महिलायें अपने परिवार मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और अक्सर घर के कामों मे व्यस्त रहती है  कभी कभी तनावग्रस्त भी जरूर होती हैं।  लेकिन हर महिला अपने परिवार के लिए हजारों परेशानियों के बाद भी बहुत मजबूत होती है , अनमोल होती हैं ।  अपने लोगों का खयाल रखते हुए महिलायें अक्सर अपना खुद का खयाल रखना भूल जाती हैं और स्ट्रोक जैसी बीमारियों के जोखिम को बढ़ा लेती हैं।  

कई महिलाएं स्ट्रोक के अपने खतरों को कम मानती हैं जैसा अक्सर सुनते भी हैं कि स्ट्रोक मुख्य रूप से पुरुषों को प्रभावित करता है , लेकिन स्ट्रोक महिलाओं की मृत्यु का पांचवां प्रमुख कारण है। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के अनुसार, 55 से 75 वर्ष की उम्र के बीच लगभग 5 में से 1 महिला को स्ट्रोक होगा।  स्ट्रोक से होने वाली लगभग 60% महिलाओं की मृत्यु हो जाती है। 

चौकनें की बात ये है कि ज्यादातर महिलाओं को स्ट्रोक होने के के बारे में पता नहीं होता है लेकिन अगर उचित तरीके से बीमारी के बारे में जानकारी प्रदान की जाए तो 5 में से 4 महिलाओं मे स्ट्रोक को रोका जा सकता है। इसलिए स्ट्रोक के खतरे को जानना महत्वपूर्ण है।

 
  1. स्ट्रोक क्या है?
  2. स्ट्रोक के प्रकार
  3. स्ट्रोक के लक्षण
  4. स्ट्रोक क्यू होता है?
  5. महिलाओं को स्ट्रोक का खतरा
  6. स्ट्रोक के उपचार
महिलाओं मे स्ट्रोक के डॉक्टर

स्ट्रोक, जिसे कभी-कभी दिमाग का दौरा भी कहा जाता है तब होता है जब दिमाग के किसी भाग मे रक्त का प्रवाह रुक जाता है या फिर जब रक्त वाहिका फट जाती है। शरीर मे ऑक्सीजन पहुंचाने का काम रक्त ही करता है लेकिन जब दिमाग की कोशिकाओं में खून की कमी हो जाती है, तो कोशिकाएँ नष्ट होने लगती हैं । यह आपके सोचने और महसूस करने के तरीके को भी प्रभावित कर सकता है।

पुरुषों की तुलना में महिलाओं को देर से स्ट्रोक होता है, और महिलाओं में लगभग आधे स्ट्रोक 80 वर्ष की आयु के बाद होते हैं।

(और पढ़ें : स्ट्रोक के इलाज में फायदेमंद म्यूजिक थेरेपी)

 

स्ट्रोक के दो मुख्य प्रकार होते हैं। 

इस्केमिक स्ट्रोक - दिमाग में अवरुद्ध रक्त वाहिका के कारण होता है। इसे आम भाषा में खून का थक्का जमना कहा जाता है और लगभग 85% स्ट्रोक इस्केमिक ही होते हैं। 

रक्तस्रावी स्ट्रोक - दिमाग में या उसके आसपास जब रक्तस्राव होता है, तो इसे रक्तस्रावी स्ट्रोक कहा जाता है। लगभग 15% स्ट्रोक रक्तस्रावी होते हैं।

कैवर्नस साइनस थ्रोम्बोसिस एक दुर्लभ प्रकार का स्ट्रोक है जो गर्भवती महिलाओं, या एस्ट्रोजेन के साथ गर्भ निरोधकों का उपयोग करने वाली महिलाओं में अधिक होता है। जब खोपड़ी के भीतर रक्त के थक्के बन जाते हैं, जिससे दिमाग मे खून का प्रवाह रुक जाता है तो इसे कैवर्नस साइनस थ्रोम्बोसिस कहते हैं  ।

 

स्ट्रोक के मुख्य लक्षणों में अक्सर सिरदर्द होता है, इसके अलावा भ्रम, दौरे और कमजोरी जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। हालांकि लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं लेकिन लक्षण सामने आते ही जल्दी से जल्दी इलाज करना सबसे उचित तरीका है।

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स्ट्रोक का सटीक कारण बताना संभव नहीं होता है, लेकिन कई महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर या शुगर होने पर स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है । संभावित खतरों के बारे मे पूर्व जानकारी होने पर समय के साथ दूसरे स्ट्रोक के खतरे को कम किया जा सकता है। 

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महिलाओं और पुरुषों में स्ट्रोक के ज्यादातर लक्षण समान होते हैं, जैसे उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह (शुगर ) और एट्रियल फाइब्रिलेशन ( दिल की धड़कन का अनियमित होना )। धूम्रपान स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकता है , महिलाओं के लिए कुछ अन्य कारण भी स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकते हैं ।  

