कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) का प्रयोग मनोवैज्ञानिक समस्याओं के इलाज के रूप में किया जाता है। इस थेरपी के माध्यम से रोगी की नकारात्मक सोच, दृष्टिकोण और भावनाओं में परिवर्तन लाने की कोशिश की जाती है। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों की सोच और चीजों को देखने के ​उनके तरीके को बदलने और उनमें सकारात्मकता का संचार करने में सीबीटी काफी फायदेमंद उपचार पद्धति मानी जाती है।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिए हर साल 10 अक्टूबर को 'विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस' मनाया जाता है। इस लेख में हम सीबीटी के बारे में जानेंगे। इसके साथ ही यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि सीबीटी कैसे काम करती है और किन लोगों को इसकी आवश्यकता होती है?

कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) क्या है?

कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) एक प्रकार की टॉक थेरेपी है, जिसमें मनोवैज्ञानिक, रोगी को उनके नकारात्मक विचारों और व्यवहारों की पहचान कराने में मदद करते हैं। सीबीटी थेरेपी के माध्यम से इन विचारों को बदलने और चीजों को सकारात्मक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। कोई भी व्यक्ति सीबीटी थेरेपी ले सकता है, यह आवश्यक नहीं है कि जिन लोगों में मानसिक बीमारी का निदान हुआ हो सिर्फ उन्हीं को सीबीटी की आवश्यकता होती है। मौजूदा समय में ज्यादातर लोग तनाव या चिंता से ग्रस्त हैं, कभी-कभी ये छोटी-छोटी समस्याएं भी गंभीर रूप ले सकती हैं। ऐसे में जब कभी भी आप बहुत दुखी हों या किसी स्थिति से बाहर निकलने में असमर्थ महसूस करें, तो चिकित्सक से सीबीटी थेरेपी लेने के बारे में सलाह ले सकते हैं।

हर व्यक्ति के सोचने का तरीका अलग होता है। इन्हीं विचारों के आधार पर हम किसी चीज पर विश्वास और मान्यता बना लेते हैं। सीबीटी मुख्य रूप से इन्हीं विचार पर केंद्रित है। यही मूल मान्यताएं और विश्वास ही हमारे अपने और दूसरों के बारे में सोच और व्यवहार को प्रभावित करती हैं। इसके साथ ही हमारे अनुभव, विचार और भावनाएं हमारे मूल मान्यताओं और विश्वास को भी प्रभावित करती हैं। यदि हम खुद को नकारात्मकता से घेर लें और लगातार चिंता में रहें तो इस व्यवहार से हमारा विश्वास भी प्रभावित हो सकता है।

सीबीटी थेरेपी के माध्यम से नकारात्मक विचारों की श्रृंखला को तोड़ने की कोशिश की जाती है। अवसाद, चिंता, मनोविकृति, हाइपोकॉन्ड्रिया जैसी मानसिक समस्याओं के इलाज में सीबीटी को माना जाता है। कई बार थेरपी के साथ कुछ दवाओं को भी प्रयोग में लाया जा सकता है।

  1. कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) कैसे काम करती है? - CBT kis tarah se kaam karti hai?
  2. कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) के माध्यम से इलाज - CBT ke madhyam se kaise ilaj kiya jata hai?
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी के डॉक्टर

कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) उन विचार पर आधारित होती है जो जीवन की परिस्थितियों, अनुभव, रिश्तों और समस्याएं के आधार पर हमारी सोच, भावनाओं और कार्य करने के तरीके को प्रभावित कर सकती हैं। सीबीटी सेशन के दौरान मनोवैज्ञानिक, व्यक्ति की उन सोच और शैलियों को बदलने की कोशिश करते हैं जो समस्याओं को बढ़ा रही होती हैं। थेरेपी के लिए निम्न प्रकार की योजनाओं को प्रयोग में लाया जाता है।

