एक्सट्राकॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सिजेनेशन यानी ईसीएमओ एक लाइफ सपोर्ट मशीन है। 'एक्सट्राकॉर्पोरियल' इस शब्द का मतलब है शरीर के बाहर और 'मेम्ब्रेन ऑक्सिजेनेशन' का अर्थ है खून को तत्काल प्रत्यक्ष रूप से ऑक्सीजन प्रदान करना। वैसे लोग जो किसी गंभीर जानलेवा बीमारी से पीड़ित हों जिसमें उनके शरीर में मौजूद हृदय और फेफड़ों को सही ढंग से काम करने में अवरोध उत्पन्न हो रहा हो वैसे लोगों के लिए ईसीएमओ की जरूरत पड़ती है।

ईसीएमओ मशीन ब्लड को पंप करती है और मरीज के शरीर के बाहर से उसमें ऑक्सीजन को डाल देती है। ऐसा करने से मरीज के हृदय और फेफड़ों को आराम मिलता है। जब किसी मरीज को ईसीएमओ से जोड़ा जाता है तो उनके शरीर में मौजूद खून ट्यूब की मदद से मशीन में बहने लगता है जो एक आर्टिफिशियल फेफड़ों की तरह काम करने लगता है। यह मशीन खून में ऑक्सीजन को डाल देती है और खून में मौजूद कार्बन डाइ ऑक्साइड को बाहर निकाल लेती है। एक बार जब खून में ऑक्सीजन पहुंच जाता है फिर उस खून को शरीर के तापमान के हिसाब से गर्म कर वापस से मरीज के शरीर में पंप कर दिया जाता है।

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कुछ मामलों में कोविड-19 इंफेक्शन से पीड़ित गंभीर मरीजों में भी ईसीएमओ मशीन की मदद से फायदा हुआ है। अप्रैल 2020 में अमेरिका के फूड एंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए ईसीएमओ के इस्तेमाल की इजाजत दे दी है। कोविड-19 या कोरोना वायरस बीमारी 2019 श्वसन पथ (रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट) से संबंधित इंफेक्शन है जिसकी शुरुआत दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर से हुई थी। इस बीमारी ने अब तक दुनियाभर के 34 लाख से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है और करीब 2 लाख 40 हजार लोगों की मौत भी हो चुकी है। 

ऐसे में ईसीएमओ मशीन को कब और कैसे इस्तेमाल किया जाता है, इसकी कार्यप्रणाली क्या है और इस मशीन से जुड़े खतरे क्या-क्या हो सकते हैं, इस बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

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  1. ईसीएमओ मशीन का इस्तेमाल कब होता है?
  2. कितने तरह का होता है ईसीएमओ?
  3. ईसीएमओ मशीन को मरीज से कैसे जोड़ा जाता है?
  4. कितने समय तक ईसीएमओ मशीन का इस्तेमाल किया जा सकता है?
  5. जब मरीज को ईसीएमओ पर रखा जाता है तो क्या उम्मीद कर सकते हैं?
  6. ईसीएमओ से जुड़े कुछ रिस्क क्या हैं?
ईसीएमओ एक्सट्राकॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सिजेनेशन क्या है? के डॉक्टर

एक्सट्राकॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजेनेशन यानी ईसीएमओ का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता है जिन्हें कोई गंभीर बीमारी हो जिसकी वजह से उनके फेफड़े और हृदय के काम करने में रुकावट आ रही हो। ईसीएमओ मशीन का इस्तेमाल निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता है:

  • वैसे लोग जो हार्ट फेलियर या लंग फेलियर की समस्या से पीड़ित हों उनके लिए इस मशीन का इस्तेमाल होता है।
  • ओपन हार्ट सर्जरी के दौरान इस मशीन को यूज किया जाता है।
  • कार्डिएक कैथेटेरिजेशन लैब में हाई-रिस्क प्रोसीजर करने के दौरान भी इसका इस्तेमाल होता है।
  • वैसे मरीज जिनका हार्ट या लंग ट्रांसप्लांट किया जाना है उन मरीजों के शरीर के उत्तकों को ऑक्सिजेनेटेड रखने के लिए भी इस मशीन का इस्तेमाल होता है।
  • पल्मोनरी हाइपरटेंशन और गंभीर निमोनिया के मरीजों में भी ईसीएमओ का इस्तेमाल होता है।
  • हार्ट में लेफ्ट वेन्ट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (एलवीएडी) को लगाने से पहले भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • अक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) के मरीजों में भी इसका इस्तेमाल होता है।
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ईसीएमओ मुख्य रूप से 2 तरह का होता है: वेनो वीनियस ईसीएमओ और वेनो-आर्ट्रीयल ईसीएमओ। शरीर के जिन कॉमन हिस्सों में कैनुला या बेहद पतली ट्यूब डाली जाती है वे हैं :

  • कम्प्यूटर से जुड़े (पेरिफेरल) ईसीएमओ के मामले में शरीर में पेड़ू और जांघ की जोड़ में मौजूद ऊरु-धमनी (femoral artery) या ऊरु-शिरा (femral vein) या फिर गर्दन में मौजूद आंतरिक ग्रीवा शिरा (internal jugular vein) में डाला जाता है।
  • सेंट्रल ईसीएमओ के मामले में पतली ट्यूब (कैनुला) को हृदय के दाहिने परिकोष्ठ और महाधमनी में डाला जाता है।

