टीएसएच क्या है?

मौजूदा समय में थायराइड संबंधी समस्याएं काफी आम हो चुकी हैं। शरीर में होने वाली थायराइड की समस्याओं का पता लगाने के लिए थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) टेस्ट किया जाता है। इसकी मदद से खून में टीएसएच की मात्रा का पता लगाया जाता है। कई प्रकार के थायराइड विकारों जैसे हाइपोथायरायडिज्म और हाइपरथायरायडिज्म का पता लगाने के लिए इस परीक्षण को उपयोगी माना जाता है।

टीएसएच का ​निर्माण पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा होता है, जो पूरे शरीर में हार्मोन उत्पादन और मेटाबॉलिज्म को विनियमित करने में मदद करती है। इतना ही नहीं मेटाबॉलिज्म के लिए थायरोक्सिन जैसे अन्य आवश्यक हार्मोन बनाने में भी टीएसएच,थायराइड ग्रंथि की सहायता करता है। इसके अलावा ऊर्जा, तंत्रिका संबंधी कार्यों और शरीर के लिए अन्य आवश्यक गतिविधियों में भी टीएसएच की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।

शरीर में थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन का सामान्य से कम और अधिक होना दोनों ही हानिकारक होता है। अब सवाल उठता है कि आखिर टीएसएच की मात्रा कितनी होनी चाहिए? विशेषज्ञों का मानना है कि टीएसएच का सामान्य स्तर 0.45 और 4.5 मिली यूनिट प्रति लीटर (एमयू/ एल) के बीच होना सामान्य स्थिति का सूचक है। वैसे टीएसएच का स्तर उम्र, लिंग और जीवन के चरण के आधार पर भिन्न हो सकता है। तनाव, आहार, दवाओं और कई प्रकार की अन्य स्थितियों के कारण भी टीएसएच का स्तर भिन्न हो सकता है।

थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) टेस्ट

थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) परीक्षण के माध्यम से रक्त में हार्मोन के स्तर का पता लगाया जाता है। परीक्षण के लिए शरीर से कुछ मात्रा में रक्त की आवश्यकता होती है। रक्त के सैंपल को जांच के लिए भेजा जाता है। जांच के परिणाम में यदि हार्मोन का स्तर सामान्य से अधिक आता है तो यह दर्शाता है कि थायराइड अंडरएक्टिव है। इसे हाइपोथायरायडिज्म के नाम से जाना जाता है। वहीं यदि हार्मोन का स्तर सामान्य से कम आता है तो यह ओवरएक्टिव थाइराइट का सूचक होता है। इस परीक्षण के परिणाम के आधार पर इलाज की शुरुआत होती है।

  1. विभिन्न स्थितियों में टीएसएच का स्तर - TSH level alag alag conditions me
  2. थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) का बढ़ा हुआ स्तर - TSh ka high level
  3. थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) के स्तर में कमी - TSH ka Low level

जैसा कि ऊपर बताया गया कि कई प्रकार की स्थितियों के कारण लोगों में टीएसएच का स्तर भिन्न हो सकता है। आइए समझते हैं कि टीएसएच का स्तर सामान्य से अधिक या कम होने का क्या मतलब होता है?

टीएसएच का बढ़ा हुआ स्तर

टीएसएच के बढ़े हुए स्तर का मतलब है कि आपकी थायराइड ग्रंथि ठीक से काम नहीं कर रही है। थायराइड हार्मोन की कमी की स्थिति में पिट्यूटरी ग्रंथि टीएसएच का उत्पादन बढ़ा देती है, जिससे अंतर को कम किया जा सके। टीएसएच के बढ़े हुए स्तर को हाइपोथायरायडिज्म कहा जाता है।

टीएसएच के स्तर में कमी

टीएसएच के स्तर में कमी का मतलब है कि आपका शरीर बहुत अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन का उत्पादन कर रहा है। ऐसे में पिट्यूटरी ग्रंथि टीएसएच उत्पादन को कम करके प्रतिक्रिया करती है ताकि थायराइड फंक्शन को नियंत्रण में किया जा सके। इसे हाइपरथायरायडिज्म कहा जाता है।