  1. थेरेपी के दौरान रोगी को उनकी सोच से जुड़ी त्रुटियों को पहचानने में मदद की जाती है, जिसके कारण उनके जीवन में समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसके बाद नई और सकारात्मक सोच के आधार पर अपने विचारों और भावनाओं का पुनर्मूल्यांकन कराने का प्रयास किया जाता है।
  2. नकारात्मकता और सोच में त्रुटियों के कारण रोगी के लिए अपने व्यवहार को समझ पाना मश्किल हो जाता है। ऐसे में थेरेपिस्ट उनकी सोच में बदलाव कर चीजों को बेहतर ढंग से समझाने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप बाजार में किसी जान पहचान वाले व्यक्ति को देखते हैं लेकिन वह व्यक्ति आपको हेलो नहीं बोलता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह आपसे बच रहा है या आपको पसंद नहीं करता है। ऐसा भी हो सकता है कि उसने आपको देखा ही न हो या फिर वह जल्दी में रहा हो।
  3. सीबीटी का एक मुख्य हिस्सा रोगी में कठिन परिस्थितियों से निपटने और समस्याओं को सुलझाने के गुण को विकसित करना भी होता है। इस प्रक्रिया के मुख्य रूप से पांच भाग हैं।
  • समस्या को पहचानना
  • संभावित समाधानों की सूची बनाना
  • प्रत्येक की ताकत और कमजोरियों का परीक्षण करना
  • सबसे बेहतर समाधान चुनना
  • उस समाधान को लागू करें
  • रोगी को उनकी क्षमताओं पर अधिक विश्वास रखने में मदद करना

स्वाभाविक रूप से उपचार के लिए मनोचिकित्सक केवल उन्हीं योजनाओं को लागू करते हैं जो रोगी के लिए उपयोगी हो सकती हैं। सीबीटी में एक और चीज जो बहुत महत्वपूर्ण है वह है चिकित्सक और रोगी का लक्ष्य की तरफ एक साथ बढ़ना। थेरेपिस्ट आपको समस्या से निपटने के तरीके के बारे में बता सकते हैं, समस्या से बाहर लाने में आपकी मदद कर सकते हैं, लेकिन यह काम बिना रोगी के प्रयास के संभव नहीं है। नकारात्मक विचारों और व्यवहार से बाहर आने के लिए रोगियों को भी प्रयास करने की आवश्यकता होती है।

उदाहरण के लिए आप थेरेपिस्ट के पास समस्याओं को लेकर जाते हैं। थेरपिस्ट हर स्तर से आपसे उन समस्याओं के बारे में जानने की कोशिश करते हैं, जिनसे आपकी परेशानी बढ़ती है। इसमें आपका व्यवहार, नकारात्मक सोच, लोगोंं से मिलने का तरीका आदि शामिल हैं। सभी पहलुओं के मूल्यांकन के बाद थेर​पिस्ट एक निर्णय पर पहुंचते हैं और इसी के आधार पर इलाज की प्रक्रिया का एक खाका तैयार किया जाता है। लेकिन यहां सबसे जरूरी यह है कि यदि रोगी अपनी सोच और भावनाओं की नकारात्मकता को समझने और उन्हें बदलने के लिए तैयार नहीं होता है, तब चिकित्सक के लिए भी कुछ खास कर पाना संभव नहीं होता है।

आपने अब तक अवसाद और चिंता के इलाज के लिए सीबीटी के बारे में सुना होगा। हालांकि, अब धीरे-धीरे इसका क्षेत्र विस्तृत हो रहा है। सीबीटी के माध्यम से चिकित्सक अब कई तरह के अन्य मनोविकारों जैसे साइकोसिस, सिजोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर, खान-पान संबंधी विकार, शराब की लत, दवाइयों का बहुत अधिक सेवन आदि का इलाज कर रहे हैं। इसके अलावा बच्चों में अटेंशन डिफेक्टिव हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) में भी सीबीटी थेरेपी को फायदेमंद माना गया है।

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सीबीटी मुख्य रूप से तीन सिद्धांतों पर आधारित होता है।