गर्भनिरोधक गोली 

गर्भनिरोधक गोलियों का उपयोग करने से महिलाओं में स्ट्रोक और रक्त के थक्के जमने के खतरे में वृद्धि हो सकती है।

अगर फिर भी महिलायें गरबनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करना चाहती हैं तो महिलाओं को  गोली से होने वाले खतरों जैसे रक्त के थक्के या स्ट्रोक के बारे में  , उच्च रक्तचाप, धूम्रपान की लत, या बहुत अधिक वजन की जांच करानी चाहिए इसके साथ ही गोलियों के अलावा अगर कोई अन्य सुरक्षित विकल्प हो तो इसकी जानकारी भी जरूर रखें ।  गोली में मौजूद एस्ट्रोजन की मात्रा जो रक्त के थक्के या स्ट्रोक का कारण हो सकती है ,अगर किसी महिला को गोली खाते समय स्ट्रोक होता है, तो उन्हें संभवतः इसका उपयोग बंद करने की सलाह दी जाएगी।

(और पढ़ें : 8 घंटे से ज्यादा सोने और दिनभर ऊंघने से बढ़ता है स्ट्रोक का खतरा)

गर्भावस्था और स्ट्रोक

गर्भवती महिलाओं में स्ट्रोक का खतरा बहुत कम होता है , लेकिन गर्भावस्था और प्रसव से स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था के दौरान, नियमित रक्तचाप की जांच से प्री-एक्लेमप्सिया के लक्षणों का पता लगाया जा सकता है, जो एक ऐसी स्थिति है जो स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा सकती है।

माइग्रेन

माइग्रेन पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है, और हालांकि यह स्ट्रोक का प्रत्यक्ष कारण नहीं है, लेकिन यदि आपको माइग्रेन होने के दौरान आँखों के सामने परछाई का भी अनुभव होता है तो हो सकता है कि आपको स्ट्रोक का खतरा हो । 

ल्यूपस और एसएलई

ल्यूपस एक स्वप्रतिरक्षी स्थिति है जो त्वचा और जोड़ों को प्रभावित करती है, जिससे दर्द, थकान और कभी-कभी गुर्दे को नुकसान पहुंचता है । गंभीर रूप को सिस्टमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (एसएलई) कहा जाता है। एसएलई मुख्य रूप से 50 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को प्रभावित करता है, और यह अफ्रीकी, कैरेबियाई या दक्षिण एशियाई मूल की महिलाओं में अधिक आम है। यदि किसी महिला को ल्यूपस की परेशानी है, तो स्थिति को प्रबंधित करने के लिए निगरानी की जानी चाहिए और उपचार दिया जाना चाहिए। 

रजोनिवृत्ति और स्ट्रोक

रजोनिवृत्ति तक के वर्षों में, महिलाओं में मधुमेह, उच्च रक्तचाप और वजन बढ़ना जैसे स्ट्रोक के खतरे बढ़ने लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि एस्ट्रोजन हृदय और रक्त वाहिकाओं की रक्षा करता है, जिससे मासिक धर्म के दौरान स्ट्रोक के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है। रजोनिवृत्ति के बाद स्ट्रोक का खतरा बढ़ने लगता है। अगर किसी कारणवश समय से पहले रजोनिवृत्ति हो गई हो, चिकित्सा उपचार या कोई सर्जरी हुई हो जो एस्ट्रोजेन के उत्पादन को रोकती है तो भी स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है । अन्य स्त्री स्वास्थ से जुड़ी समस्याओं के लिए आप माई उपचार से अशोकारिष्ट , चंद्रप्रभावटी , कचनार गुग्गुल , पत्रांगसाव को ले सकती हैं | 

(और पढ़ें : रजोनिवृत्ति यानि मेनोपॉज के बारे में जानिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य)


रजोनिवृत्ति के दौरान स्वस्थ रहना

यदि किसी महिला को पहले एक स्ट्रोक हो चुका है और वो महिला रजोनिवृत्ति की स्थिति से गुजर रही है, तो महिला को स्वस्थ रहने और दूसरे स्ट्रोक के जोखिम को कम करने के लिए कुछ चीजों के बारे में सलाह की आवश्यकता हो सकती है। हमेशा ऐक्टिव रहना और स्वस्थ भोजन लेने से उच्च रक्तचाप, मधुमेह और वजन बढ़ने जैसी स्थितियों को काम करके खतम करने में मदद मिल सकती है। सक्रिय रहने से हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने में मदद मिल सकती है, साथ ही थकान और खराब मूड में भी सुधार हो सकता है।

मूत्राशय और आंत संबंधी समस्याएं

स्ट्रोक के बाद मूत्राशय और आंतों को नियंत्रित करने में समस्याएं या सकती हैं, लेकिन स्ट्रोक के बाद धीरे धीरे कुछ हफ्तों में उनमें सुधार होता है। मूत्र या मल का रिसाव या कब्ज जैसी समस्याएं लंबे समय तक भी हो सकती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए फाइबरयुक्त भोजन खाना, अधिक तरल पदार्थ पीना, पेल्विक फ्लोर व्यायाम करना शामिल हो सकता है।

