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ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी (एचएसपी) को सीमेन एलर्जी भी कहा जाता है. यह तब होता है जब सीमेन में प्रोटीन के प्रति हानिकारक इम्यून सिस्टम का रिएक्शन होता है. यह कंडीशन सामान्य नहीं है. ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी के लक्षण में स्किन का लाल हो जाना, जलन होना व सूजन आ जाना शामिल है. वहीं, इलाज के लिए डॉक्टर डिसेंसिटाइजेशन, दवाइयों का सेवन और कंडोम इस्तेमाल करने की सलाह दे सकते हैं.

आज इस लेख में आप ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी के लक्षण, कारण, इलाज और प्रेगनेंसी पर इसके असर के बारे में जानेंगे -

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  1. क्या है ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी?
  2. ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी के लक्षण
  3. ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी का कारण
  4. ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी का इलाज
  5. ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी का प्रेगनेंसी पर असर
  6. सारांश
यौन रोग के डॉक्टर

ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी एक सीमेन एलर्जी है, जो अधिकतर पुरुषों के स्पर्म में पाए जाने वाले प्रोटीन के एलर्जिक रिएक्शन की वजह से होती है. यह एक आम एलर्जी नहीं है, जो अधिकतर महिलाओं को ही अपना निशाना बनाती है.

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ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी के लक्षण एक या एक से ज्यादा भी एक साथ हो सकते हैं, जिसमें स्किन का लाल हो जाना, जलन महसूस होना, सूजन हो जाना शामिल है. महिलाओं को यह एलर्जी वल्वा या वजाइनल कनाल के अंदर होती है. पुरुषों को प्राइवेट अंगों के ऊपर वाली स्किन पर हो सकती है. आइए, ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी के लक्षणों के बारे में जानते हैं -

सीमेन के संपर्क में आने वाले शरीर के किसी भी हिस्से पर यह एलर्जी हो सकती है, जिसमें हाथ, मुंह, छाती व एनस भी शामिल है. 

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सीमेन एलर्जी एक दुर्लभ स्थिति है, यह तब होती है, जब इम्यून सिस्टम सीमेन में मौजूद प्रोटीन के प्रति प्रतिक्रिया करता है. इससे एलर्जी की प्रतिक्रिया होती है. फिलहाल, इसके होने के पीछे अभी कोई स्पष्ट कारण का पता नहीं चल पाया है.

सीमेन एलर्जी सबसे ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करती है. इस समस्या से ग्रस्त करीब 40% महिलाएं पहली बार सेक्स करने के बाद इसका अनुभव कर सकती हैं. एचएसपी विकसित करने वालों में से 60% से अधिक लोगों को 20-30 की उम्र के बीच इसका पता चल सकता है. वहीं, कुछ महिलाओं को रजोनिवृत्ति के बाद पहली बार एचएसपी का अनुभव हो सकता है. यह समस्या आनुवंशिक भी हो सकती है. अगर किसी के परिवार में इस समस्या का इतिहास रहा है, तो उन्हें भी यह समस्या होने का जोखिम अधिक रह सकता है.

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ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी के इलाज के तौर पर लक्षणों को कम करने की कोशिश की जाती है. इसका सबसे बढ़िया इलाज कंडोम के साथ सुरक्षित सेक्स करना है. इसके अलावा, डॉक्टर डिसेंसिटाइजेशन और दवाइयां लेने की सलाह दे सकते हैं. आइए, ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी के इलाज के बारे में विस्तार से जानते हैं -

सुरक्षित सेक्स

ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी से बचने का सबसे बेहतर तरीका कंडोम के साथ ही सेक्स करना है. जो पुरुष अपने सीमेन से ही एलर्जिक होते हैं, उन्हें भी कंडोम पहनकर ही मास्टरबेशन करने की सलाह दी जाती है. 

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डिसेंसिटाइजेशन

इसमें वजाइना के अंदर या पेनिस पर डिल्यूटेड सीमेन सॉल्यूशन लगाया जाता है. इसके अलावा, सीमेन प्रोटीन का इंजेक्शन भी दिया जा सकता है.

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दवाइयों का सेवन

डॉक्टर किसी भी सेक्शुअल एक्टिविटी से पहले एंटीहिस्टामाइन लेने के लिए कह सकता है. इस तरह से लक्षणों को कम करने में मदद मिलती है, खासकर तब जब पार्टनर एक्सपोजर से बचने के लिए कंडोम का इस्तेमाल नहीं करना चाहता है.

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ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी सीधे प्रेगनेंसी या फर्टिलिटी को प्रभावित नहीं करता है. हां, अगर व्यक्ति एलर्जिक रिएक्शन से बचने के लिए सेक्स के समय कंडोम जैसी किसी बैरियर विधि का इस्तेमाल करता है, तो इससे कंसीव करने के चांसेज अपने आप प्रभावित होते हैं.

वहीं, अगर समस्या गंभीर है और डॉक्टर असुरक्षित सेक्स करने से मना करते हैं, तो इस स्थिति में प्रेगनेंसी के लिए आईयूआई या आईवीएफ की मदद ली जा सकती है. इसमें एलर्जिक रिएक्शन से बचने के लिए स्पर्म को साफ किया जाता है, जिसके बाद प्रोटीन खत्म हो जाता है और एलर्जिक रिएक्शन नहीं होता है. इसके बारे में ज्यादा जानकारी डॉक्टर से ली जा सकती है.

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ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी में पुरुष के स्पर्म में पाए जाने वाले प्रोटीन की वजह से एलर्जिक रिएक्शन होता है. इसके लक्षणों में स्किन में जलन, दर्द के साथ ही खुजली की दिक्कत हो सकती है. इसके इलाज के लिए डॉक्टर कंडोम के साथ सुरक्षित सेक्स की सलाह के साथ डिसेंसिटाइजेशन की सलाह दे सकते हैं. ह्यूमन सेमिनल प्लाज्मा हाइपरसेंसिटिविटी सीधे प्रेगनेंसी और फर्टिलिटी को प्रभावित नहीं करता है, लेकिन गंभीर अवस्था में जब असुरक्षित सेक्स से मना किया जाता है, तो आईयूआई व आईवीएफ का सहारा लिया जा सकता है.

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