ट्रिपल मार्कर टेस्ट गर्भावस्था के दौरान किया जाने वाला ब्लड टेस्ट है। यह गर्भवती महिला के खून में तीन चीजों के स्तर की जांच करता है, जो कि ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी), अल्फा-फेटोप्रोटीन (एएफपी) और एस्ट्रियल (एक प्रकार का एस्ट्रोजन) है।

(और पढ़ें - एस्ट्रोजन हार्मोन टेस्ट क्या है)

अल्फा-फेटोप्रोटीन एक तरह का प्रोटीन होता है जो गर्भ में बढ़ते हुए भ्रूण से बनता है। जैसे-जैसे भ्रूण बढ़ता जाता है वैसे-वैसे शरीर में एएफपी का स्तर भी बढ़ता है। गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में यह उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है। इस समय मां के रक्त में बहुत आसानी से एएफपी की मात्रा की मौजूदगी देखी जा सकती है।

ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन एक प्रोटीन युक्त हार्मोन है जो कि मां द्वारा पेट में शिशु कंसीव कर लेने के बाद उसके शरीर से बनने लगता है। यह गर्भावस्था को सहयोग करने वाली शुरूआती क्रिया है। एचसीजी का स्तर गर्भावस्था के दौरान धीरे-धीरे लगातार रक्त में बढ़ता रहता है। इसके स्तर को खून में देखा भी जा सकता है, यह किसी और समय खून में नहीं बनता है।

एस्ट्रियल एक तरह का एस्ट्रोजन है और प्राथमिक महिला सेक्स हार्मोन भी है। ये ही शरीर में मासिक धर्म को नियमित रखता है। साथ ही गर्भावस्था के विकास में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक महिला का शरीर हर समय अलग-अलग मात्रा में एस्ट्रोजन का उत्पादन करता है। हालांकि, गर्भावस्था में इसका स्तर बढ़ जाता है। यहां तक कि कुछ एस्ट्रोजन का निर्माण तो भ्रूण द्वारा भी किया जाता है।

खून में इन तीनों तत्वों का बदलता स्तर गर्भस्थ शिशु में कमियां पैदा कर सकता है। आसान शब्दों में कहें तो इन तीनों तत्वों के स्तर में परिवर्तन से आपको होने वाले शिशु में जन्मजात दिक्कतें हो सकती हैं।

ट्रिपल मार्कर टेस्ट एक तरह का स्क्रिनिंग टेस्ट है जो कि इन तीनों तत्वों की गड़बड़ी को पहचान लेता है। यह टेस्ट शिशु में होने वाली दिक्कतों का निदान नहीं करता है। लेकिन हां, डॉक्टर को वस्तुस्थिति का सही-सही अंदाजा दे देता है। जिसके बाद वे ऐसे निश्चित टेस्ट करवाने को कह सकते हैं जो कि शिशु की दिक्कतों का सही से निदान कर सके।

  1. ट्रिपल मार्कर टेस्ट कैसे किया जाता है - How the Triple Marker Test is done in Hindi
  2. ट्रिपल मार्कर टेस्ट क्यों किया जाता है - What is the purpose of Triple Marker Test in Hindi
  3. ट्रिपल मार्कर टेस्ट से पहले की तैयारी - How to prepare for Triple Marker Test in Hindi
  4. ट्रिपल मार्कर टेस्ट के परिणाम का क्या मतलब है - What do the results of Triple Marker Test mean in Hindi

इस टेस्ट को दिन में किसी भी समय किया जा सकता है। इस टेस्ट को करने में कुछ ही मिनट लगते हैं। सबसे पहले ब्लड सैंपल लेने वाला टेक्नीशियन आपके हाथ पर एंटीसेप्टिक सॉल्यूशन लगाता है और हाथ पर एक बैंड बांध देता है ताकि नस को आसानी से देखा और पहचाना जा सके।

इसके बाद मेडिकल तौर पर साफ की गई सुई को चुभाकर टेक्नीशियन आपके हाथ से थोड़ा सा खून निकाल लेते हैं। इससे हल्की सी असहजता या दर्द हो सकता है। ब्लड सैंपल को छोटी सी बोतल में लेने के बाद जिस जगह से खून निकाला गया है वहां रुई के फाहे से पोंछकर बैंडेज लगा दिया जाता है। कुछ महिलाओं को खून निकालने वाली जगह पर हल्का सा घाव या खरोंच हो जाती है लेकिन समय के साथ यह कुछ देर में ठीक भी हो जाती है।

(और पढ़ें - घाव ठीक करने के घरेलू उपाय)

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ट्रिपल मार्कर टेस्ट गर्भावस्था की दूसरी तिमाही में, खासकर 16 से 18 सप्ताह के दौरान किया जाता है। इस टेस्ट की सलाह डॉक्टर सभी गर्भवती महिलाओं को देते हैं। ताकि उनके गर्भ में पल रहे शिशु में पनपने वाली दिक्कतों को पहचाना जा सके। इस टेस्ट की सलाह खास तौर से तब दी जाती है, जब

