पेरीकोनड्राइटिस - Perichondritis in Hindi

Dr. Ayush PandeyMBBS,PG Diploma

November 14, 2018

April 13, 2021

पेरीकोनड्राइटिस
पेरीकोनड्राइटिस

पेरीकोनड्राइटिस होना क्या है?

पेरीकोनड्राइटिस, कान की ऊपरी सतह की सूजन को कहते हैं। इसमें चोट या सर्जरी के बाद कान के बाहरी भाग में इन्फेक्शन हो जाता है। ये इन्फेक्शन कान छिदवाने या कान पर चोट लगने के कारण हो सकता है।

पेरीकोनड्राइटिस होने पर कान के ऊपरी-बाहरी हिस्से में तेज दर्द होता है और ये हिस्सा लाल व मोटा हो जाता है। अगर पेरीकोनड्राइटिस का सही समय पर उचित इलाज न किया जाए, तो इसके कारण कान विकृत हो सकता है और आपको सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।

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पेरीकोनड्राइटिस के लक्षण क्या हैं?

पेरीकोनड्राइटिस होने पर कान में लाली, सूजन, दर्द, पस या अन्य तरल पदार्थ का रिसाव, बुखार और कान विकृत होने जैसी समस्याएं होती हैं। इसके अलावा पेरीकोनड्राइटिस होने पर उठे हुए कान, कान के इन्फेक्शन, अचानक सुनाई देना बंद हो जाना, चक्कर आना, कान से रिसाव, टिनिटस और ताल-मेल बिठाने में दिक्कत जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।

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पेरीकोनड्राइटिस क्यों होता है?

हमारे कान और नाक एक मोटे ऊतक से बने होते हैं जिस पर एक पतले ऊतक की परत मौजूद होती है। इस परत से कार्टिलेज (cartilage) नामक मोटे ऊतक को आवश्यक तत्व मिलते हैं। कार्टिलेज में छेद होने या चोट लगने के कारण इसमें बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो जाता है, जैसे कान की सर्जरी, सिर पर चोट, कान में छेद कराना या खेलते समय कुछ लग जाना।

इसके अलावा कान जलने या एक्यूपंचर के कारण भी इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। पेरीकोनड्राइटिस के कारण कोनड्राइटिस भी हो सकता है, जिसमें कार्टिलेज में ही इन्फेक्शन हो जाता है। इसके कारण कान बुरी तरह से विकृत हो सकता है।

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पेरीकोनड्राइटिस का इलाज कैसे होता है?

पेरीकोनड्राइटिस को ठीक करने के लिए डॉक्टर रोगी को एंटीबायोटिक दवाएं और कॉर्टिकोस्टेरॉइड देते हैं। इन दवाओं का चयन इस बात पर निर्भर करता है कि संक्रमण कितना गंभीर है और ये किस प्रकार के बैक्टीरिया के कारण हुआ है।

दर्द के लिए डॉक्टर पेन किलर दवाएं भी दे सकते हैं। अगर किसी बाहरी वस्तु, जैसे कान की बालियां या लकड़ी के छोटे से कतरे के कारण पेरीकोनड्राइटिस हुआ है, तो डॉक्टर इस वस्तु को निकाल देते हैं। कान से पस निकलने पर कान की परत में हल्का सा छेद किया जाता है ताकि मवाद निकल सके और कार्टिलेज तक सही से खून पहुंच सके।

इसके अलावा कान पर गर्म सिकाई करने से भी लक्षणों से राहत मिल सकती है। कभी-कभी डॉक्टर कार्टिलेज और उसकी बाहरी परत को आपस में टांके लगा देते हैं, ताकि कान विकृत न हो।

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