सभी नसें जहां ऑक्सीजन रहित खून को ले जाती हैं वहीं धमनियां ऑक्सीजन से भरपूर खून को वापस लाने का काम करती हैं।

वेनो वीनियस (वीवी) ईसीएमओ
वीवी ईसीएमओ मशीन फेफड़ों को मदद पहुंचाने का काम करती है। इस तरह के ईसीएमओ में सर्जन, पतली ट्यूब (कैनुला) को मरीज की गर्दन के साइड में मौजूद बड़ी धमनी के अंदर डालते हैं या फिर पैर में ऊपर की तरफ पेड़ू और जांघ की जोड़ में मौजूद ग्रोइन के हिस्से में। इस तरह की ईसीएमओ मशीन हृदय को सपोर्ट नहीं करती। लिहाजा इस तरह की मशीन का इस्तेमाल सिर्फ उन्हीं लोगों में किया जा सकता है जिनका हार्ट सामान्य तरीके से कार्य कर रहा हो। वीवी ईसीएमओ मशीन कैनुला की मदद से नसों से खून को खींचती है और फिर यह मशीन खून में ऑक्सीजन को डालकर उस खून में से कार्बन डाइऑक्साइड को हटा देती है। इसके बाद इस खून को शरीर के तापमान के हिसाब से गर्म किया जाता है और फिर से कैनुला की मदद से इसे हृदय के दाहिने तरफ वापस डाल दिया जाता है। उसके बाद मरीज का हृदय इस ऑक्सीजन से भरपूर खून को शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंचाता है। इस मशीन की मदद से मरीज के फेफड़ों को आराम करने और रिकवर करने में मदद मिलती है।

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वेनो-आर्ट्रीयल (वीए) ईसीएमओ
वीए ईसीएमओ मशीन फेफड़ों और हृदय दोनों को सपोर्ट करती है। इस तरह के ईसीएमओ में एक की बजाए दो कैनुला को गर्दन की साइड में, सीधे सीने में या फिर ग्रोइन के हिस्से में डाला जाता है। वीए ईसीएमओ मशीन नसों से खून को निकालती है, उसमें ऑक्सीजन डालती है, कार्बन डाइऑक्साइड को खून से अलग करती है और उसके बाद उस ऑक्सीजन से भरे खून को शरीर के तापमान के अनुसार गर्म करती है। उसके बाद इस खून को महाधमनी को वापस भेज दिया जाता है और फिर यह खून शरीर के सभी हिस्सों तक पहुंचाया जाता है लेकिन फेफड़ों और हृदय को बाइपास करते हुए। इस मशीन की मदद से हृदय और फेफड़ों को आराम करने और रिकवर होने का समय मिल जाता है।

अगर कम्प्यूटर से जुड़ी लघुनलिका या पेरिफेरल कैनुलेशन को धमनी और नसों से जोड़ना हो तो इसके लिए एक छोटी सी सर्जरी की जाती है लेकिन सेंट्रल कैनुलेशन करने के लिए स्टर्नोटोमी की जाती है। इसमें हड्डी के पंजर (रिब केज) की बीच की हड्डी स्टर्नम को काटा जाता है और फिर लघुनलिका (कैनुला) को सीधे हृदय में मौजूद महाधमनी (aorta) और परिकोष्ठ (atrium) में डाल दिया जाता है। इस सर्जरी को करने के लिए सर्जन मरीज को दवा देकर बेहोश करते हैं और फिर दर्द निवारक दवाइयां और स्कन्दनरोधी (anticoagulants) भी दिया जाता है ताकि खून का थक्का जमने से रोका जा सके।

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इसके बाद ईसीएमओ के कैथेटेर को सीधे नस और धमनी में डाल दिया जाता है। कैथेटर को डालने के बाद मरीज का एक्स-रे लिया जाता है ताकि यह पता चल सके कि ट्यूब्स सही जगह पर लगी हैं या नहीं। चूंकि मरीज को दवा देकर बेहोश किया जाता है, इसलिए एक नैसोगैस्ट्रिक ट्यूब (एनजी फीडिंग ट्यूब) को मरीज के मुंह में डाला जाता है जो पेट तक जाती है। यह एनजी ट्यूब मरीज को पोषण प्रदान करने का काम करती है। जब तक मरीज ईसीएमओ पर रहता है खासतौर पर ट्रेन की गई नर्स और श्वसन थेरेपिस्ट्स चौबीसों घंटें मरीज की देखभाल में लगे रहते हैं।

ईसीएमओ मशीन से कनेक्टेड रहने के दौरान मरीज को इंट्रावीनस (आईवी) रूट के जरिए कुछ दवाइयां दी जाती है। वे दवाइयां हैं :