  • होने वाली मां की उम्र 35 साल से अधिक हो।
  • परिवार में जन्मजात रोगों का इतिहास रहा हो।
  • हानिकारक रेडिएशन किरणों के संपर्क में रहना होता हो। (और पढ़ें - रेडिएशन थैरेपी क्या है)
  • गर्भावस्था के दौरान कुछ ऐसी दवाईयों का इस्तेमाल किया जा रहा हो जो कि भ्रूण पर असर डाल सकती है।
  • अगर गर्भवती महिला को शुगर हो।
  • अगर महिला को गर्भावस्था के दौरान कोई वायरल इन्फेक्शन हो जाए।

ट्रिपल स्क्रिनिंग एक बहुउपयोगी टेस्ट है जो गर्भावस्था को सुरक्षित रूप से जारी रखने में आ सकने वाली अड़चनों को पहचानता है। इस टेस्ट से जिन विकारों की पहचान की जाती है वो इस प्रकार हैं-

  • डाउन सिंड्रोम
  • एडवर्ड्स सिंड्रोम
  • न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (यह विकार दिमाग, स्पाइन और स्पाइनल कोर्ड पर असर डालता है।)
  • दूसरी क्रोमोसोम संबंधी अनियमितताएं

कई बार इस टेस्ट से मल्टीपल प्रेग्नेंसी को भी पहचाना जा सकता है। साथ ही गर्भावस्था की प्रगति को भी समझा जा सकता है।

यह एक सिंपल ब्लड टेस्ट है, जिसके लिए अलग से किसी तैयारी की आवश्यकता नहीं होती। फिर भी टेस्ट परिणामों के बेहतर निदान के लिए जरूरी है कि महिला जो भी दवाई ले रही हो, उसकी पूरी जानकारी डॉक्टर को दी जाए। साथ ही अपने मेडिकल इतिहास की जानकारी डॉक्टर को देनी चाहिए। ताकि अगर महिला से संबंधित कोई दिक्कत शिशु को हो रही है तो डॉक्टर उसे वक्त रहते पहचान सकें और उसका निदान कर सकें।

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सामान्य परिणाम :

16 सप्ताह में किए जाने वाले ट्रिपल मार्कर टेस्ट की नॉर्मल वैल्यू इस प्रकार है –

  • एएफपी - 10 to 150 एनजी प्रति एमएल ng/mL
  • एचसीजी - 9,000 to 210,000 यूनिट प्रति लीटर U/L
  • एस्ट्रिओल – 4 एनएमओएल प्रति लीटर

असामान्य परिणाम :

इन्हें कई बार पॉजिटिव परिणाम भी कहा जाता है, जिसका मतलब है कि भ्रूण को जन्मजात विकलांगता का खतरा हो सकता है। नीचे दी गई सूची में बताया गया है कि वैल्‍यू में बदलाव होने पर किस बीमारी का संकेत मिलता है।

  • एएफपी का नॉर्मल वैल्‍यू से ज्‍यादा होने का संबंध न्‍यूरल ट्यूब डिफेक्‍ट से होता है जैसे कि स्पाइना बाइफिडा और ऐनिन्सफैली। नॉर्मल वैल्‍यू से कम होने का संबंध डाउन सिंड्रोम से होता है।
  • एचसीजी की वैल्‍यू सामान्‍य से अधिक होने का संबंध डाउन सिंड्रोम से होता है, जबकि इसके कम होने पर गर्भावस्‍था को ही खतरा रहता है।
  • एस्ट्रिओल की कम वैल्‍यू भी डाउन सिंड्रोम का संकेत देती है।

इस टेस्‍ट के रिजल्‍ट गलत आने की आशंका ज्‍यादा रहती है। इसका मतलब है कि अगर जन्‍मजात विकार का खतरा ना भी हो तो भी टेस्‍ट में उसकी आशंका दिख सकती है। इसलिए इस बात का ध्‍यान जरूर रखें कि ट्रिपल मार्कर टेस्‍ट सिर्फ एक स्‍क्रीनिंग टेस्‍ट है, जिससे डॉक्‍टर को ये पता चल पाता है कि उन्‍हें इस दिशा में और जांच करने की जरूरत है, ताकि समय रहते समस्‍या को गंभीर होने से बचाया जा सके।

नोट : उपरोक्त जानकारी पूरी तरह से शैक्षिक दृष्टिकोण से दी गई है और यह किसी भी तरह से डॉक्‍टर की चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है।

संदर्भ

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  2. Gerard J. Tortora, Bryan Derrickson. Principles of anatomy and physiology. 14th ed. Wiley Publication; 2014. Chapter 29, Development and inheritance; p.1096-1111.
  3. Marshal W.J, Lapsley M, Day A.P, Ayling R.M. Clinical biochemistry: Metabolic and clinical aspects. 3rd ed. Churchill Livingstone: Elsevier; 2014. Chapter 22, Reproductive function in the female; p.436-437.
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  6. Adigun OO, Khetarpal S. Alpha Fetoprotein (AFP, Maternal Serum Alpha Fetoprotein, MSAFP) [Updated 2019 Feb 22]. In: StatPearls [Internet]. Treasure Island (FL): StatPearls Publishing; 2019
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  8. Training Courses: Geneva Foundation for Medical Education and Research; Second Trimester Maternal Serum Screening Programmes for the Detection of Down's Syndrome
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