(और पढ़ें : फिट रहने के तरीके

स्ट्रोक के भावनात्मक प्रभाव

अकसर ये देखा गया है कि स्ट्रोक का भावनात्मक प्रभाव बहुत बड़ा हो सकता है जिसका असर परिवार और दोस्तों पर भी पड़ सकता है | कई  महिलाओं अपने जीवन में बदलाव पर दुःख की अनुभूति होती है। स्ट्रोक के बाद गुस्सा, सदमा और डिप्रेशन महसूस होना सामान्य है। महिलायें अधिक चिंता या उदासी महसूस कर सकती हैं, या उन्हें सोने में परेशानी हो सकती है।

अपनी भावनाओं के बारे में बात करने से आपके दोस्तों और परिवार को यह समझने में मदद मिल सकती है कि आप किस दौर से गुजर रहीं हैं। यदि आप बहुत उदास या चिंतित महसूस करती हैं , तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

रिश्ते और सेक्स

स्ट्रोक महिलाओं के जीवन में कई तरह से परिवर्तन कर सकता है , कई महिलाओं को अपनी स्वतंत्रता खोने का एहसास हो सकता है, करीबी रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं । यह महसूस करना भी बहुत आम है कि स्ट्रोक के बाद साथी के साथ आपके रिश्ते और यौन जीवन मे भी बदलाब हुए हैं ।

स्ट्रोक के कुछ शारीरिक प्रभाव आपके यौन जीवन को बदल सकते हैं, जैसे मूत्राशय और आंत  की समस्याएं, थकान और मांसपेशियों में कमजोरी हालांकि सेक्स से दोबारा स्ट्रोक होने की संभावना बहुत कम है, लेकिन फिर भी आप इसके लिए चिंतित हैं तो आप अपने डॉक्टर से सलाह  ले सकती हैं। कई बार स्ट्रोक आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को प्रभावित कर सकता है, जिससे लोगों से बात करना भी कठिन हो सकता है। हालाँकि, कई लोग स्ट्रोक के बाद भी  खुश, स्वस्थ रिश्ते बनाते हैं | अगर फिर भी कोई सेक्स से जुड़ी समस्या हो तो डॉक्टर या मनोवैज्ञानिक मदद लेना अच्छा विचार हो सकता है। महिलायें अपने स्वास्थ को बेहतर बनाने के लिए , हार्मोन को संतुलित रखने के लिए और प्रजनन प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए प्रजनस वुमन हेल्थ केपसूल ले सकती हैं   

(और पढ़ें : रोज शारीरिक संबंध बनाने से क्या होता है?)

 
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जितना हो सके उतना सक्रिय रहें

अधिक घूमने-फिरने और दिन-प्रतिदिन जितना संभव हो उतना सक्रिय रहने से आपके स्वास्थ्य और खुशहाली पर बड़ा फर्क पड़ेगा। चलना फिरना , डांस करना , घर का काम करना, बागवानी करना और तैरना ये सभी आपके शरीर को सक्रिय बनाते हैं और आपके दिल और फेफड़ों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। धीरे-धीरे शुरू करें और आगे गतिविधियों को बढ़ाते जाएँ । शारीरिक रूप से सक्रिय रहने से रक्तचाप कम करने, हाई कोलेस्ट्रॉल कम करने और रक्त शर्करा यानि शुगर को नियंत्रित करने मे मदद मिलती है । 

(और पढ़ें : कोलेस्ट्रॉल कम करने के घरेलू उपाय)

स्वास्थ्यवर्धक आहार लें

आहार में अधिक हरी सब्जियां और फल शामिल करने से आपको रक्त शर्करा के स्तर और उच्च रक्तचाप को प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है। अधिक ताज़ा और घर का बना खाना खाएँ , नमक का सेवन कम करें । 

सामान्य वज़न बनाए रखें

अच्छा आहार लेने और सक्रिय रहने से आपको वजन को नियंत्रित रखने में मदद मिल सकती है, जिससे स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है। वजन को नियंत्रित करने और कम करने के लिए आप माइ उपचार से फैट बर्नर केपसूल ले सकते हैं । 

(और पढ़ें : वजन कम करने के उपाय)

धूम्रपान छोड़ें  

धूम्रपान बंद करना आपके स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा हो सकता है। 

अल्कोहल की मात्रा कम करें 

(और पढ़ें : शराब पीने के फायदे

नियमित रूप से बहुत अधिक शराब पीने से स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है जितना संभव हो सकें अल्कोहल का सेवन न करें । 

अपनी दवाई लें

यदि आप हृदय रोग, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप या मधुमेह के इलाज के लिए दवा लेती  हैं, तो अपने डॉक्टर के निर्देशों का सावधानीपूर्वक पालन करें। डॉक्टर से बात किए बिना कभी भी अपनी दवा लेना बंद न करें।

 

Dr. Vinayak Jatale

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