स्टेम सेल मानव शरीर में मौजूद वे कोशिकाएं हैं, जो अन्य सभी प्रकार की कोशिकाओं को बनने में मदद करती हैं। ये स्टेम सेल अपने जैसी अन्य स्टेम सेल को विकसित होने में भी मदद करती हैं, जिससे इनका जीवन चक्र चलता रहता है। मनुष्यों में दो प्रकार के स्टेम सेल पाए जाते हैं, जिन्हें एंब्रिओनिक स्टेम सेल और नोन-एंब्रिओनिक स्टेम सेल के नाम से जाना जाता है। एंब्रिओनिक स्टेम सेल गर्भ में भ्रूण और बच्चे का शरीर बनाने वाली सभी कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। इसीलिए इन्हें "प्लुरिपोटेंट" के नाम से भी जाना जाता है, जिसका मतलब होता है कि ये सभी प्रकार की कोशिकाओं का निर्माण कर सकती हैं। हालांकि, नोन-एंब्रिओनिक स्टेम सेल जिन्हें एडल्ट स्टेम सेल भी कहा जाता है, संख्या में कम होती हैं। इन कोशिकाओं की क्षमता भी सीमित ही होती है और ये सिर्फ शरीर में बदलाव के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कोशिकाएं ही बना पाती हैं। उदाहरण के तौर पर एडल्ट स्टेम सेल वे स्टेम सेल हैं, जो अस्थि मज्जा (बोन मेरो) के अंदर पाई जाती हैं और ये सिर्फ नई रक्त कोशिकाओं को बनने में ही मदद करती हैं।

वैज्ञानिक एडल्ट स्टेम सेल को प्लुरिपोटेंट में बदलने में सक्षम हुए हैं, जिसकी मदद से स्टेम सेल सभी प्रकार की कोशिकाओं को बनाने में मदद कर पाती हैं। इस बदलाव को करने की प्रक्रिया को "इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट स्टेम सेल" के नाम से जाना जाता है। स्टेम सेल में इन लाभप्रद और अनोखे गुणों को लाकर, कई प्रकार की उपचार प्रक्रियाओं का आविष्कार किया जा चुका है और इसी तकनीक की मदद से अन्य कई रहस्यमयी बीमारियों के इलाज की खोज की जा रही है।

सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली स्टेम सेल थेरेपी, हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन है, जो अपेक्षाकृत महंगी लेकिन जीवन रक्षक थेरेपी है।

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  1. स्टेम सेल थेरेपी क्या है - What is Stem cell therapy in Hindi
  2. स्टेम सेल थेरेपी के लिए सावधानियां - Indication of Stem cell therapy in Hindi
  3. हेमाटोपोइटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के प्रकार - Types of hematopoietic stem cell transplantation in Hindi
  4. स्टेम सेल थेरेपी कैसे की जाती है - Procedure Stem cell therapy in Hindi
  5. स्टेम सेल थेरेपी की जटिलताएं - Complications of Stem cell therapy in Hindi
स्टेम सेल थेरेपी के डॉक्टर

स्टेम सेल थेरेपी क्या है?

स्टेम सेल थेरेपी की नई तकनीकों पर अभी तक शोध चल रहे हैं, जिनसे चिकित्सा क्षेत्र में कई उम्मीदें दिखी हैं। हालांकि, एफडीए (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, यूएसए) द्वारा केवल कुछ चुनिंदा विशेषज्ञों को ही इस तकनीक के उपयोग की मंजूरी दी जाती है। स्टेम सेल थेरेपी का एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि इसे विशेषज्ञ डॉक्टर की सलाह के अनुसार सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों पर ही इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