महिलाओं में टीएसएच का स्तर

रजोनिवृत्ति के बाद, मासिक धर्म में और प्रसव के बाद महिलाओं में टीएसएच का स्तर असामान्य होने का खतरा बढ़ जाता है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुरुषों में तीन फीसदी की तुलना में अमेरिका में लगभग पांच फीसदी महिलाओं को थाइराइड की समस्या है। साल 2017 के एक अध्ययन से पता चलता है कि टीएसएच बढ़ने से वृद्ध महिलाओं में थायराइड कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

पुरुषों में टीएसएच का स्तर

पुरुषों में टीएसएच का स्तर बढ़ने या घटने, दोनों प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। पुरुषों में यदि टीएसएच का स्तर बढ़ जाए तो यह जननांगों के अनियमित विकास जैसी जटिलताओं का कारक भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में पुरुषों के लिए थायराइड हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी लेना आवश्यक हो जाता है।

बच्चों में टीएसएच का स्तर

बच्चों में उम्र के हिसाब से टीएसएच का स्तर बदलता रहता है। जन्म से चार दिन तक के बच्चों में टीएसएच का सामान्य स्तर 1.6–24.3 मिलीयूनिट प्रति लीटर, दो से 20 सप्ताह के बच्चों में यह स्तर 0.58–5.57 मिलीयूनिट प्रति लीटर जबकि 20 सप्ताह से 18 साल तक के बच्चों में टीएसएच का सामान्य स्तर 0.55–5.31 होना चाहिए। बच्चों में जन्म के बाद पहले महीने में टीएसएच का स्तर अधिक होता है, जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है यह घटना शुरू हो जाता है।

गर्भावस्था के दौरान टीएसएच का स्तर

गर्भावस्था के दौरान टीएसएच के स्तर की निगरानी रखना महत्वपूर्ण होता है। इसके बढ़ जाने पर गर्भपात का खतरा रहता है। गर्भावस्था के पहले तीन महीने में टीएसएच का स्तर 0.6–3.4 मिलीयूनिट प्रति लीटर, दूसरे तिमाही में 0.37–3.6 मिलीयूनिट प्रति लीटर और आखिरी के तीन महीने में 0.38–4.0 मिलीयूनिट प्रति लीटर सामान्य माना जाता है। गर्भावस्था के दौरान टीएसएच के स्तर को नियंत्रित रखकर आप निम्न प्रकार की परेशानियों से दूर रह सकती हैं।

  • प्रीक्लेम्पसिया
  • समय से पहले बच्चे का जन्म
  • जन्म के समय बच्चे के वजन में कमी
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टीएसएच के बढ़े हुए स्तर को हाइपोथायरायडिज्म कहा जाता है। जब थायराइड ग्रंथि से हार्मोन का उत्पादन कम होता है तो ऐसी स्थिति में हाइपोथायरायडिज्म का खतरा बढ़ जाता है। जब थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है तो क्षतिपूर्ति के लिए पिट्यूटरी ग्रंथि टीएसएच का उत्पादन बढ़ा देती है।

बिना थाइराइड रोग के टीएसएच का बढ़ना

जिन लोगों को थाइराइड रोग की शिकायत नहीं है फिर भी उनमें टीएसएच का स्तर बढ़ रहा है, यह प्राथमिक हाइपोथायरायडिज्म की उपस्थिति को इंगित करता है। यह हाइपोथायरायडिज्म का सबसे आम रूप है। थायराइड ग्रंथि द्वारा अपर्याप्त मात्रा में थायरॉयड हार्मोन के उत्पादन के कारण यह समस्या देखने को मिलती है। इस स्थिति में पिट्यूटरी ग्रंथि टीएसएच का उत्पादन बढ़ा देती है।