  1. रोगी जब चीजों को गलत तरीके से सोचना शुरू कर देता है तो इस स्थिति में मनोवैज्ञानिक समस्याएं और बिगड़ सकती हैं। सीबीटी थेरेपी के दौरान सोचने के निम्न तरीकों पर थेरेपिस्ट विशेष रूप से ध्यान देने का प्रयास करते हैं।
  • आप किसी चीज में या तो बेहतर होते हैं या फिर बहुत ही खराब। यहां पर अच्छे या महान जैसा कुछ नहीं है। उदाहरण के लिए, किसी चीज में 90 फीसदी अच्छे होने का मतलब किसी भी स्तर पर सफल होने जैसा कुछ नहीं है।
  • लेबलिंग : किसी एक अनुभव के आधार पर खुद की दूसरों से तुलना करने की प्रवृत्ति। उदाहरण के लिए किसी शारीरिक विकृति से ग्रस्त व्यक्ति के दिमाग में यह सोच बैठ सकती है कि कोई उसे प्यार नहीं करेगा, क्योंकि सिर्फ इसी कमी के कारण उसे किसी ने धोखा ​दिया था।
  • फ़िल्टरिंग : सकारात्मक या अच्छी बातों को हटाकर केवल उन बुरी चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति जो आपके साथ कभी घटित हो चुकी होती है।
  • त्रुटि : ऐसी प्रवृत्ति जिसमें कोई चीज कैसे है से ज्यादा कैसी होनी चाहिए पर ध्यान देना।
  • सोचने की ऐसी प्रवृत्ति जिसमें आपको लगता है कि दूसरे लोग आपके बारे में बात कर रहे हैं, आपका मजाक उड़ा रहे हैं या आपसे नाराज हैं, जबकि वास्तव में वे लोग अपने काम में व्यस्त हों।
  • नकारात्मक विचारों को बहुत तेजी से ग्रहण करने की प्रवृत्ति। ऐसी सोच वाले लोगों को लगता है कि दुनिया में उनके साथ ही सबसे बुरा हो सकता है। उदाहरण के लिए यदि उन्हें किसी विषय में अच्छे अंक न मिले हों तो उन्हें ऐसा लगने लगता है कि कक्षा में फेल हो जाएंगे। उन्हें कोई सम्मान नहीं देगा।

सीबीटी के माध्यम से लोगों की उस नकारात्मक सोच को परिवर्तित करने का प्रयास किया जाता है जिसमें वह स्वयं को अयोग्य समझने लगते हैं। थेरेपी के माध्यम से रोगियों को तर्कसंगत रूप से प्रतिकूल घटनाओं से निपटने और स्वयं को बेहतर मानने की सोच विकसित करने का प्रयास किया जाता है।

2) अनै​तिक व्यवहार और सोच भी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण हो सकती हैं। कैम्ब्रिज स्थि​त रॉयल कॉलेज ऑफ साइकियाट्रिस्ट्स के एक पत्रिका में प्रस्तुत एक उदाहरण के अनुसार— आपको किसी पार्टी में आमंत्रित किया जाता है। हालांकि, वहां के बारे मे आपके दिमाग में पहले से ही नकारात्मक ख्याल हैं, जैसे मैं किसी से मिलूंगा नहीं या मुझे किसी से बात नहीं करनी है।

3) मनोवैज्ञानिक समस्याओं वाले व्यक्तियों के लिए कुछ तरीकों को प्रयोग में लाकर अपने जीवन को बेहतर बनाना और सकारात्मकता का संचार करना संभव होता है। सीबीटी थेरपी का उद्देश्य ऐसे ही तरीकों के बारे में लोगों को जागृत करना होता है, ​जिससे वह अपनी सोच में परिवर्तन लाकर जीवन को बेहतर बना सकें।

Dr. Vinayak Jatale

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संदर्भ

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  2. National Health Service, UK [Internet]. Cognitive behavioural therapy (CBT).
  3. Padesky C.A. and Mooney K.A. Strengths‐based cognitive-behavioural therapy: A four‐step model to build resilience. Clinical Psychology & Psychotherapy, July/August 2012; 19(4) Special issue: Well‐being, Positivity and Mental Health: 283-290.
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  5. Cambridge Core [Internet]. Identifying and challenging unhelpful thinking. Advances in Psychiatric Treatment, September 2002; 8(5). (Published online by Cambridge University Press: 2 January 2018, pp. 377-386)
  6. Ugueto A.M., Santucci L.C., Krumholz L.S. and Weisz J.R. Problem‐solving skills training. In "Evidence‐Based CBT for Anxiety and Depression in Children and Adolescents: A Competencies‐Based Approach", edited by Elizabeth S. Sburlati Heidi J. Lyneham Carolyn A. Schniering Ronal
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