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कोशिकाओं को कृत्रिम रूप से रूपांतरित करने और उनके गुणों को बदलने की प्रक्रिया को कई चिकित्सा अनुसंधानों ने अनैतिक माना है, जो आजतक भी विवादस्पद है। इसलिए, स्टेम सेल थेरेपी पर किए जाने वाले शोध और इस्तेमाल को कड़े नियमों के अंतर्गत रखा जाता है। एफडीए (FDA) ने अभी तक सिर्फ हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन को ही चिकित्सीय रूप से इस्तेमाल करने के लिए मंजूरी दी है। एफडीए ने कुछ चुनिंदा रक्त विकारों और कैंसर के इलाज के लिए ही इस थेरेपी का इस्तेमाल करने की अनुमति दी है। हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट को बोन मेरो ट्रांसप्लांट के नाम से भी जाना जाता है।

  • हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट प्रोसीजर -
    यह स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन प्रक्रिया का एकमात्र प्रकार है, जिसके इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है। हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट सर्जरी का इस्तेमाल आमतौर पर कुछ प्रकार का रक्त कैंसर व अन्य रक्त विकारों का इलाज करने के लिए किया जाता है। थेरेपी में इस्तेमाल की जाने वाली कोशिकाओं को आमतौर पर कॉर्ड ब्लड (सहेज कर रखी गई गर्भनाल के रक्त से) से निकाला जाता है। हालांकि, अधिकतर कोशिकाओं को अस्थि मज्जा से निकाला जाता है। नियमानुसार, बोन मेरो या कॉर्ड ब्लड से निकाली गई स्टेम सेल को मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाता है, जहां से वे उसकी बोन मेरो में चली जाती हैं। बोन मेरो में जाकर ये स्टेम सेल नई स्वस्थ कोशिकाएं बनाती हैं, जैसे लाल रक्त कोशिकाएं (एरिथ्रोसाइट), सफेद रक्त कोशिकाएं (ल्यूकोसाइट और प्लेटलेट्स (थ्रोम्बोसाइट) आदि। यह इलाज प्रक्रिया कई हफ्तों तक चलती है, जिसमें पहले इनवेसिव कीमोथेरेपी और फिर स्टेम सेल इंफ्यूजन किया जाता है। इनवेसिव कीमोथेरेपी, कैंसर के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामान्य कीमोथेरेपी से शक्तिशाली होती है, क्योंकि इसकी मदद से निष्क्रिय बोन मेरो को बदला जाता है। जिन मरीजों की हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट थेरेपी की जा रही है, उनको लगातार जांच में रखा जाता है और इसी कारण से लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन प्रोसीजर को घर पर भी किया जा सकता है, लेकिन यह काफी महंगी पड़ती है।
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  • अन्य शोध जो अभी जारी हैं -
    चिकित्सा क्षेत्र में लगातार बढ़ रही तकनीकों की मदद से जिस प्रकार एक सामान्य एडल्ट सेल को इंड्यूस्ड प्लुरिपोटेंट में बदलने में सफलता मिली है, उसी प्रकार अन्य स्थितियों के इलाज के लिए भी कई उम्मीदें मिली हैं। शुरुआत में यह माना गया था कि स्टेम सेल थेरेपी की मदद से सिर्फ रक्त कोशिकाओं को ही बदला जा सकता है, लेकिन अब किए गए अध्ययनों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की मदद से न्यूरोलॉजिकल रोग, न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग, डायबिटीज मेलिटस और कार्डियोवास्कुलर रोग का सफल इलाज की भी उम्मीद जगी है। हाल ही में स्टेम सेल थेरेपी की मदद से घुटनों संबंधी रोग (ओस्टियोआर्थराइटिस) का इलाज ढूंढने के लिए अध्ययन किए गए थे। हालांकि, इस अध्ययन में मिलने वाले परिणाम काफी प्रारंभिक थे, जिसमें मिला था कि स्टेम सेल थेरेपी की मदद से इस रोग को लगातार बढ़ने से रोका जा सकता है। आजकल स्टेम सेल थेरेपी पर किए जाने वाले अध्ययन सिर्फ नई सेल को ट्रांसप्लांट करने पर नहीं है, इनके साथ-साथ कोशिकाओं से प्राप्त होने वाले तत्वों को बनाने पर भी अध्ययन किए जा रहे हैं, ताकि विभिन्न बीमारियों को होने से रोका जाए। हालांकि, यह याद रखना भी महत्वपूर्ण है कि ये सभी इलाज प्रक्रियाएं सिर्फ अध्ययन के लिए ही होती हैं और इन्हें आम जनता के लिए इस्तेमाल किए जाने से पहले कई सालों तक परीक्षण में रखा जाता है।