थाइराइड रोगियों में टीएसएच का बढ़ना

हाइपो या हाइपरथायरायडिज्म रोगियों में टीएसएच का बढ़ना काफी हद तक सामान्य है। हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में टीएसएच के बढ़ने का मतलब है कि थायराइड हार्मोन की मात्रा को बढ़ाने की आवश्यकता है। कुछ मामलों में दवा की खुराक तो दी जा रही होती है, लेकिन प्रभाव नहीं हो पाता है।

वहीं हाइपरथायरायडिज्म की स्थिति में टीएसएच के बढ़ने का मतलब है कि थायराइड हार्मोन के अत्यधिक उत्पादन को रोकने के लिए किया गया उपचार (सर्जरी, रेडियोएक्टिव आयोडीन या दवाएं) प्रभावी था। इससे यह भी पता चलता है कि रोगी अब हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में आ गया है। मतलब, थायराइड ग्रंथियां अब थायराइड हार्मोन का बहुत अधिक उत्पादन नहीं कर रही हैं।

थायराइड स्टिम्युलेटिंग हार्मोन के बढ़ जाने पर निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

हाइपोथायरायडिज्म का उपचार

टीएसएच के बढ़े हुए स्तर के इलाज में कुछ दवाइयां दी जा सकती हैं। इलाज के दौरान प्राकृतिक रूप से थायरोक्सिन हार्मोन की पूर्ति करने का भी प्रयास किया जाता है। इसके अलावा लिवोथायरोक्सिन के अवशोषण को प्रभावित करने वाले पदार्थ जैसे फाइबर, आयरन और कैल्शियम का सेवन न करने की सलाह दी जाती है।

टीएसएच के स्तर में कमी को हाइपरथायरायडिज्म कहा जाता है। इसे ओवरएक्टिव थायराइड के नाम से भी जाना जाता है। यदि थायरॉयड ग्रंथि हार्मोन के उत्पादन को बढ़ा देती है तो ऐसी स्थिति में पिट्यूटरी ग्रंथि टीएसएच के उत्पादन को कम कर देती है।

बिना थाइराइड रोग के टीएसएच की कमी

टीएसएच के स्तर का कम होना सेंट्रल हाइपोथायरायडिज्म का संकेत हो सकता है।

हाइपरथायरायडिज्म : हाइपरथायरायडिज्म क्षणिक और स्थायी हो सकता है। यह टॉक्सिक नोड्यूल से लेकर ऑटोइम्यून विकार और गर्भावस्था से संबंधित थायराइडाइटिस जैसे कारणों से यह समस्या आ सकती है।

सेंट्रल हाइपरथायरायडिज्म : पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा टीएसएच के उत्पादन में कमी के कारण रक्त में थायराइड का स्तर कम हो सकता है।

थाइराइड रोगियों में टीएसएच की कमी

हाइपोथायरायडिज्म का इलाज करा रहे लोगों में टीएसएच के स्तर के घटने का मतलब हो सकता है :

  • थायराइड हार्मोन रिप्लेसमेंट के साथ दवाओं का ओवरडोज
  • सेंट्रल हाइपोथायरायडिज्म

हाइपरथायरायडिज्म रोगियों में आमतौर पर टीएसएच के कमी का मतलब है कि थायराइड हार्मोन के स्तर को कम करने के लिए उन्हें उपचार की आवश्यकता है। उस व्यक्ति में थायराइड हार्मोन के स्तर को सामान्य करने के लिए विशेष देखरेख की आवश्यकता है।

हाइपरथायरायडिज्म का निम्नलिखित लक्षणों से पहचाना जा सकता है।

टीएसएच के स्तर में कमी का उपचार

टीएसएच के स्तर में कमी की स्थिति में रेडियो​एक्टिव आयोडीन दिया जाता है जो थायराइड ग्रंथि को कम करने का काम करती है। कुछ ऐसी दवाइयां दी जाती हैं जो थायराइड ग्रंथि को बहुत अधिक थायराइड हार्मोन के उत्पादन से रोकती हों। यदि नियमित उपचार से कोई खास प्रभाव नहीं दिख रहा हो तो ऐसी स्थिति में थायरॉयड ग्रंथि को हटाना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति विशेषरूप से गर्भावस्था के दौरान आ सकती है।

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