एक्टर, प्रोड्यूसर और नेता कमल हासन आज अपने पैर की सर्जरी करवाने जा रहे हैं। इसके लिए वह चेन्नई के एक निजी अस्पताल में भर्ती होंगे। इस सर्जरी के जरिए उनके पैर से इम्प्लांट निकाला जाएगा। दरअसल साल 2016 में कमल हासन के पैर में चोट लग गई थी। इस दौरान वो अपने चेन्नई ऑफिस की सीढ़ियों से गिर गए थे, जिससे उनके एक पैर में फ्रैक्चर आ गया था। इसके बाद हड्डी को जोड़ने के लिए पैर में इम्प्लांट डाला गया था।

कमल हासन की राजनीतिक पार्टी मक्कल नीधि मैयम (एमएनएम) द्वारा इस सर्जरी के बारे में जानकारी दी गई। एमएनएम ने बताया कि वे पिछले कुछ समय से राजनीति और फिल्मों में व्यस्तता के चलते इस सर्जरी के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे। हालांकि, अब सर्जरी के जरिए उनके पैर में लगे प्रत्यारोपण (इम्प्लांट) को हटाया जाएगा।

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इम्प्लांट सर्जरी क्या है?
ऑर्थोपेडिक इम्प्लांट एक चिकित्सा उपकरण या मेडिकल डिवाइस है। जो किसी भी ज्वाइंट (हड्डियों के बीच के जोड़) को बदलने के लिए या किसी टूटी हुई हड्डी को सपोर्ट देने के लिए लगाया जाता है। मेडिकल इम्प्लांट मुख्य रूप स्टेनलेस स्टील और टाइटेनियम जैसी धातुओं का बना होता है, जो मुख्यतौर पर हड्डी को मजबूती देने का काम करता है। इम्प्लांट की जाने वाली प्लास्टिक कोटिंग एक आर्टिफिशियल कार्टिलेज (हड्डी को लचक देने) का कार्य करती है। सर्जरी या ऑपरेशन के दौरान हड्डी के टुकड़े को पहले उसके सामान्य रूप में लाने की कोशिश होती है, जिसके बाद हड्डी को प्लेट, स्क्रू, पिन और तारों जैसे आंतरिक फिक्सेटर की मदद से एक साथ रखा जाता है।  हालांकि, कभी-कभी सर्जिकल इम्प्लांट का इस्तेमाल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी में भी किया जाता है। जैसे –

इस तरह की सर्जरी को क्षतिग्रस्त या काम नहीं करने वाले जोड़ों पर किया जाचा है, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता। इस तरह की सर्जरी से मरीज के जीवन को कुछ हद तक आसान बनाया जा सकता है।

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इम्प्लांट की जरूरत क्यों पड़ती है ?
myUpchar से जुड़ी डॉक्टर जैसमीन कौर के मुताबिक दो तरह की स्थिति में मरीज को इम्प्लांट करने की जरूरत पड़ती है। जैसे, ज्वाइंट (जोडों को) बदलने के लिए। मसलन किसी मरीज को हिप यानी कूल्हे में फ्रैक्चर है तो उसे बदलने के लिए इम्प्लांट किया जाता है। इसके अलावा टूटे घूटने में भी इम्प्लांट की जरूरत होती है। वो इसलिए क्योंकि हड्डी के उसकी जगह से खिसक जाने या टूटने पर इम्प्लांट के जरिए उसे मजबूती दी जाती है। प्लास्टर या बाकी अन्य विकल्प के जरिए इस हड्डी को ठीक नहीं किया जा सकता।

इसके साथ क्या समस्याएं होती है ?
डॉक्टर जैसमीन का कहना है कि अगर सर्जरी के दौरान या फिर सर्जरी के बाद किसी भी प्रकार का इंफ्केशन सर्जिकल साइट पर हो जाता है, तो (टांकों में मवाद या पस आना, टांकों का ठीक ना होना, टांकों का नहीं सूखना या फिर खून में इन्फेक्शन) इस इन्फेक्शन की वजह से समस्या हो सकती है। इस स्थिति में भविष्य में यदि कभी एमआरए कराना पड़े तो स्टील का इम्प्लांट होने की वजह से एमआरआई करना संभव नहीं होता।

इम्प्लांट हटाने की जरूरत क्यों होती है?
जब टूटी हुई हड्डी पूरी तरह से जुड़ जाती है तो इम्प्लांट को हटाना जरूरी होता है। हालांकि, इसमें कोई समय अवधि (टाइम पीरियड) निर्धारित नहीं है। हड्डी के रिकवर होने के साथ ही इसे हटाया जा सकता है। जब कोई ज्वाइंट (हड्डी के जोड़) को इम्प्लांट से बदलते हैं तो ऐसे में इम्प्लांट को नहीं हटाया जाता। 

क्या इम्प्लांट हटाने के बाद कोई व्यक्ति नॉर्मल लाइफ जी सकता है?
डॉक्टर जैसमीन कौर के मुताबिक इम्प्लांट तभी हटाया जाता है जब रोगी की हड्डी पूरी तरह से ठीक हो जाती है। इस स्थिति में मरीज का जीवन पहले की तरह सामान्य हो जाता है। इसके हटाने पर किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती।

  • इम्प्लांट हटाने के बाद व्यक्ति को कभी-कभी हल्का दर्द महसूस हो सकता है। इसके लिए मरीज को कोशिश करनी होती है कि वह ऐसी शारीरिक गतिविधियों में शामिल ना हों, जिससे उसे फिर से चोट लग सके।
  • फुटबॉल खेलना, बहुत तेज दौड़ना या फिर कोई भी ऐसी क्रिया जिससे हड्डी पर अधिक दबाव पड़े, उनसे दूर रहना चाहिए। अन्यथा फिर से उस जगह फ्रैक्चर होने की आशंका बनी रहती है।
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