  • हेपारिन दी जाती है ताकि खून के थक्के जमने से रोका जा सके।
  • एंटीबायोटिक्स दी जाती है ताकि किसी तरह के इंफेक्शन को होने से रोका जा सके।
  • मरीज की गतिविधियों को कम से कम करने के लिए सिडेटिव्स दिए जाते हैं।
  • यूरिन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मूत्रवर्धक औषधी (डाइयूरेटिक्स) दी जाती है।
  • शरीर में तरल पदार्थों के संतुलन को बनाए रखने के लिए इलेक्ट्रोलाइट्स भी दिए जाते हैं।
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वैसे तो यह किसी भी बीमारी का इलाज नहीं है। ईसीएमओ मशीन गंभीर स्थिति में पहुंच चुके मरीज जैसे- अगर किसी का हार्ट फेल हो गया हो या लंग फेल हो गया हो तो उस मरीज की जान बचाने में मदद करती है। ईसीएमओ मशीन मरीज को सपोर्ट प्रदान करती है जब तक डॉक्टर उनके शरीर की बाकी चोट या बीमारी को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं या फिर अंग के प्रत्यारोपण की व्यवस्था नहीं हो जाती।

कुछ मरीजों को जहां महज कुछ घंटों के लिए ही ईसीएमओ मशीन की जरूरत पड़ती है वहीं, बाकी मरीजों को ठीक होने में इससे ज्यादा समय भी लग सकता है। कई बार तो कुछ मरीजों को ईसीएमओ मशीन से कई दिनों या हफ्तों तक कनेक्टेड रखने की जरूरत पड़ती है।

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ईसीएमओ थेरेपी से मरीज को हटाने से पहले डॉक्टर कई तरह के टेस्ट करते हैं ताकि इस बात की पुष्टि हो पाए कि मरीज का हृदय और फेफड़ा अपने से सही तरीके से काम करने में सक्षम हो गया है। इसके बाद कैनुला को शरीर से हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। कुछ मरीजों को ईसीएमओ से हटाने के बाद भी वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। कई ऐसे गंभीर रूप से बीमार मरीज जो वेंटिलेटर जैसे साधारण लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर प्रतिक्रिया नहीं देते उनकी जान बचाने के लिए ईसीएमओ का इस्तेमाल किया जाता है।

ईसीएमओ मशीन से कनेक्टेड मरीज को इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में भर्ती किया जाता है जब तक की यह मशीन हटा नहीं दी जाती है। आईसीयू में डॉक्टरों और नर्सों की टीम चौबीसों घंटे मरीज पर नजर बनाए रखती है। साथ ही साथ मरीज को कई तरह के मॉनिटर्स से भी कनेक्ट किया जाता है ताकि मरीज के हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर और ऑक्सीजन लेवल पर नजर बनाए रखी जा सके।

डॉक्टर नियमित रूप से मरीज के खून की भी जांच करते हैं ताकि उसमें मौजूद ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के लेवल की जांच की जा सके। इसे ब्लड गैस टेस्ट भी कहा जाता है। ईसीएमओ से कनेक्ट किए गए मरीज को स्कन्दनरोधी (anticoagulants) यानी खून को पतला करने वाली दवाइयां भी दी जाती हैं ताकि ईसीएमओ ट्यूब के अंदर खून का थक्का न जम जाए।

साथ ही डॉक्टरों को खून के पतला होने की प्रक्रिया पर भी नजर रखनी पड़ती है क्योंकि अगर खून जरूरत से ज्यादा पतला हो जाएगा तो शरीर के अंदर (इंटरनल) ब्लीडिंग भी शुरू हो सकती है। ईसीएमओ से जुड़े इलाज की इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज को सिडेटिव्स, एंटीबायोटिक्स, डाइयूरेटिक्स, पेनकिलर की जो डोज दी जा रही है उस पर भी डॉक्टरों को नजर रखनी होती है।

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ईसीएमओ पर रहने के दौरान मरीज में निम्नलिखित जटिलताएं देखने को मिल सकती हैं :

  • चूंकि मरीज को स्कन्दनरोधी (anticoagulants) दवाइयां दी जाती हैं ताकि ट्यूब में खून का थक्का जमने से रोका जा सके, ऐसी स्थिति में इन मरीजों में ब्लीडिंग होने की भी आशंका बनी रहती है। यह ब्लीडिंग शरीर के अंदर भी हो सकती है और शरीर के बाहर भी। यह स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है अगर यह ब्लीडिंग ब्रेन के पास या ब्रेन के अंदर होने लगे।
  • शरीर में जिन जगहों पर ट्यूब डाली जाती है उन जगहों पर इंफेक्शन होने का खतरा रहता है।
  • ईसीएमओ ट्यूब के अंदर खून के थक्के जमने या हवा के बुलबुले बनने का भी खतरा बना रहता है।
  • ईसीएमओ से कनेक्ट रहने के दौरान, 2 कैरोटिड धमनियों में से एक को ईसीएमओ मशीन से कनेक्ट कर दिया जाता है। ऐसे में सिर्फ एक कैरोटिड धमनी ही बचती है जो ब्रेन तक खून को पहुंचाने का काम करती है। चूंकि खून की सप्लाई इस दौरान कम हो जाती है, ऐसे में मरीज को ब्रेन स्ट्रोक होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
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