई एक स्‍टडी के अनुसार यूएसए में पिछले 15 वर्षों में हृदय रोगों के कारण होने वाली मृत्‍यु दर में 41 फीसदी की गिरावट आई है जबकि भारत में 31 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। 

भारत में हृदय रोग के कारण हुए हार्ट अटैक के आधे मामले 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में होते हैं। इनमें से 25% लोग 40 वर्ष से कम उम्र के पाए गए हैं। हमारे देश में हृदय रोग के मामले तो बढ़ ही रहे हैं, चिंता की बात ये भी है कि अब युवा भी हृदय रोग से प्रभावित हो रहे हैं। इससे हमारे देश की कामकाजी आबादी कमजोर हो रही है जिसका असर देश के समग्र विकास पर पड़ रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो भारत का भविष्‍य अंधकार में डूब जाएगा। 

हृदय रोग से निपटने के लिए जीवनशैली में बदलाव 

हृदय रोगों के कारण होने वाली मृत्‍यु की संख्‍या को कम करने के लिए शहरी लोगों की जीवनशैली में उचित बदलाव करने की जरूरत है। उम्र, लिंग और आनुवांशिक कारकों के अलावा हृदय रोग के जोखिम कारकों में हाई ब्‍लड प्रेशर, डायबिटीज, ब्‍लड लिपिड (जैसे कोलेस्ट्रॉल) का स्‍तर बिगड़ना, धूम्रपान, शारीरिक रूप से असक्रियता, मोटापा और तनाव शामिल हैं। लोगों को इसके जोखिम कारकों के बारे में पता होता है लेकिन फिर भी इसे कोई बड़ी बीमारी या स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या का रूप लेने तक, लोग इसे नज़रअंदाज करते रहते हैं। अगर समय पर जांच करवा ली जाए तो हृदय रोग को ठीक किया जा सकता है और कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।

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जीवनशैली में कुछ बदलाव करके हृदय रोगों को ठीक किया जा सकता है। आप क्‍या खाते हैं, कितना व्‍यायाम करते हैं, आपका वजन कितना है और आप किस तरह स्‍ट्रेस को नियंत्रित करते हैं, इन बातों का ध्‍यान रख कर भी हृदय रोग को रोका जा सकता है। तैलीय, मीठी चीजों और जंक फूड से दूर रहने की आदत डालनी चाहिए। खासतौर पर 40 की उम्र के बाद इन बातों का खास ख्‍याल रखना चाहिए। स्‍ट्रेस खत्‍म करने के लिए दिन में कम से कम 45 मिनट व्‍यायाम करें और संतुलित आहार लें। दिल को स्‍वस्‍थ रखने और सुखी जीवन के लिए इन बातों का ध्‍यान रखना बहुत जरूरी है। हृदय रोग ही नहीं, आपको अपने परिवार के सभी सदस्यों की सवास्थ्य समस्याओं के बारे में पता होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी व्‍यक्‍ति के माता या पिता को हृदय रोग है तो उस व्‍यक्‍ति में इस बीमारी का खतरा 15 से 20 फीसदी बढ़ जाता है, और अगर माता-पिता दोनों ही दिल की बीमारी से ग्रस्‍त हों तो उनके बच्‍चे में इसका खतरा 30 से 40 फीसदी तक बढ़ जाता है। इस स्थिति में 25 की उम्र से ही जांच करवाना शुरु कर सकते हैं।

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ट्रीटमेंट की तकनीकें 

दिल की बीमारी का पता लगाने के 3 तरीके हैं, जिसमें दिल की बीमारी से बचने के लिए चेकअप करवाना, एनजाइना (सीने में दर्द) महसूस होना या हार्ट अटैक होना। पहली दो स्थिति में मरीज़ का इलाज किया जा सकता है और वो सामान्‍य एवं स्‍वस्‍थ जीवन व्‍यतीत कर सकता है। हार्ट अटैक की स्थिति में बीमारी के कारण 20 फीसदी मरीज़ों की मौत हो जाती है और बाकी 80 फीसदी लोगों को गंभीर शारीरिक क्षति पहुंचती है जिसकी वजह से वह सामान्‍य जीवन व्यतीत नहीं कर पाते हैं। इसलिए हृदय रोगों से बचने के लिए समय पर ही चेकअप करवाना बेहतर रहता है। इससे काफी हद तक दिल की बीमारियों से बचा जा सकता है।

चिकित्‍सकीय रूप से अगर धमनियां 70 फीसदी तक अवरुद्ध हैं तो उन्हें दवाओं से ठीक किया जा सकता है। अगर ब्‍लॉकेज 70 फीसदी से ज्‍यादा हो तो इस स्थिति में स्‍टेंट का इस्‍तेमाल बेहतर रहता है। मल्‍टीपल ब्‍लॉकेज वाले मरीज़ों में बाईपास सर्जरी सुरक्षित और किफायती विकल्‍प है। दिल के रोगों के इलाज के लिए मरीज की हालत के अनुसार इलाज को बदलना चाहिए। इसी जगह पर हार्ट टीम का सिद्धांत काम आता है। कार्डिओलॉजिस्ट, इंटरवेंशनलिस्ट या सर्जन में से किसी को भी अकेले कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। उपलब्ध जानकारी के अनुसार तीनों विशेषज्ञों को मिलकर सही निर्णय लेना चाहिए, ताकि मरीज का सर्वोत्तम इलाज किया जा सके। पिछले कुछ वर्षो में इलाज की बेहतर पद्धति और डॉक्‍टर एवं विशेषज्ञों की टीम ने ज्‍यादा महारत हासिल कर ली है।