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स्टेम सेल थेरेपी करवाने से पहले किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

यदि किसी मरीज की बोन मैरो क्षतिग्रस्त हो गई है या उसने काम करना बंद कर दिया है, तो स्टेम सेल थेरेपी की जा सकती है। ऐसा आमतौर पर कैंसर के लिए इस्तेमाल की गई कीमोथेरेपी या फिर लंबे समय से कोई रोग या संक्रमण रहने के कारण हो सकता है। स्टेम सेल थेरेपी को आमतौर पर सबसे अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल किया जाता है, जब सभी उपचार प्रक्रियाएं स्थिति का इलाज न कर पाएं। (और पढ़ें - पित्त के कैंसर का इलाज)

हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट थेरेपी आमतौर पर निम्न संभावित कारणों से की जा सकती है -

  • कैंसर के बाद की जाने वाली कीमोथेरेपी
    • कैंसर के इलाज के बाद भी अस्थि मज्जा क्षतिग्रस्त या रोगग्रस्त हो सकती है।
       
  • इम्यूनोलॉजिकल  -
    • सीवियर कपल्ड डेफिशियेंसी - इस रोग को एससीआईडी (SCID) भी कहा जाता है। यह दुर्लभ आनुवंशिक विकार है, जिसमें मरीज का शरीर टी-सेल और बी-सेल बनाने में असमर्थ हो जाता है। ये दोनों सेल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखती है। ऐसी स्थिति में बच्चे संक्रमित रोगों की चपेट में जाते हैं और फिर सिर्फ बोन मेरो ट्रांसप्लांट ही एकमात्र इलाज बचता है।

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हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के प्रकार

हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के मुख्य दो प्रकार होते हैं -

  • ऑटोलोगस ट्रांसप्लांट -
    कभी-कभी कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी जैसे क्षति पहुंचाने वाले उपचार शुरू करने से पहले स्वयं रोगी के शरीर से ही कोशिकाओं को निकाल लिया जाता है। जब इलाज पूरा हो जाए तो पहले निकाली गई कोशिकाओं को मरीज के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। हालांकि, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट थेरेपी के इस प्रकार की मदद से ट्रांसप्लांट प्रक्रिया असफल होने और ग्राफ्ट वर्सस हॉस्ट डिजीज (GVHD) होने का खतरा कम हो जाता है।
     
