डॉक्टर एस्ट्रोजन टेस्ट का इस्तेमाल प्रजनन, रजोवृत्ति और यौन संबंधी समस्याओं की जांच के लिए कर सकते हैंं। 

एस्ट्रोजन एक तरह का हार्मोन है, जो महिलाओं में हड्डियों और प्रजनन संबंधी कई मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एस्ट्रोजन के कई रूप होते हैं? 

अगर डॉक्टर को यह पता करना हो कि आपमें एस्ट्रोजन के किस रूप की अधिकता या कमी की शिकायत है तो वह आपको एस्ट्रोजन टेस्ट कराने की सलाह दे सकता है। एस्ट्रोजन एक तरह का खून का परीक्षण है। इस टेस्ट से एस्ट्रोजन के तीन प्रकार को मापा जा सकता है, जिनकी आगे विस्तार से चर्चा की गई है।

(और पढ़ें: खून की कमी का इलाज)

  1. एस्ट्रोजन हार्मोन टेस्ट क्या होता है? - What is Estrogen Test in Hindi?
  2. एस्ट्रोजन हार्मोन टेस्ट क्यों किया जाता है - What is the purpose of Estrogen Total Serum Test in Hindi
  3. एस्ट्रोजन हार्मोन टेस्ट के दौरान - During Estrogen Total Serum Test in Hindi
  4. एस्ट्रोजन हार्मोन टेस्ट के क्या जोखिम होते हैं? - What are the risks of Estrogen Test in Hindi
  5. एस्ट्रोजन हार्मोन टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज - Estrogen Test Result and Normal Range in Hindi

ऐस्ट्रोजन टेस्ट की मदद से खून या यूरीन में एस्ट्रोजीन्स की मात्रा मापी जाती है। एस्ट्रोजन को घर पर होम टेस्ट किट से भी मापा जा सकता है। दरअसल एग्स्ट्रोजीन्स हार्मोन्स के ग्रुप होते हैं, जो महिलाओं में स्तन तथा गर्भाशय के निर्माण व विकास और प्रजनन कार्यों व मासिक धर्म प्रक्रिया को संचालित करते हैं। एस्ट्रोजन पुरुषों में भी बनता है लेकिन पुरुषों में इसकी मात्रा बहुत कम होती है।

वैसे तो एस्ट्रोजन के कई रूप होते हैं लेकिन सामान्य तौर पर डॉक्टर केवल तीन तरह के टेस्ट ही करवाते हैं: 

  • एस्ट्रोन:
    इसे E1 भी कहा जाता है। यह महिलाओं में रजोनिवृत्ति प्रक्रिया के बाद बनने वाला सबसे प्रमुख हार्मोन है। बता दें कि महिलाओं में रजोनिवृत्ति की अवस्था उस उम्र को कहते हैं, जब उनमें मासिक धर्म प्रक्रिया बंद हो चुकी होती है और वो फिर कभी गर्भधारण नहीं कर सकती हैं। महिलाओं में यह अवस्था सामान्य तौर पर 50 साल की उम्र हो जाने पर होती है। (और पढ़ें - गर्भधारण न हो पाने के कारण)
     
  • एस्ट्रोडियल:
    इसे E2 भी कहा जाता है। यह विशेष रूप से उन महिलाओं में पाया जाता है, जो गर्भवती नहीं होती हैं। (और पढ़ें - गर्भवती होने की सही उम्र)
     
  • एस्ट्रॉयल:
    इसे E3 भी कहा जाता है। यह हार्मोन महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान बढ़ता है। 

एस्ट्रोजेन के स्तर को मापने से महिलाओं की प्रजनन क्षमता (गर्भधारण की क्षमता), उनकी प्रजनन क्षमता का स्वास्थ्य, मासिक धर्मचक्र और स्वास्थ्य से संबंधित अन्य जानकारियां मिल सकती हैं। 

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डॉक्टर एस्ट्रोजन टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं अगर:

गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर गर्भधारण के 15वें से 20वें सप्ताह के बीच बच्चे के जन्म से पहले ट्रिपल स्क्रीन टेस्ट नाम का एक एस्ट्रॉयल टेस्ट कराने की सलाह दे सकते हैं। इससे यह पता लगाया जा सकता है कि कहीं बच्चे को डाउन सिंड्रोम जैसे आनुवंशिक जन्म दोष तो नहीं हैं। सभी महिलाओं के गर्भावस्था के दौरान एस्ट्रॉयल टेस्ट कराने की जरूरत नहीं होती है, इस टेस्ट को उन महिलाओं के लिए सुझाया जाता है, जिनके बच्चे में जन्मजात दोष होने की संभावना होती है।

(और भी पढ़ें - दिल में छेद का इलाज)

निम्नलिखित लक्षण दिखने पर आपको खतरा हो सकता है:

एस्ट्रोजन टेस्ट खून, यूरीन या सलाइवा (लार) का किया जाता है। खून या यूरीन की जांच सामान्य तौर पर डॉक्टर करते हैं जबकि सलाइवा टेस्ट आप घर पर भी कर सकते हैं।

खून की जांच के लिए: 
खून में एस्ट्रोजन की जांच करते समय डॉक्टर सूई की मदद से हाथ की नस से खून का थोड़ा सा सैंपल लेते हैं। सूई से थोड़ा सा खून निकालकर टेस्ट ट्यूब या छोटी सी शीशी में रख लेते हैं। सूई शरीर मेंं चुभाते या निकालते समय आपको थोड़ा सा दर्द भी हो सकता है। इस प्रक्रिया में सामान्यत: 5 मिनट से भी कम का समय लगता है। 

