गर्मी का मौसम शुरू हो गया है। कुछ ही दिनों में सूरज का पारा और भी गर्म हो जाएगा। जाहिर है ऐसे में हर कोई घर से बाहर निकलने से पहले खुद को ढकेगा ताकि सूरज की किरणों से खुद को बचा सके और त्वचा को नुकसान होने से बचा सके। कई लोग इस मौसम में सनस्क्रीन का इस्तेमाल करते हैं। खासकर स्किन कैंसर, वक्त से पहले बढ़ती उम्र के लक्षण और सनबर्न से बचने के लिए। लेकिन सनस्क्रीन में मौजूद रसासयनों और इसमें इस्तेमाल होने वाली कुछ दवाओं जैसे टेट्रासाइक्लिन, सल्फा, फेनोथियाजिन आदि का आपकी त्वचा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अतः इसके इस्तेमाल और इससे होने वाले नुकसान के बारे में आपको पहले से ही अवगत रहना चाहिए।

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किस तरह की सनस्क्रीन चुनें
ऐसी सनस्क्रीन न चुनें जिसमें आक्सीबेनजोन, ट्राइक्लोसन, पैराबेन्स जैसे रसायन मौजूद हों। इसके बजाय ऐसी सनस्क्रीन चुनें जिसमें टाइटेनियम, जिंक, मिनरल जैसे तत्व मौजूद हों। ये चीज़ें त्‍वचा पर यूवी किरणों से एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती हैं। ये रसायनों की तरह त्‍वचा में अवशोषित नहीं होती हैं बल्कि त्‍वचा पर एक परत के रूप में चढ़ जाती हैं और यूवी किरणों से त्‍वचा को बचाती हैं। अगर आप बाजार में उपलब्ध सनस्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं तो प्राकृतिक सनस्क्रीन जैसे नारियल तेल, शिया बटर और गाजर के बीज के तेल का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इनमें प्राकृतिक एसपीएफ वैल्यू 8 होती है। किसी भी सनस्क्रीन उत्पाद को खरीदने से पहले यह सुनिश्चित करें कि आपके क्रीम की एसपीएफ वैल्यू 30 से अधिक न हो।

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इस तरह है नुकसादायक

  • सनस्क्रीन में कई ऐसे रसायनों का इस्तेमाल होता है जो त्वचा में खुजली, लालपन, सूजन आदि उत्पन्न कर सकते हैं। अतः ऐसे सनस्क्रीन का इस्तेमाल न करें, जिससे आपको एलर्जी या इस तरह की अन्य समस्या हो। 
    बचाव - आप हाईपोएलर्जेनिक युक्त सनस्क्रीन खरीदें। जिन सनस्क्रीन में पाबा नहीं होता, लेकिन सनस्क्रीन में अन्य तरह के रसायनों का इस्तेमाल होता है जिससे आपको एलर्जी हो सकती है। अतः सनस्क्रीन खरीदने से सौंदर्य विशेषज्ञ की मदद से पैच टेस्ट करवा लें। आप ऐसे सनस्क्रीन का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसमें जिंक ऑक्साइड मौजूद हो। इस तरह के सनस्क्रीन तुलनात्मक रूप से कम नुकसानदेय होते हैं।

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  • कुछ अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि आक्सीबेनजोन, ट्राइक्लोसन, पैरेबेन्स जैसे रसायन हार्मोन को प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह के तत्व ज्यादातर बाजार में उपलब्ध सनस्क्रीन में मौजूद होते हैं। अध्ययनों का कहना है कि जो किशोर इस तरह के प्रोडक्ट का इस्तेमाल करते हैं, उनमें हार्मोन का स्तर जल्दी प्रभावित होने लगता है। बेहतर यही होगा कि आप अपने लिए इस तरह के केमिकल युक्त प्रोडक्ट खरीदने से बचें।
    बचाव - अगर आपको पता नहीं चल रहा है कि आपके लिए कौन से सनस्क्रीन सही है, तो बेहतर है कि एक बार डाक्टर से संपर्क कर लें।

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  • सनस्क्रीन कई बार कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकती है। सनस्क्रीन में आक्सीबेनजोन नाम का केमिकल इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह यूवी किरणों को सोख लेता है। यह रासायनिक तत्व न सिर्फ हार्मोन को प्रभावित करता है बल्कि कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचा सकता है। यह कोशिकाओं के विकास को रोकता है और डीएनए बनाने की प्रक्रिया में बाधा देता है। संभावित रूप से यह आनुवंशिक परिवर्तन का कारण बन सकता है। गर्भावस्था के दौरान उच्च स्तर पर इस केमिकल के इस्तेमाल से नए जन्मे शिशु का वजन कम हो सकता है।
    बचाव - सनस्क्रीन के इस्तेमाल से कोशिकाओं को नुकसान होने लगे तो तुरंत सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना बंद कर दें। खासकर गर्भवती महिलाओं को सनस्क्रीन लगाने से पहले सतर्क रहना चाहिए। बेहतर यही होगा कि आप एक पैच टेस्ट लें। इसके बावजूद अगर आप तय नहीं कर पा रही हैं कि आपको किस तरह की सनस्क्रीन सूट करेगी, तो इसके लिए सौंदर्य विशेषज्ञ से मुलाकात करें।​


कैसे करें इस्तेमाल

धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन शरीर के हर उस हिस्से में लगाएं जो कपड़ों से ढका हुआ न हो। धूप में निकलने से 30 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाएं। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि धूप में स्विमिंग करने से पहले या बहुत ज्यादा पसीना आने पर दोबारा सनस्क्रीन का यूज करें। इसके अलावा अगर आप धूप में न भी निकलें तो भी प्रत्येक चार घंटे के बाद सनस्क्रीन लगाया जाना चाहिए। इससे आपकी स्किन सही रहती है।

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कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि सनस्क्रीन आपको यूवी किरणों से बचाता है, लेकिन इसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। इन्हें जानकर और अपने लिए सही सनस्क्रीन का चयन कर आप इसके नकारात्मक प्रभावों से बच सकते हैं।

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