  • एलोजेनिक ट्रांसप्लांट -
    ऐसे रोग जिनमें मरीज की अस्थि मज्जा में मौजूद स्टेम सेल ठीक से काम करने के लिए पर्याप्त रूप से स्वस्थ नहीं हैं, उनमें एलोजेनिक ट्रांसप्लांट किया जाता है। एलोजेनिक ट्रांसप्लांट में मरीज के किसी करीबी रिश्तेदार के शरीर से स्टेम सेल निकाले जाते हैं। इसमें स्टेम सेल देने वाला परिवार का कोई करीबी व्यक्ति हो सकता है, जिसके गुणसूत्र मरीज से काफी हद तक मिलते हों। ऐसी स्थिति में मरीज को सबसे पहले इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं (इंटेंसिव कीमोथेरेपी) दी जाती हैं, जिनकी मदद से पुरानी अस्थिमज्जा को नष्ट कर दिया जाता है। इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर बना देती हैं, जिससे वे नई स्टेम सेल के विरुद्ध प्रतिक्रिया नहीं दे पाती हैं। स्टेम सेल को निम्न में से निकाला जा सकता है -
    • बोन मेरो - हड्डी के अंदरूनी हिस्से में मौजूद अस्थि मज्जा से स्टेम सेल लिए जाते हैं। यह आमतौर पर एक सर्जरी प्रोसीजर के रूप में किया जाता है, जिसमें स्वस्थ व्यक्ति की पेल्विक हड्डी से स्टेम सेल को निकाला जाता है।
    • रक्त - आमतौर पर स्टेम सेल हड्डी के अंदर (बोन मेरो) में ही पाए जाते हैं, लेकिन रक्त में भी यह एक सूक्ष्म मात्रा में मिल जाते हैं। स्टेम सेल निकालने से कुछ दिन पहले व्यक्ति को कुछ विशेष दवाएं दी जाती हैं, जिनसे उसके रक्त में सामान्य से अधिक मात्रा में स्टेम सेल बनने लगेंगे। इसके बाद व्यक्ति की बांह से एक सेल सेपरेटर मशीन को जोड़ दिया जाता है, जो लगातार 4 से 6 घंटे काम करके रक्त से मज्जा कोशिकाओं को निकालती है।
    • कॉर्ड ब्लड - अम्बिलिकल कॉर्ड में मौजूद रक्त से भी स्टेम सेल को निकाला जा सकता है। ऐसा आमतौर पर शिशु के पैदा होने के दौरान ही किया जाता है।

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स्टेम सेल थेरेपी कैसे होती है?

स्टेम सेल थेरेपी को निम्न प्रक्रियाओं के अनुसार किया जाता है -

  • ट्रांसप्लांट से पहले -
    सबसे पहले मरीज के कुछ जेनेटिक टेस्ट किए जाते हैं, जिसकी मदद से यह पता लगाया जाता है कि उन्हें किस प्रकार की स्टेम सेल की आवश्यकता है। यदि किसी अन्य व्यक्ति की स्टेम सेल मरीज को दी जानी है, तो उन दोनों के गुणसूत्रों का मिलान अधिक से अधिक होना चाहिए। इसके बाद मरीज को कीमोथेरेपी दी जाती है, जिसकी मदद से उन बोन मेरो को नष्ट कर दिया जाता है, जिन्हें बदलना है। कीमोथेरेपी में इम्यूनोसप्रेसेंट भी होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को नई स्टेम सेल के विरुद्ध प्रतिक्रिया करने से रोकता है। यह एक लंबा प्रोसीजर है, जो मरीज को मानसिक व शारीरिक रूप से काफी प्रभावित करता है। इस प्रक्रिया के दौरान मरीज को संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है और इसलिए उसे अस्पताल के विशेष कमरे में रखा जाता है। (और पढ़ें - हड्डी में संक्रमण के लक्षण)
     
  • ट्रांसप्लांटेशन के दौरान -
    कीमोथेरेपी के बाद निकाली गई स्टेम सेल को इंट्रावेनस ड्रिप की मदद से मरीज के रक्त में मिला दिया जाता है। यह प्रक्रिया रक्त चढ़ाने की तकनीक के समान होती है। बोन मेरो को शरीर में फिर से सक्रिय होने में कुछ हफ्तों का समय लग सकता है और यह प्रक्रिया कई बार करनी पड़ सकती है। इस दौरान मरीज को इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएं दी जाती हैं और उसे लगातार जांच में रखा जाता है ताकि संक्रमण आदि को होने से पहले ही रोका जा सके।
     
  • ट्रांसप्लांटेशन के बाद -
    हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल के सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट होने के बाद जब स्वस्थ कोशिकाएं बनने लगती हैं, तो इस प्रक्रिया को इंग्राफ्टमेंट (Engraftment) कहा जाता है। सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ना इंग्राफ्टमेंट का सबसे पहला संकेत होता है, जिसमें आमतौर पर दस दिन से एक महीने तक का समय भी लग सकता है।

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स्टेम सेल थेरेपी से क्या जोखिम हो सकते हैं?

हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन एक बड़ी सर्जरी है और इसी कारण से इससे कुछ अस्थायी जोखिम व जटिलताएं भी हो सकती हैं। कुछ जोखिम कारक हैं, जो स्टेम सेल थेरेपी के बाद जटिलताएं पैदा कर सकते हैं। इन कारकों में मुख्य रूप से मरीज की उम्र, स्वास्थ्य स्थिति, जिस रोग का इलाज किया जा रहा है और स्टेम सेल के किस प्रकार का इस्तेमाल किया जा रहा है आदि शामिल हैं। अधिकतर मामलों में हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन सर्जरी के बाद निम्न समस्याएं देखी जा सकती हैं -

ऊपर बताई गई समस्याएं आमतौर पर सर्जरी के बाद विकसित होती हैं और कुछ समय बाद ठीक हो जाती हैं। हालांकि, थोड़े समय बाद कुछ अन्य जटिलताएं भी पैदा हो सकती हैं, जो कुछ मामलों में गंभीर भी हो सकती हैं। हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के बाद निम्न जटिलताएं होने का खतरा भी बढ़ सकता है -

  • ग्राफ्ट वर्सस होस्ट डिजीज -
    एलोजेनिक बोन मेरो ट्रांसप्लांट के बाद नई कोशिकाएं  पुरानी कोशिकाओं की पहचान नहीं कर पाती हैं और उन्हें शरीर से बाहर का तत्व समझने लगती हैं। ऐसी स्थिति में प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय हो जाती हैं और कोशिकाओं को नष्ट करने लगती है। (और पढ़ें - प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत कैसे करे)
     
  • ट्रांसप्लांट फेलियर -
    कुछ स्थितियों में मरीज का शरीर ट्रांसप्लांट की जाने वाली स्टेम सेल को स्वीकार नहीं करता है और ऐसे में ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया असफल रह जाती है।
     
  • अंग क्षतिग्रस्त होना -
    यदि किसी कारण से स्टेम सेल ट्रांसप्लांट असफल हो गया है, तो उसके बाद शरीर का कोई अंग भी नष्ट हो सकता है।
     
  • रक्तस्राव -
    इंटेंसिव कीमोथेरेपी के बाद और पहले प्लेटलेट की संख्या कम होने के कारण फेफड़ों, मस्तिष्क और शरीर के अन्य हिस्सों में रक्तस्राव हो सकता है।
     
    • संक्रमण -
      इनवेसिव कीमोथेरेपी के बाद शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर पड़ जाती है और कई प्रकार के संक्रमण हो जाते हैं, जो कई बार इतने गंभीर हो जाते हैं कि उनसे जीवन घातक स्थितियां पैदा हो जाती हैं। ऐसे में आमतौर पर थेरेपी के बाद कम से कम दो हफ्तों तक मरीज को एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। (और पढ़ें - प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने का कारण )
       
  • एनीमिया -
    कीमोथेरेपी की मदद से बोन मेरो के कुछ हिस्से को नष्ट कर दिया जाता है, जिससे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होने लगती है और परिणामस्वरूप एनीमिया रोग हो जाता है। (और पढ़ें - एनीमिया का घरेलू उपचार)
     
  • म्यूकोसाइटिस -
    मुंह, गले और पेट की अंदरूनी परत में सूजन, लालिमा और दर्द होने की स्थिति को म्यूकोसाइटिस कहा जाता है। (और पढ़ें - सूजन की आयुर्वेदिक दवा)
     
  • मोतियाबिंद -
    बोन मेरो ट्रांसप्लांटेशन के बाद आंख के पिछले हिस्से में मोतियाबिंद हो सकता है। यह काफी दुर्लभ स्थिति है और इसका इलाज करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह आमतौर पर प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने वाली स्टेरॉयड दवाओं के कारण अस्थायी रूप से हो जाती है।

(और पढ़ें - मोतियाबिंद की सर्जरी कैसे होती है)

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संदर्भ

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