यूरीन टेस्ट: 
यूरीन टेस्ट करने के लिए डॉक्टर आपके दिनभर के सारे यूरीन को इकट्ठा करने को कह सकते हैं। इसे 24 ऑवर सैंपल टेस्ट कहा जाता है। इस टेस्ट के लिए यूरीन इकट्ठा करने के लिए डॉक्टर आपको कोई पात्र देकर उसमें यूरीन सैंपल इकट्ठा करने के लिए कुछ सुझाव दे सकते हैं। 24 ऑवर यूरीन सैंपल टेस्ट में निम्नलिखित स्टेप्स आते हैं: 

  • सुबह पेशाब करके ब्लैडर को खाली कर दें। सुबह के इस पेशाब को इकट्ठा न करें। इस पेशाब के समय को नोट कर लें। (और पढ़ें - मूत्राशय कैंसर का इलाज)
  • इसके बाद अगले 24 घंटे के सारे यूरीन को दिए गए पात्र में इकट्ठा कर लें।
  • अब पात्र में इकट्ठा किए गए इस यूरीन को आप किसी रेफ्रिजरेटर या बर्फ वाली ठंडी जगह पर रख दें।
  • इसके बाद सुझाव के अनुसार उस पात्र को अपने डॉक्टर या फिर लैब पर्सन को दे आएं।

घर पर सलाइवा टेस्ट के लिए: 
अपने डॉक्टर से सबसे पहले इस विषय पर बातचीत करें। उनसे सुझाव लें। वो आपको बताएंगे कि आप किस किट का इस्तेमाल करें और उसमें सलाइवा का सैंपल किस तरह से इकट्ठा करें। 

ऐस्ट्रॉडियल टेस्ट के साथ कम खतरे हैं यानी बहुत कम खतरे हैं। फिर भी इस टेस्ट में  निम्न खतरे हो सकते हैं: 

इसके अलावा ब्लड टेस्ट में बहुत कम खतरा होता है। हालांकि सूई चुभोए जाने वाली जगह पर आपको थोड़ी सी तकलीफ हो सकती है लेकिन ज्यादातर लक्षण जल्द ही ठीक हो जाते हैं।

यूरीन या लार की जांच में किसी भी प्रकार का खतरा नहीं होता है। 

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एस्ट्रोजन टोटल टेस्ट के परिणाम और नॉर्मल रेंज

नॉर्मल रिजल्ट :

एस्ट्राडायोल

  • पुरुष : 10-40 पिकोग्राम प्रति मिलीलीटर (pg/mL)
  • मेनोपॉज के पहले महिलाएं : 15-330 pg/mL (मासिक धर्म के आधार पर यह स्तर भिन्न हो सकते हैं)
  • मेनोपॉज के बाद महिलाएं : 10 (pg/mL) से कम

एस्ट्रॉन

  • पुरुष : 10-60 pg/mL
  • मेनोपॉज के पहले महिलाएं : 17-200 pg/mL (मासिक धर्म के आधार पर यह स्तर भिन्न हो सकते हैं)
  • मेनोपॉज के बाद महिलाएं : 7-40 pg/mL

परिणाम का सामान्य होना इस हार्मोन के समुचित कार्य का संकेत देता है। हालांकि, परिणामों की सावधानी से व्याख्या की जानी चाहिए क्योंकि कई फैक्टर सेक्स हार्मोन के साथ शामिल होते हैं जैसे कि हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्रंथि के कार्य आदि।

एबनॉर्मल रिजल्ट :
महिलाओं में अंडाशय, पुरुषों में अंडकोष या एड्रेनल ग्लैंड के ट्यूमर, सिरोसिस, लड़कियों में यौवन की जल्दी शुरुआत और लड़कों में यौवन की शुरुआत में देरी की स्थिति में एस्ट्राडायोल और एस्ट्रॉन का स्तर सामान्य से अधिक देखा जा सकता है। वहीं हार्मोन का स्तर सामान्य से कम होना निम्न प्रकार की समस्याओं और स्थितियों का सूचक हो सकता है।

  • प्राइमरी ओबेरियन इंसफीसियंसी : यह 40 वर्ष की आयु से पहले ही रजोनिवृत्ति का कारण बन सकती है। यह 3-6 महीनों से अधिक समय तक पीरियड्स न होने की समस्या से भी जुड़ा हुआ है।
  • टर्नर सिंड्रोम : एक्स गुणसूत्र की क्रोमोसोमल असामान्यता जोकि ओबेरियन इंसफीसियंसी का भी कारण बन सकती है।
  • एनोरेक्सिया नर्वोसा : यह खाने से संबंधित विकार है, जिसमें व्यक्ति इतनी कम मात्रा में भोजन करने लगता है कि यह उसके शरीर के विकास को प्रभावित कर सकता है।
  • पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस): बच्चे को जन्म देने की उम्र में महिलाओं को होने वाली यह एक समस्या है जो प्रजनन क्षमता में कमी का कारण हो सकती है। इस स्थिति में इंसुलिन की असामान्यताएं और मोटापा भी आमतौर पर देखने को मिल सकता है। इसके लक्षण सामान्य तौर पर मासिक धर्म की शुरुआत के बाद देखे जाते हैं, जोकि बाद में और स्पष्ट हो सकते हैं। अल्ट्रासाउंड के माध्यम से पीसीओएस का निदान किया जाता है, जिसमें अंडाशय में कई सिस्ट देखे जा सकते हैं।

(और पढ़ें : ओवरियन कैंसर के लक्षण)

संदर्भ

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