इरेक्टाइल डिसफंक्शन (ईडी) पुरुषों को होने वाली एक सामान्य स्थिति है, जो विशेष रूप से 40 वर्ष से अधिक उम्र के पुरुषों में देखी जाती है. ईडी को स्तंभन दोष व नपुंसकता भी कहा जाता है. ईडी की समस्या होने पर पुरुष के लिए सेक्स के समय पेनिस में पर्याप्त इरेक्शन पाना या उसे बनाए रखना मुश्किल हो जाता है. वैसे तो ईडी के इलाज के लिए कई तरह की दवाइयां मौजूद हैं, लेकिन इसका प्राकृतिक इलाज सबसे बेहतर माना गया है और इस काम में अश्वगंधा सबसे फायदेमंद जड़ी-बूटी है.

आज इस लेख के जरिए आप यह जान पाएंगे कि ईडी में अश्वगंधा किस प्रकार फायदेमंद है -

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  1. अश्वगंधा क्या है?
  2. क्या अश्वगंधा से ईडी का इलाज संभव है?
  3. अश्वगंधा के दुष्प्रभाव
  4. किसे अश्वगंधा नहीं लेना चाहिए?
  5. ईडी में अश्वगंधा का उपयोग कैसे करें?
  6. सारांश
इरेक्टाइल डिसफंक्शन के लिए अश्वगंधा के फायदे के डॉक्टर

अश्वगंधा का वैज्ञानिक नाम विथानिया सोम्निफेरा है. यह हजारों वर्षों से आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस्तेमाल की जाने वाली एक लोकप्रिय जड़ी-बूटी है. यह भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में प्राकृतिक रूप से उगती है. आमतौर पर इसकी जड़ का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है, लेकिन कुछ मामलों में पत्तियों व फूलों का भी उपयोग किया जा सकता है.

अश्वगंधा को एडाप्टोजेन के रूप में उपयोग किया जाता है, जिसका अर्थ है कि यह तनाव और चिंता से राहत दिलाने का काम कर सकती है. इसका उपयोग इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट और इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने वाले गुणों के लिए भी किया जाता है.

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हां, कुछ सीमित अध्ययनों से पता चला है कि ईडी के इलाज में अश्वगंधा प्रभावी हो सकती है. जर्नल ऑफ एथनोफार्माकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि ईडी से प्रभावित जिन पुरुषों ने 12 हफ्ते तक अश्वगंधा का अर्क लिया था, उनमें प्लेसबो लेने वाले पुरुषों के मुकाबले ज्यादा सुधार देखा गया. इंडियन जर्नल ऑफ साइकोलॉजिकल मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि अश्वगंधा ने पुरुषों और महिलाओं दोनों में यौन क्रिया और संतुष्टि में सुधार किया है.

वहीं, 2011 में हुए एक अध्ययन के दौरान विशिष्ट प्रकार के ईडी के लिए अश्वगंधा के उपयोग की जांच की गई. इसे साइकोजेनिक ईडी कहा जाता है, जो सेक्स परफॉर्मेंस को लेकर होने वाली चिंता से जुड़ा है. इस स्टडी में, साइकोजेनिक ईडी वाले 86 पुरुषों में से कुछ को अश्वगंधा तो कुछ को प्लेसिबो 60 दिन दिया गया. स्टडी के अंत में प्लेसीबो और अश्वगंधा के असर में कुछ खास अंतर नहीं देखा गया.

मुख्य रूप से अश्वगंधा को शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को बढ़ाकर काम करने के लिए माना जाता है, जो पेनिस में रक्त वाहिकाओं को फैलाने और रक्त प्रवाह में सुधार करने में मदद कर सकता है. इसमें एंटी-स्ट्रेस वाले गुण भी होते हैं, जो मनोवैज्ञानिक कारकों के कारण ईडी की परेशानी झेलने वाले पुरुषों के लिए मददगार हो सकते हैं.

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आमतौर पर अश्वगंधा को सुरक्षित माना गया है, लेकिन कुछ लोगों में इसके निम्न प्रकार के दुष्प्रभाव नजर आ सकते हैं -

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अगर किसी व्यक्ति को निम्न प्रकार की समस्या है, तो उसे डॉक्टर से पूछकर ही अश्वगंधा लेना चाहिए -

  • डायबिटीज - अश्वगंधा को लेने से ब्लड शुगर का लेवल कम हो सकता है.
  • हाइपरथायरायडिज्म - अश्वगंधा थायराइड हार्मोन के स्तर को बढ़ा सकता है.
  • गर्भवती या स्तनपान - इस स्थिति में अश्वगंधा लेना गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिए हानिकारक हो सकता है. वहीं, स्तनपान के दौरान अश्वगंधा लेने पर अभी कोई अध्ययन उपलब्ध नहीं है.

इन सभी के अलावा, ऑटोइम्यून डिजीज की स्थिति में भी अश्वगंधा लेने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए.

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अश्वगंधा विभिन्न रूपों में उपलब्ध है, जिसमें कैप्सूल, पाउडर और टिंचर शामिल हैं. ईडी के लिए अश्वगंधा की अनुमानित खुराक आमतौर पर प्रतिदिन 600-1200 मिलीग्राम है, जिसे दिनभर में अलग-अलग डोज में लिया जाता है. यहां हम स्पष्ट कर दें कि हर व्यक्ति की शारीरिक स्थिति अलग-अलग होती है, इसलिए अश्वगंधा का सेवन करने से पहले आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए. डॉक्टर मरीज की स्थिति को देखकर ही तय करते हैं कि उसे दिनभर में कितनी डोज लेनी है.

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अश्वगंधा एक प्राकृतिक उपचार है, जो ईडी के इलाज में प्रभावी हो सकता है. यह पेनिस में रक्त प्रवाह में सुधार करके और तनाव व चिंता को कम करने में मदद करता है. अश्वगंधा आमतौर पर ज्यादातर लोगों के लिए सुरक्षित है, लेकिन कुछ व्यक्तियों में इसके दुष्प्रभाव भी नजर आ सकते हैं. अश्वगंधा लेने से पहले अपने डॉक्टर से बात करना जरूरी है, खासकर अगर कोई पहले से किसी बीमारी की दवा ले रहा है या कोई बीमारी है.

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