हृदय संबंधी देखभाल में तकनीकी विकास

हृदय संबंधी देखभाल के हर पहलु में तकनीकी संबंधी काफी प्रगति हुई है। उदाहरण के तौर पर, आजकल काफी सारे ऐसे टेस्ट आ गए हैं, जो हृदय की मांसपेशियों में हुई क्षति के बारे में काफी सटीक रूप से बता सकते हैं और इनमें इस हद तक सुधार कर दिया गया है कि इनकी मदद से छोटे से छोटे हार्ट अटैक का भी पता लगाया जा सकता है। इसका एक अन्य उदाहरण है एंजियोग्राम में उपयोग होने वाली एफएफआर तकनीक (फेशियल फ्लोर रिजर्व वायर)। इस तकनीक के द्वारा धमनी की रुकावट में तार डाली जाती है जिससे आंकड़े रिकॉर्ड किए जाते हैं। यदि रीडिंग 0.8 प्रतिशत है तो व्यक्ति को सुरक्षित समझा जाता है। अगर इसका स्तर 0.8 प्रतिशत से कम है तो व्यक्ति के लिए संबंधित रोग का खतरा बढ़ जाता है और ऐसे में ब्लॉकेज का इलाज करवाना बहुत जरूरी होता है। हृदय की सर्जरी के मामलों में ‘मिनीमली-इनवेसिव सर्जरी’ (छोटे चीरे वाली सर्जरी) सबसे प्रचलित प्रक्रिया बन गई है। इस सर्जिकल प्रक्रिया में मरीज के शरीर में होने वाली क्षति 50 प्रतिशत कम हो जाती है और इसके दौरान लगाया जाने वाला चीरा सामान्य सर्जरी के मुकाबले दो-तिहाई छोटा होता है। इन सभी तकनीकी खोजों का मुख्य उद्देश्य मरीज की सुरक्षा को ध्यान में रखने के साथ-साथ उनकी शारीरिक क्षति व आर्थिक बोझ को कम करना है।

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हृदय संबंधी रोग के खर्चे को कम करना

30 साल पहले, जब हमने बड़े पैमाने पर बाईपास सर्जरी करना शुरू किया था, तब इस प्रक्रिया का खर्च तकरीबन 1 लाख रूपए तक था। तीन दशकों के बाद, ये खर्च अत्यधिक नहीं बढ़ा है। अगर किसी व्यक्ति को अच्छी गुणवत्ता व निपुणता के साथ सर्वश्रेष्ठ उपकरणों के द्वारा सर्जरी चाहिए, तो उसे न्यूनतम इतना खर्च तो उठाना ही पड़ेगा। हालांकि, हम इस बात से भी परिचित हैं, कि अधिकांश मामलों में बीमा की मदद ना मिल पाने के कारण ज्यादातर भारतीय इस सुविधा को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। बीमा आसानी से मिल जाने और भारत सरकार द्वारा “आयुष्मान भारत” जैसी योजनाएं चलाने से ज्यादातर भारतीय ये ऑपरेशन करवाने में समर्थ हैं। 

उदाहरण के तौर पर यदि आयुष्मान भारत योजना को एक प्रभावी और समायोजित तरीके से चलाया जाए तो इससे स्थिति में काफी बदलाव आ सकते हैं। इस शुरुआत के तहत सरकार 50 करोड़ आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों को सरकारी व प्राइवेट स्वास्थ्य संस्‍थानों में इलाज करवाने की सुविधा प्रदान कर सकेगी। यह सरकार और उद्योगों के लिए बहुत जरूरी है, कि वे आपस में पार्टनरशिप करें और लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी सुविधाएं पहुंचाने पर ध्यान दें ताकि सभी लोगों को अच्छी क्वालिटी की सुविधाएं मिल सकें। सभी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों को आपस में जोड़कर एक विशाल हेल्थ नेटवर्क बनाने की भी आवश्यकता है।

निष्‍कर्ष

इस साल विश्‍व हृदय दिवस की थीम “माई हार्ट, युअर हार्ट” है। यह दिवस जीवनशैली से संबंधित अच्‍छी आदतों जैसे कि शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय रहने, धूम्रपान ना करने और स्‍वस्‍थ आहार लेकर स्‍वयं और अपने प्रियजनों के हृदय की देखभाल करने की ओर प्रेरित करता है। हृदय की देखभाल करने के विभिन्‍न पहलुओं पर तुरंत कोई कदम उठाने की जरूरत है। इसमें समय पर जांच और बचाव, किफायती उपचार, हार्ट हैल्‍थ कवर और लोगों में अधिक जागरूकता फैलाना शामिल है। हम एक राष्ट्र के रूप में हृदय रोगों का मुकाबला तभी कर पाएंगे जब इन कारकों को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगें।

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