सेक्शुअल हेल्थ से जुड़ी परेशानियों को ज्यादातर लोगों द्वारा नजरअंदाज किया जाता है या ऐसी किसी समस्या के बारे में सेक्शुअल हेल्थ से जुड़े एक्सपर्ट से बात करने में भी लोग परहेज करते हैं. ऐसी ही एक समस्या है इरेक्टाइल डिसफंक्शन, जिसे हिंदी में स्तंभन दोष कहा जाता है. आयुर्वेद में स्तंभन दोष की समस्या के लिए शिलाजीत को बेहतरीन औषधि माना गया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इरेक्टाइल डिसफंक्शन के लिए शिलाजीत का सेवन कैसे किया जाना चाहिए? अगर नहीं तो यहां हम अलग-अलग मेडिकल रिसर्च के अनुसार समझेंगे कि इरेक्टाइल डिसफंक्शन के लिए शिलाजीत की डोज कितनी होनी चाहिए. साथ ही जानेंगे कि यह किस प्रकार फायदेमंद है.

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  1. क्या है स्तंभन दोष?
  2. स्तंभन दोष के इलाज में शिलाजीत के फायदे
  3. स्तंभन दोष के लिए शिलाजीत की कितनी डोज लें?
  4. ज्यादा शिलाजीत लेने से होने वाले नुकसान
  5. शिलाजीत के साथ इनका न करें सेवन
  6. डॉक्टर से कब संपर्क करें?
  7. सारांश
स्तंभन दोष के लिए शिलाजीत के फायदे के डॉक्टर

यह ऐसी समस्या है, जिसमें सेक्शुअल एक्टिविटी के दौरान पुरुष के लिंग में उत्तेजना नहीं आती है और अगर आती भी है, तो उसे बनाए रखना मुश्किल होता है. इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या दो अलग-अलग तरह की होती हैं. पहली प्राइमरी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन और दूसरी सेकेंडरी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन.

प्राइमरी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या पहले से होती है, जिसमें इरेक्शन नहीं होता है. वहीं, अगर पुरुषों में इरेक्शन आता हो, लेकिन उसे बनाए रखना मुश्किल हो, तो इसे सेकेंडरी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन कहा जाता है. अधिकतर पुरुष सेकेंडरी इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या का शिकार होते हैं. इस समस्या के चलते पुरुष बांझपन का शिकार हो जाते हैं.

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वेस्ट बंगाल में स्थिति जेबी राॅय स्टेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल की रिसर्च यूनिट ने 2015 में एक अध्ययन किया था. इस स्टडी के दौरान 90 दिन तक दिन करीब 38 स्वस्थ प्रतिभागियों को दिन में 2 बार 250 मिलीग्राम शिलाजीत दिया गया. स्टडी के अंत में पाया गया कि प्लेसबो की तुलना में शिलाजीत से टेस्टोस्टेरोन स्तर में वृद्धि होती है. इसके अलावा, ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) का स्तर भी सामान्य बना रहा. यहां हम स्पष्ट कर दें कि टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन को नियंत्रित करने के लिए एलएच हार्मोन का पिट्यूटरी ग्रंथि से स्रावित होना आवश्यक है.

आमतौर पर जब टेस्टोस्टेरोन उच्च स्तर पर पहुंच जाता है, तो हाइपोथैलेमस को एलएच के रिलीज को कम करने के लिए नकारात्मक फीडबैक मिलता है. इससे टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन कम हो जाता है.

हालांकि, शिलाजीत पर किए गए इस अध्ययन में ऐसा नहीं हुआ. टेस्टोस्टेरोन के स्तर में वृद्धि हुई और एलएच उत्पादन पर भी कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा. दूसरी ओर, फॉलिकल-स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) के स्तर में भी सुधार हुआ. असल में एफएसएच शरीर में शुक्राणुओं की संख्या में भूमिका निभाता है.

इस तरह से माना गया कि शिलाजीत से शुक्राणुओं की संख्या बढ़ती है और पुरुष की प्रजनन क्षमता में सुधार हो सकता है. साथ ही सेक्स ड्राइव को बढ़ावा मिल सकता है और स्तंभन दोष को कम करने में मदद मिल सकती है. यह रिसर्च पेपर नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (एनसीबीआई) की साइट पर उपलब्ध है.

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किसे कितनी डोज लेनी चाहिए, यह प्रत्येक व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति व उम्र पर निर्भर करता है. इसलिए, शिलाजीत को दवा के रूप में लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए. कुछ मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार 300-500mg शिलाजीत का सेवन रोजाना किया जा सकता है. इस हर्बल मेडिसिन का सेवन दूध या फिर डॉक्टर द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार करें, क्योंकि जरूरत से ज्यादा शिलाजीत की डोज शरीर के लिए हानिकारक हो सकती है.

नोट: बाजार में शिलाजीत के कैप्सूल एवं टेबलेट दोनों आसानी से उपलब्ध है, लेकिन दोनों में से किसी एक का सेवन डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही करें.

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जरूरत से ज्यादा शिलाजीत के सेवन से निम्नलिखित समस्याएं हो सकती है -

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अगर आप शिलाजीत का सेवन करते हैं, तो निम्नलिखित खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए -

साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि आप जो शिलाजीत खरीद रहे हैं, वो मान्यता प्राप्त हो और इसमें मौजूद हर्ब एवं मिनिरल शुद्ध व गुणवत्तापूर्ण होने के साथ-साथ सुरक्षित स्रोत से हों.

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अगर शिलाजीत के सेवन से किसी को त्वचा पर रैशचक्कर आने की समस्या, सांस लेने में कठिनाई, मतली, उल्टी या तेज हृदय गति की समस्या होती है, तो इसका सेवन बंद करें और तुरंत डॉक्टर से मिलें.

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शिलाजीत के एक नहीं बल्कि कई स्वास्थ्य लाभ हैं और अगर सही तरीके से इसका सेवन किया जाए तो इसे एक सुरक्षित सप्लिमेंट माना गया है. इसलिए, इरेक्टाइल डिसफंक्शन के लिए शिलाजीत की डोज के लिए डॉक्टर से बात करना बेहतर विकल्प है. दरअसल, डॉक्टर पेशेंट की मेडिकल कंडीशन और शारीरिक अवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किसी भी दवा या हर्बल मेडिसिन की डोज तय करते हैं.

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